Pagha Jori-Jori Re Ghato
Author:
Rose KerkettaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 204
₹
255
Unavailable
"रोज ने अपने कथा-संग्रह में आदिवासी जीवन को सघनता और संपूर्णता के साथ शामिल किया है। जो जिया है, उसे ही लिखा है। संग्रह में व्यापकता है, विविधता है, आधुनिकता है, और जो सबसे बड़ी बात है, वह है प्रतिरोध का राजनीतिक स्वर। इसमें हिंदी साहित्य में चल रहे स्त्री विमर्श से अलग ढंग की कहानियाँ हैं, जो पुरुष के विरोध में नहीं, व्यवस्था के विरोध में खड़ी हैं। यहाँ अलग तरह का नारीवाद है। जल, जंगल, जमीन पर हो रहे हमले के खिलाफ लड़ता हुआ नारीवाद।
—वीरभारत तलवार
ऐसे मौसम में जबकि रचनात्मकता में एक प्रकार का सुखाड़ एवं अकाल है, रोज दी ने वैसी कहानियाँ दी हैं, जो बिल्कुल ही एक नए स्वाद की कहानियाँ हैं। समाज में जो लड़ाई है, उस लड़ाई को ताकत देने के लिए यह किताब है।
—किशन कालजयी
रोज दी की प्रमुख विशेषता यह है कि वे कहानियाँ लिखती नहीं कहती हैं, यानी एक कहानीकार का पाठक के साथ जो एक संवाद हो सकता है, पाठक में जो विश्वास हो सकता है, पाठक के साथ जो साझेदारी या भागीदारी हो सकती है, वह रोज दी की कहानियों में दिखती है। उनका जो देशज स्वर है, वह सीमित भौगोलिक दायरे में नहीं सिमटता है। हिंदी में जनजातीय पात्रों को लेकर जो कहानियाँ लिखी गई हैं, ये कहानियाँ उनसे भिन्न हैं।
—रविभूषण
इस कथा-संग्रह से गुजरते हुए आदिवासी समाज की वाचिक परंपरा-किस्सागोई का आस्वाद अनायास हमारे मन-मस्तिष्क को भिगोता है। इन कहानियों में लेखिका ने शिल्प के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया है। कथ्य के साथ सादा-सा शिल्प सहज रूप से आया है। एक नैसर्गिक आदिवासी सादगी मौलिकता-सहजता के साथ।
—रणेंद्र
ISBN: 9789353223526
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Revisiting Our Constitution
- Author Name:
Ram Bahadur Rai, Dr. Mahesh Chandra Sharma
- Book Type:

- Description: Day one. This has its own history. Are these questions raised due to ignorance of the constitution? If so, then this book opens the windows and doors to a constitution that has been satirically described as a ‘paradise for lawyers’. It creates the possibility for vital air. From the experience of the editors, it can be said that even prominent lawyers are unaware of the constitution because it is extremely complex. How can it become comprehensible? Anyone wishing to address this question will find more than enough material in this book. The complexity of the constitution is another reason why it could not become a beloved text for the ordinary citizen. Just as a citizen believes in their religious book, the constitution should serve as the religious text for the system of governance. Until this occurs, deliberations should continue. Any discussion is only relevant and successful when it addresses the core question: how can the fundamental issue regarding the constitution of India be recognized in discussions? The answer to this is extremely simple. India has its own character, its own culture, and it also has its own distortions. We can only understand our distortions and character under the torchlight of our culture. It is under this light that we must create our present times. Our current constitution defines the religion of our state. How Indian or un-Indian is this constitution, essentially? The process of the formation of this constitution should be scrutinized based on logic, and both its past and present should be examined. This is why this book is titled: Revisiting Our Constitution. This book is a collection of well-researched essays that explore the constitution. Academic efforts have been made in this book to analyze and perceive the constitution from the perspective of ‘Ram Rajya’. A single-government system emerges from the constitution. Ram Rajya has been considered the ultimate ideal of any governance system in India. Mahatma Gandhi also stated that Ram Rajya was the goal of Independent India. On the sesquicentennial year of Gandhi, the noted academic journal Manthan has taken on the responsibility of reviewing the journey of India’s constitution. This effort is not as simple and easy as it might seem. In reality, it is difficult and complex.
Muslim Man Ka Aaina
- Author Name:
Rajmohan Gandhi
- Book Type:

-
Description:
स्वस्थ हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों और भारतीय जनगण के बीच सहिष्णुता के लिए यह ज़रूरी है कि मुसलमान हिन्दुओं के और हिन्दू मुसलमानों के मानस को समझें। यह पुस्तक इसी भावना को लेकर भारत और पाकिस्तान के आठ प्रसिद्ध मुस्लिम नेताओं के जीवन को रेखांकित करती है, और उनके कहे-अनकहे पहलुओं को हमारे सामने लाती है। जिन लोगों के जीवनेतिहास के माध्यम से इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में झाँकने का प्रयास किया है, उनमें ये नाम शामिल हैं : सैयद अहमद ख़ाँ, मुहम्मद इक़बाल, मुहम्मद अली, मुहम्मद अली जिन्ना, फ़ज़लुल हक़, अबुल कलाम आज़ाद, लियाक़त अली ख़ाँ, ज़ाकिर हुसैन।
पुस्तक हमारे मन-मस्तिष्क में बनी मुसलमानों के प्रति उन सभी भ्रान्त धारणाओं को वैचारिक स्तर पर तोड़ती है जिन्हें हम तथाकथित ‘इतिहास’ के रूप में जानते आए हैं। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है और कितनी भिन्नता तथा दोनों ही समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नज़दीक हैं, पुस्तक हमें विस्तार से बताती है।
‘अंडरस्टैंडिंग दि मुस्लिम माइंड’ अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित राजमोहन गांधी की यह पुस्तक हमें अत्यन्त विनम्रता से उन ज़िन्दगियों को समझाने का प्रयत्न करती है, जिनके विषय में हम जानते हुए भी बहुत कम जानते हैं।
Kashmir : Itihas Aur Parampara
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

-
Description:
'नीलमत पुराण' में कहा गया है कि कश्मीर स्वाध्याय एवं ध्यान में मग्न रहनेवाले और निरन्तर यज्ञ करनेवालों की भूमि रही है। यह हिमालय-पर्वतमाला की गोद में बसा एक सुरम्य प्रदेश है। लेकिन अपनी दुर्गम भौगोलिकता के कारण यह बाह्य-जगत् की पहुँच से दूर रहा है।
प्राचीन काल में कश्मीर प्रदेश गन्धार जनपद के अन्तर्गत आता था। सातवीं शताब्दी ई. के प्रारम्भ में यहाँ नाग जाति के कर्कोटक राजवंश का उदय हुआ; जिसके संस्थापक दुर्लभवर्द्धन के समय से कश्मीर का व्यवस्थित इतिहास मिलता है। उनके पौत्र ललितादित्य ने गुप्तोत्तर काल में एक साम्राज्य खड़ा किया; और प्रसिद्ध मार्तण्ड-मन्दिर का निर्माण भी कराया।
1339 ई. तक कश्मीर एक स्वशासित हिन्दू राज्य था। परन्तु मध्यकालीन हिन्दू राजाओं की दुर्बलता और उनके सामन्तों के षड्यन्त्रों के कारण वहाँ का वातावरण अराजक हो गया, जिसका लाभ उठाते हुए 1339 ई. में शाहमीर नामक एक मुसलमान ने कश्मीर के सिंहासन पर कब्जा कर लिया।
कल्हण ने 'राजतरंगिणी' में ललितादित्य से कहलवाया है कि ''इस देश को सुशासित तथा प्रगतिशील बनाये रखने के लिए अन्तर्कलह से बचना आवश्यक है।'' इसके कारण कश्मीर ने भारी कीमत चुकाई है। 'नीलमत पुराण' साक्षी है कि महर्षि कश्यप के समय से ही कश्मीर के स्थानीय लोगों ने विस्थापन की गहरी पीड़ा को महसूस किया है और आधुनिक काल में कश्मीरी हिन्दुओं को विस्थापन ने जितने दर्द दिये हैं, वह तो अकथनीय है।
Gandhi-Drishti Ke Vividh Aayam
- Author Name:
Shambhu Joshi
- Book Type:

-
Description:
जब गांधी जी बर्बरीकरण की बात करते हैं तो वह केवल स्थूल हिंसा तक सीमित नहीं है। उसमें हिंसा के वे सब रूप और आयाम शामिल हैं, जिन्हें संरचनागत हिंसा, सांस्कृतिक हिंसा और पीड़ितोन्मुख अप्रत्यक्ष हिंसा कहते हैं। प्रत्यक्ष हिंसा भी इस संरचनागत हिंसा का ही प्रतिफलन होती है, जिसे सांस्कृतिक हिंसा एक वैधता प्रदान करने की कोशिश करती है।
महात्मा गांधी के विचार-सूत्रों में यदि इस प्रकार की सभी समस्याओं के प्रति एक अद्भुत जागरूकता तथा एक नैतिक-तार्किक संगति दिखाई देती है तो इसका कारण शायद यही है कि उनका सारा जीवन और चिन्तन अहिंसा-प्रेम के नियम से प्रेरित रहा है। विस्मय इस बात का होता है कि उनके नैतिक आग्रहों में कहीं भी अर्थशास्त्रीय सवालों की अनदेखी नहीं है। वह यह मानते हैं कि 'सच्चा अर्थशास्त्र कभी उच्चतम नैतिक मानकों का विरोधी नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सच्चा नीतिशास्त्र वही माना जा सकता है, जो नीतिशास्त्र होने के साथ-साथ एक अच्छा अर्थशास्त्र भी हो...।
अब तो मेजारोस, लेबो विट्ज और टेरी इगल्टन जैसे नए मार्क्सवादी विचारक भी विकेन्द्रीकृत प्रौद्योगिकी और उत्पादन की बात करने लगे हैं, जिस पर न कॉरपोरेट का नियंत्रण हो, न राज्य का। यह उन उत्पादन-शक्तियों के विकल्प से ही हो सकता है, जो उत्पादन के साथ-साथ मुनाफ़े के वितरण की समस्या का भी समाधान अन्तर्निहित किए हैं। लेकिन विकेन्द्रीकृत तकनीक पर ही, जिसे गांधी जी 'स्वदेशी' कहते हैं, विकेन्द्रीकृत स्वामित्व का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय अथवा बहुराष्ट्रीय, किसी भी प्रकार के पूँजीवाद और उसके अनिवार्य प्रतिफलन साम्राज्यवाद का विकल्प इसलिए 'स्वदेशी' तकनीकी और उत्पादन-व्यवस्था ही हो सकती है, जिसके अन्तर्गत मानवीय स्वातंत्र्य और व्यक्तित्व भी पोषित होता है और प्राकृतिक विनाश का ख़तरा भी नहीं रहता।
इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गांधी-दृष्टि के विविध आयामों को उनके साध्य सत्य तथा साधन अहिंसा अर्थात प्रेम के बीज से पल्लवित सिद्ध करने का स्तुत्य प्रयास किया गया है।...यह पुस्तक जहाँ सामान्य पाठकों को गांधी-विचार की प्रामाणिक जानकारी दे सकेगी, वहीं अध्येताओं, छात्रों और अध्यापकों के लिए भी अतीव उपयोगी साबित होगी।
—नन्दकिशोर आचार्य
1942 Ki August Kranti
- Author Name:
Fanish Singh
- Book Type:

-
Description:
भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से मुक्ति–संघर्ष की गाथा है। स्वाधीनता आन्दोलन के संघर्ष में 1857 का मुक्ति-संग्राम उल्लेखनीय है। इसमें हर वर्ग, ज़मींदार, मज़दूर और किसान, स्त्री और पुरुष, हिन्दू और मुसलमान–सभी लोगों ने अपनी एकता एवं बहादुरी का परिचय दिया।
‘अगस्त क्रान्ति’ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति-संग्राम कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आज़ादी मिली। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आन्दोलन न होकर आम जनता का आन्दोलन था जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के सात दशक बाद आज भी भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता के तत्त्व भारत को निगल जाने को आतुर हैं। राष्ट्रीय एकीकरण देश के समक्ष एक दु:खजनक समस्या बन गई है। इसका मुख्य कारण स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी का राष्ट्रीय आन्दोलन के बलिदानी इतिहास से परिचित न होना है। इसी पृष्ठभूमि में यह आवश्यक समझा गया कि नई पीढ़ी विशेषकर नवयुवकों के लिए एक ऐसी पुस्तक की रचना की जाए जिससे वे स्वाधीनता आन्दोलन की कड़ियों से परिचित हो सकें। इन कड़ियों में जहाँ सर्वप्रथम भारत के जाने–माने इतिहासकार विपिनचंद्र, ताराचंद, डॉ. के.के. दत्त के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, वहीं डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, पी.सी. जोशी, मधु लिमये, आदि के विचारों के साथ आज के इतिहासविज्ञ प्रो. भद्रदत्त शर्मा, प्रो. सुमन्त नियोगी आदि के भी विचार ‘अगस्त क्रान्ति’ के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं ।
Bharatiya Videsh Neeti
- Author Name:
Jn Dixit
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्री जे.एन. दीक्षित द्वारा पचास वर्षो की अवधि के विस्तृत फलक पर भारतीय विदेश नीति के विभिन्न चित्र सशक्त तथा प्रभावशाली ढंग से उकेरे गए हैं । लेखक ने 1947 को भारतीय विदेश नीति का आरंभ काल माना है । इन्होंने बताया है कि पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति का मूलाधार रखा तथा इसके बाद उनके उत्तराधिकारियों ने इस दिशा में किस प्रकार से व्यापक और महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । इस महत्त्वपूर्ण आख्यान का वर्णन करते समय लेखक ने कालक्रमानुसार भारत की विदेश नीति के विविध पक्षों को उजागर किया है । इसके साथ ही उन पक्षों के राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़नेवाले प्रभावों का भी विवेचन किया है तथा ऐसी युगांतकारी घटनाओं को शामिल किया है जिनका भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकताओं पर प्रभाव पड़ा है । इसके अतिरिक्त इस पुस्तक में उन घटनाओं के परिणामों तथा प्रतिक्रियाओं का भी विश्लेषण किया गया है । उदाहरण के तौर पर-सन् 1947-48, 1965 तथा 1971 में भारत-पाक युद्ध; संयुक्त राष्ट्र का संदेहास्पद रवैया तथा कश्मीर का मुद्दा; 1962 में भारत-चीन युद्ध; 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का कब्जा; महाशक्तिशाली सोवियत संघ का विघटन; कश्मीर की समस्या तथा पाकिस्तान की ' परोक्ष युद्ध ' की कार्यनीति; 1991 में खाड़ी युद्ध; मई 1998 में भारत-पाक द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण । इस पुस्तक में विश्व के विभिन्न देशों-विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, चीन तथा पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हुए घटनाओं के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विशद विवेचन किया गया है । भारतीय विदेश नीति को आधार बनाकर लिखी गई यह पुस्तक निस्संदेह एक उत्कृष्ट कृति है ।
Jab Neel Ka Daag Mita : Champaran-1917
- Author Name:
Pushyamitra
- Book Type:

-
Description:
सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।
गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।
Smriti Sakshya
- Author Name:
Ganga Prasad
- Book Type:

- Description: बिहार में 1974 में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, तानाशाही, संविधान एवं न्यायालय विरोधी सरकार के कार्य जैसे मुद्दों को लेकर छात्र आंदोलन शुरू हुआ और इसने प्रचंड रूप धारण कर लिया था। बाद में जयप्रकाश नारायणजी भी आंदोलन के समर्थन में आ गए थे। उस आंदोलन में मैं भी छात्रों का समर्थन कर रहा था, इस कारण मुझे आपातकाल के पूर्व दो बार जेल जाना पड़ा । फिर कुछ ही दिन बाद हम जेल से बाहर आए देशव्यापी आंदोलन से असहज होकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल के दौरान पटना शहर से कुछ दूर खाजपुरा गाँव स्थित मेरा पैतृक निवास 'आर्य भवन' आंदोलन संबंधी गतिविधियों के संचालन का गुप्त केंद्र बन गया था, इस बीच संघ एवं जनसंघ की आंतरिक गुप्त बैठकें 'आर्य भवन' में ही होती थीं। जिसमें संघ के अखिल भारतीय अधिकारी, जनसंघ एवं दूसरे दलों के भूमिगत शीर्षस्थ नेता भी शामिल होते थे। इस दृष्टि से 'आर्य भवन' आंदोलन संचालन का मुख्यालय बन गया था।
Vikalp Ka Rasta
- Author Name:
Surendra Mohan
- Book Type:

-
Description:
1991 में उदारीकरण की शुरुआत के साथ देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में जो बदलाव आए हैं, इस पुस्तक में उन्हीं का लेखा-जोखा है।
वरिष्ठ समाजवादी विचारक और राजनीतिज्ञ सुरेन्द्र मोहन ने इन लेखों में आर्थिक सुधारों की जारी प्रक्रिया के हर पहलू पर दृष्टिपात करते हुए अपनी अनुभवी नज़र से इस प्रक्रिया के अन्तर्विरोधों को उजागर किया है और एक समग्र विकल्प की तलाश पर बल दिया है ताकि हर तबक़े, हर व्यक्ति के लिए उपादेय हो।
पुस्तक में केन्द्र सरकारों की आर्थिक नीतियों के विकल्प का उल्लेख करने के साथ ही वायुमंडल की तपन से प्रभावित हो रहे पर्यावरण और मानव सभ्यता पर घिर रहे संकटों के निवारण की तरफ़ भी संकेत किया गया है।
विश्व आर्थिक मन्दी के भयानक दौर से देश कैसे बचा है, और भविष्य में भी इससे अर्थव्यवस्था को कैसे बचाया जा सकता है, इस विषय में वरिष्ठ समाजवादी विचारक हमें अपने विचारों से अवगत कराते हैं।
लेकिन पूरी पुस्तक का ज़ोर है एक वैकल्पिक समान राजनीतिक व्यवस्था की तलाश पर, जिसकी आवश्यकता इधर हर स्तर पर महसूस की जा रही है।
BHARAT-ISRAEL SAMBANDH
- Author Name:
Maj (Dr.) Parshuram Gupt
- Book Type:

- Description: मेजर (डॉ.) परशुराम गुप्त जन्म : 30 अगस्त, 1953 को रायबरेली जिले के सलोन नगर में। शिक्षा एवं दायित्व : स्नातकोत्तर (इलाहाबाद विश्वविद्यालय), पी-एच.डी. (गोरखपुर विश्व विद्यालय), पूर्व प्राचार्य : गो. महंत अवेद्यनाथ महाविद्यालय, चौक, महाराज-गंज (उ.प्र.), पूर्व विभागाध्यक्ष एवं एसोशिएट प्रोफेसर, रक्षा अध्ययन विभाग, जवाहरलाल नेहरू स्मारक पो. ग्रे. कालेज, महाराजगंज (उत्तर प्रदेश)। प्रकाशन : राष्ट्रीय महत्त्व की बीस पुस्तकें प्रकाशित और अनेक का लेखन अनवरत जारी। सम्मान : दो बार रक्षा मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित, शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु दैनिक जागरण और भोजपुरी परिवार मस्कट, ओमान द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान हेतु सम्मानित, महानिदेशक, राष्ट्रीय कैडेट कोर द्वारा सम्मानित, भारत के मान. राष्ट्रपति (भारत सरकार) द्वारा राष्ट्रीय कैडेट कोर में प्रशंसनीय सेवा हेतु इसी कोर में ‘मेजर’ के अवैतनिक रैंक से सम्मानित, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, द्वारा ‘कबीर सम्मान’ से सम्मानित, उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान हेतु जिलाधिकारी द्वारा सम्मानित।
Hindu Sabhyata
- Author Name:
Radhakumud Mukherji
- Book Type:

- Description: ‘हिन्दू सभ्यता’ प्रख्यात इतिहासकार प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की सर्वमान्य अंग्रेज़ी पुस्तक ‘हिन्दू सविलाजेशन’ का अनुवाद है। अनुवाद किया है इतिहास और पुरातत्त्व के सुप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने। इसलिए अनूदित रूप में भी यह कृति अपने विषय की अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तकों में सर्वोपरि है। हिन्दू सभ्यता के आदि स्वरूप के बारे में प्रो. मुखर्जी का यह शोधाध्ययन ऐतिहासिक तिथिक्रम से परे प्रागैतिहासिक, ऋग्वैदिक, उत्तरवैदिक और वेदोत्तर काल से लेकर इतिहास के सुनिश्चित तिथिक्रम के पहले दो सौ पचहत्तर वर्षों (ई. पू. 650-325) पर केन्द्रित है। इसके लिए उन्होंने ऋग्वेदीय भारतीय मानव के उपलब्ध भौतिक अवशेषों तथा उसके द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार की उत्खनित सामग्री का सप्रमाण उपयोग किया है। वस्तुतः प्राचीन सभ्यता या इतिहास-विषयक प्रामाणिक लेखन उपलब्ध अलिखित साक्ष्यों के बिना सम्भव ही नहीं है। यह मानते हुए भी कि भारत में साहित्य की रचना लिपि से पहले हुई और वह दीर्घकाल तक कंठ-परम्परा में जीवित रहकर ‘श्रुति’ कहलाया जाता रहा, उसे भारतीय इतिहास की प्राचीनतम साक्ष्य-सामग्री नहीं माना जा सकता। यों भी यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लिपि, लेखन-कला, शिक्षा या साहित्य मानव-जीवन में तभी आ पाए, जबकि सभ्यता ने अनेक शताब्दियों की यात्रा तय कर ली। इसलिए प्रागैतिहासिक युग के औज़ारों, हथियारों, बर्तनों और आवासगृहों तथा वैदिक और उत्तरवैदिक युग के वास्तु, शिल्प, चित्र, शिलालेख, ताम्रपट्ट और सिक्कों आदि वस्तुओं को ही अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। कहना न होगा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में अध्ययनरत शोध छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी इस कृति के निष्कर्ष इन्हीं साक्ष्यों पर आधारित हैं।
Madhyakaleen Bharat : Naye Aayam
- Author Name:
Harbans Mukhia
- Book Type:

-
Description:
क्या भारतीय इतिहास में फ़्यूडलिज़्म था? इस सवाल पर विचार करने से पहले कुछ ख़ास शब्दों की परिभाषा तय कर लेना उचित होगा। दूसरे शब्दों में फ़्यूडलिज़्म क्या है, इसे साफ़ कर लेना चाहिए। बदक़िस्मती से इस आसान सवाल का जवाब भी इतिहासकारों ने अलग-अलग ढंग से दिया है। अगर फ़्यूडलिज़्म की कोई ऐसी परिभाषा नहीं मिलती जिसे समान रूप से पूरी दुनिया पर लागू किया जा सके, तो इसका वस्तुगत कारण है और उसका हमारी बात के लिए ख़ास महत्त्व है : फ़्यूडलिज़्म कोई विश्व-व्यवस्था नहीं था, पूँजीवाद ही सबसे पहली विश्व-व्यवस्था बना। इसका मतलब यह हुआ कि फ़्यूडलिज़्म का कोई ऐसा सारतत्त्व नहीं रहा है जो पूरी दुनिया पर लागू हो सके, जैसा कि पूँजीवाद का है। जब हम पूँजीवाद की चर्चा अमूर्त रूप में, सार रूप में, माल की सामान्यीकृत उत्पादन प्रणाली के रूप में करते हैं जिसमें श्रमशक्ति ख़ुद भी एक माल होती है, तो हमें इसका एहसास रहता है कि पूरा मानव समाज अपने विकास के किसी न किसी स्तर पर इस उत्पादन प्रणाली की गिरफ़्त में आ चुका है। दूसरी ओर, फ़्यूडलिज़्म पूरे इतिहास के दौरान पूरी दुनिया पर एक साथ कभी भी काबिज़ नहीं रहा। यह किसी ख़ास काल और ख़ास इलाक़ों में, जहाँ उत्पादन के ख़ास तरीक़े और संगठन मौजूद थे, सामाजिक-आर्थिक संगठन का एक ख़ास रूप था।
—इसी पुस्तक से
Madhyakalin Bharat mein Prodhyogiki
- Author Name:
Irfan Habib
- Book Type:

-
Description:
‘भारत का लोक इतिहास’ श्रृंखला की यह कड़ी भारतीय इतिहास के उस पहलू पर दृष्टिपात करती है जिस पर अभी तक बहुत कम काम हुआ है। इसमें आमजन के साधारणतम औज़ारों से लेकर खगोल-वैज्ञानिकों के उपकरणों और युद्ध में काम आनेवाले हथियारों तक के विकास को रेखांकित किया गया है। अध्ययन का मुख्य तत्त्व यह है कि यह पूर्णतया ऐतिहासिक है, तकनीक के विकास-क्रम की खोज न सिर्फ़ प्रमाणों के साथ की गई है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक परिणामों को भी विस्तार से समझा गया है।
श्रृंखला की अन्य पुस्तकों की तरह इसमें भी मूल दस्तावेज़ों के उद्धरणों और आधुनिक-पूर्व तकनीक के विषय में विशिष्ट सूचनाएँ दी गई हैं। तकनीकी शब्दावली, तकनीक के ऐतिहासिक स्रोतों और भारत से बाहर विकसित होनेवाली मध्यकालीन तकनीक पर विशेष टिप्पणियाँ भी दी गई हैं।
छात्रों और सामान्य पाठकों को ध्यान में रखते हुए कोशिश की गई है कि प्रामाणिकता को हानि पहुँचाए बिना पुस्तक जितनी सरल हो सकती है, उतनी हो सके। उम्मीद है कि सिर्फ़ इतिहासकारों को ही नहीं, हर उस पाठक को यह प्रस्तुति मूल्यवान लगेगी जो यह जानना चाहते हैं कि प्राचीन युग में जनसाधारण, आम स्त्री और पुरुषों ने अपने हाथों और औज़ारों से क्या कुछ किया।
Bapu Ki Paati : Mahatma Gandhi Ke Jeevan Prasang
- Author Name:
Sopan Joshi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Manjhinama | The True Story Of A Bonded Labourer Becoming A Union Minister | Minister Enterprises of India Jitan Ram Manjhi Book In Hindi
- Author Name:
Amreen Khan
- Book Type:

- Description: जीतन राम मांझी एक राजनीतिज्ञ हैं, जो केंद्र सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री हैं। वर्तमान में वे गया निर्वाचन क्षेत्र से संसद् सदस्य हैं। 20 मई, 2014 से 20 फरवरी, 2015 तक वे बिहार के 23वें मुख्यमंत्री भी रहे। इससे पहले उन्होंने नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया। मांझी 1980 से बिहार विधानसभा के सदस्य हैं। मांझी का जन्म 6 अक्तूबर, 1944 को बिहार के गया जिले के खिजरसराय क्षेत्र के महकार गाँव में हुआ था। मगध विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 13 साल तक गया टेलीफोन एक्सचेंज में काम किया। जीतन राम मांझी ने 1980 में राजनीति में प्रवेश किया। कांग्रेस पार्टी के टिकट पर फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1990 का चुनाव हारने के तुरंत बाद मांझी जनता दल में चले गए। 1996 से 2005 तक मांझी बिहार में आरजेडी राज्य सरकार में मंत्री थे। 2010 के बिहार चुनावों में वे जहानाबाद जिले के मखदुमपुर से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। 2015 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मांझी ने पार्टी से अलग होकर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा सेक्युलर नाम से अपनी पार्टी बनाई और भाजपा के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. में शामिल हो गए।
Itihaskaar Ka Matantar
- Author Name:
Mubarak Ali
- Book Type:

- Description: पाकिस्तान के पाठ्यक्रम में इतिहास की जो पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं, उनमें भारत और हिन्दुओं का उल्लेख एक शत्रु देश और शत्रु के रूप में किया गया है। उनमें पाकिस्तान का इतिहास शुरू होता है मुहम्मद–बिन–कासिम के भारत आक्रमण से। भगत सिंह, अशफ़ाक़उल्ला ख़ाँ, महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ जैसे स्वाधीनता–सेनानियों का उनमें कोई उल्लेख नहीं। स्वाधीनता–सेनानियों के रूप में इक़बाल, मुहम्मद अली ज़िन्ना, लियाक़त अली ख़ाँ जैसे लोगों का ही नाम है जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध न तो कोई जंग की, न ही जेल गए। वहाँ के इतिहास में औरंगजेब को महानायक तथा अकबर को खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है। इतिहास को तोड़–मरोड़कर पेश करने की परम्परा केवल पाकिस्तान में ही नहीं, हमारे देश में भी रही है। फ़र्क़ केवल मात्रा का है। वहाँ यह मानसिकता प्रचुर मात्रा में है तो यहाँ अल्प। मसलन हिन्दू कट्टरवादियों द्वारा बाबर को भारत पर आक्रमणकारी तथा हिन्दू विरोधी के रूप में चित्रित किया जाता है और आज भी भारतीय मुसलमानों को बाबर की सन्तान कहकर कोसा जाता है।
Teen Talaq
- Author Name:
Ziya Us Salam
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bharatiya Rajsatta : Kitni Samvaidhanik
- Author Name:
Ram Lochan Singh
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक परिश्रमपूर्वक इकट्ठी की गई शोध सामग्रियों के वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर लिखी गई एक ऐसी कृति है, जो यह दरशाती है कि स्वतंत्र भारत के संविधान की ‘प्रस्तावना’, ‘मौलिक अधिकारों’ और ‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों’ में प्रदत अवधारणाओं और भारतीय राजसत्ता के बीच जो विरोधाभाषी प्रवृत्ति आज पैदा हो गई है, उसका विकास किस तरह से क्रमिक गति से होता गया है। एक समाजवादी और लोक कल्याणकारी भारतीय गणतंत्र की जिस अवधारणा को स्वावलंबी आर्थिक विकास, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की आर्थिक इकाइयों को सर्वोपरि महत्त्व के स्थान पर रखकर ‘समाजवादी ढाँचे के समाज’ के निर्माण के लिए चलाई जा रही आर्थिक-नीति में किस तरह के सैद्धांतिक भटकाव क्रमिक गति से आते गए कि उन्होंने इजारेदारियों को आगे बढ़ा दिया, सामंतवादी उत्पादन प्रणाली के अवशेषों को संपूर्णता में समाप्त करने में असपफल हो गए और सबसे बढ़कर साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी के साथ भारतीय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संबंधों को इस हद तक मजबूती प्रदान कर दी कि देश क्रमिक गति से आर्थिक तौर पर संकटग्रस्त होता चला गया। खास कर राजीव गांधी के शासन काल में नव-उदारवादी नीतियों की तरफ हुए अत्यधिक झुकाव के कारण भारत गहरे आर्थिक संकट में फँस गया। जरूरत थी पूर्व की कमजोरियों और गलतियों को ठीक करने की मगर नरसिम्हा राव सरकार ने इसके बदले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के सामने आत्मसमर्पण की नीति को अख्तियार कर पूर्व की सर्वमान्य स्वावलंबी विकास नीति के ठीक विपरीत नव-उदारवादी आर्थिक विकास नीति को स्वीकार करके विकास प्रक्रिया को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप जिस आर्थिक आधार का निर्माण भारत में हो रहा है वह वर्तमान संविधान की आत्मा के ठीक उल्टा है। अब तो संविधान को ही बदल देने की माँग बड़ी पूँजी के तावेदार राजनीतिक दल करने लगे हैं, जो भारत को न तो समाजवादी-लोक कल्याणकारी राज्य रहने देगा न अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्राण। इससे राज सत्ता का स्वरूप ही बदल दिए जाने का खतरा है।
Sansad mein Vikas Ki Baaten
- Author Name:
Narendra Pathak
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bharat Ka Nav-Nirman
- Author Name:
Suresh Rungta
- Book Type:

- Description: छह विभिन्न शीर्षकों में विभक्त प्रस्तुत पुस्तक ‘भारत का नव निर्माण’ सुरेश रूँगटा द्वारा समयसमय पर विभिन्न पत्रों में लिखे गए सारगर्भित लेखों का संकलन है। इन आलेखों में पिछले तीनचार वर्षों के दौरान राज्य के अलावा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए बुनियादी एवं सुधारवादी परिवर्तनों का विस्तार से विवरण है। ज्वलंत विषयों तथा घटनाओं, खासकर आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं पर आधिकारिक ढंग से गहन एवं निष्पक्ष चिंतन और विवेचन के साथ उसके उचित समाधान के तर्कसम्मत सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं। मूल रूप से पुस्तक का आलोच्य विषय है—भारत का पुनरुत्थान—भौतिक एवं बौद्धिक स्तरों पर। भारत एवं हिंदुत्व के विरुद्ध फैलाई जा रही भ्रांति एवं अनर्गल प्रवादों का परदाफाश करके रूँगटाजी ने लोकोपयोगी काम किया है। कृषिसमस्या, भूमिअधिग्रहण, पर्यावरण की रक्षा, खाद्यसुरक्षा, गरीबों की बैंक तक पहुँच एवं कालेधन और भ्रष्टाचार की विदाई के अलावा विकास के पैमाने की विकृति और नैतिकता से बढ़ती हुई दूरी आदि से संबंधित लेख भी पुस्तक में संकलित हैं। निस्संशय सामयिक विषयों पर तटस्थ भाव से विवेचन पुस्तक की सार्थकता है। भारत के नवनिर्माण तथा स्वर्णिमउज्ज्वल भविष्य के लिए जिस मनःस्थिति और कार्यकलापों की आज आवश्यकता है, उनपर केंद्रित हैं इस पुस्तक के पठनीय लेख।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.