
Kala Ke Samajik Udgam
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
208
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
416 mins
Book Description
कला-साहित्य-संस्कृति के प्रश्नों पर प्लेखानोव की कृतियों में सर्वोपरि और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं ‘असम्बोधित पात्र’ और ‘कला और सामाजिक जीवन’। कला और साहित्य पर प्लेखानोव की ज़्यादातर कृतियों का मुख्य उद्देश्य कला और इसकी सामाजिक भूमिका को भौतिकवादी दृष्टि से प्रमाणित करना था। इन कृतियों में ‘बेलिस्की की साहित्यिक दृष्टि’ (1897), ‘चेर्निशेव्स्की का सौन्दर्यशास्त्रीय सिद्धान्त’ (1897), ‘असम्बोधित पात्र’ (1890-1900), ‘अठारहवीं सदी के फ्रेंच नाटक और चित्रकला पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक नज़र’ (1905) तथा ‘कला और सामाजिक जीवन’ (1912) प्रमुख हैं।</p> <p>कलात्मक सृजन को वस्तुगत जगत से स्वतंत्र माननेवाले और कला को मानवात्मा की अन्तर्भूत अभिव्यक्ति बतानेवाले प्रत्ययवादी सौन्दर्यशास्त्रियों के विपरीत प्लेखानोव ने दर्शाया कि कला की जड़ें वास्तविक जीवन में होती हैं और यह सामाजिक जीवन से ही निःसृत होती है। कला और साहित्य की एक वैज्ञानिक, मार्क्सवादी समझ विकसित करने का प्रयास उनकी सभी कृतियों की विशिष्टता है। ‘कला, कला के लिए’ के विचार को प्लेखानोव ने तीखी आलोचना की। उन्होंने दर्शाया कि यह विचार उन्हीं दौरों में उभरकर आता है जब लेखक और कलाकार अपने इर्द-गिर्द की सामाजिक दशाओं से कट जाते हैं। यह विचार हमेशा ही प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों की सेवा करता है लेकिन जब समाज में वर्ग-संघर्ष तीखा होता है तो शासक वर्ग और उसके विचारक ख़ुद ही इस विचार को छोड़ देते हैं और कला को अपने बचाव के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करने लगते हैं।