Urmila
Author:
Asha PrabhatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
रामकथा में उर्मिला लगभग उपेक्षित पात्र है। लक्ष्मण के लम्बे विरह और उस दौरान अपने कर्तव्यों का उदात्त भाव से पालन करनेवाली उर्मिला के चरित्र को पर्याप्त विस्तार न तो वाल्मीकि रामायण में मिला है, और न ही तुलसी के मानस में। यह उपन्यास इसी अदीखते-से पात्र के व्यक्तित्व को विभिन्न आयामों से प्रकाशित करने का प्रयास है।</p>
<p>सीता की भाँति उर्मिला को अपने प्रिय के साथ वन जाने का अवसर नहीं मिला, इसलिए स्वाभाविक ही उन्हें जनसाधारण के सम्पर्क में आने, उनके अभावों और प्रसन्नताओं को देखने का अवसर भी नहीं मिला। वे सदैव राजभवनों में रहीं। लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि सुख के उन तथाकथित आगारों में कष्टों और विडम्बनाओं के अनेक रूप देखने को नहीं मिलते! क्या यह सम्भव है कि राम, लक्ष्मण और सीता के प्रस्थान के बाद राजभवन और वहाँ रह गए लोगों की मन:स्थिति में आमूल परिवर्तन नहीं आया होगा? क्या उर्मिला ने सब कुछ सहते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए गहन दुख का सामना नहीं किया होगा!</p>
<p>यह उपन्यास इसी दृष्टि से उर्मिला के सम्पूर्ण अनुभव-जगत को अंकित करने का प्रयास करता है। उपन्यासकार के शब्दों में, ‘उर्मिला का तप बहुत कठिन है। विरह का ताप कमोबेश हर स्त्री भोगती है परन्तु उर्मिला का विरह इस मायने में विशिष्ट है कि उसमें अश्रुओं के निकलने की वर्जना भी शामिल है। सन्ताप के घोर पलों में क्या आँसुओं की वर्जना सम्भव है? यदि इसे उर्मिला सम्भव करती हैं तो यह उनके अन्दर की दृढ़ता ही कही जाएगी।’</p>
<p>व्यापक अध्ययन, सम्यक कल्पना और गहरी सहानुभूति के आधार पर रचा गया यह उपन्यास उर्मिला के अन्य गुणों को भी रेखांकित करता है, साथ ही उस युग के सामाजिक-सांस्कृतिक विन्यास को भी स्पष्ट करता है जिसके परिप्रेक्ष्य में हम अपने वर्तमान की परख कर सकते हैं।
ISBN: 9789393768674
Pages: 248
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘‘...विनायक के अनेक दोस्त उपन्यास में अपनी अलग पहचान तो बनाते ही हैं, साथ ही उनके माध्यम से एक उत्तर-भारतीय क़स्बे के सामाजिक जीवन की अनेक परतें अपने बुनियादी अन्तर्विरोधों के साथ उद्घाटित हुई हैं, जिनकी बहुआयामिता सचमुच प्रभावी है।...‘गोबरगणेश’ की भाषा और दृष्टि में, विशेषकर पहले खंड में, बहुत दूर तक एक कवि-उपन्यासकार की संवेदना की छाप मिलती है। यह बात उसे हिन्दी कथाकारों की एक ख़ासी लम्बी और बड़ी परम्परा से जोड़ती है, जिसमें जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, मुक्तिबोध आदि अनेक लोग हैं।...’’
—नेमिचन्द्र जैन (‘जनान्तिक’, पृ. 106-07)
‘‘...विनायक की यह दुनिया चार्ल्स डिकेंस के पिप या ओलीवर या डेविड कॉपरफिल्ड के बचपन की दुनिया है—काल्पनिक, पर अनुभूत; आत्यन्तिक, पर विश्वसनीय—इन्द्रधनुषी मानवीय ऊष्मा लिये, वास्तविक यथार्थ से कहीं ज़्यादा यथार्थ, कहीं ज़्यादा संवेद्य। इस दुनिया के अन्न-जल से पला-पुसा विनायक वास्तविक जीवन-समर में प्रवेश करते ही जटिलता की चट्टान से टकराकर बिखरने लगता है...’’
—मलयज (‘संवाद और एकालाप’, पृ. 27)
Doctor On a Warfront
- Author Name:
Dr. Bharat Kelkar
- Book Type:

- Description: युद्ध! कोणतंच युद्ध माणसाला शहाणं करत नाही की कोणत्याही प्रश्नांची उत्तरं देत नाही. उलट ते नवे प्रश्न निर्माण करतं. बदल्याच्या भावनेनं माणसाला वेडं बनवतं. तरीही माणसं युद्ध करत राहतात, नवनवी शस्त्रं हाती घेऊन परस्परांना मारत राहतात. पण त्यात भरडले जातात ते निरपराध सामान्य नागरिक. विशेषतः युद्धाशी संबंध नसणाऱ्या महिला, मुलं आणि वयोवृद्ध माणसं हकनाक बळी ठरतात युद्धाचे... हीच बाब अनेकांना खेचून नेते युद्धभूमीकडे माणुसकीवरचा विश्वास दृढ करण्यासाठी... अशी माणसं मग युद्धाच्या जखमांवर उपाय करण्यासाठी धडपडत राहतात... त्यातूनच जन्माला येते ‘डॉक्टर विदाऊट बॉर्डर्स'सारखी संस्था, जी निसर्गनिर्मित अथवा मानवनिर्मित आपत्तींमध्ये अडकलेल्यांना जीवदान देण्याचं काम अव्याहतपणे करते. हीच संस्था काही सेवाव्रत्तींना संधी देते अडचणीत सापडलेल्या माणसांना वाचवण्याची. स्वतःचा जीव धोक्यात घालून ही सेवाव्रत्ती माणसं सहभागी होतात अशा मिशनमध्ये आणि अनुभवाचं एक वेगळंच विश्व घेऊन परततात. कसा असतो हा जगावेगळा अनुभव? कोणत्या परिस्थितीत ते युद्धग्रस्तांवर उपचार करतात? युद्धाकडे ते कसे बघतात? उपचारासाठी येणारे युद्धग्रस्त त्यांच्याकडे कसे बघतात? डोळ्यांसमोर अनेकांचा मृत्यू दिसत असताना जखमींना वाचवण्याची कसरत कशी चालते? अशा एक ना अनेक प्रसंगांचं, युद्धभूमीवरच्या नाट्याचं थरारक तितकंच अस्वस्थ करणारं अनुभवकथन... सीरिया, येमेन आणि इराक या तीन युद्धग्रस्त भागात रुग्णसेवा देण्यासाठी गेलेल्या एका भारतीय ऑर्थोपेडिक सर्जनने घेतलेले विलक्षण अनुभव मांडणारे मराठीतले पहिलेच पुस्तक... ‘डॉक्टर ऑन अ वॉरफ्रंट'! डॉक्टर ऑन अ वॉरफ्रंट | डॉ. भरत केळकर Doctor On A Warfront | Dr. Bharat Kelkar
Yeh Bhi Jhooth Hai
- Author Name:
Dinesh Nandini Dalmiya
- Book Type:

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Description:
सामंतशाही के गर्भ से जन्मे पूंजीवाद के वीभत्स चेहरे को सामने लाने का काम भारी जोखिम और चुनौती से भरा हुआ है। पूंजीवाद के ढहते किले की कमजोर दीवारों से झड़ती रेत को देखना भी कम साहस भरा काम नहीं है। लेकिन सुपरिचित लेखिका दिनेश नंदिनी डालमिया ने अपने इस उपन्यास में ऐसी तमाम रचनात्मक चुनौतियों को स्वीकार किया है। सड़े-गले समाज में दम तोड़ते विखंडित जीवन-मूल्यों की ही अविस्मरणीय अंतरकथा है यह उपन्यास ।
जिस समाज में सच के पक्ष में खड़े होना ही एक दुर्लभ दृश्य बन गया हो, जिस समाज में सरेआम सच्चाई पर झूठ और पाखण्ड का शासन चल रहा हो, जिस समाज में सच जीवित इंसानों के सीनों में दम तोड़ते सपनों में बदल गया हो, यह उपन्यास उसी समाज में जड़ और गतिहीन सम्बन्धों के अंतर्द्वद्ध को उजागर करता है।
विघटन की अनिवार्य शर्तों के विरुद्ध मानवीय सम्वेदनाओं के पक्ष में जूझते पात्रों की त्रासदी इस उपन्यास के केन्द्र में है। पृष्ठभूमि में है, स्वार्थ का कुरुक्षेत्र। सुई की नोक-बराबर भी अधिकार न देने वाले स्वार्थों की जमीन पर लड़े जा रहे महाभारत की कहानी ही इस उपन्यास में दर्ज है।
अनुभव की प्रामाणिकता और लम्बे जीवन-संघर्ष की अमूल्य विरासत से जुड़ी लेखिका अपने समाज को जिस आत्मीयता और निजता से महसूसती, देखती और अभिव्यक्त करती है, उसमें व्यवहार और सिद्धान्त के बीच कोई खाई नहीं है।
इसके शब्द सहज घटनाओं को अपनी विश्वसनीयता सौंपते हुए पाठक को अपनी जकड़ में लिये चलते हैं। कुल मिलाकर यह उपन्यास हमारे समय की एक महत्त्वपूर्ण कृति है।
Herbert
- Author Name:
Navarun Bhattacharya
- Book Type:

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Description:
बिलकुल नई भाषा-भंगिमा और अद्भुत कथा-सामर्थ्य को उपस्थित करता यह उपन्यास अपने आप में इस बात का सबूत है कि कैसे आकार में बड़ी न होकर भी एक कथा अपने समय और जीवन का विशद आख्यान बन सकती है। प्रतिष्ठित कथाकार देवेश राय का अभिमत है कि बाँग्ला भाषा में समकालीन दौर में ‘हरबर्ट’ जैसा मौलिक उपन्यास दूसरा नहीं लिखा गया। 1997 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि-कथाकार नवारुण भट्टाचार्य उन बिरले लेखकों में हैं जिनके इस पहले ही उपन्यास पर यह पुरस्कार मिला। समकालीन बाँग्ला साहित्य में जबरदस्त हलचल उत्पन्न करने वाली यह कृति ‘नरसिंह दास अवार्ड’ और ‘बँकिम पुरस्कार’ पहले ही पा चुकी थी।
यह उपन्यास महज कथा-नायक हरबर्ट सरकार की जीवन कथा ही नहीं है बल्कि अपने समय के इतिहास से गुजरते हुए एक ऐसे व्यक्ति की दास्तान है जिसके भीतर भी एक इतिहास है और जो अपनी मामूली जिंदगी को एक अर्थ देने के लिए अपने समय में असफल हस्तक्षेप करता है। गुजरते वक्त का इतिहास उपस्थित करते हुए हरबर्ट के भीतर बैठे इतिहास की खिड़की खोलने में उपन्यासकार ने जो आख्यान रचा है, उसमें उन्नीसवीं सदी के बाँग्ला कवियों की काव्य-पंक्तियाँ हर अध्याय के शुरू में जीवन दर्शन की तरह उपस्थित होती हैं और व्यक्ति, पीढ़ियाँ, पैतृक मकान, मुहल्ला, शहर, संबंध, भाईचारा, बेगानापन, समाज-व्यवस्था, राजनीतिक प्रणाली, व्यवस्था परिवर्तन का प्रतिरोध, पूँजीवादी आधुनिकता और उसकी क्रूरता आदि को समेटती हुई मामूली आदमी की महागाथा तैयार हुई है।
इतने छोटे कलेवर के उपन्यास में इतने सघन प्रभाव के साथ यह सब संभव हो पाया है अपने अपूर्व रचना-विधान और विशिष्ट भाषा रीति के कारण, जो उपन्यास लेखन की प्रचलित और परिचित परिपाटी से भिन्न नवारुण भट्टाचार्य की मौलिक उद्भावना है। यह उपन्यास गुजरते हुए काल का इतिहास है, बीत चुका अतीत नहीं–यह जारी है। और, हरबर्ट भी मरता नहीं–बार-बार पैदा हो जाता है।
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