
Mere Desh Mein Kahte Hain Dhanyavad
Author:
Sharad ChandraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
रने एमिल शार्, जिन्हें अल्बैर् कामू अपने समय का महानतम कवि मानते थे, का जन्म दक्षिणी फ्रांस के प्रोवॉन्स प्रदेश के एक नामी और ख़ूबसूरत क़स्बे, ईल-सुर-सोर्ग में, 7 जून, 1907 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय पेरिस और प्रोवान्स में बिताया।</p>
<p>शार् ने अपने बिम्ब और प्रतिमाएँ दक्षिण फ्रांस में बीते अपने बचपन से और वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों से ली हैं। वो कोई देहाती कवि नहीं थे, लेकिन देहात के दृश्यों का प्रभाव उनकी कविताओं में भरपूर मिलता है। प्रकृति के प्रति शार् की आस्था उतनी ही दृढ़ थी जितनी अपनी कविताओं के शिल्प के प्रति। उन्होंने सोर्ग नदी के प्रदूषण, वान्तू—जिस पर प्रैटार्क ने 1336 में विजय प्राप्त की थी—और मौं मिराइल पहाड़ों की चोटियों पर न्यूक्लियर रिएक्टरों के लगाने पर शहरी आपत्ति जताई थी।</p>
<p>शार् की सृजनात्मक दृष्टि पर, उनके कविता लिखने के उद्देश्य और शिल्प पर जिन लोगों का प्रभाव रहा, उनमें ग्रीक दार्शनिक हेरा क्लाइटस, फ़्रैंच कलाकार जॉर्ज दि लातूर और कवि आर्थर रैम्बो को प्रमुख माना जाता है। रैम्बो का साया उनके बिम्बों पर स्पष्ट दिखता है, ख़ास तौर से उनकी सूक्ष्म, घनीभूत गद्य कविताओं में। शार् पर एक और प्रभाव रहा अति यथार्थवाद का।</p>
<p>शार् एक ही विधा में लिखना पसन्द नहीं करते। उन्होंने मुख्य रूप से तीन विधाओं (forms) में कविताएँ लिखी हैं : मुक्त छन्द, गद्य कविता, और सूक्ति। वो अपनी पद्य कविताओं (Verse Poems) और गद्य कविताओं में उन्हीं विषयों को परिवर्द्धित करते हैं जिन्हें उन्होंने अपनी सूक्तियों में उठाया।</p>
<p>अपनी आख़िरी किताब के प्रकाशन तक शार् इस धारणा के समर्थक रहे कि कला, साहित्य और संगीत पारस्परिक रूप से प्रतिरोध की आवश्यक अभिव्यक्ति में जुड़े हुए हैं।
ISBN: 9789389577853
Pages: 142
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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प्रतापराव कदम, इन कविताओं के बहाने—राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक प्रपंचों पर ऐसा तीक्ष्ण प्रहार करते हैं कि यह देख पाना सम्भव लगता है कि मनुष्य की आकांक्षाओं और सपनों के समर्थन में कभी शब्द या भाषा भी खड़ी हो सकती है। यह इन कविताओं के माध्यम से बख़ूबी सम्भव हो सका है और शोर-शराबे वाले ऐसे कृतघ्न समय में अगर कोई कवि अपने भ्रम के सहारे जीवन की सहजता को बचाए रखता है, तो वह कोशिश कम नहीं मानी जा सकती—‘दूर से, अछड़ते जैसे कोई है झोपड़ी में/जैसे कोई फ़सल निहारते खड़ा बीच खेत/यही भरम बनाए-बचाए रखता है। (भरम)’
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जहाँ तक सारा शगुफ़्ता के अनुभवों की बात है, तो मेरे नज़दीक उनमें सब से ऊँचा उसका प्रतिरोध का स्वर है। यह वह औरत है जिसे बचपन में भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर प्रताड़ित किया गया, चार मर्दों ने तलाक़ दी, बच्चों ने छोड़ दिया, मुशायरा सर्किल ने बहिष्कृत किया, लेकिन यही वह औरत भी है जिसने इन हालात के सामने चुप रहने से इंकार कर दिया। अगर उसकी काव्य-शैली की बात की जाए, तो वह उर्दू-फ़ॉर्मलिज़्म के बर्तन को उठाकर खिड़की के बाहर फेंक देती है—शगुफ़्ता आज़ाद नज़्म के स्वरूप को तोड़ती-फोड़ती है, तहस-नहस कर डालती है, और नए सिरे से नए साँचे में ढालती है।
—असद अलवी, अनुवादक और समालोचक
सारा शगुफ़्ता की पहुँच उन हक़ीक़तों तक है जिन तक हमारे नस्री शायरी (गद्य कविता) लिखने वाले शायर कभी नहीं पहुँच सके। वह आला सतह की प्रतिभा की मालिक है। इन्सान के ज़हन का जैसा बोध उसे हासिल हुआ है वह हम में से किसी को हासिल नहीं।
—क़मर जमील, मशहूर शायर
Dasht Mein Dariya
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Sheen Kaf Nizam
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Description:
निज़ाम साहब का काव्य मैंने पढ़ा भी है उनके गहन-गम्भीर स्वर में सुना भी और इस अनुभव से बार-बार आप्यायित हुआ हूँ।
निज़ाम साहब की कविताएँ मुझे सबसे पहले इसीलिए आकृष्ट करती हैं कि वे भारतीय रचनाएँ हैं। जिस संवेदन संसार में वे हमें आमंत्रित करती हैं, वह हमारा जाना-पहचाना है और उसमें वह बड़ी सहजता से प्रवेश करते हैं। फिर जो देश-काल उनकी रचनाओं में गूँजता है, वह भी हमारा अपना सुपरिचित देश-काल है। हमें अपने को यह याद नहीं दिलाना पड़ता कि हम किसी सुन्दर मगर पराए बग़ीचे में झाँक रहे हैं।
निज़ाम साहब के काव्य में एक और बात मुझे विशेष आकृष्ट करती है; वह है उसमें भावना और विचार का विलक्षण सामंजस्य। निज़ाम दूर की कौड़ी लानेवाले या उड़ती चिड़िया के पर काटनेवाले शायर नहीं हैं। चमत्कारी बात उनकी अभीष्ट नहीं है। सीधा-साधा मानवीय सत्य कितना बड़ा चमत्कार होता है, यह वह जानते हैं, और उसी को अपने भीतर से पाना, उसी को दूसरे के भीतर उतार देना उनका अभीष्ट है।
ग़ज़ल के स्वभाव में ही यह चीज़ है कि उसका एक-एक शे’र विचार अथवा भाव वस्तु की दृष्टि से एक मुक्तक होता है : लय अथवा तुक इन मुक्तकों को शृंखलित करती चलती है। विचारों अथवा भावों के जगत में मुक्त आसंगों की-सी एक निरायास यात्रा होती रहे, इस उद्देश्य की पूर्ति निज़ाम की ग़ज़लें भी बख़ूबी करती हैं। कभी-कभी तो एक ही शे’र पढ़कर पाठक गहरे में छुआ जाकर देर तक वहीँ निःस्तब्ध रुका रह सकता है—ग़ज़ल इसकी छूट देती है।
मेरा विश्वास है कि निज़ाम साहब का यह संग्रह हिन्दी जगत में दूर-दूर तक पढ़ा जाएगा और सम्मान पाएगा; इतना ही नहीं, वह एक बहुत बड़े पाठक वर्ग का अपना हो जाएगा; अपना, आत्मीय और सखावत सहज आनन्द देनेवाला।
—अज्ञेय (भूमिका से)।
Thanega Pranam
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Manju Preetham
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Bahati Ho Tum Nadi Nirantar
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Shyam Sunder Tiwari
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Kavi ka shahar
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Rakesh Mishra
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Description:
ग्राम, शहर, प्रकृति और प्रेम इन कविताओं में बराबर-बराबर मात्रा में है और उनकी अपनी-अपनी पीड़ाएँ भी। यानी कवि की आँख हर कहीं खुली है और कोई भी ऐसा दृश्य जो मानवीय विडम्बना को धारण किए हुए है—उनकी कलम से अछूता नहीं रहता। दुख हर कहीं है, देह में भी और धरती में भी। जितना खोदो, जहाँ तक खोदो, दुख ही दुख। ये कविताएँ इसी खुदाई में निकला खनिज हैं।
कवि अगर इस दुनिया में उन लोगों को देख पाता है जो ‘मरने के काम पर हैं’ तो कहना चाहिए कि उन्हें मौजूदा सभ्यता के बहुत भीतर की किसी व्याधि का भी पता है, जिसने जीवन और संसार को यातना और मृत्यु की एक मशीन-भर बना छोड़ा है। ‘पुताई वाले लड़के’ कविता में भी उनकी यह तीक्ष्ण दृष्टि दिखाई पड़ती है। बेहद चित्रात्मक इस कविता में वे जब बताते हैं कि ‘घड़ी किसी के पास नहीं/पुताई के क्षेत्रफल से नापते हैं/समय’ तो यह जैसे हमारे इस समय की तमाम विद्रूपताओं पर एक टिप्पणी मालूम पड़ती है।
‘जब तक हम जान पाते/क्यों हुआ था पिछला युद्ध/उससे पहले ही शुरू हो जाता है। अगला युद्ध’—‘युद्ध’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ सभ्यता-समीक्षा की इसी प्रक्रिया को ही आगे बढ़ाती हैं जो राकेश मिश्र के इस नए संग्रह की लगभग सभी कविताओं का उद्देश्य है।
ये कविताएँ अपनी विषयवस्तु में जीवन और सभ्यता के एक बड़े फलक को समेटती हैं, और हर बिन्दु से मानवीय मूल्यों के अभाव को रेखांकित करती हुईं हमें आत्मनिरीक्षण के लिए उकसाती हैं। एक कविता में वे चेताते भी हैं कि ‘नहीं बोलने की आदत/धीमे से छीन लेती है/सुनने की शक्ति भी।’
Aatmahatya Ke Paryay
- Author Name:
Vandana Devendra
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वर्ष 2002 में आए पहले संकलन ‘समय का हिसाब’ ने वन्दना देवेन्द्र को हिन्दी के कवियों की पहली पंक्ति में शुमार कर दिया। कवि राजेश जोशी ने उस वर्ष छपी कविता की किताबों की अपनी समीक्षा में इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ कविता-संग्रह घोषित किया था। वन्दना की रचनाओं की गहराई, वैविध्य, विस्तार देखकर अचरज होता है। यह जानकर और भी अचम्भा होता है कि वे उत्कृष्ट मृदु गीतात्मक और निर्मम यथार्थवादी राजनीतिपरक कविताएँ समान दक्षता से लिख सकती हैं।
वन्दना देवेन्द्र ने कविता के संसार में स्वयं के लिए जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, वे मुश्किल, खरे और ईमानदार हैं। ज़मीनी सोच, सरलता और निराडम्बर ने उनके काम पर धार रखी है। बहुत से मौलिक विषयों का चयन और एक अलहदा तरह का निर्वाह उनकी रचना-प्रक्रिया को और भी चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
वरिष्ठ कवि और चिन्तक विष्णु खरे ने लिखा है : ‘वन्दना एक (चर्चित) चित्रकार भी हैं और अपने इस फ़न का विनम्र, स्वाभाविक संकेत उन्होंने अपनी कविताओं में दिया भी है, किन्तु हमारे लिए महत्त्वपूर्ण यह है कि शायद उनकी चित्रकार-प्रतिभा उन्हें भारतीय मानवीयता की विभिन्न रंगतों और सूक्ष्म तथा स्थूल रेखाओं को देखने में मदद करती है, या उनका कवि उनके चित्राकार के इस तरह काम आता हो, या दोनों ही वक़्त-ज़रूरत एक-दूसरे को प्रेरित करते हों। बहरहाल, नतीजा यह है कि उनकी कविता का कैनवास एक अद्भुत वैराट्य लिए हुए है और उसमें स्टिल लाइफ़, पोट्रैट, व्यक्ति-समूह, लैंडस्केप (जो उनकी पर्यावरण-चेतना का हिस्सा है), पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंग आदि सब कुछ है।... उनकी रचनाओं में यदि निजी, पराए और वृहत्तर सामाजिक दु:ख-तकलीफ़ों के गाढ़े रंग हैं तो छोटी-बड़ी ख़ुशियों, विसंगतियों, चुनौतियों, शरारत और व्यंग्य के शोख़-चटख वर्ण भी हैं। एक स्तर पर वे अमेरिकी राष्ट्रपति से भारतीय लुम्पेन राजनेताओं तक को, यानी भूमंडलीय से देशी राजनीति तक को, पहचानती हैं तो दूसरे स्तर पर समाज के बहुत से स्त्री-पुरुषों की जीवनी भी जानती हैं।
‘यह देखकर हैरत होती है कि उन्होंने यह सब एक ऐसी भाषा और शैली में उपलब्ध किया है जो अपनी सादगी में इतनी कारगर हैं कि उन्हें शब्दों या शिल्प के चमत्कार की ज़रूरत नहीं पड़ती।’ हिन्दी की कविता, कहानी की दुनिया में वन्दना ने अपनी प्रासंगिक उपस्थिति ही दर्ज नहीं कराई वरन् ‘सच यह है कि वे उस वृहत्तर सर्जक पीढ़ी में शामिल हैं जो रघुवीर सहाय के बाद हिन्दी कविता को अपूर्व विस्तार, वैविध्य और समृद्धि प्रदान कर रही है।’
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