Himalaya

Himalaya

Author:

Mahadevi Verma

Language:

Hindi

Category:

Poetry

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Book Details

संसार के किसी पर्वत की जीवन-कथा इतनी रहस्यमयी न होगी जितनी हिमालय की है। उसकी हर चोटी, हर घाटी हमारे धर्म, दर्शन, काव्य से ही नहीं, हमारे जीवन के सम्पूर्ण निश्रेयम् से जुडी हुई है। संसार के किसी अन्य पर्वत की मानव की संस्कृति, काव्य, दर्शन, धर्म आदि के निर्माण में ऐसा महत्त्व नहीं मिला है, जैसा हमारे हिमालय को प्राप्त है। वह मानो भारत की संश्लिष्ट विशेषताओं का ऐसा अखंड विग्रह है, जिस पर काल कोई खरोंच नहीं लगा सका।</p>
<p>वस्तुतः हिमालय भारतीय संस्कृति के हर नए चरण का पुरातन साथी रहा है। भारतीय जीवन उसकी उजली छाया में पलकर सुन्दर हुआ ये, उसकी शुभ्र ऊँचाई छूने के लिए उन्नत बना है और उसके हृदय से प्रवाहित नदियों में घुलकर निखरा है।</p>
<p>हमारे राष्ट्र के उन्नत शुभ्र मस्तक हिमालय पर जब संघर्ष की नील-लोहित आग्नेय घटाएँ छा गईं, तब देश के चेतना-केन्द्र ने आसन्न संकट की तीव्रानुभूति देश के कोने-कोने में पहुँचा दी।</p>
<p>धरती की आत्मा के शिल्पी होने के कारण साहित्यकारों और चिन्तकों पर विशेष दायित्व आ जाना स्वाभाविक ही था। इतिहास ने अनेक बार प्रमाणित किया है कि जो मानव समूह अपनी धरती से जिस सीमा तक तादात्म्य कर सका है, वह उसी सीमा तक अपनी धरती पर अपराजेय रहा है। आधुनिक युग के साहित्यकार को भी अपने रागात्मक उत्तराधिकार का बोध था। इसी से हिमालय के आसन्न संकट ने उसकी लेखनी को, ओज के शंख और आस्था की वंशी के स्वर दे दिये हैं।

ISBN: 9788180319884

Pages: 193

Avg Reading Time: 6 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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