
Ek Tha Doctor Ek Tha Sant
Author:
Arundhati RoyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
वर्तमान भारत में असमानता को समझने और उससे निपटने के लिए, अरुंधति रॉय ज़ोर दे कर कहती हैं कि हमें राजनीतिक विकास और एम.के. गांधी का प्रभाव, दोनों का ही परीक्षण करना होगा। सोचना होगा कि क्यों बी.आर. आंबेडकर द्वारा गांधी की लगभग दैवीय छवि को दी गई प्रबुद्ध चुनौती को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया। राय के विश्लेषण में, हम देखते हैं कि न्याय के लिए आंबेडकर की लड़ाई, जाति को सुदृढ़ करनेवाली नीतियों के पक्ष में, व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दी गई, जिसका परिणाम है वर्तमान भारतीय राष्ट्र जो आज ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र है, विश्वस्तर पर शक्तिशाली है, लेकिन आज भी जो जाति व्यवस्था में आकंठ डूबा है।
ISBN: 9789388933056
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Bhrashtachar Ki Vishbel
- Author Name:
Sadachari Singh Tomar
- Book Type:
- Description: "संभवतः यह अपने आप में विश्व की एकमात्र पुस्तक है, जिसमें लेखक ने शासकीय कार्य करते हुए तीन वर्षों तक अध्ययन करके रु. 2000 करोड़ के घपलों को उजागर किया, जिनकी जाँच के कारण भारत सरकार के सचिव को उसके पद से हटाकर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। अब बारी आई थी कृषि मंत्री को पद से हटाने की। गठजोड़ की सरकार में इस मंत्री के पास इतने सांसद थे कि यदि वह अपना समर्थन वापस ले लेता तो सरकार धराशायी हो जाती। इस परिस्थिति का फायदा लेकर उसने सी.बी.आई. की जाँच आगे बढ़ाने के बदले एक अन्य अधिकारी से जाँच करवाकर इस हटाए गए सचिव को वापस पद पर बैठा दिया। इस पर लेखक ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की; फलस्वरूप पद पर वापस आकर बैठे सचिव को भारत शासन की नौकरी एवं देश छोड़कर विदेश भागना पड़ा था। उस अवधि में देश में मिली-जुली सरकार थी और भ्रष्टाचार का आलम ऐसा था कि ईमानदार लोग खौफ में जीते थे। यह पुस्तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे अधिकारियों-राजनीतिज्ञों के घपलों-घोटालों का पर्दाफाश करती है और भ्रष्टाचार की विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने का संदेश देती है।
1857 Ke Amar Nayak Raja Jailal Singh
- Author Name:
Pratap Gopendra
- Book Type:
-
Description:
अखण्ड राष्ट्र के रूप में संगठित होने के पूर्व भारतवर्ष ने साहस एवं उत्सर्ग की अनगिनत परीक्षाएँ दी हैं। धीरोदात्त वीरों ने सैकड़ों वर्षों की आततायी शोषणकारी राज्य व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अदम्य संघर्ष किये हैं। इन संघर्षो को इतिहास के अनेक स्वनाम-गुमनाम नायकों ने शक्ति एवं नेतृत्व प्रदान किया है। सूचना क्रान्ति के इस युग में ऐसी शख्सियतों व उनकी अमर कृतियों की खोज कर दिग्-दिगन्त तक उनका उद्घोष किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को जीवन संघर्ष में अडिग रहने की प्रेरणा तो मिले ही, स्वतन्त्रता का मूल्य भी उनके हृदयों में दृढ़ता से स्थापित हो सके। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा जयलाल सिंह ऐसे ही देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन्हें समय के बादलों ने आच्छादित कर रखा है। सत्तावनी क्रान्ति का एक ऐसा किरदार जिसने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध व्यक्तिगत शौर्य का परिचय देते हुए न केवल प्रत्यक्ष युद्ध लड़े वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष में क्रान्तिकारियों की आश्रयस्थली बने शहर लखनऊ में पूरे युद्ध-तन्त्र का संचालन व प्रबन्धन करते हुए अन्तिम नवाबी सरकार के मन्दराचल को कूर्मावतार बन अपनी पीठ पर धारण किया। स्वतन्त्र भारत का भव्य प्रासाद नींव के जिन कीर्त्ति स्तम्भों पर खड़ा है, निःसन्देह राजा जयलाल सिंह उनमें से एक हैं।
यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व एवं उत्सर्गपूर्ण कृतित्वों को जानने-समझने का एकमात्र प्रामाणिक दस्तावेज है।
Kosambi : Kalpana Se Yatharth Tak
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:
-
Description:
भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में दामोदर धर्मानन्द कोसंबी को मार्क्सवादी इतिहास का जनक माना जाता है, लेकिन यह विडम्बना ही है कि मार्क्सवादी इतिहासकारों तक ने उन पर ऐसा ठोस काम अभी तक नहीं किया है, जिससे कोसंबी को समझना आसान हो सके, और जो उनके अध्ययन की दिशाओं में आगे कुछ जोड़ सके। कोसंबी के अन्तर्विरोधों को रेखांकित करने और उनके पीछे निहित कारणों को जानने की कोशिश लगभग नहीं ही हुई है।
प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक भगवान सिंह की यह पुस्तक इस अर्थ में एक महत्त्वपूर्ण आरम्भ है। इसमें उन्होंने न सिर्फ़ कोसंबी की मौलिक उद्भावनाओं और स्थापनाओं पर विस्तार से विचार किया है, बल्कि उनकी प्रतिपादन-पद्धति का भी विश्लेषण किया है। साथ ही व्यक्ति कोसंबी और एक विलक्षण प्रतिभा के रूप में बनी उनकी 'मूरत' को भी समझने की कोशिश की है। कोसंबी के नाम-जाप से ही अपनी उपलब्धियों का आकाश छूनेवाले इतिहासकारों के विपरीत भगवान सिंह ने इस सुचिन्तित अध्ययन में उनके अन्तर्विरोधों को भी रेखांकित किया है। आमुख में वे लिखते हैं, ‘हमारा अपना प्रयत्न कोसंबी को समझने का रहा है, परन्तु जहाँ वे अपने ही सिद्धान्त के विपरीत आचरण करते दिखाई देते हैं या अपनी सैद्धान्तिकी के विपरीत दावे करते हैं...वहाँ उनकी निन्दा के लिए भी बाध्य हुए हैं।’
कहना न होगा कि यह पुस्तक इतिहासवेत्ता कोसंबी को समझने में इतिहास के विद्वानों और अध्येताओं के लिए बहस के नए बिन्दु प्रस्तावित करेगी।
Kashmir : Itihas Aur Parampara
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:
-
Description:
'नीलमत पुराण' में कहा गया है कि कश्मीर स्वाध्याय एवं ध्यान में मग्न रहनेवाले और निरन्तर यज्ञ करनेवालों की भूमि रही है। यह हिमालय-पर्वतमाला की गोद में बसा एक सुरम्य प्रदेश है। लेकिन अपनी दुर्गम भौगोलिकता के कारण यह बाह्य-जगत् की पहुँच से दूर रहा है।
प्राचीन काल में कश्मीर प्रदेश गन्धार जनपद के अन्तर्गत आता था। सातवीं शताब्दी ई. के प्रारम्भ में यहाँ नाग जाति के कर्कोटक राजवंश का उदय हुआ; जिसके संस्थापक दुर्लभवर्द्धन के समय से कश्मीर का व्यवस्थित इतिहास मिलता है। उनके पौत्र ललितादित्य ने गुप्तोत्तर काल में एक साम्राज्य खड़ा किया; और प्रसिद्ध मार्तण्ड-मन्दिर का निर्माण भी कराया।
1339 ई. तक कश्मीर एक स्वशासित हिन्दू राज्य था। परन्तु मध्यकालीन हिन्दू राजाओं की दुर्बलता और उनके सामन्तों के षड्यन्त्रों के कारण वहाँ का वातावरण अराजक हो गया, जिसका लाभ उठाते हुए 1339 ई. में शाहमीर नामक एक मुसलमान ने कश्मीर के सिंहासन पर कब्जा कर लिया।
कल्हण ने 'राजतरंगिणी' में ललितादित्य से कहलवाया है कि ''इस देश को सुशासित तथा प्रगतिशील बनाये रखने के लिए अन्तर्कलह से बचना आवश्यक है।'' इसके कारण कश्मीर ने भारी कीमत चुकाई है। 'नीलमत पुराण' साक्षी है कि महर्षि कश्यप के समय से ही कश्मीर के स्थानीय लोगों ने विस्थापन की गहरी पीड़ा को महसूस किया है और आधुनिक काल में कश्मीरी हिन्दुओं को विस्थापन ने जितने दर्द दिये हैं, वह तो अकथनीय है।
Pracheen Bharat Mein Rajneetik Vichar Evam Sansthayen
- Author Name:
Ramsharan Sharma
- Book Type:
-
Description:
प्राचीन भारतीय इतिहास को वैज्ञानिक खोजों के आलोक में व्याख्यायित-विश्लेषित करनेवाले इतिहासकारों में प्रो. रामशरण शर्मा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी इस पुस्तक में उन्होंने प्राचीन भारत की राजनीतिक विचारधाराओं और संस्थाओं के साम्राज्यवादी और राष्ट्रवादी स्वरूप का सर्वेक्षण किया है। इस क्रम में उन्होंने गण, सभा, समिति, परिषद जैसी वैदिक संस्थाओं के जनजातीय स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए ‘विदथ’ नामक लोक-संस्था पर विस्तार से विचार किया है और उत्तर-वैदिक संस्थाओं के अध्ययन में वर्ण और धर्म का महत्त्व दिखाया है। उन्होंने यह भी बताया है कि सातवाहन राज्यव्यवस्था मौर्य और गुप्त व्यवस्थाओं तथा उत्तर और दक्षिण भारत को मिलानेवाली कड़ी का काम करती है।
साथ ही, कुषाण तथा सातवाहन राज्यतंत्रों के विश्लेषण में बाह्य, स्थानीय और सामंतवादी तत्त्वों पर भी प्रो. शर्मा की दृष्टि गई है। कुल मिलाकर, प्रो. शर्मा ने वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक राज्यव्यवस्था के प्रमुख चरणों का बदलते हुए आर्थिक और सामाजिक संदर्भों में अध्ययन किया है।
उपरोक्त अध्ययन के क्रम में प्रो. शर्मा ने कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं और उनका यथासंभव समाधान भी इस पुस्तक में दिया है। उनका मानना है कि इस काल में जिन राजनीतिक विचारों का जन्म हुआ, उनके पीछे जाति, वर्ण, धर्म और अर्थव्यवस्था की भूमिका को समझे बिना इन विचारों की तह तक पहुँचना संभव नहीं है। इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व इन मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार नहीं किया गया था।
प्राचीन भारतीय इतिहास के छात्रों, शोधार्थियों और अध्यापकों के लिए यह एक आवश्यक ग्रंथ है।
Magadhnama : Magadh Ke Itihas Ki Kathatmak Yatra
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:
- Description: अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है। तब वह 'व्रात्य-सभ्यता' का केन्द्र हुआ करता था। वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म मगध में ही हुआ। अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई। मगध की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई। मगध की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देनेवाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई। महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ। कुल चौबीस जैन तीर्थंकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने मगध की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया। यहीं खगोलविद् आर्यभट पैदा हुए और गद्यकवि बाणभट्ट भी। यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, कालाशोक, महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी शृंखला है, जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता
Bharatiya Sahitya Mein Kashmir
- Author Name:
Prof. Kripashankar Chaubey +1
- Book Type:
- Description: जम्मू-कश्मीर सदा सर्वदा से भारतीय साहित्य में केंद्रीय स्थान रखता रहा है। जम्मू-कश्मीर, कश्मीर मंडल, शारदा क्षेत्र, सप्त सिंधु प्रदेश आदि विविध नामों से इतिहास, पुराण, नाटक, उपन्यास, कविता, कथा, कहानी; सर्वत्र संस्कृत सहित सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में स्थान प्राप्त करता रहा है। स्वतंत्रता के पूर्व, स्वतंत्रता के बाद और 1990 के बाद; ये तीन ऐसे विशिष्ट कालखंड हैं जिनके बीच समस्त भारतीय साहित्य में कश्मीर संबंधी विमर्श और प्रस्तुतियां अलग-अलग रूपों में दिखाई देती हैं। प्राकृतिक सुषमा से लेकर मानव निर्मित आपदाओं तक व्यक्ति और समाज के जीवन का कोई ऐसा रंग नहीं है जो कश्मीर में न हो और कश्मीर में जो कुछ होता रहा है, वह समकाल में ही भारतीय साहित्य में प्रतिध्वनित भी होता रहा है। उन सब को एक स्थान पर एकत्रित करना लगभग असंभव है, पर कश्मीर को ले करके विविध भारतीय भाषाओं में, सामासिक रूप से कहा जाए तो भारतीय साहित्य में जो कुछ भी लिखा गया है, रचा गया है, उन सबको प्रवृत्तिररक अनुशीलन के द्वारा प्रस्तुत करने के यत्न करने के रूप में यह पुस्तक उपादेय है।
Akbar Aur Tatkalin Bharat
- Author Name:
Irfan Habib
- Book Type:
-
Description:
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब द्वारा सम्पादित यह पुस्तक ऐसे कई महत्त्वपूर्ण अध्ययनों को हमारे सामने रखती है, जिनमें अकबर, उसके साम्राज्य और तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक वातावरण पर प्रकाश पड़ता है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखित इन गवेषणात्मक आलेखों से पाठक चार सदी पूर्व के भारत की राजनीति और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
अकबरकालीन प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक इतिहास, धार्मिक रीति तथा विचार, विज्ञान और तकनीकी की स्थिति, समाजार्थिक स्थितियाँ आदि कुछ विषय हैं जिनके बारे में ये निबन्ध हमें प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध कराते हैं तथा मौजूदा अवधारणाओं का परिष्कार करते हुए तत्कालीन इतिहास के क्षेत्र में नई चुनौतियों और क्षेत्रों को चिह्नित करते हैं।
आज भारतीय जन-गण के लिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी हो गया है कि एक राष्ट्र के रूप में हम एक संगठित राजनीतिक और सांस्कृतिक परम्परा के वारिस हैं। इस अर्थ में भी अकबर का राजनीतिक और सांस्कृतिक विज़न फ़ौरी तौर पर हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी साबित हो सकता है।
Writing on the Wall: Reflections on the North-East
- Author Name:
Sanjoy Hazarika
- Book Type:
- Description: Decades of State and non-State violence in PBI – India’s landlocked North-east have taken a heavy toll on livelihoods, incomes, governance, growth and image, besides lives. Despite vast amounts of money being pumped into the region, basic needs and minimum services are yet to be met in terms of connectivity, health, education and power. What are the possible ways forward as the region stands at a crossroads? These fifteen personal essays provide an insider’s take on wide-ranging issues: from the Brahmaputra and the use of natural resources to peace talks in Nagaland; from the Centre’s failure to repeal the hated Armed Forces Special Powers Act, threats to the environment, corruption in government and extortion by armed groups to New Delhi’s Look East Policy and much more. Yet, as these essays make clear, hope, though distant, is not absent or lost. Restoring governance through people-driven development programmes, peace building through civil society initiatives, assuring the pre-eminence of local communities as evident in Hazarika’s conversations with the legendary Naga leader, Th. Muivah, and simple economic interventions through appropriate technologies — boats and health care, community mobilization and micro-credit — hold promise for solutions to the web of violence, poverty and marginalization. Writing on the Wall is a passionate call to all stakeholders in the North-east to embrace dialogue and use given platforms for peace, to go beyond the politics of tolerance to that of mutual respect. Only such multi-disciplinary, innovative approaches, rooted in realism, can bring stability and sustainable change to the region.
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Siddharthnagar
- Author Name:
Dr. Arun Kumar Tripathi
- Book Type:
-
Description:
यह पुस्तक आजादी के आंदोलन में सिद्धार्थनगर जनपद के योगदान को रेखांकित करती है। विद्वान लेखक ने सम्यक् अध्ययन एवं शोध के उपरांत इस पुस्तक को लेखनीबद्ध किया है। मुगल आक्रांताओं से लोहा लेने के लिए सतासी राज्य के इतिहास से लेकर 1857 में हुई देशव्यापी ब्रिटिश विरोधी क्रांति तक इस जनपद के जन-गण ने अपनी भूमि और अपने देश के लिए जान हथेली पर रखकर संघर्ष किया।
19वीं सदी के आंदोलनों में यहाँ के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। चौरी-चौरा जनक्रांति के पश्चात् इस जनपद के लोगों के आंदोलित होने पर तत्कालीन अधिकारियों ने शोहरतगढ़ के कांग्रेस कार्यालय को जला दिया था।
पं. परमेश्वर दत्त को कोड़ों से पीटा गया। शहीद बुधई की जान भी ऐसे ही अत्याचार के कारण गई। शहीद हबीबुल्लाह ने जेल में अनशन करके अपने प्राण त्याग दिए। ऐसी तमाम घटनाएँ इस जनपद के इतिहास में आज अपनी अलग ही चेतना से जगमगा रही हैं जिन्हें इस पुस्तक के माध्यम से देशभक्त जन के सामने लाया जा रहा है।
Chunav 2019 : Kahani Modi 2.0 Ki
- Author Name:
Aaku Shrivastava
- Book Type:
- Description: वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार की शुरुआत सब दलों ने विकास की बातों से की, लेकिन प्रचार जब चरम पर पहुँचा तो यह एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने पर केंद्रित हो गया। यहाँ तक कि नेताओं के बिगड़े बोलों से आजिज आकर सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग को निर्देश देने पड़े। दूसरी ओर चुनाव आयोग की भूमिका पर भी खूब सवाल उठाए गए। ई.वी.एम. की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़े किए गए। चुनाव प्रचार निम्न स्तर पर पहुँच गया था। इस तरह से वर्ष 2019 का चुनाव पिछले सत्तर वर्षों में एक अलग ही तरह का चुनाव देखा गया। इस चुनाव में प्रचार के पारंपरिक तरीके तो गायब हुए ही, जनता के सरोकार भी बहुत पीछे छूट गए। इसके अलावा इस लोकसभा चुनाव में कई ऐसे सवाल खड़े किए, जो 2014 में उठाए गए थे। कुछ के जवाब मिले, कुछ ने और सवालों को जन्म दिया; कुछ भुला दिए गए तो कुछ बहस का मुद्दा बन गए। क्या भविष्य होगा, इन सवालों का और उनके जवाबों का—इसी पर एक गहन चर्चा इस पुस्तक में की गई है।.
Bhartiya Musalmano Ki Samaj Sanrachna Aur Mansikta
- Author Name:
Fakhruddin Bennur
- Book Type:
-
Description:
भारतीय मुसलमानों की समाज संरचना और मानसिकता पर सम्भवतः हिन्दी में भारतीय समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुति करनेवाली यह पहली पुस्तक है।
इस विषय पर अब तक लिखी गई पुस्तकें ओरिएंटलिस्ट उपनिवेशवादी इतिहास शास्त्र के अथवा हिन्दुत्व के प्रभावान्तर्गत ही रही हैं। 'विश्व के सभी मुसलमान एक हैं—इस भ्रमपूर्ण मोनोलिथ की प्रस्तुति करनेवाली रही हैं।' उस प्रस्तुति का प्रतिवाद करनेवाली यह पुस्तक है। इसमें भारत के मानववंशशास्त्र और (एन्थ्रोपोलोजी) इतिहास के आधार पर पिछले एक हजार वर्षों से यहाँ के मुसलमानों की जिस सामाजिक संरचना का गठन हुआ है, उस पर विचार किया गया है।
16वीं तथा 17वीं सदी में हिन्दू-मुस्लिमों की संस्कृति में सामाजिक समन्वय के जो प्रयत्न हुए हैं उसको भी यहाँ समझाया गया है। 1857 के बाद की राजनीति, स्वतंत्रता के बाद का बदलता परिवेश, 1990 के बाद बदलती गई राजनीति और इस सबका जो प्रभाव मुस्लिम मानसिकता पर होता गया; उन सबकी समीक्षा यह पुस्तक करती है।
अमेरिका की साम्राज्यवादी राजनीति, पाकिस्तान की ओर झुकी हुई उनकी नीति, हिन्दुत्व की राजनीति इसके प्रभावों का विवेचन इस पुस्तक में है।
Katha Satisar
- Author Name:
Chandrakanta
- Book Type:
- Description: शैव, बौद्ध और इस्लाम की साँझी विरासतों से रची कश्मीर वादी में पहले भी कई कठिन दौर आ चुके हैं। कभी औरंगजेब के समय, तो कभी अफ़ग़ान-काल में। लेकिन वे दौर आकर गुज़र गए। कभी धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर मसीहा बनकर आए, कभी कोई और। तभी ललद्यद और नुन्दऋषि की धरती पर लोग भिन्न धर्मों के बावजूद, आपसी सौहार्द और समन्वय की लोक-संस्कृति में रचे-बसे जीते रहे। आज वही आतंक, हत्या और निष्कासन का कठिन सिकन्दरी दौर फिर आ गया है, तब सिकन्दर के आतंक से वादी में पंडितों के कुल ग्यारह घर बचे रह गए थे। गो कि नई शक्ल में नए कारणों के साथ, पर व्यथा-कथा वही है—मानवीय यंत्रणा और त्रास की चिरन्तन दु:ख-गाथा। लोकतंत्र के इस गरिमामय समय में, स्वर्ग को नरक बनाने के लिए कौन ज़िम्मेदार हैं? छोटे-बड़े नेताओं, शासकों, बिचौलियों की कौन-सी महत्त्वाकांक्षाओं, कैसी भूलों, असावधानियों और ढुलमुल नीतियों का परिणाम है—आज का रक्त-रँगा कश्मीर? पाकिस्तान तो आतंकवाद के लिए ज़िम्मेदार है ही, पर हमारे नेतागण समय रहते चेत क्यों न गए? ऐसा क्यों हुआ कि जो औसत कश्मीरी, ग़ुस्से में, ज़्यादा-से-ज़्यादा, एक-दूसरे पर काँगड़ी उछाल देता था, वही कलिशनिकोव और एके सैंतालीसों से अपने ही हमवतनों के ख़ून से हाथ रँगने लगा? ‘ऐलान गली ज़िन्दा है’ तथा ‘यहाँ वितस्ता बहती है’ के बाद कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखा गया चर्चित लेखिका चन्द्रकान्ता का बृहद् उपन्यास है—‘कथा सतीसर’। लेखिका ने अपने इस उपन्यास में पात्रों के माध्यम से मानवीय अधिकार और अस्मिता से जुड़े प्रश्नों को उठाया है। इस पुस्तक में सन् 1931 से लेकर 2000 के शुरुआती समय के बीच बनते-बिगड़ते कश्मीर की कथा को संवेदना का ऐसा पुट दिया गया है कि सारे पात्र सजीव हो उठते हैं । सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में घटे हादसों से जन-जीवन के आपसी रिश्तों पर पड़े प्रभावों का संवेदनात्मक परीक्षण ही नहीं है यह पुस्तक, वर्तमान के जवाबदेह तथ्यों को साहित्य में दर्ज करने से एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी बन गई है।
Aadhunik Bharat Ka Aarthik Itihas : 1850-1947
- Author Name:
Sabyasachi Bhattacharya
- Book Type:
-
Description:
प्रो. सब्यसाची भट्टाचार्य देश के जाने-माने इतिहासकार हैं, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र औपनिवेशिक भारत रहा है। उनकी पुस्तक ब्रिटिश राज के वित्तीय आधार चर्चित और प्रशंसित पुस्तकों में से है।
आधुनिक भारत के आर्थिक विकास पर रमेशचंद्र दत्त तथा रजनी पाम दत्त की पुस्तकें काफी पहले प्रकाशित हुई थीं, लेकिन प्रस्तुत पुस्तक उनकी पुस्तकों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें इस विषय पर किए गए अद्यतन शोधों तथा अभिलेखागार में उपलब्ध सामग्री का भरपूर उपयोग किया गया है। यह सामग्री उपर्युक्त पुस्तकों के लेखन के समय उपलब्ध नहीं थी।
प्रो. भट्टाचार्य ने अपनी इस पुस्तक में औपनिवेशिक भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। लेकिन यह एक जटिल कार्य था और औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहासकारों के जो कई घराने हैं, उनके विकास और वैशिष्ट्य का मूल्यांकन किए बिना प्रतिपाद्य विषय के साथ न्याय नहीं किया जा सकता था। अतएव प्रो. भट्टाचार्य ने इस शताब्दी की सीमाओं में विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं का आकलन करते हुए अनेक बुनियादी सवाल उठाए हैं और बाद के अध्यायों में उन सवालों पर विस्तार से विचार किया है। भारत का अर्थनीतिक उपनिवेशीकरण कैसे हुआ, इस प्रश्न को उन्होंने विभिन्न कोणों से देखा-परखा है और इस प्रसंग में ब्रिटिश सरकार की विभिन्न नीतियों के अच्छे या बुरे परिणामों को सामने रखा है। साथ ही, उन नीतियों की संपूर्ण रूप से और साम्राज्यवादी राष्ट्र के चरित्र को साधारण रूप से समझने की चेष्टा भी की है। उल्लेखनीय है कि प्रो. भट्टाचार्य ने उपनिवेशवादी शोषण के चरित्र और विद्रूपित आर्थिक विकास को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
Apane Bheetar Ka Meghdoot
- Author Name:
Amarendra Khatua
- Book Type:
- Description: " ‘आत्मा बेचारी कितनी गहराई में होती है हाड़-मांस-चर्म की पोशाक पहन, इंद्रियों का साम्राज्य बना सामने की दुनिया में खुद को प्रकट और नामित कर।’ ‘याद रखो जो सुख का है वह सबका है जो दु:ख का है सिर्फ अपना है।’ ‘वजह हो या न हो मेरी कविता में मेरे समय के और बाद के हर कवि की कविता के अणुओं और परमाणुओं में हो प्रचुर शक्ति।’ ‘अपनी अंगिक असफलता समझने को कवि के पास नहीं होते शब्द।’ ‘अभव के इस चकित महापर्व से ही तो जन्म लेते हैं हमारे अल्पायु संबंध। ‘इतनी गहरी यातना को क्या घाव की तरह नहीं पहना जा सकता रोजाना की पोशाक के नीचे?’ "
Madhyakaleen Bharat Islami Rajya Banam Muslim Rajya
- Author Name:
Zafar Raza
- Book Type:
- Description: प्रोफ़ेसर जाफ़र रज़ा की पुस्तक 'मध्यकालीन भारत : इस्लामी राज्य बनाम मुस्लिम राज्य' एक महत्त्वपूर्ण विषय पर एक विशिष्ट कृति है। उन्होंने साक्ष्यों के आधार पर यह प्रदर्शित किया है कि जहाँ इस्लामी राज्य इस्लाम के आदर्शों के अनुकूल राज्य व्यवस्था का नाम है, मुस्लिम राज्य मुसलमान शासकों की राज्य प्रणाली बनाता है। मुस्लिम राज्य साम्राज्यवादी था, जबकि इस्लामी राज्य अल्लाह को शासक मान एक प्रकार का जनतंत्र था, जिसमें धर्म और न्याय के सिद्धान्त माने जाते थे। भारत में मुस्लिम राज्य सर्वदा इस्लामी आदर्शों के अनुकूल नहीं था, वरन् मुसलमान शासकों का साम्राज्यवादी मुस्लिम राज्य था, किन्तु तो भी उसे सदा धर्मान्ध और कट्टर नहीं मानना चाहिए। मुस्लिम जनता का भारत में अन्य जातियों के साथ, एक बड़े देश की जनता के रूप में, सामाजिक और राजनैतिक अवदान प्रस्तुत रहा है। मुस्लिम अवदान के मूल्यांकन में शीआ और सूफ़ियों का अवदान भी महत्त्वपूर्ण रहा है। कुल मिलाकर लेखक ने इस्लाम की सही उदारतापूर्ण तस्वीर प्रस्तुत की है और मुस्लिम राज्य का विवेचनात्मक निरूपण किया है। इसके सामाजिक-सांस्कृतिक अनुषंगों पर पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत है। यह एक नए प्रकार की पुस्तक है, जिससे वर्तमान समस्याओं पर बहुमूल्य प्रकाश पड़ता है।
Vande Mataram
- Author Name:
Savyasachi Bhattacharya
- Book Type:
-
Description:
राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम्’ आरम्भ से ही विवाद के केन्द्र में है। इसकी रचना, लोकप्रियता और विवाद तीनों का इतिहास एक ही है। इतिहासकार और समाजशास्त्री सब्यसाची भट्टाचार्य ने ‘वंदे मातरम्’ पुस्तक में इसी इतिहास-कथा को सिलसिलेवार और सप्रमाण बतलाने का सार्थक यत्न किया है।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने सन् 1870 के दशक के शुरुआती वर्षों में इसे वंदना-गीत के रूप में रचा। 1881 में इसे उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में शामिल किया गया। कथा-सन्दर्भ के भीतर इस गीत ने विस्तृत रूपाकार में हिन्दू-युद्धघोष का रूप धारण कर लिया। सन् 1905 में बंगाल के आन्दोलन ने इस गीत को राजनीतिक नारे में तब्दील कर दिया। कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में इसे पहली बार गाया। 1920 तक विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर यह राष्ट्रीय हैसियत पा चुका था। 1930 में गीत के बिम्ब-विधान, व्यंजना और बुतपरस्ती को लेकर व्यापक विरोध हुआ। सन् 1937 में गीत के उन अंशों को छाँट दिया गया, जिनको लेकर आपत्तियाँ थीं तथा शेषांश को राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया गया।
विभिन्न समय और सन्दर्भों में गीत के ‘पाठ’ और ‘पाठक’ के बीच जारी संवाद में निरन्तरता और परिवर्तन को जानना इस पुस्तक का सबसे दिलचस्प पहलू है। लेखक इसमें संवाद की ऐतिहासिकता को रेखांकित करता है।
Kaggattala Kala
- Author Name:
Shashi Tharoor
- Book Type:
- Description: Bharatadalli British Samrajya:Kannada translation by S.B. Ranganath of Shashi Tharoor,s award winning English prose,An Era of Darkness-The British Empire in India
Uthal-Puthal Aur Dhruvikaran Ke Beech
- Author Name:
Chandrashekhar
- Book Type:
- Description: चन्द्रशेखर ऐसे राष्ट्रनायक हैं जिनके अंतरंग से परिचित होने की सहज उत्सुकता देशवासियों में रही है। इसे ध्यान में रखते हुए, सत्तर के दशक से ही देश-विदेश के प्रमुख सम्पादकों-पत्रकारों ने चन्द्रशेखर का साक्षात्कार लेना आरंभ कर दिया था। चन्द्रशेखर के अंतरंग का साक्षात्कार करना और कराना ही सम्पादकों-पत्रकारों को काम्य था। विभिन्न पत्रिकाओं में बिखरे पड़े चन्द्रशेखर के साक्षात्कारों को संकलित करना दुरूह किंतु इसलिए अनिवार्य था क्योंकि इसके बगैर स्वातंत्र्योत्तर भारत की राजनीति को समझना कठिन है। तीन खंडों में प्रकाशित चन्द्रशेखर से हुई भेंटवार्ताओं का यह पहला खंड है। इस पहले खंड में समाजवाद, दोहरी सदस्यता, गरीबों की पीड़ा, राजनीतिक स्थिरता, पार्टी संगठन, राजनीतिक गठजोड़, राजनीतिक ध्रुवीकरण, विपक्षी एकता, अयोध्या-विवाद जैसे राजनीति से जुड़े जज्बाती सवालों पर चन्द्रशेखर के जवाब हैं जो इतिहास के नए गवाक्ष को खोलते हैं।
Gandhi-Drishti Ke Vividh Aayam
- Author Name:
Shambhu Joshi
- Book Type:
-
Description:
जब गांधी जी बर्बरीकरण की बात करते हैं तो वह केवल स्थूल हिंसा तक सीमित नहीं है। उसमें हिंसा के वे सब रूप और आयाम शामिल हैं, जिन्हें संरचनागत हिंसा, सांस्कृतिक हिंसा और पीड़ितोन्मुख अप्रत्यक्ष हिंसा कहते हैं। प्रत्यक्ष हिंसा भी इस संरचनागत हिंसा का ही प्रतिफलन होती है, जिसे सांस्कृतिक हिंसा एक वैधता प्रदान करने की कोशिश करती है।
महात्मा गांधी के विचार-सूत्रों में यदि इस प्रकार की सभी समस्याओं के प्रति एक अद्भुत जागरूकता तथा एक नैतिक-तार्किक संगति दिखाई देती है तो इसका कारण शायद यही है कि उनका सारा जीवन और चिन्तन अहिंसा-प्रेम के नियम से प्रेरित रहा है। विस्मय इस बात का होता है कि उनके नैतिक आग्रहों में कहीं भी अर्थशास्त्रीय सवालों की अनदेखी नहीं है। वह यह मानते हैं कि 'सच्चा अर्थशास्त्र कभी उच्चतम नैतिक मानकों का विरोधी नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सच्चा नीतिशास्त्र वही माना जा सकता है, जो नीतिशास्त्र होने के साथ-साथ एक अच्छा अर्थशास्त्र भी हो...।
अब तो मेजारोस, लेबो विट्ज और टेरी इगल्टन जैसे नए मार्क्सवादी विचारक भी विकेन्द्रीकृत प्रौद्योगिकी और उत्पादन की बात करने लगे हैं, जिस पर न कॉरपोरेट का नियंत्रण हो, न राज्य का। यह उन उत्पादन-शक्तियों के विकल्प से ही हो सकता है, जो उत्पादन के साथ-साथ मुनाफ़े के वितरण की समस्या का भी समाधान अन्तर्निहित किए हैं। लेकिन विकेन्द्रीकृत तकनीक पर ही, जिसे गांधी जी 'स्वदेशी' कहते हैं, विकेन्द्रीकृत स्वामित्व का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय अथवा बहुराष्ट्रीय, किसी भी प्रकार के पूँजीवाद और उसके अनिवार्य प्रतिफलन साम्राज्यवाद का विकल्प इसलिए 'स्वदेशी' तकनीकी और उत्पादन-व्यवस्था ही हो सकती है, जिसके अन्तर्गत मानवीय स्वातंत्र्य और व्यक्तित्व भी पोषित होता है और प्राकृतिक विनाश का ख़तरा भी नहीं रहता।
इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गांधी-दृष्टि के विविध आयामों को उनके साध्य सत्य तथा साधन अहिंसा अर्थात प्रेम के बीज से पल्लवित सिद्ध करने का स्तुत्य प्रयास किया गया है।...यह पुस्तक जहाँ सामान्य पाठकों को गांधी-विचार की प्रामाणिक जानकारी दे सकेगी, वहीं अध्येताओं, छात्रों और अध्यापकों के लिए भी अतीव उपयोगी साबित होगी।
—नन्दकिशोर आचार्य
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Logout to Rachnaye

Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.