Indira Files
Author:
Vishnu SharmaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics1 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों?
आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है।
एक तरफ पाकिस्तान के दो टुकड़े करके इंदिरा गांधी ने भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया, तो दूसरी तरफ गांधारी की तरह बेटे को अंधा प्रेम कर ‘संजय की मम्मी, बड़ी निकम्मी’ जैसा नारा भी झेला।
एक तरफ सिक्किम विलय में अहम भूमिका निभाई तो दूसरी तरफ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का दाग उनकी मौत भी नहीं मिटा पाई।
एक तरफ परमाणु परीक्षण कर भारत की ताकत और हिम्मत को पर लगा दिए तो दूसरी तरफ पहली ऐसी प्रधानमंत्री बनीं, जिनको हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री पद से ही हटने का आदेश जारी कर दिया।
यह पुस्तक किसी भी जागरूक पाठक, शोधार्थी, पत्रकार, नेता, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए काफी तथ्यात्मक हो सकती है। कुछ मुद्दे जो इस पुस्तक में लिखे गए हैं, वे और ज्यादा जगह माँगते थे, लेकिन ज्यादा विषयों को लेने की रणनीति के चलते उन्हें सीमित जगह ही दी गई। शोधार्थी इसको आधार बनाकर और गहन अध्ययन कर सकते हैं।
ISBN: 9788196094621
Pages: 296
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: यह पुस्तक नेपाल के संवैधानिक और राजनीतिक विकास को हिंदी भाषा में प्रस्तुत करने का एक अनूठा प्रयास है। इस पुस्तक में नेपाल के संविधानवाद के विकास का कालक्रमानुसार विवरण दिया गया है। वर्ष 1948 से लेकर नेपाल के वर्तमान संविधान तक के सभी संविधानों के उद्भव और पतन का विश्लेषण तत्कालीन नेपाली राजनीति के अनुसार पुस्तक में चित्रित किया गया है। यह पुस्तक नेपाल के राणाओं द्वारा प्रदत्त संविधान, पंचायती काल संविधान, 1990 के संवैधानिक राजतंत्र के संविधान और वर्ष 2015 के लोकतंत्रीय संविधान के सभी पहलुओं का विवरणात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। नेपाल के माओवादी आंदोलन और मधेश संकट को भी यहाँ वर्णित किया गया है। अध्ययन को व्यवस्थित और सरल बनाने के लिए पुस्तक को सात अध्यायों में बाँटा गया है।
Bharat Ke Prachin Nagaron Ka Patan
- Author Name:
Ramsharan Sharma
- Book Type:

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Description:
सुविख्यात इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा की यह कृति पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर प्राचीन काल के अन्तिम और मध्यकाल के प्रारम्भिक चरण में भारतीय नगरों के पतन और उजड़ते जाने का विवेचन करती है। इसके लिए लेखक ने तत्कालीन शिल्प, वाणिज्य और सिक्कों के अध्ययनार्थ भौतिक अवशेषों का उपयोग किया है तथा 130 से भी ज़्यादा उत्खनित स्थलों के विकास और विनाश के चिह्नों की पहचान की है। इस क्रम में जिन स्तरों पर अत्यन्त साधारण क़िस्म के अवशेष मिले हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि भवन-निर्माण, उत्पादन और वाणिज्यिक गतिविधियों में कमी आने लगी थी।
लेखक के अनुसार नगर-जीवन के लोप होने के कारणों में साम्राज्यों का पतन तो है ही, सामाजिक अव्यवस्था और दूरवर्ती व्यापार का सिमट जाना भी है। लेकिन नगर-जीवन के बिखराव को यहाँ सामाजिक प्रतिगामिता के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक रूपान्तरण के एक अंग की तरह देखा गया है, जिसने क्लासिकी सामन्तवाद को जन्म दिया और ग्रामीण जीवन को विस्तारित एवं संवर्धित किया। यह कृति नगर-जीवन के ह्रास और शासकीय अधिकारियों, पुरोहितों, मन्दिरों एवं मठों को मिलनेवाले भूमि-अनुदानों के बीच सम्बन्ध-सूत्रों की भी तलाश करती है। यह भी दिखाया गया है कि भूमि-अनुदान प्राप्त करनेवाले वर्ग किस प्रकार अतिरिक्त उपज और सेवाएँ सीधे किसान से वसूलते थे तथा नौकरीपेशा दस्तकार जातियों को भूमि-अनुदान एवं अनाज की आपूर्ति द्वारा पारिश्रमिक का भुगतान करते थे।
इस सबके अलावा प्रो. शर्मा की यह कृति ई.पू. 1000 के उत्तरार्द्ध और ईसा की छठी शताब्दी के दौरान आबाद उत्खनित स्थलों के नगर-जीवन की बुनियादी जानकारी भी हासिल कराती है। कहना न होगा कि यह पुस्तक उन तमाम पाठकों को उपयोगी और रुचिकर लगेगी, जो कि गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल की समाजार्थिक व्यवस्था में परिवर्तन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करना चाहते हैं।
Bhartiya Rajneeti aur Sansad : Vipaksh Ki Bhoomika
- Author Name:
Subhash Kashyap
- Book Type:

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Description:
संसदीय लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में विपक्ष का विशेष महत्त्व है। यदि पता करना हो कि किसी देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र जीवित हैं या नहीं तो यह जानना होगा कि वहीं विपक्ष है या नहीं, और है तो उसकी भूमिका क्या है, कैसी है।
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका पर ऐतिहासिक और संकल्पनात्मक परिप्रेक्ष्यों में विचार किया गया है। पुस्तक दो भागों में विभक्त है। पहले भाग में लोकतांत्रिक संस्थाओं के उद्भव और विकास, स्वाधीनता से पूर्व विधायिका तथा स्वाधीनता के बाद अस्थायी संसद और प्रथम लोकसभा से लेकर ग्यारहवीं लोकसभा तक विपक्ष की भूमिका की चर्चा की गई है। दूसरे भाग में विपक्ष और नेता विपक्ष के बारे में कुछ संकल्पनात्मक बातें स्पष्ट की गई हैं तथा विपक्ष की भूमिका के कुछ रूमानी आदर्श और यथार्थ स्वरूपों पर रोशनी डाली गई है। विभिन्न अध्यायों में प्रस्तुत विवेचन-विश्लेषण बहुत कुछ व्यक्तिगत अनुभव-अन्वेषण पर आधारित है क्योंकि प्रथम लोकसभा, जवाहरलाल नेहरू और दादा साहेब मावलंकर के समय से लेकर 37 वर्षों से अधिक अवधि तक डी. सुभाष काश्यप संसद से सम्बद्ध रहे और उन्होंने संसद और सांसदों के विभिन्न स्वरूप और आयाम, उतार-चढ़ाव, उत्थान-पतन देखे हैं ।
अपनी राजनीतिक व्यवस्था और प्रातिनिधिक संस्थाओं तथा अपने चुने हुए सांसदों और विधायकों के कार्यकलापों में रुचि रखनेवाले सभी सचेत नागरिकों, शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों एवं स्वयं राजनेताओं के लिए यह पुस्तक सर्वथा संग्रहणीय, रोचक और पठनीय सिद्ध होगी ।
Upari Gangaghati Dwitiya Nagarikaran
- Author Name:
Sanju Mishra
- Book Type:

- Description: ऊपरी गंगा के मैदान में नगरीकरण से सम्बन्धित ज्ञान के मुख्य आधार साहित्यिक साक्ष्यों के साथ-साथ पुरातात्त्विक अन्वेषण एवं उत्खनन है। भारत में नगरों के आविर्भाव की प्राचीनता ताम्राश्म काल में हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर बने हुए नगरों के सन्निवेश तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के दृष्टान्तों से सिद्ध हो जाती है, किन्तु द्वितीय सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में सैन्धव सभ्यता के विनाश के साथ ही सम्पूर्ण भारत पुनः ग्राम्य संस्कृति में लौट आया तथा एक हजार वर्षों के लम्बे अन्तराल के पश्चात् छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, गंगा के मैदान में षोडश महाजनपदों का उद्भव राजनीतिक इकाइयों के रूप में उत्तर भारत में हुआ। छठी शताब्दी ईसा पूर्व का काल उत्तर भारत में अनेकानेक नवीन परिवर्तनों का काल था तथा ये परिवर्तन जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई देते हैं। इसे द्वितीय नगरीकरण की संज्ञा दी गई है। पुरातात्त्विक भाषा में इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पत्र-परम्परा संस्कृति के प्रारम्भ का काल माना जा सकता है। इस शोध-प्रबन्ध के माध्यम से ऊपरी गंगा के मैदान के पुरातात्त्विक अनुक्रम का तथा द्वितीय नगरीकरण से सम्बन्धित नगरीय साक्ष्यों का क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक अध्धयन प्रस्तुत करने का यथासम्भव प्रयास किया गया है।
Pt. Deendayalji : Prerak Vichar
- Author Name:
Dr. Ravindra Agarwal
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
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