Kannada Varnamale
Author:
Anupama K BenachinamardiPublisher:
Awwa PustakaLanguage:
KannadaCategory:
Language-linguistics3 Reviews
Price: ₹ 186.75
₹
225
Available
This book is tailored for individuals with an interest in mastering the Kannada alphabet. It elucidates the pronunciation of each Kannada letter using English phonetics. Moreover, the book incorporates sensory words that captivate children's interest. Another distinctive aspect of this book is its presentation of vowels and consonants within the context of natural phenomena. Our aim is for children to forge a deeper connection with nature through this book.
ISBN: 9788195801848
Pages: 52
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 0-11
Country of Origin: India
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Hazariprasad Dwivedi
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- Description: Awating description for this book
Otan Lage Kapas
- Author Name:
Prabhash Joshi
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Description:
‘देश व्यवसाय नहीं है और किसी भी प्रगतिशील आधुनिक लोकतांत्रिक देश की पत्रकारिता सिर्फ़ व्यवसाय नहीं हो सकती।...जब तक कौशल के साथ पत्रकारिता लोगों को सही और तथ्यपरक जानकारी देने और निर्भीकता से अपना दृष्टिकोण रखने का माध्यम बनी रहेगी तब तक वह सिर्फ़ व्यवसाय के लेन-देन वाले धंधे में नहीं बदल सकती।’
नवम्बर 1991 में ‘जनसत्ता’ के कोलकाता आगमन पर लिखी गईं प्रभाष जी की ये पंक्तियाँ आज कितनी प्रासंगिक और अनुकरणीय हैं, कहने की ज़रूरत नहीं है। पत्रकारिता के इन आधारभूत मूल्यों को उन्होंने हमेशा बल दिया। जब ज़रूरत हुई सत्ता का विरोध किया, जब ठीक लगा तारीफ़ भी की।
राजीव गांधी के कामकाज का विरोध करते हुए जोशी जी ने ‘एक देवदूत का दलदल से बिदकना’ लिखा तो सोनिया गांधी को जबरन राजनीति में सक्रिय करने के कांग्रेस-जनों के प्रयास को उन्होंने ‘एक सफेद आँचल में दुबकना’ लिखा। अर्थव्यवस्था के खुलेपन का विरोध करते हुए उन्होंने लिखा कि ‘ईमानदारी से कहो कि हम गलत थे’।
‘ओटन लगे कपास’ पुस्तक को दो खंडों में बाँटा गया है। पहले खंड में केवल 13 लेख शामिल हैं। 17 नवम्बर, 1983 को ‘जनसत्ता’ उनके नेतृत्व में शुरू हुआ। पहले खंड की शुरुआत उसमें प्रकाशित उनकी पहली टिप्पणी से की गई है। दिल्ली के बाद चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता और रायपुर में जनसत्ता के संस्करण प्रकाशित होने शुरू हुए। चंडीगढ़ के अलावा चारों संस्करणों के पहले दिन के लेख इस पुस्तक में हैं।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की लम्बी हड़ताल और दिवराला सती कांड से जुड़े लेख भी इस खंड में हैं। सबसे अनोखा लेख ‘मूरख जनम गमायो’ है, जिसे उन्होंने अपनी अलिखित आत्मकथा की भूमिका माना है। इसमें उन्होंने पत्रकार और पत्रकारिता के माहौल पर लिखा है। पुस्तक के दूसरे खंड में उनके सम्पादकीय छोड़ने तक की उन रचनाओं को शामिल किया गया है, जो अब तक किसी पुस्तक में नहीं आ पाई थीं।
Kuchh Kahaniyan : Kuchh Vichar
- Author Name:
Vishwanath Tripathi
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Description:
रचना और पाठक के बीच समीक्षक या आलोचक नाम की तीसरी श्रेणी ज़रूरी है या नहीं, यह शंका पुरानी है। सामाजिक या राजनीतिक ज़रूरत के रूप में यह श्रेणी अपनी उपादेयता बार-बार प्रमाणित करती रही है। लेकिन साहित्यिक ज़रूरत के रूप में? यह ख़ास ज़रूरत दरअसल न हमेशा पेश आती है और न पूरी होती है। यह ज़रूरत तो बनानी पड़ती है। आलोचना या समीक्षा की विरली ही कोशिशें ऐसी होती हैं जो पाठक को रचना के और-और क़रीब ले जाती हैं, और-और उसे उसके रस में पगाती हैं। ये कोशिशें रचना के समानान्तर ख़ुद में एक रचना होती हैं। मूल के साथ एक ऐसा रचनात्मक युग्म उनका बँटा है कि जब भी याद आती हैं, दोनों साथ ही याद आती हैं।
इस पुस्तक में संकलित समीक्षाएँ ऐसी ही हैं। बड़बोलेपन के इस ज़माने में विश्वनाथ त्रिपाठी ने एक अपवाद की तरह हमेशा ‘अंडरस्टेटमेंट’ का लहज़ा अपनाया है। उनके लिखे पर ज़्यादा कहना भी अनुचित के सिवाय और कुछ नहीं है। इतना कहना लेकिन ज़रूरी लगता है कि कुछ स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानियों पर लिखी ये समीक्षाएँ पढ़ने के बाद वे कहानियाँ फिर-फिर पढ़ने को जी करता है। हमारे लिए वे वही नहीं रह जातीं, जो पहले थीं।
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