Saket
Author:
Maithlisharan GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
<strong>‘</strong>साकेत’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की वह अमर कृति है जिसे वे अपने साहित्यिक जीवन की अन्तिम रचना के रूप में पूरी करना चाहते थे। उनकी इस इच्छा के अनुरूप ‘साकेत’ वास्तविक अर्थों में उनकी अमर रचना बन गई। यद्यपि ‘साकेत’ में राम, लक्ष्मण और सीता के वन गमन का मार्मिक चित्रण है, कि इस कृति में समस्त मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति पाठक को होती है।</p>
<p>इस कृति में उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है, वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है। सीता तो राम के साथ वन गई, किन्तु उर्मिला लक्ष्मण के साथ वन न जा सकीं। इस कारण उनके मन में विरह की जो पीड़ा निरन्तर प्रवाहित होती है उसका जैसा करुण चित्रण राष्ट्रकवि ने किया है, वैसा चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है। इस करुण चित्रण को पढ़कर पाठक के मन में करुणा की ऐसी तरंग उठना अनिवार्य है, कि आखें बरबस नम हो जाएँ और राष्ट्रकवि की साहित्यिक क्षमता को नमन कर उठें।
ISBN: 9788180317293
Pages: 288
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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घृणाजीवी राजनीति और घृणापोषित सामाजिकता के इस दौर में प्रेम! प्रेम के विरुद्ध गँड़ासे और तलवारें लिए खड़ी खाप पंचायतों, लव जेहाद कहकर प्रेम को कहीं भी कटघरे में खड़ा कर देनेवाली राजनीति और प्रेमियों के पीछे दौड़ते एंटी-रोमियो स्क्वैड्स के इस दौर में प्रेम! कहने की ज़रूरत नहीं कि प्रेम और मनुष्य पर फबनेवाली अन्य सकारात्मक गतिविधियों के लिए यह दौर अत्यन्त निराशाजनक है।
लेकिन प्रेम फिर भी होता है। यह जीवन की उन साँसों में एक है जो कितनी भी ठोस शिलाओं के बीच से अपनी प्राणवायु खींच लेती हैं। वह है और रहेगा।
पवन करण की प्रेम कविताओं का यह संग्रह इक्कीसवीं सदी की दूसरी दहाई के इन वर्षों की घनी होती घुटन के बीच एक ताजा साँस की तरह आया है। हिन्दी के मौजूदा कविता-बहुल समय में बहुत कम ही ऐसे चित्र मिलते हैं जिनसे कोई बिम्ब हमारे मन में सजीव साकार हो जाता हो।
ये कविताएँ अपनी मांसलता और अपनी ऐन्द्रिय अभिव्यक्ति के चलते प्रेम तथा साहचर्य के ऐसे अनेक चित्र हमें देती हैं जो कल्पना और सृजनात्मकता से वंचित किए जा रहे हमारे समूह-मन के लिए राहत लेकर आते हैं। ये कविताएँ प्रेम के पक्ष में, प्रेम करने की प्रेरणा के तौर पर नहीं, प्रेम को जीने के लिए पढ़ी जानी चाहिए। इन्हें पढ़ते हुए आप अचानक अपने उस वर्तमान के प्रति क्षोभ से व्याकुल भी हो सकते हैं जिसकी हर कोशिश प्रेम के ख़िलाफ़ जा रही है।
Kagaz Par Aag
- Author Name:
Vasant Sakargaye
- Book Type:

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Description:
‘निर्भयता एक ज़िद है/हर डर के विरुद्ध’ कहने वाले वसंत सकरगाए अपनी कविताओं में इस निर्भयता को पूरी ज़िद के साथ निभाते भी हैं। सफ़ेदपोश समाज के अँधेरे कोने हों या राजनीति की दम्भी और जन-निरपेक्ष मुद्राएँ, उनका कवि अपनी बात बिना किसी डर के और साफ़-साफ़ शब्दों में कहता है।
इस संग्रह में शामिल वे कविताएँ जो उन्होंने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए लिखीं; उनके सरोकारों को भी दिखाती हैं, और उनकी निडरता को भी रेखांकित करती हैं। ‘बुलडोजर हमारा राष्ट्रीय यंत्र’, ‘पत्र वापसी के लिए आवेदन-पत्र’, ‘मेरे घर छापा पड़ा’ और ‘कान’ जैसी कविताएँ बताती हैं कि कवि ने इक्कीसवीं सदी के भारत के राजनीतिक-सामाजिक समय को कितनी स्पष्ट पक्षधरता और पीड़ा के साथ लेकिन बिना किसी भय के देखा है। उनकी इन जैसी कविताओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ कवि अरुण कमल कहते हैं कि “ये कविताएँ ब्रेष्ट और नागार्जुन की याद दिलाती हैं और सिद्ध करती हैं कि सही समझ, निर्भीकता और ईमानदारी से ही प्रतिरोध संभव है।”
प्रकृति, लोक, जन-गण की बोली-भाषा और उनमें रचे-बसे जीवन को वे जैसे वर्तमान की भयावहता के समक्ष एक विकल्प की तरह लेकर चलते हैं; और कवि के अपने संसार को भी जो उनके लिए एक सम्पूर्ण जगत है। आलोचक विजय बहादुर सिंह के शब्दों में “कविता ज़मीन की ही चिन्ता न करे बल्कि ज़मीन से अँखुवे की तरह फूटे और लहलहाए भी..., यह आपका कवि करता है।... अच्छा लगा कि आप कोई भंगिमा लेकर नहीं बल्कि जीवन के गवाह कवि के रूप में आते हैं।”
यह संग्रह निश्चय ही बृहत् हिन्दी समाज का ध्यान आकर्षित करेगा।
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