Shabdon Ka Jeevan
Author:
Bhola Nath TiwariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस होते हैं। उन्हें समझना और समझाना, दोनों ही कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। इसलिए लेखक का ध्यान इस ओर पाठक से भी पहले जाता है और इस विषय को वह अधिकाधिक पठनीय बनाकर प्रस्तुत करता है।</p>
<p>शब्दों का जीवन सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी के ऐसे ही प्रयास का परिणाम है। उनकी यह कृति हिन्दी में ऐसा पहला ही प्रयास था, जब किसी ने भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया हो। भाषाविज्ञान पर यह उनकी सर्वथा अनूठी कृति है। उनकी कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे शब्दों का मानवीकरण करने में सफल रहे हैं।</p>
<p>प्रत्येक शब्द का अपना इतिहास है और अपना भूगोल। कहना न होगा कि सामान्य पाठकों के लिए यदि यह कृति ललित निबन्धों का संग्रह है तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान जैसे विषय को अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में हृदयंगम करानेवाली बहुचर्चित कृति।
ISBN: 9788119159246
Pages: 119
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Hindi Sahitya : Srishti Aur Drishti
- Author Name:
Sadanand Prasad Gupt
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा है, 'हमें अपनी दृष्टि से दूसरे देशों के इतिहास को देखना होगा, दूसरे देशों की दृष्टि से अपने इतिहास को नहीं।'
इस दृष्टि से 'राष्ट्रीयता की भारतीय अवधारणा' तथा 'राष्ट्रीय चेतना' को देखा जा सकता है। पश्चिम में राष्ट्रीयता को जिस रूप में परिभाषित किया जाता रहा है, भारतीय परम्परा में उससे भिन्न अवधारणा विकसित हुई है। जहाँ पश्चिम की राष्ट्रीयता राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है वहीं भारत में राष्ट्रीयता की अवधारणा सांस्कृतिक उद्देश्यों से परिचालित है और उसका अधिष्ठान आध्यात्मिक है।
पुस्तक में छायावादी कवियों में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला को वामपंथी खाँचों के भीतर मूल्यांकित करने के प्रयास हुए हैं जबकि निराला को समग्रता में पढ़ा जाय तो स्पष्ट होता है कि उनका साहित्य भारतीय परम्परा का पुनराख्यान और विकास है।
सच्चिदानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, निर्मल वर्मा तथा रमेशचन्द्र शाह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के ऐसे विचारक रचनाकार हैं, जिन्होंने पश्चिम के बौद्धिक जगत के समक्ष भारतीय चिन्तन परम्परा के वैशिष्ट्य को आत्मविश्वास के साथ आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रखा।
भारतीय ज्ञान एवं साधना परंपरा के वैशिष्ट्य को रूपायित करने और सम्पूर्ण भारतीय समाज को दिशा देने में नाथपंथ तथा उसके प्रवर्तक के रूप में महायोगी गुरु गोरखनाथ का सर्वाधिक योगदान है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के विरले ऐसे शिखर पुरुष रहे हैं, जिनके चिंतन की दिशा पश्चिमोन्मुख नहीं रही है, उनपर भारतीय अद्वैत दर्शन का गहरा प्रभाव है। इसलिए इस पुस्तक में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को विवेचन का विषय बनाया गया है। भारतेन्दु-युग के तेजस्वी रचनाकार राधाचरण गोस्वामी और द्विवेदी युग के महत्त्वपूर्ण कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के रचनाकार व्यक्तित्व से सम्बन्धित आलेख को इस पुस्तक में स्थान दिया गया है।
Sanskriti Ke Chaar Adhyay
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
...यह सम्भव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताक़तें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन, इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व का विकास किया गया है। उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन-से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है। भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है। भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है। यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे। और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम, सब-के-सब अधूरे रह जाएँगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हों।
मेरा विचार है कि दिनकर की पुस्तक इन बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी। इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभान्वित होंगे।
Sher-E-Garhwal : Azadi Ke Aandolan Ke Ek Gumnaam Nayak Ki Kahani
- Author Name:
Kranti Nautiyal
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Tulanatmak Saahitya Saiddhantik Pariprekshya
- Author Name:
Hanumanprasad Shukla
- Book Type:

-
Description:
तुलनात्मक साहित्य के विकास की पिछली डेढ़-दो शताब्दियों में बहुत सारे सवालों, संकटों, चुनौतियों और सच्चाइयों से हमारा साक्षात्कार हुआ है। यह बात अब सिद्ध हो चुकी है कि तुलनात्मक साहित्य एक अध्ययन-पद्धति मात्र होने के बजाय एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन का रूप ले चुका है। एकल साहित्य से उसका कोई विरोध नहीं है, बल्कि दोनों के अध्ययन का आधार और पद्धति एक ही तरह की होती है। तुलनात्मक साहित्य का एकल साहित्य अध्ययन से अन्तर अन्तर्वस्तु, दृष्टिबिन्दु और परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से होता है।
तुलनात्मक साहित्य अध्ययन को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति तुलनीय साहित्यों की भाषाओं की विशेषज्ञता को लेकर है। केवल भाषाज्ञान से साहित्यिक अध्ययन की योग्यता या समझ हासिल हो जाना ज़रूरी नहीं है, इसलिए तुलनीय साहित्यों के मूल भाषाज्ञान पर तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के प्रस्थान बिन्दु के रूप में अतिरिक्त बल देना इस अनुशासन से अपरिचय का द्योतक है। तुलनीय साहित्यों का भाषाज्ञान और उसमें दक्षता निश्चय ही वरेण्य है और तुलनात्मक साहित्य अध्ययन में साधक भी है, पर अधिकांश अध्ययनों के लिए अनुवाद (निश्चय ही अच्छा अनुवाद) आधारभूत और विकल्प हो सकता है। दरअसल अनुवाद को तुलनात्मक साहित्य के सहचर के रूप में देखना चाहिए।
भारत में तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के क्षेत्र में अधिकांश कार्य अंग्रेज़ी में और उसके माध्यम से हुआ है; अतः उसमें तुलनात्मक चिन्तन के भारतीय सन्दर्भ बहुत कम हैं। आज तुलनात्मक अध्ययन अनुशासन की उस सैद्धान्तिकी की तलाश अनिवार्य है, जो भारतेतर विचारकों और पश्चिमी चिन्तन को भी ध्यान में रखते हुए भारतीय मनीषा के अन्तर्मन्थन से निकली हुई मौलिक अवधारणाओं के सहारे विकसित हो।
प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त दिशा में आधार विकसित करने का हिन्दी में पहला व्यवस्थित उद्यम है।
Bharatmata : Dhartimata
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक 'भारतमाता-धरतीमाता' समाजवादी विचारक और चिन्तक
डॉ. राममनोहर लोहिया के सामाजिक, सांस्कृतिक (ग़ैर राजनीतिक) लेखों का संग्रह है जो लोहिया के सांस्कृतिक मन और सोच को उजागर करता है। संग्रह के सभी लेख मूल रूप में ग़ैर राजनीतिक हैं, लेकिन कहीं-कहीं राजनीति की झलक ज़रूर दिख जाती है, वह लोहिया की मजबूरी थी। रामायण, राम, कृष्ण तीर्थों और अन्य विषयों पर उनकी जो दृष्टि थी उनमें वे आधुनिक सन्दर्भ को जोड़ते थे, इसलिए कहीं-कहीं राजनीति की झलक मिलती है। संग्रह के सभी लेख लोहिया जी के जीवन-काल में सन् 1950 से 1965 तक के कालखंड के ही हैं, अत: बीच-बीच में आबादी आदि के जो आँकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, वे उसी समय के हैं।प्रस्तुत पुस्तक निःसन्देह पठनीय और संग्रहणीय है।
Deshbhakti ke pavan teerth
- Author Name:
Rishi Raj
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Itihas Aur Aalochak-Drishti
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
साहित्य जीवन की पुनर्रचना है तो आलोचना साहित्य की पुनर्रचना है। साहित्य के इतिहास को तब जीवन, साहित्य और आलोचना की गति तथा उनके आपसी रिश्तों को समझना तथा व्याख्यायित करना है। रचना से पुनर्रचना के इन स्वचेतन होते क्रमिक चरणों में वैचारिकता का सम्पर्क बढ़ता जाए तो यह स्वाभाविक है। इस स्थिति में कह सकते हैं कि साहित्य का इतिहास अनुभव और विचार की अन्तर्क्रिया की पुनर्रचना है। और उसके लिए सबसे बड़ी समस्या और चुनौती यह है कि अपने स्वयं तो इतिहास की प्रक्रिया में अंगीकृत हो।
‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’ में हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक नए स्तर पर अनुभावन और विवेचन सम्भव हुआ है। पूरे अध्ययन में दो प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। एक ओर तो ख्यात आलोचकों के वैशिष्ट्य का रूप उभरता है, और दूसरी ओर उनके द्वारा विवेचित अलग-अलग इतिहास-युगों का चित्र स्पष्ट होता चलता है। इतिहास और आलोचना का हिन्दी साहित्य के सन्दर्भ में ऐसा सम्पृक्त और द्वन्द्वात्मक रूप पहली बार देखने को मिलता है। कविता-यात्रा और गद्य की सत्ता के विविध रूपों के विवेचन और भाषिक सर्जनात्मक अन्वेषण के बाद समीक्षक ने अगले चरण में इतिहास-आलोचना की विशिष्ट प्रक्रिया का यह अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिस विकास-क्रम में उसकी प्रामाणिकता प्रशस्त होती है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास का कोई भी अध्ययन इस कृति के द्वारा समृद्ध और समग्रतर होगा।
Prarambhik Rachanayen
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
नामवर सिंह हिन्दी आलोचना के स्तम्भ हैं। उनके प्रारम्भिक साहित्यिक जीवन में बहुत कुछ है जो अब तक लुप्त है। प्रस्तुत पुस्तक में उनके प्रारम्भिक लेखन की कुछ बानगी भर
है।नामवर सिंह ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत काव्य-लेखन से की थी। चौदह वर्ष की उम्र, यानी 1938 से उनका काव्यारम्भ हुआ। सबसे पहले वे ब्रजभाषा में कवित्त और सवैया लिखते थे। 1941 ई. में वे बनारस अध्ययन करने आए और उनका सम्पर्क त्रिलोचन से हुआ। त्रिलोचन ने उन्हें खड़ी बोली में लिखने को उत्प्रेरित किया। उन्होंने 1941 ई. से अबाध गति से कविता लिखना शुरू किया। छन्दों पर निरन्तर अभ्यास करते गए और कविता-लेखन का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ, वह अविराम गति से 1957 ई. तक चला। फिर वह सदा के लिए बन्द हो गया।
1950 ई. तक उन्होंने विविध प्रकार की गद्य रचनाएँ लिखीं, जिनमें से 17 निबन्धों का एक संग्रह ‘बक़लम खुद’, नाम से 1951 ई. में प्रकाशित हुआ।
नामवर सिंह की प्रारम्भिक रचनाओं का अपना एक अलग ही महत्त्व है। इनके द्वारा हम नामवर सिंह के साहित्यिक विकास की जड़ों को भी पहचान सकते हैं और उनके प्रारम्भिक साहित्यिक जीवन के भाव-बोध एवं विचारों की भी पड़ताल कर सकते हैं।
नामवर सिंह की प्रारम्भिक रचनाओं में कच्चापन नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने सघन साहित्य-साधना की थी। उनकी स्मरणशक्ति लाजवाब थी। बौद्धिक ओजस्विता से वे भरे हुए थे। इसीलिए बहुत कम उम्र में ही वे एक बौद्धिक ऊँचाई ग्रहण करते हैं। भारत यायावर ने नामवर सिंह की प्रारम्भिक रचनाएँ संकलित कर एक सराहनीय कार्य किया है।
Aadhunik Sahitya : Mulya Aur Mulyankan
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

-
Description:
रचना और आलोचना की सतत् विकासमान प्रक्रिया युग-सापेक्ष सही मूल्यों का निर्धारण करती है तथा उन सार्थक प्रतिमानों का निर्माण करती चलती है जो साहित्य के मूल्यांकन को दिशा और गति देते हैं। इस दृष्टि से देखें तो डॉ. निर्मला जैन की यह पुस्तक अपना विशेष महत्त्व रखती है। इसमें 'मूल्य' और 'मूल्यांकन' के ही बिन्दुओं पर आधुनिक साहित्य की रचनात्मकता और आलोचनात्मकता के प्रश्नों को बारीकी और संजीदगी से उठाया गया है।
‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्याकंन’ आलोचनात्मक निबन्धों का एक सुनियोजित उपयोगी संकलन है। समय-समय पर लिखे गए अपने इन निबन्धों में डॉ. जैन ने बहुत ही धारदार शैली में साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों और समस्याओं का वैचारिक विश्लेषण किया है। अनेक ऐसे मुद्दों को उन्होंने यहाँ नए आयाम दिए हैं जो बहसों के दौरान आए दिन बार-बार सामने आते रहे हैं। साथ ही, कविता और कथा के क्षेत्रों में अब तक की विशिष्ट उपलब्धियों को भी उन्होंने नए कोणों से देखा-परखा और रेखांकित किया है। संक्षेप में, यह पुस्तक रचना और आलोचना की सही पहचान कराने में सक्षम है।
Stree-Mukti Ki Samajiki : Madhyakal Aur Navjagaran
- Author Name:
Anamika
- Book Type:

-
Description:
आज भी स्त्रीवाद के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य यही है कि वह मनुष्य मात्र में स्त्री-दृष्टि का विकास करे। यह सिर्फ़ स्त्रियों की अपनी मुक्ति का मसला नहीं है, पुरुष को भी उन जकड़बदियों से मुक्त होने की ज़रूरत है जो एक तरफ़ उसे शक्ति देती हैं कि वह किसी को बाँध सके तो दूसरी तरफ़, ख़ुद उसे भी एक चौखटे में जड़ देती हैं।
बहुत कुछ बदला है, बहुत कुछ बदलने-बदलने को है। संस्थाओं-प्रतिष्ठानों का पौरुष ढीला पड़ा है और स्त्री-तत्व के प्रवाह के लिए परिवार से लेकर राष्ट्र तक, सभी जगह नए झरोखों-रास्तों ने जन्म लिया है। ख़ासतौर से लेखन में स्त्री का स्वर निर्णायक भंगिमा और अपनी विशिष्ट पहचान के साथ उभरकर आया है। स्त्री ने निसंकोच भाव से अपनी एक भाषा गढ़ी है, आलोचना की अपनी प्रविधियाँ विकसित की हैं, उन विशेषताओं को जाना है जो उसे एक बेहतर मनुष्य बनाती हैं और यह भी समझा है कि उसका होना संसार के लिए कितना ज़रूरी है। लेकिन उसका सहगामी और अब तक वर्चस्व का केन्द्र रहा पुरुष भी क्या उतना ही बदला है? और क्या स्त्री का यह आत्मविश्वास अचानक हुई कोई घटना है या पीछे इतिहास में शुरू हुई किसी लम्बी प्रक्रिया का प्रतिफल?
‘स्त्री-मुक्ति की सामाजिकी : मध्यकाल और नवजागरण’ हिन्दी के मध्यकालीन काव्य तथा सामाजिक सौन्दर्यबोध के पुनर्पाठ के माध्यम से इसी प्रक्रिया का लेखा-जोखा करने की कोशिश करती है। मध्यकाल और पुनर्जागरण के दौर की रचनाओं, रचनाकारों और दूर भविष्य तक को प्रभावित करने वाली प्रवृत्तियों को रेखांकित करते हुए यह किताब स्त्री-विमर्श के उदात्त पक्षों का अन्वेषण और समय तथा समाज की सीमाओं का आकलन दोनों करती है।
मध्यकालीन नायिकाओं और स्त्री-रचनाकारों की विनोद-वृत्ति जो उनकी आन्तरिक मुक्ति की ही एक भंगिमा थी; रहीम की ‘नगर शोभा’ में स्त्रियों का चित्रण और उसकी सामाजिकी; स्त्री भक्त-कवियों का अस्मिताबोध और आधुनिक स्त्री-दृष्टि से रीतिकाल के पुनर्पाठ से लेकर मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में आई स्त्री तक, अनामिका ने इस पुस्तक में अपनी रस-सिद्ध आलोचना-शैली में एक पूरे युग का जायज़ा लिया है।
Vad Se Vimarsh Tak
- Author Name:
Dr. Suma S.
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bihari Ka Naya Mulyankan
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में ‘बिहारी सतसई’ का मूल्यांकन करते समय तत्कालीन सामन्तीय परिवेश को बराबर दृष्टि में रखा गया है। बिहारी दरबार में रहते थे, पर उनको दरबारी नहीं कहा जा सकता। उनमें चाटु की प्रवृत्ति नहीं थी, वे वेश-भूषा, रहन-सहन, आन-बान आदि में किसी सामन्त-सरदार से कम न थे, उनका दृष्टिकोण पूर्णतः सामन्तीय था, जो ‘सतसई’ के काव्य तथा शैलीगत सतर्कता और सज्जा में अभिव्यक्त हो उठा है। उनके प्रेम, नारी-सम्बन्धी भाव, गाँव-सम्बन्धी विहार सभी पर सामन्त-कवि की छाप है, दरबारी कवि की नहीं। इस दृष्टिकोण को स्पष्ट करने पर ही ‘सतसई’ का सम्यक् आकलन किया जा सकता था। इसके लिए भी सतसई को ही साक्ष्य माना गया है। इससे सुविधा भी हुई। तत्कालीन परिस्थिति और राजनीतिक स्थिति के नाम पर कहीं से इतिहास के दस-बीस पृष्ठ फाड़कर चिपकाने नहीं पड़े। ‘नयी-समीक्षा’ का आग्रह भी कुछ ऐसा ही है।
Sahaj Sadhna
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

-
Description:
पिछले पाँच दशकों में शैक्षणिक-विकास की दिशा में काफ़ी कुछ घटित हुआ है। सकारात्मक भी और नकारात्मक भी। जहाँ शिक्षा के प्रति हमारी सामाजिक रुचि में इज़ाफ़ा हुआ है, वहीं यह भी सत्य है कि शिक्षा और शिक्षण-पद्धतियों की गुणवत्ता में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है। साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है, लेकिन निरक्षरों की संख्या में भी कोई कमी नहीं आई है। हमारे शिक्षा-तंत्र का ढाँचा आज भी शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक बालक को भविष्य का कोई नक़्शा और एक सुदृढ़ व्यक्तित्व की गारंटी देने में असमर्थ है। जो शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, उनमें उनकी अपनी और स्कूलों की सम्पन्नता-विपन्नता से वर्ग-भेद की खाई भी कम नहीं हो पा रही है और जो शिक्षा के क्षेत्र से बाहर हैं, उन्हें इस तरफ़ आकर्षित करने के लिए जिस लगन, कर्मठता और संवेदनशीलता की आवश्यकता है, वह भी कहीं देखने में नहीं आती—न सरकारी प्रयासों में और न व्यक्तिगत या संस्थागत स्तर पर। इस पुस्तक में समाहित आलेखों की प्रमुख चिन्ता यही है।
लेखकद्वय ने प्राथमिक शिक्षा को अपने चिन्तन का केन्द्रीय बिन्दु बनाते हुए शिक्षा के पूरे परिदृश्य को समझने और विश्लेषित करने का प्रयास किया है। इन आलेखों के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनकी रचना शिक्षा के क्षेत्र में व्यावहारिक स्तर पर काम करते हुए हुई; विभिन्न शिक्षाविदों, शिक्षकों तथा दूसरे सहयोगियों के साथ काम करते हुए जो अनुभव और सबक़ हासिल हुए, लेखकद्वय ने उन्हीं को इन आलेखों में पिरोने की कोशिश की है।
Muktibodh : Gyan Aur Samvedana
- Author Name:
Nandkishore Nandan
- Book Type:

-
Description:
सुधी समीक्षक नंदकिशोर नवल की मुक्तिबोध पर लिखी गई यह पुस्तक दो खंडों में विभक्त है। पहले खंड में मुख्यतः उनके ‘ज्ञान’ का विश्लेषण है और दूसरे खंड में मुख्यतः उनकी ‘संवेदना’ का। लेकिन यह विभाजन केवल सुविधा की दृष्टि से है, नवल जी ने मुक्तिबोध को यथासम्भव अविभाज्य रूप में देखने और दिखाने की कोशिश की है। अध्ययन कविता पर केन्द्रित है, लेकिन प्रसंगवश इसमें उनके आलोचना-साहित्य, कथा-साहित्य और उनकी राजनीतिक टिप्पणियों की भी छानबीन की गई है।
मुक्तिबोध की कविता पर विचार करते हुए नवल जी ने उनकी मार्क्सवादी विश्वदृष्टि एवं राजनीतिक चेतना, उनके आत्मसंघर्ष, उनकी ओजपूर्ण भावना, विराट कल्पना और विश्लेषणात्मक बुद्धि की गहरी छानबीन की है और इस सन्दर्भ में अन्य विद्वान आलोचकों के मतों को भी जाँचा-परखा है। मुक्तिबोध की प्रगीतात्मकता, फैंटेसी और भाषा पर भी विस्तार से विचार किया गया है और परिशिष्ट में मुक्तिबोध की सर्वाधिक चर्चित एवं महत्त्वपूर्ण कविता ‘अँधेरे में’ का विश्लेषण किया गया है। दूसरे शब्दों में मुक्तिबोध पर यह पहली मुकम्मल किताब है।
Rachnaon Par Chintan
- Author Name:
Zilani Bano
- Book Type:

-
Description:
आंचलिक उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’, 'सोनामाटी’ और ‘आधा गाँव’ ने यह अहसास दिया है कि जीवन की बहुरंगी प्रक्रियाओं के आत्मीय अंकन के लिए जितना उदार फलक आंचलिकता प्रदान करती है, उतना पारम्परिक, शिष्ट, तत्सम जीवन नहीं। इसकी तत्परता में व्यक्ति की पीड़ा अथवा उसके आन्तरिक संघर्षों के अंकन अथवा मूर्त ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का अंकन चाहे जितना भी हो लेकिन जीवन की वह आभा, सामान्य जीवन-प्रक्रिया में ही रचे-पचे होने का सामर्थ्य कम ही दिखता है। इसी कारण शिवप्रसाद सिंह का ‘नीला चाँद’ बौद्धिक प्रयास लगता है। ‘वे दिन’, ‘चितकोबरा’ या ‘शेखर : एक जीवनी’ शिल्प और तकनीक की दृष्टि से जो भी स्थान रखते हों, अपनी अन्तरंगता के बावजूद, ऊष्माहीन और औपचारिक लगते हैं। इनसे भिन्न ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’, ‘बलचनमा’ उपन्यास जीवन को प्रथम तल पर अंकित करते है। इनमें जीवन अधिक और चिन्तन कम है।
लेकिन ‘इतिहासेतर’ और ‘परम इतर' के आग्रही निर्मल वर्मा परम्परा और स्मृतियों की ओर लौटते हैं और उन्हें ही निकष मानकर वर्तमान की समालोचना प्रस्तुत करते हैं।
'गाँधीवाद की शव परीक्षा’ में मशीन को सभ्यता, रोज़गार और सस्ते, सर्वसुलभ उत्पादों से जोड़ा गया था, ‘चक्कर क्लब’ में इसे मनुष्यत्व अर्थात् मनुष्य के सत्त्व से जोड़ा गया है।
‘अन्धा युग’ में वर्णित सामाजिक यथार्थ तत्कालीन सामाजिक यथार्थ से मेल नहीं खाता यह मूलतः अतियथार्थवादी है।
Hindi Alochana Ka Punah Path
- Author Name:
Kailash Nath Pandey
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी आलोचना के इस पुन:पाठ में आलोचना को लेकर उठनेवाली भोली जिज्ञासाओं का अत्यन्त संवेदनशीलता से दिया गया उत्तर मौजूद है। हिन्दी में आलोचना के लिए ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ शब्द चलते हैं। इसको लेकर कभी-कभी भ्रम की स्थिति होती है। किताब की शुरूआत ही इस भ्रम के निराकरण से हुई है। ‘आलोचना’, ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ की व्युत्पत्ति और उनके बीच के बारीक अन्तर पर विचार किया गया है।
आलोचना और रचना का सम्बन्ध, आलोचक के दायित्व, आलोचक के कार्य, आलोचना की ज़रूरत या उपयोगिता, आलोचना के मान ही नहीं बल्कि आलोचक बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह सब इस किताब में मिल जाएगा।
यह पुस्तक तीन पर्वों में प्रस्तुत है। पहले पर्व में आलोचना की अवधारणा, आधुनिक हिन्दी आलोचना की आरम्भिक स्थिति, आलोचना के विविध प्रकार से लेकर हिन्दी आलोचना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा मौजूद है। पुस्तक केवल आलोचक और आलोचना का महिमा-मंडन ही नहीं करती, बल्कि उस महिमा को बनाए और बचाए रखने के गुण-सूत्रों की खोज भी करती है। पुस्तक के द्वितीय पर्व में हिन्दी ओलाचना के शिखरों; यथा—रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नरेन्द्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा और नामवर सिह आदि के अवदान का आकलन किया गया है। इसी प्रकार तीसरे पर्व में हिन्दी आलोचना के विविध सन्दर्भ जैसे आलोचना के सरोकार, नई सदी में हिन्दी आलोचना, आलोचना प्रक्रिया आदि पर विचार किया गया है।
Manak Hindi Ke Shuddh Prayog : Vol. 3
- Author Name:
Ramesh Chandra Mahrotra
- Book Type:

-
Description:
सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।
इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।
पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)
यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।
Bhakti Kavya-Parampara Aur Kabir
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
सम्पूर्ण भक्ति कविता को एक ही आँख से देखने और एक ही तराजू में तौलनेवालों की भारी भीड़ है। इस भीड़ के सदस्य भक्ति कविता के प्रगतिशील तत्त्वों और यथास्थितिवादी तत्त्वों को अलगाने का विरोध करते हैं। ऐसे लोग यह देखने में असमर्थ हैं कि भक्ति कविता के क्रान्तिकारी तत्त्वों का विरोध करनेवाली सामाजिक शक्तियों की संख्या बहुत बड़ी है।
मुक्तिबोध संगी नामवर सिंह इस पूरी राजनीति के गुब्बारे में सुई चुभोते हैं और भक्ति कविता की दूसरी परम्परा के पक्ष में प्रभावी ढंग से खड़े होते हैं।
बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक और इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में उन्होंने भक्ति, भक्ति आन्दोलन और कबीर पर पुनः-पुनः विचार किया। वे बताते हैं कि भक्ति आन्दोलन के साथ ही आधुनिक भाषाओं ने पहली बार साहित्यिक जीवन प्राप्त किया। भक्ति ने कविता की भाषा को क्रान्तिकारी ढंग से बदला। भक्ति-कविता ने काव्यभाषा का जनतांत्रीकरण ही नहीं किया, उसे रचनात्मक नवाचारों से गूँथ दिया।
कबीर की क्रान्तिकारी विरासत को अक्सर आधुनिक यथास्थितिवादियों व सुधारवादियों ने एक खास तरह से संकुचित किया। हिन्दू-मुसलमान एकता का लक्ष्य रखनेवाले विचारकों और नेताओं ने एक खास तरह से उन्हें समन्वयवाद में सीमित करने की कोशिश की। नामवर जी कबीर के रास्ते को अन्य मार्गों से अलग निरूपित करते हुए कबीर की क्रान्तिकारिता को इस प्रकरण में भी पुनः स्थापित करने की कोशिश करते हैं।
आधुनिक साम्प्रदायिकता के विकास ने भक्ति कविता की प्रासंगिकता में एक नया आयाम जोड़ा है और उसके मानवीय आदर्शों के मूल्य को कई गुना बढ़ा दिया है। इस संदर्भ में भी नामवर जी के भक्ति-कविता संबंधी विचारों को वापस देखने की जरूरत है।
इस पुस्तक में उनके भक्ति कविता और कबीर सम्बन्धी आलेखों, व्याख्यानों और साक्षात्कार-अंशों को संकलित किया गया है।
Vichar Ka Aina Kala Sahitya Sanskriti : Premchand
- Author Name:
Premchand
- Book Type:

-
Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
प्रेमचन्द ऐसे युगप्रवर्तक लेखक हैं जो हिन्दी और उर्दू कथा साहित्य को एक मुकम्मल शुरुआत देते हैं। वे कहानी और उपन्यास को यथार्थवाद की जनपक्षधर जमीन पर ले आए जहाँ जनसाधारण को नायकत्व मिला। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने न सिर्फ हिन्दी कथा साहित्य के विकास के लिए नए द्वार खोले बल्कि उनका गहरा असर समूचे भारतीय कथा साहित्य पर पड़ा। बतौर सम्पादक और चिन्तक उन्होंने जो निबन्ध लिखे, वे भारतीय समाज की बनावट और बुनावट की गहरी पड़ताल करते हैं। वे उन अनेक समस्याओं और विसंगतियों की सटीक पहचान करते हैं जिनसे भारतीय समाज आज तक जूझ रहा है। हमें उम्मीद है कि कठिन वर्तमान से जूझते हुए उनके कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की इस किताब में हमें अनेक समकालीन सवालों के जवाब के साथ-साथ विचारणीय नए सवाल भी मिलेंगे।
Prithveeraj Raso : Bhasha Aur Sahitya
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
‘पृथ्वीराज रासो’ को हिन्दी का आदि महाकाव्य कहलाने का गौरव प्राप्त है। भाषा की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ में अपभ्रंशोत्तर पुरानी हिन्दी के विविध भाषिक रूपों के प्रयोग प्राप्त होते हैं।
‘पृथ्वीराज रासो : भाषा और साहित्य’ नामक शोधग्रन्थ में इस काव्य-ग्रन्थ की भाषा का व्यवस्थित और सांगोपांग भाषा-वैज्ञानिक विश्लेषण करने का पहला प्रयास किया गया है।
वर्तमान स्थिति में जबकि रासो के सुलभ संस्करण सन्तोषप्रद नहीं हैं और वैज्ञानिक संस्करण अभी भी होने को हैं, भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन के लिए सर्वोत्तम मार्ग यही है कि प्राचीनतम पांडुलिपियों में से किसी एक को आधार बना लिया जाए।
प्रस्तुत ग्रन्थ में धारणोज की लघुतम रूपान्तर वाली प्रति को आधार माना गया है, क्योंकि एक तो इसका प्रतिलिपि-काल (सं. 1667 वि.) अब तक की प्राप्त प्रतियों में प्राचीनतम है और दूसरे, इसमें भाषा के रूप भी अपेक्षाकृत प्राचीनतर हैं। इसके साथ ही नागरी प्रचारिणी सभा में सुरक्षित बृहत् रूपान्तर की उस प्रति से भी सहायता ली गई है जिसका प्रतिलिपि-काल सम्पादकों के अनुसार सं. 1640 या 42।
इस ग्रन्थ में भाषा-वैज्ञानिक विवेचन के साथ ही ‘कनवज्ज समय' का सम्पादित पाठ और उसके सम्पूर्ण शब्दों का सन्दर्भसहित कोश भी दिया गया है। इसके अतिरिक्त यथास्थान शब्द-रूपों की ऐतिहासिकता तथा प्रादेशिकता की ओर संकेत भी किया गया है।
विश्लेषण के क्रम में एक ओर डिंगल-पिंगल तत्त्व स्पष्ट होते गए हैं, तो दूसरी ओर हिन्दी की उदयकालीन तथा अपभ्रंशोत्तर अवस्था की भाषा का स्वरूप भी उद्घाटित हुआ है। साथ ही तुलना के लिए तत्कालीन अन्य रचनाओं के भी समानान्तर शब्द-रूप दिए गए हैं।
नवीन परिवर्धित संस्करण का एक अतिरिक्त आकर्षण यह भी है कि इसमें परिशिष्ट-स्वरूप ‘पृथ्वीराज रासो’ की संक्षिप्त साहित्यिक समालोचना भी जोड़ दी गई है।
इस प्रकार यह प्रबन्ध शोधार्थी अध्येताओं के साथ ही हिन्दी के प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी एक आवश्यक सन्दर्भ-ग्रन्थ है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.