Yatharthwad Aur Uski Samasyayen

Yatharthwad Aur Uski Samasyayen

Author:

Yashpal

Language:

Hindi

Category:

Language-linguistics

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Book Details

बहसों और विवादों से यशपाल का गहरा नाता था। उनके सोचने का अपना ढंग था जो मार्क्सवादी विश्वदृष्टि से अनुशासित एवं नियंत्रित था। वे सवालों से बचकर निकलने में नहीं, उनसे टकराने में विश्वास करनेवाले लेखक थे। सामाजिक एवं राजनीतिक महत्त्व के जनता के जीवन से जुड़े मुद्दे और सवाल हमेशा उनकी चिन्ता के केन्द्र में रहे। साहित्य में कलावाद और व्यक्तिवाद का विरोध करके वे परिवर्तनकामी चेतना के वाहक थे। अपने लम्बे रचनाकाल में साहित्यिक एवं कलात्मक समस्याओं, लेखक के परिवेश और दायित्व आदि सवालों पर उन्होंने गम्भीरता से विचार किया है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में सम्मिलित सामग्री कुछ तो सैद्धान्तिक सवालों और मुद्दों से सम्बन्धित है और कुछ विविध साहित्यिक प्रसंगों, विवादों या फिर अपने स्पष्टीकरण के रूप में लिखित लेखों एवं टिप्पणियों से बनी है। भाषा के प्रश्न पर उनकी अनेक टिप्पणियाँ और लेख हैं जिनमें हिन्दी-उर्दू विवाद के साथ पंजाबी भी शामिल है। आज उस सारी सामग्री के एक जगह होने पर इन सवालों पर यशपाल को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।</p>
<p>इधर मार्क्सवाद के संकट की चर्चा प्राय: होती रही है। सोवियत संघ के पतन के बाद उसकी देशज प्रकृति पर भी विचार किया जाता है। भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारवाद ने सब कहीं मार्क्सवाद के लिए संकट पैदा किया। चीन की पूँजीवादी छलाँग से इस संकट को समझा जा सकता है। यहाँ साठ के दशक में लिखित और तब पर्याप्त विवादास्पद रहा लेख ‘मार्क्सवाद में पुनर्विचार’ भी सम्मिलित है। निश्चय ही यह संकलन चिन्तक यशपाल को समझने में उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है।

ISBN: 9788180319679

Pages: 352

Avg Reading Time: 12 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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