JYOTIPUNJ
Author:
Narendra ModiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
The life of only those people in the world is purposeful who are able to dedicate a part or whole of their life in others’ good and service. Such great people have made special contribution in constructing the world’s history.
In Bharat, in 1925 Rashtriya Swayamsevak Sangh was established to achieve the exalted goals of nation-building and individual-building. The work of the Rashtriya Swayamsevak Sangh has been progressing continuously. A large number of people have contributed in taking ahead this task.
Prime Minister Shri Narendra Modi, a Swayamsevak himself, during his journey for refinement and transformation got an opportunity to come into contact with a number of selfless and devoted people who dedicated every moment of their lives and every particle of their bodies in the service of the Motherland.
Reminiscences of some greatest social workers who relentlessly and untiringly burnt their lives to glow the motherland Maa Bharati.
ISBN: 9789351862321
Pages: 264
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इतिहास पर शोध करनेवालों के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार की सामग्री सुलभ हो जाने और निजी दस्तावेज़ों के अनेक संग्रह सामने आ जाने से उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक चरण के भारतीय इतिहास पर शोधपत्रों की बाढ़-सी आ गई है। इन शोधपत्रों में अधिकांशतया विशिष्ट समस्याओं, आन्दोलनों अथवा क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, और नई सामग्री के संश्लेषण की अथवा नई खोजों को समाहित करते हुए पाठ्य-पुस्तकें लिखने की अपेक्षाकृत कम कोशिश की गई है। प्रो. सुमित सरकार की यह पुस्तक इसका अपवाद है। यहाँ लेखक ने साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को केन्द्र में रखकर नई सामग्री का संश्लेषण किया है और साथ ही परवर्ती औपनिवेशिक भारत की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक घटनाओं के समग्र अध्ययन में उसका उपयोग करने की कोशिश भी की है।
आधुनिक भारत और उसके स्वातंत्र्य आन्दोलन का इतिहास-लेखन प्रायः विशिष्ट वर्ग के ही दृष्टिकोण से किया गया है। ऐसे इतिहास-लेखन में विभिन्न क्षेत्रों का नेतृत्व करनेवाले लोगों के कार्यकलाप, आदर्श या दलगत जोड़-तोड़ केन्द्रीय विषय रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने, स्वयं अपने ही शोध के आधार पर, उन प्रचुर सम्भावनाओं का उद्घाटन करने की कोशिश की है, जो इतिहास को समाज के निचले तबके की दृष्टि से देखने के लिए विद्यमान हैं। आधुनिक भारतीय इतिहास की हमारी पूरी समझ पर लगे महत्त्वपूर्ण आरोपों का अध्ययन करने के लिए लेखक ने विशिष्ट वर्ग के बजाय जनजातियों, किसानों और कामगारों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
आधुनिक भारत में उन लोगों के अध्ययन के लिए ग्रन्थ-सूची भी दी गई है, जो इस विषय पर हुए प्रचुर शोधकार्यों की स्वयं छानबीन करना चाहते हैं। यह पुस्तक आधुनिक भारतीय इतिहास के अध्ययन में रुचि रखनेवाले हर व्यक्ति के लिए, ऑनर्स और स्नातकोत्तर कक्षाओं के छात्रों, प्राध्यापकों और सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। आदि
Madhyakaleen Bharat : Naye Aayam
- Author Name:
Harbans Mukhia
- Book Type:

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क्या भारतीय इतिहास में फ़्यूडलिज़्म था? इस सवाल पर विचार करने से पहले कुछ ख़ास शब्दों की परिभाषा तय कर लेना उचित होगा। दूसरे शब्दों में फ़्यूडलिज़्म क्या है, इसे साफ़ कर लेना चाहिए। बदक़िस्मती से इस आसान सवाल का जवाब भी इतिहासकारों ने अलग-अलग ढंग से दिया है। अगर फ़्यूडलिज़्म की कोई ऐसी परिभाषा नहीं मिलती जिसे समान रूप से पूरी दुनिया पर लागू किया जा सके, तो इसका वस्तुगत कारण है और उसका हमारी बात के लिए ख़ास महत्त्व है : फ़्यूडलिज़्म कोई विश्व-व्यवस्था नहीं था, पूँजीवाद ही सबसे पहली विश्व-व्यवस्था बना। इसका मतलब यह हुआ कि फ़्यूडलिज़्म का कोई ऐसा सारतत्त्व नहीं रहा है जो पूरी दुनिया पर लागू हो सके, जैसा कि पूँजीवाद का है। जब हम पूँजीवाद की चर्चा अमूर्त रूप में, सार रूप में, माल की सामान्यीकृत उत्पादन प्रणाली के रूप में करते हैं जिसमें श्रमशक्ति ख़ुद भी एक माल होती है, तो हमें इसका एहसास रहता है कि पूरा मानव समाज अपने विकास के किसी न किसी स्तर पर इस उत्पादन प्रणाली की गिरफ़्त में आ चुका है। दूसरी ओर, फ़्यूडलिज़्म पूरे इतिहास के दौरान पूरी दुनिया पर एक साथ कभी भी काबिज़ नहीं रहा। यह किसी ख़ास काल और ख़ास इलाक़ों में, जहाँ उत्पादन के ख़ास तरीक़े और संगठन मौजूद थे, सामाजिक-आर्थिक संगठन का एक ख़ास रूप था।
—इसी पुस्तक से
Himalaya Par Lal Chhaya
- Author Name:
Shanta Kumar
- Book Type:

- Description: वर्ष 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण स्वतंत्र भारत के इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और भारतीय सेना की शर्मनाक पराजय एक कलंक। वह हार सेना की नहीं थी, अपितु तत्कालीन सरकार की लापरवाही के कारण हुई थी। भारत की सरकार पंचशील के भ्रम में और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे में मस्त रही; यद्यपि चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद भारतीय सीमा पर घुसपैठ चलती रही थी। जो भारत की सेना अपनी बहादुरी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध थी और जिस सेना के पराक्रम से मित्र देशों ने दो विश्वयुद्धों में जीत हासिल की थी, भारत की वही बहादुर सेना 1962 में बुरी तरह से परास्त हुई। पिछले कुछ वर्षों से सीमा पर घुसपैठ कुछ अधिक होेने लगी है। कई बार चीनी सेना कई मील अंदर आ गई। चिंता का विषय यह है कि चीनी सेना भारतीय सीमा में अपनी मरजी से आती है और अपनी मरजी से ही वापस चली जाती है। इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य भारत को उस चुनौती के लिए तैयार करना है, जो आज मातृभूमि पर आए संकटों ने हमारे सामने उपस्थित कर दी है। परिस्थितियाँ विपरीत हैं, मानो समय भारत के पौरुष, नीतिज्ञता व साहस की परीक्षा लेना चाहता है। निस्संदेह कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिनसे भविष्य के प्रति महान् निराशा होती है, परंतु हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि विकट और महान् संकटों में से राष्ट्रों के उज्ज्वल भविष्य का उदय हुआ करता है।
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