Rays & Ripples
Author:
Carlos LuisPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 127.5
₹
150
Available
When was the last time you spoke to nature, as our forefathers did? Receiving thus graces in abundance from it. When was the last time you helped your neighbour in need or was a Ray of hope? Consequently, turn yourself into a good Samaritan, spreading ripples of your goodness and love to people around you. This book assures you a ride through a dialogue with nature, motivating you to be a friend and inspiring you to love unconditionally. This collection entertains one while also giving a hint to a better living through poems and short stories.
ISBN: 9789385137419
Pages: 75
Avg Reading Time: 1 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Mukhyamantri
- Author Name:
Chanakya Sen
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Description:
‘मुख्यमंत्री’ एक राजनीतिक उपन्यास है। इसमें भारत के समकालीन राजनीतिक जीवन का आश्चर्यजनक यथार्थ चित्रण है। यह कृति वर्तमान भारतीय जीवन की तीखी आलोचना है। कृष्ण द्वैपायन कौशल का दुर्धर्ष व्यक्तित्व, उसकी रसिकता, उसके कुटिल राजनीतिक दाँव-पेच, अपने राजनीतिक संगी-साथियों के दोषों और कमज़ोरियों को पहचानने का उसका बुद्धिकौशल तथा सत्ता हथियाने के लिए सिद्धान्तों की भी निर्ममतापूर्वक
हत्या करने में गुरेज़ न करना—इन सबके कारण वह एक जीवन्त और शक्तिशाली चरित्र बन गया है। इसके साथ ही उपन्यास में उन अनेक राजनीतिज्ञों का भी बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है जिन्हें हमने देखा-सुना तो है, पर जिनके बारे में हमने कुछ अस्पष्ट-सी धारणाएँ बना रखी हैं। किन्तु उपन्यासकार ने इन सबको पूरे फ़ोकस में लाकर खड़ा कर दिया है।
‘मुख्यमंत्री’ मूल बांग्ला में 1966 में प्रकाशित हुआ था। अब तक इसके अनेक संस्करण हो चुके हैं। यह एक असाधारण उपन्यास है। भारतीय भाषाओं में लिखे गए राजनीतिक उपन्यासों में मुख्यमंत्री अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भारतीय राजनीति के चारित्रिक ह्रास को समग्रता में उद्घाटित करता इसका कथानक ऐतिहासिक साहित्यिक दस्तावेज़ बन जाता है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद के वर्षों में राजनीतिक सत्ता पाने और बनाए रखने के लिए जोड़-तोड़ के जिन समीकरणों को स्थापित किया गया उन्होंने ही आगे चलकर सम्पूर्ण भारतीय राजनीति में चारित्रिक प्रदूषण फैलाया है। स्वतंत्रतापूर्व के आदर्श स्वातंत्र्योत्तर भारत की राजनीति में किस प्रकार एकांगी व असहाय हो गए यह भी इस उपन्यास में देखा जा सकता है।
स्वतंत्रता के बाद के वर्षों की यह कथा हमारी आज की व्यथा से अलग नहीं है। यही वजह है कि यह उपन्यास वर्षों बाद भी प्रासंगिक है, बल्कि कहना चाहिए कि आज और अधिक प्रासंगिक है।
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