Anterlok : Adhyatm Sambandhi Kavitayen
Author:
Nandkishore AcharyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Unavailable
कविता बल्कि कला मात्र अपने आपमें एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है—चाहे उसकी विषय–वस्तु कुछ भी हो। स्पष्ट है कि इलियट के लिए धर्म किसी ‘आधि–प्राकृतिक सत्ता में विश्वास’ करना है जबकि आर्नाल्ड के लिए वह मानवमात्र को जोड़ने और जीवन को अर्थ प्रदान करनेवाली चीज़ है; बल्कि कह सकते हैं कि मानवमात्र के जुड़ाव का, संलग्नता का या अद्वैत का यह अनुभव ही जीवन को अर्थ देनेवाली चीज़ है। ‘आलोक के अनन्त का उद्घाटन’—किसी भी धार्मिक–आध्यात्मिक अनुभव की केन्द्रीय अन्तर्वस्तु यही है। उस उद्घाटन का आलम्बन कोई वैयक्तिक ईश्वर है या कोई निर्वैयक्तिक सत्ता अथवा सम्पूर्णत: भौतिक जगत के अन्तर्भूत एकत्व का बोध, इससे अनुभूति की गहराई में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, यदि वह कवि–कलाकार की अनुभूति है। धार्मिक या आध्यात्मिक अनुभव का अर्थ अपने अस्तित्व के अर्थ की तलाश है। इसके लिए ईश्वर जैसी किसी आधि–प्राकृतिक सत्ता पर विश्वास की अनिवार्यता नहीं है। जिस प्रकार विरह–काव्य अथवा वियोग–शृंगार भी प्रेमकाव्य ही हैं, उसी प्रकार जीवन का अर्थ खो देने की पीड़ा और उसे पाने की विकलता भी प्रकारान्तर से धार्मिक–आध्यात्मिक अनुभव ही है। पॉल टिलिच के शब्दों में, ‘‘जो यह अनुभव करता है कि वह अर्थ के चरम स्रोत से विलग हो गया है, वह अपनी इस प्रतीति द्वारा यह प्रगट करता है कि वह केवल विलग ही नहीं है, वह फिर से संयुक्त हो चुका है।’’ लेकिन यह संयुक्ति किसी सरल और रूढ़िबद्ध धार्मिक विश्वास से नहीं होती, वह उस वेदना में से उपजती है जिसे कार्ल जैस्पर्स ‘ईश्वर के लिए ईश्वर से भावोद्वेगपूर्ण संघर्ष’ कहता है । इसलिए आधुनिक कविता या कला जो सवाल पूछती है, उसका कोई निश्चित समाधान उसके पास नहीं होता; बल्कि उसकी वेदना ही उसका समाधान हो जाती है। इस संकलन में हिन्दी में सक्रिय सभी पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व कमोबेश हो सका है जिससे आध्यात्मिक संवेदन के बदलते काव्य–रूपों से हमारा परिचय हो सके।
ISBN: 9788126706594
Pages: 303
Avg Reading Time: 10 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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लीलाधर जगूड़ी की कविता की यह भी विशेषता है कि वे अनुभव की व्यथा और घटनाओं की आत्मकथा इस तरह पाठक के सामने रखते हैं कि उनका यह कथन सही लगने लगता है कि—‘कविता का जन्म ही कथा कहने के लिए और भाषा में जीवन-नाट्य रचने के लिए हुआ है।’ वे अक्सर कहते हैं कि ‘कविता जैसी कविता से बचो।’ 24 वर्ष की उम्र में उनका पहला कविता-संग्रह आ गया था। 1960 से यानी कि 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध से 21वीं सदी के दूसरे दशक बाद भी उनकी कविता का गद्य समकालीन साहित्य की दुनिया में किसी न किसी नए संस्पर्श के लिए प्रतीक्षित है और पढ़ा जाता है। उनके कविता-संग्रहों के प्राय: नए संस्करण आते रहते हैं। कविता न बिकने और न पढ़े जाने के बदनाम काल में बिना किसी आत्मप्रचार के लीलाधर जगूड़ी की कविताएँ अपने पाठकों का निर्माण करती चलती हैं। वे अपनी कविता की मोहर बनाकर बार–बार एक जैसी कविताओं से उबाते नहीं हैं। वे पहले की तरह आज भी प्रयोग और प्रगति के पक्षधर हैं। लीलाधर जगूड़ी की कविताओं में विषय–वस्तुओं का जो अद्वितीय चयन और प्रस्तुतीकरण होता है, वह अपनी ही उक्ति के अनुसरण से लगातार बचते रहने की सजग कोशिश के कारण भी आकर्षित करता है। इनकी कविताओं की निरन्तर परिवर्तनशील पद्धति समीक्षा और आलोचना को भी अपना स्वभाव बदलने के लिए प्रेरित करती है। इनकी कविता के ज़मीन–आसमान कुछ अलग ही रंग के हैं।
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