Punjab Ki Lokkathayen
Author:
Phulchand ManavPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
पंजाब की लोककथाएँ प्रेम और अनुराग के संबंधों में धड़कती शाश्वत कहानियाँ हैं। इसलिए कि भारत की आजादी से पहले, पाकिस्तान में स्थित क्षेत्रों में भी ये गूँज छोड़ रही हैं। लोकगीतों में इनके संदर्भ उभरते हैं—टप्पे, सिट्ठणियाँ, बोलियाँ, गिद्दे अथवा भाँगड़े के साथ हमें स्पंदित कर जाते हैं। 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा व हिमाचल के अस्तित्व में आने के बाद भी जो पंजाब आज है, उसमें लोककथाओं की भरपूर विरासत है। यहाँ मालवा, माँझा, दोआबा और पुआध अपनी मूल रंगत में दिपदिपा रहे हैं। सांस्कृतिक संपदा और पारंपरिक कथा-क्षेत्र में प्रेम-प्यार और लोक की लुभावनी गाथाएँ सुना रहे हैं।
लोक-व्यवहार, लोक-परंपरा से लेकर लोक-गीतों में भी हमारे यहाँ कहानियों की भरमार है। हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, शीरी-फरहाद या सोहनी-महिवाल से आगे कामकंदला जैसी सैकड़ों प्रेमकथाएँ हैं, जिनमें लोक-रंग गहरा उभरा है और इन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम सुनते आए हैं। पंजाबी भाषा के किस्साकारों ने अपनी रचनाओं में काव्य कौतुक दिखाकर दर्जनों चिट्ठे-किस्से, प्यार-गाथाओं एवं लोककथाओं के छपवाएँ हैं। शिव कुमार बटालवी की लूणा पूर्ण भगत को बयान करती लोककथा ही तो है। हिंदी पाठक पंजाब की लोककथाओं का आनंद ले पाएँ, प्रस्तुत संकलन इसी उद्देश्य से तैयार
हुआ है।
ISBN: 9789355210395
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: एक छोटे-से गाँव का छोटा-सा बैंक है। बस सौ-डेढ़ सौ खाते ही खुले होंगे वहाँ। लेकिन हर महीने की तीसरी तारीख़ को पास ही के एक हाइवे के तीन बड़े कारख़ानों से बहुत सारा पैसा आके यहाँ जमा होता है। सिर्फ़ तीन घंटों के लिए। और इन तीन घंटों में जो होता है उसके पीछे कुछ मील दूर बसे एक क़स्बे की बीस साल लम्बी दास्तान है। वह दास्तान जिसमें बलखाती, उबाल-भरी प्रेम कहानियाँ हैं। वह दास्तान जिसमें बदलती दुनिया के साथ भागते-हाँफते क़स्बाई सपनों का बेमानीपन है। वह दास्तान जहाँ ज़िन्दगी के ख़ालीपन को भरने के लिए रास्ते भी ऐसे चुने जाते हैं जो कहीं नहीं ले जाते। वह दास्तान पीपलटोले के उन तीन लड़कों की है जिनकी आँखों पे ज़िन्दगी ने ऐसा चश्मा चढ़ा दिया है कि उन्हें अपने चारों तरफ़ सब कुछ बस ग़लत होता दिखाई दे रहा है। आगे वही है जो लूट रहा है, तो हम भी क्यों ना लूटें? बैंक डकैती की एक घटना को लेकर लिखी गई यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। उन अजीब-सी प्रेम कहानियों में भी कल्पना कम है, यथार्थ ज़्यादा जो इसके साथ आप पढ़ेंगे। थोड़े सड़कछाप अन्दाज़ में रुहेलखंडी धज के सा
Beetiaap Beetiaap
- Author Name:
Vipin Kumar Agarwal
- Book Type:

- Description: ‘बीतीआप बीतीआप’ एक नए ढंग का उपन्यास है। भाषा और शैली के नवोन्मेषी प्रयोग के माध्यम से यह एक रचनाशील व्यक्ति की कहानी बताता है। इलाहाबाद की साहित्यिक पृष्ठभूमि में नायक की सफल कवि बनने की आकांक्षा उसे प्रेम और जीवन की विचित्र परिस्थितियों में ले जाती है, जहाँ वह निराला के सार्वभौमिक भाव का साक्षात्कार करता है। लेकिन इस बीच वह अपने परिवेश, अपने जीवन और उससे जुड़े लोगों की कहानियाँ भी बताता चलता है। विपिन कुमार अग्रवाल की विशेषता है कि दैनिक जीवन की साधारण घटनाओं को भी वे अपने भाषा-चातुर्य तथा कल्पना द्वारा विशेष अर्थ से भर देते हैं। भाषिक प्रयोग, परिस्थिति वर्णन और व्यक्तियों के चित्र खींचने की शैली इस उपन्यास को प्रयोगधर्मिता के एक भिन्न स्तर पर ले जाती है।
Moti Chune Hansa
- Author Name:
Dr. Praveen "Tanmay"
- Book Type:

- Description: मोती चुने हंसा' काव्यकृति में प्रेम के जीवनदर्शन को प्रस्तुत किया गया है। प्रेम जीवन-सागर का ऐसा मोती है, जिसे भावुक और संवेदनशील स्वभाव वाला व्यक्ति पहचान लेता है। प्रारंभ में प्रेम शारीरिक प्रतीत होता है, लेकिन आगे चलकर पता चलता है कि यह नितांत आंतरिक और सूक्ष्म है। जीवन के सुख-दु:ख में हमें कई प्रकार से इसकी अनुभूति होती रहती है। प्रेम के क्षणों की तलाश ही जीवन-यात्रा का प्रमुख लक्ष्य है। जिस प्रकार हंस बाकी सब छोड़ केवल मोती ही चुगता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के मूल्यवान क्षणों को अपनाकर आत्मसात् कर लेना चाहिए, क्योंकि प्रेम ही हमारे व्यक्तित्व को पूर्णता की ओर ले जाता है। यह कभी मिटता नहीं है। आत्मा की तरह अमर हो जाता है। पुनर्जन्म की संकल्पना इसी से जुड़ी है। और हाँ, प्रेम में देना ही है, लेना कुछ नहीं है। प्रेम समर्पण की भावना का आधार है। इसलिए हंस की तरह मोती चुनिए और जीवन को सार्थक बनाइए।
Bhrashtachar Ka Achar
- Author Name:
Rajesh Kumar
- Book Type:

- Description: "भ्रष्टाचार का अचार—राजेश कुमार आज रंग-मंच को लेकर कम उत्साह है, क्योंकि इनका मंचन व्ययसाध्य है और टिकट खरीदकर नाटक देखने का स्वभाव प्रायः लोगों का नहीं है। ऐसी स्थिति में नुक्कड़ नाटक समाज को आईना दिखाने का सबसे सशक्त माध्यम हैं। इनके माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुँचाना आसान है। प्रस्तुत पुस्तक में सरकार की मनमानी, शोषण, बेगार, असमानता, भ्रष्ट नीतियों के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त कर चेतना और जागरूकता लानेवाले नुक्कड़ नाटक संकलित हैं, जो पाठक के दिल में उतरकर मन-मस्तिष्क पर छा जाते हैं। कुल मिलाकर ये नाटक अपनी ही व्यथा-कथा लगते हैं। आम लोगों के दुःख-दर्द एवं भ्रष्टों की पोल खोलता नुक्कड़ नाटकों का रोचक संकलन ‘भ्रष्टाचार का अचार’। "
Daulati
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

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Description:
महाश्वेता देवी की रचनाओं की केन्द्रीय चेतना लोकधर्मी है। उनके लेखन का बुनियादी मन्तव्य दलितों की ज़िन्दगी को उभारकर सामने लाना है जो न केवल सामन्ती शोषण के शिकार हैं बल्कि जिन्हें तबाह करने में सरकारी नीतियों की भी बराबर की हिस्सेदारी है।
यह बात साफ़ हो चुकी है कि आदिवासी जन–जीवन की त्रासदी के बीज विषैली राजनीति में हैं और राजनीति की चालाक साज़िशों ने संगठित वर्ग–संघर्ष को विभाजित जाति–संघर्ष में तब्दील कर दिया है। ज़मींदारों ने भूमिहीन आदिवासियों के बीच धर्मों और जातियों के बँटवारे का सहारा लेकर उन्हें संगठित वर्ग की शक्ल में कभी नहीं आने दिया।
महाश्वेता जी के कथानक इन बारीक षड्यंत्रों को बेनक़ाब करते हैं। सरकारी कामकाज के असली चेहरों और ज़मींदारों के साथ सरकारी नुमाइंदों के आर्थिक रिश्तों को देखने–समझने के लिए जिस दृष्टि की ज़रूरत है, महाश्वेता जी की रचनाएँ उस दृष्टि को पैदा करती हैं।
इस पुस्तक के पृष्ठों पर तीन सशक्त उपन्यास छपे हैं। इन उपन्यासों का कथा–केन्द्र आदिवासी स्त्रियों की पीड़ित ज़िन्दगी है। तीन उपन्यासों की तीन प्रतिनिधि स्त्री पात्र हैं, दौलति, बासमती और गोहुअन। समान आर्थिक स्थितियों के बावजूद तीनों की सोच में बुनियादी फ़र्क़ है और यह फ़र्क़ आदिवासी स्त्री के मनोविज्ञान और उसकी संघर्ष–क्षमता को विभिन्न रूपों में उद्घाटित करता है।
स्त्री का क्रय–विक्रय, देह–व्यापार की कसैली विवशताएँ, ‘चुकी’ हुई वेश्याओं की तिरस्कृत वेदनाएँ और उनकी गुमनाम मौत; और इन सबके लिए ज़िम्मेवार सामन्ती व्यवस्था के दाँवपेंच—यह संक्षेप है ‘दौलति’ का।
दूसरा तेज़–तर्रार उपन्यास है ‘पलामौ’। आदिवासियों के शोषण को एक नए कोण से समझने की कोशिश, और आदिवासियों के विकास के सम्बन्ध में सरकारी दावों के खोखलेपन का पर्दाफ़ाश करनेवाला यह उपन्यास आदिवासी–जीवन का प्रतिबिम्ब है।
‘गोहुअन’ की कथा आदिवासी स्त्री के एक भिन्न स्वरूप को सामने रखती है। एक विषैले सर्प ‘गोहुअन’ के प्रतीक के ज़रिए आदिवासी स्त्री का स्वाभिमानी तेवर इस उपन्यास में बहुत गम्भीरता से व्यक्त ह़ुआ है।
Phool Imartein Aur Bandar
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

- Description: रे समय के सबसे बड़े साहित्यकार सोल्ज़ेनित्सिन ने ‘नोबेल पुरस्कार’ लेते समय अपने भाषण में कहा था—“अगर लेखक नहीं तो दूसरे कौन अपने यहाँ की असफल सरकारों को अपराधी ठहराएँगे और लेखकों के अलावा कौन अपने समाज को उसके भीरुताजन्य अपमान अथवा आत्मतुष्ट नपुंसकता के लिए दोषी ठहराएगा?” अपने देश में क्या हुआ कि सरकारें तो बदलीं पर कुछ नहीं बदला? अपने आठवें उपन्यास ‘फूल...इमारतें और बन्दर’ में गोविन्द मिश्र इस प्रश्न से टकराते हुए सरकार के भीतरी ढाँचे में हमें ले जाते हैं, जिसमें फँसा एक संवेदनशील अधिकारी लगातार होते हुए अपने नैतिक पतन को स्वयं देख रहा है। उस व्यक्ति के माध्यम से उपन्यासकार हमें प्रशासन के ऊपरी तंत्र के तिलिस्म के सामने ला खड़ा करता है जो बाहर से रहस्यमय, अबूझ, अभेद्य और साफ़-सुथरा लगता है, पर जो भीतर से उतना ही छिछला, गिजगिजा और भ्रष्ट है। और जो दरअसल उपन्यास का मुख्य पात्र है। उस तिलिस्म के भीतर के चतुर खिलाड़ी कौन हैं, अपने ‘पावर गेम्स’ कैसे खेलते हैं, ‘ग्रीन रूम’ में क्या-क्या और कैसे चलता है...तंत्र को अपने स्वार्थ के लिए नेता और बड़े अफ़सर कैसे और भ्रष्ट करते हैं...इस यथार्थ के कितने आयाम उपन्यास में खुलते चले जाते हैं। उन्हें जीवन के वृहत्तर सवालों से छोड़कर, नियति-न्याय के परिप्रेक्ष्य में रखकर उपन्यासकार जैसे एक सामान्य यथार्थवादी राजनीतिक उपन्यास की सीमाओं को लाँघ एक बड़ी रचना की सृष्टि अनायास ही कर गया है। पाठकों को सोल्ज़ेनित्सिन का एक और कहना याद आएगा—“वह साहित्य जो अपने समय के नैतिक और सामाजिक ख़तरों को व्यक्त नहीं करता, साहित्य कहलाने लायक़ नहीं है।” हिन्दी में अपने क़िस्म का पहला उपन्यास जिसे गोविन्द मिश्र ही लिख सकते थे और उनका ‘देय’ था, एक तरह से
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