Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas
Author:
AmarnathPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 1356
₹
1695
Available
‘हिन्दी आलोचना का आलोचनात्मक इतिहास’ हिन्दी आलोचना का इतिहास है, लेकिन ‘आलोचनात्मक’। इसमें लेखक ने प्रचलित आलोचना की कुछ ऐसी विसंगतियों को भी रेखांकित किया है, जिनकी तरफ आमतौर पर न रचनाकारों का ध्यान जाता है, न आलोचकों का।</p>
<p>उदाहरण के लिए हिन्दी साहित्य के आलोचना-वृत्त से उर्दू साहित्य का बाहर रह जाना; जिसके चलते उर्दू अलग होते-होते सिर्फ एक धर्म से जुड़ी भाषा हो गई और उसका अत्यन्त समृद्ध साहित्य हिन्दुस्तानी मानस के बृहत काव्यबोध से अलग हो गया। कहने की जरूरत नहीं कि आज इसके सामाजिक और राजनीतिक दुष्परिणाम हमारे सामने एक बड़े खतरे की शक्ल में खड़े हैं। सुबुद्ध लेखक ने इस पूरी प्रक्रिया के ऐतिहासिक पक्ष का विवेचन करते हुए यहाँ उर्दू-साहित्य आलोचना को भी अपने इतिहास में जगह दी है।</p>
<p>आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही आलोचना का जन्म हुआ, इस धारणा को चुनौती देते हुए वे यहाँ संस्कृत साहित्य की व्यावहारिक आलोचना को भी आलोचना की सुदीर्घ परम्परा में शामिल करते हैं, और फिर सोपान-दर-सोपान आज तक आते हैं जहाँ मीडिया-समीक्षा भी आलोचना के एक स्वतंत्र आयाम के रूप में पर्याप्त विकसित हो चुकी है।</p>
<p>कुल इक्कीस सोपानों में विभाजित इस आलोचना-इतिहास में लेखक ने अत्यन्त तार्किक ढंग से विधाओं, प्रवृत्तियों, विचारधाराओं, शैलियों आदि के आधार पर बाँटते हुए हिन्दी आलोचना का एक सम्पूर्ण अध्ययन सम्भव किया है। अपने प्रारूप में यह पुस्तक एक सन्दर्भ ग्रंथ भी है और आलोचना को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने का वैचारिक आह्वान भी।
ISBN: 9789392757600
Pages: 472
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कनक द्वारा रचित कीर्तन अद्भुत हैं। पौराणिक कथा-सन्दर्भ के सहारे कृष्ण के दशावतार का पहेलीबद्ध ढंग से वर्णन करना कनक काव्य-शैली की विशेषता है। भगवान कृष्ण के चरित्र के आन्तरिक सम्बन्धों का गाँठदार वर्णन और घुमावदार रूप चित्रण-शैली कन्नड़ में मुंडिगे कहलाती है। कवि कनक मुंडिगे लेखन में सिद्धहस्त हैं। कनकदास द्वारा मुंडिगे-शैली का अत्यन्त सशक्त ढंग से प्रयोग और वर्णन से लगता है—यह शैली उनके लिए, जात के आधार पर पांडित्य का और काव्यज्ञान का अहंकार बघारनेवाले समकालीन पंडितों की टक्कर में, अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति-कुशलता को दर्शाने का ज़रिया मात्र थी। कनक की मुंडिगे के अनेक सुन्दर नमूने मिलते हैं। सम्पूर्ण भक्ति साहित्य में कनक के समान मुंडिगे रचयिता विरले ही हैं। अलंकारों के समृद्ध प्रयोग में कनक का सानी दूसरा नहीं।
विष्णु के दशावतार का वर्णन और अवतारी कृष्ण के नाना लीलाओं का वर्णन कनकदास ने बहुत ही रमकर एवं जमकर किया है। अपने आराध्य देव की स्तुति में कनक कहीं भी कोताही नहीं करते। लगता है, स्तुति के लिए अलग-अलग प्रसंगों की खोज में कनक लगे ही हुए हैं। अपने सगुण साकार सुन्दर और धीरशूर आराध्य देव के हर रूप का, हर कलाओं का वैभवमय वर्णन करते हैं। दास साहित्य के श्रेष्ठ कवि कनकदास भगवान की स्तुति में, रूप वर्णन में प्रेमी कृष्ण और प्रेमिका राधा के मध्य की रागात्मक और माधुर्य सम्बन्धों का आधार लेते हैं। प्रेमिका राधा, प्रोषितपतिका राधा, मिलनाकांक्षी राधा ऐसे अनेक रूपों के द्वारा कृष्ण के विविध अवतारों का मुंडिगे-शैली में वर्णन करते हैं। इन लीला-वर्णनों में स्तुति-निन्दा काव्य-रूढ़ि का भी अत्यन्त ही आत्मीय और अद्भुत प्रयोग कनक ने किया है। ‘कनकदास का काव्य’ पुस्तक में ऐसे ही कनक रचित सुन्दर कन्नड़ मुंडिगे का अनुवाद हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
—प्रो. परिमला अंबेकर
Hindi Kahani Ka Vikas
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

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Description:
प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कहानी ने अपनी रचना-यात्रा में अनेक नए और सम्भावनापूर्ण शिखरों का स्पर्श किया। लेकिन कहानी के मूल्यांकन की वास्तविक शुरुआत ‘नई कहानी’ से ही हुई। ‘नई कहानी’ से ही आन्दोलनों की व्याख्या स्वयं रचनाकारों द्वारा आरम्भ होने की परम्परा का भी सूत्रपात हुआ—बहुत कुछ ‘छायावाद’ और ‘नई कविता’ के ढंग पर। आगे चलकर ‘सचेतन कहानी’, ‘अ-कहानी’, ‘समान्तर कहानी’ और ‘जनवादी कहानी’ तक आन्दोलनों की उपलब्धियों का बखान प्राय: उनके रचनाकारों की ही ज़िम्मेवारी समझा जाता रहा। उपलब्धियों के इस कैसे ही एकांगी बखान से बचकर 'हिन्दी कहानी का विकास' में इन विभिन्न आन्दोलनों की पड़ताल उनके सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और एकांगिता से बचते हुए अपनी सुस्पष्ट और सुनिश्चित शैली में मधुरेश ने हिन्दी कहानी के लगभग एक शताब्दी के विकास-क्रम को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। मधुरेश के साथ और बाद में आए जहाँ अनेक आलोचक आज आलोचना के परिदृश्य से लगभग ग़ायब हो चुके हैं, वे पिछले तीन दशकों से निरन्तर अपनी उपस्थिति से कहानी की आलोचना में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे हैं। ‘हिन्दी कहानी का विकास' उनकी इस उपस्थिति का ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है।
‘हिन्दी कहानी का विकास' में कदाचित् पहली बार हिन्दी कहानी के समूचे विकास-क्रम को समझते हुए उसके प्रमुख आन्दोलनों का मूल्यांकन सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि में किया गया है। सम्भवत: इसीलिए यह रचनाकारों की आत्ममुग्ध और प्रशस्तकारी व्याख्याओं से अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय है।
1857 Ke Pratham Swatantrata Sangram Ki Patrakarita
- Author Name:
Prof. Neeraj Karna Singh +1
- Book Type:

- Description: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का एक ऐसा दिव्य तथा भव्य अध्याय है, जिसमें धर्म, वर्ग, जातियों की सभी दीवारें ध्वस्त हो जाती हैं और जनसमूह के रूप में भारत की आत्मा मुखर होती है| अंग्रेजी तथा वामपंथी इतिहासकार भले ही इस महासमर को गदर या विद्रोह की संज्ञा दें, परंतु यह भारतीय आत्मा की आवाज थी। इस आवाज का स्पंदन सनातन राष्ट्र की पावन माटी के कण-कण में सुरभि- स्वरूप अनुभूत किया जा सकता है।जंग-ए-आजादी में जनचेतना और मनचेतना का कार्य हर स्तर पर हुआ। उस वक्त की व्रतधारी पत्रकारिता ने भी आजादी के पहले समर में क्रांति का बीजारोपण किया | जन-जन तक, मन-मन तक आजादी के समर को पहुँचाया और फिरंगी हुकूमत के खिलाफ उठ खड़े होने का शंखनाद किया | ऐसा शंखनाद, जिसने अनंत नभ में आजादी की क्रांति को हवा दी | उसी हवा को महसूस और आत्मसात् करने के लिए, इस युग के कोठि-कोटि जनों में समझ पैदा करने के उद्देश्य से और क्रांति की उस सुगंध से जोड़ने के लिए पत्रकारिता व्रत तथा दायित्व का दस्तावेज पुस्तक के रूप में आपके हाथों में है । यह पुस्तक केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि राष्ट्र और राष्ट्रगायकों को हमारी ओर से सादर शब्दांजलि है, भावांजलि है|
Hindi Sahitya Ki Bhoomika
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
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