1971 Bharat Pak Yuddha
Author:
Lt Gen K K NandaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Unavailable
1971 का भारत-पाक युद्ध
सन् 1971 के अंत तक याह्या खाँ पूरी तरह से विश्वस्त हो चुके थे कि भारत के साथ पूर्व में युद्ध करना अनिवार्य हो चुका है। वे इस बात को लेकर भी विश्वस्त थे कि उनके लिए भारतीय सेनाओं को पराजित करना संभव नहीं है तथा वे पूर्वी पाकिस्तान का बलिदान करने के लिए तैयार थे। वहीं उन्हें यह भी विश्वास था कि वे पश्चिम में एक विशाल क्षेत्र पर कब्जा करके पूर्वी पाकिस्तान की क्षतिपूर्ति कर लेंगे तथा इसके द्वारा ‘वे न केवल भारत को नीचा दिखाने और अपना सम्मान बनाए रखने में सफल रहेंगे, अपितु युद्ध के अंत में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में होंगे।’
परंतु सन् 1971 में भारत के जाँबाज सैनिकों ने पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिकों को बंदी बनाकर ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जो सारी दुनिया में बेजोड़ था। इस पुस्तक में 1971 की शानदार विजय की गौरव गाथा के साथ-साथ उड़ी क्षेत्र में सन् 1947-48 तथा 1965 के दौरान 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड एवं अन्य सैन्य टुकड़ियों के द्वारा उनके नियंत्रण-क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए सैन्य अभियानों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। लेफ्टिनेंट जनरल के.के. नंदा ने अपनी 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड का नेतृत्व करते हुए रक्षात्मक युद्ध लड़ा और अपनी बहादुरी एवं दूरदर्शिता से भारत की एक इंच भूमि भी दुश्मन के कब्जे में नहीं जाने दी।
प्रस्तुत पुस्तक का अपना सामरिक महत्त्व है। भविष्य में युद्धों की योजना बनाते समय विभिन्न स्तरों के कमांडर इसके विवरणों से भरपूर लाभ उठाएँगे तथा भारत की सीमाओं की रक्षा में प्राणपण से सफल होंगे।
ISBN: 9788173158919
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: "अगस्त 2011 में मजबूत लोकपाल विधेयक की माँग को लेकर अन्ना हजारे का आमरण अनशन स्वतंत्र भारत के इतिहास की ऐतिहासिक घटना थी। कई घोटालों के उजागर होने के तुरंत बाद हुआ यह आंदोलन जिस तेजी से मध्यम वर्ग के बीच फैला उसने भारतीय जनमानस को आंदोलित कर दिया। उसमें एक आशा का संचार किया कि भारत से भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकता है। मशहूर पत्रकार आशुतोष ने भारत को बदल देनेवाले इन 13 दिनों की कहानी बुनी है। उन्होंने सारी घटनाओं की सीधी जानकारी इसमें दी है, क्योंकि वे स्वयं भी अनशन स्थल, दिल्ली के रामलीला मैदान में उपस्थित थे और दोनों पक्षों—केंद्र की यू.पी.ए. सरकार तथा टीम अन्ना के साथ सीधे संपर्क में थे। अन्ना हजारे के आंदोलन की मानसिकता को समझाने के लिए आशुतोष ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन और महात्मा गांधी के सत्याग्रह को याद करते हुए स्वतंत्रता पूर्व के भारत की राजनीति की भी पड़ताल की है। भारत से भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी के आक्रोश के क्रांतिकारी 13 दिनों की सजीव दास्ताँ है यह पुस्तक। "
Kaushambi : Prachin Bharat Ka Ek Gauravshali Nagar
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: प्राचीन भारत का एक गौरवशाली नगर कौशाम्बी ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक, कनिष्क, समुद्रगुप्त, हर्षवर्द्धन आदि प्रतापी शासकों की महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। उत्तर वैदिक काल से मुग़लकाल तक कौशाम्बी का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित है। कौशाम्बी के उत्खनन के दौरान प्रथम सहस्राब्दी ई.पू. की आरम्भिक शताब्दियों में नगरीकरण और नगर के दुर्गीकरण के स्पष्ट संकेत मिले हैं। यहाँ यमुना नदी के बाएँ तट पर उदयिन का बनवाया हुआ एक क़िला था, जिसके भग्नावशेष एक विशाल टीले के रूप में कोसम और गढ़वा नामक ग्रामों के बीच में स्थित है। गुप्त-साम्राज्य के विघटन के साथ ही कौशाम्बी नगर भी पतनोन्मुख हो गया। गुप्त-साम्राज्य के बाद छोटे-बड़े कई राजवंशों का प्रादुर्भाव हुआ। नए राजधानी नगरों के उदय के कारण कौशाम्बी का महत्त्व स्वाभाविक रूप से कम हो गया। इसी बीच हूण हमलावरों के आक्रमण के कारण कौशाम्बी नगर तहस-नहस हो गया। इतिहास की एक समृद्ध थाती को अपने सीने में सँजोए यह पुरातन नगर अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए मानो आकुल है। यह पुस्तक कौशाम्बी की उसी अकुलाहट से उपजा एक क्षीण-मन्द राग है। इसमें इतिहास के तमाम आरोहों-अवरोहों को यथासम्भव स्वर देने का प्रयास किया गया ह
Bhrashtachar Ki Vishbel
- Author Name:
Sadachari Singh Tomar
- Book Type:

- Description: "संभवतः यह अपने आप में विश्व की एकमात्र पुस्तक है, जिसमें लेखक ने शासकीय कार्य करते हुए तीन वर्षों तक अध्ययन करके रु. 2000 करोड़ के घपलों को उजागर किया, जिनकी जाँच के कारण भारत सरकार के सचिव को उसके पद से हटाकर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। अब बारी आई थी कृषि मंत्री को पद से हटाने की। गठजोड़ की सरकार में इस मंत्री के पास इतने सांसद थे कि यदि वह अपना समर्थन वापस ले लेता तो सरकार धराशायी हो जाती। इस परिस्थिति का फायदा लेकर उसने सी.बी.आई. की जाँच आगे बढ़ाने के बदले एक अन्य अधिकारी से जाँच करवाकर इस हटाए गए सचिव को वापस पद पर बैठा दिया। इस पर लेखक ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की; फलस्वरूप पद पर वापस आकर बैठे सचिव को भारत शासन की नौकरी एवं देश छोड़कर विदेश भागना पड़ा था। उस अवधि में देश में मिली-जुली सरकार थी और भ्रष्टाचार का आलम ऐसा था कि ईमानदार लोग खौफ में जीते थे। यह पुस्तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे अधिकारियों-राजनीतिज्ञों के घपलों-घोटालों का पर्दाफाश करती है और भ्रष्टाचार की विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने का संदेश देती है।
Gandhi aur Nehru
- Author Name:
Deepak Malik
- Rating:
- Book Type:

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Description:
भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन वस्तुत: आम सहमतियों और व्यापक संयुक्त मोर्चों एवं सम्मिलित जन-आन्दोलन को लेकर राजनीतिशास्त्र की दुनिया में एक ‘नई गतिकी’ को निर्मित करता है, यह विश्व इतिहास में एक नई कड़ी है।
गांधी विमर्श तो न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में बड़े दमख़म के साथ चल रहा है, पर जवाहरलाल के बारे में इस दौर में कुछ ही पुस्तकें बाज़ार में आ रही हैं, गांधी-नेहरू साझा विमर्श एक देर से ही सही लेकिन निहायत ही मौज़ूँ सिलसिला है।
वैश्वीकरण के आक्रामक दौर में नेहरू जो एक स्वतंत्र वैकल्पिक अर्थतंत्र और राज्य सत्ता के स्थपति थे, उन्हें भुला देना अस्वाभाविक नहीं लगता है। इस दौर में मौजूदा राज्य सत्ता से लेकर प्रमुख विपक्ष तक ने वैश्वीकरण और उदारीकरण को स्वीकार कर लिया है। साम्प्रदायिकता की तस्वीर में भी 1992 और 2002 के बाद शताब्दियों से चल रही मुश्तरका संस्कृति में दीमक लग गई है। गांधी को तो वैश्वीकरण के स्टीमरोलर ने बेरहमी से ज़मींदोज़ कर दिया है। ऐसे दौर में गांधी-नेहरू के ऐतिहासिक साझा और उनके कृतित्व पर पुन: रोशनी पड़नी चाहिए।
प्रस्तुत पुस्तक दो महान स्वप्नद्रष्टाओं की यथार्थसम्मत विचारधारा को सप्रमाण रेखांकित करती है।
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