Pashchim Bengal Mein Mau Kranti
Author:
Arun MaheshwariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
अंग्रेज़ों के शासनकाल के दौरान जिस तरह की नीतियाँ चलाई गर्इं उनके कारण पश्चिम बंगाल में कृषि संकट स्थायी रूप से गहरा गया और उससे उत्पन्न सामाजिक–आर्थिक परिस्थितियों ने वहाँ जन–आन्दोलनों को जन्म दिया। इन आन्दोलनों में कम्युनिस्ट पार्टी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही जिसका सिलसिलेवार ब्योरा इस पुस्तक में मिलता है।</p>
<p>संयुक्त मोर्चा सरकारों के काल में जिस तरह भूमि सुधार आन्दोलन व्यापक रूप से प्रारम्भ हुआ था, उसे वाममोर्चा सरकार ने उसकी तार्किक परिणति तक पहुँचाया और पश्चिम बंगाल पूरे भारत में सच्चे भूमि सुधार के एक आदर्श राज्य के रूप में उभरकर सामने आया। पश्चिम बंगाल में पूरे भारत की सिर्फ़ अढ़ाई प्रतिशत ज़मीन होने पर भी सारे भारत में भूमि सुधार कार्यक्रम के तहत सरकार द्वारा भूमिहीनों के बीच बाँटी गई कुल ज़मीन का 20 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम बंगाल का है। इसके साथ ही त्रि–स्तरीय पंचायत व्यवस्था और स्वशासी निकायों ने बंगाल के गाँवों में शक्तियों के सन्तुलन को बदल दिया है और इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में भी वृद्धि के नए रिकार्ड क़ायम हुए हैं। लेखक ने इस समूचे घटनाक्रम को एक ‘मौन क्रान्ति’ की संज्ञा दी है। इस समूचे उपक्रम में सरकार की भूमिका के साथ ही पार्टी और उसके जन–संगठनों की जो भूमिका रही है, वह इस पुस्तक में तमाम तथ्यों के साथ उभरकर सामने आई है।</p>
<p>निश्चय ही यह न केवल राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए एक ज़रूरी पुस्तक है, बल्कि आम पाठकों के लिए भी यह जानने का प्रामाणिक स्रोत है कि पश्चिम बंगाल की संयुक्त मोर्चा सरकारों ने कैसे इस आन्दोलन को इसकी सफल परिणति तक पहुँचाया।
ISBN: 9788183611657
Pages: 114
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: श्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप गुजरात को आदर्श राज्य बनाने के लिए काम किया तथा सफलता हासिल की, और वह भी मात्र बारह-तेरह साल की अवधि में। शासन के विभिन्न मोरचों पर आधुनिक एवं नवीन प्रयास तथा रणनीतियाँ शुरू करके उन्होंने गुजरात राज्य का चेहरा ही बदल दिया और उसे भारत के सभी राज्यों में शीर्ष स्थान पर ला दिया। नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों को कसौटी पर कसने के दौरान लेखक को कुछ प्रश्नों ने उद्वेलित किया— —क्या भारत विकसित देश बन सकता है? —हमारी मातृभूमि प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, फिर हम क्यों लड़खड़ा रहे हैं? —हम भ्रष्टाचार में क्यों डूबे हैं? —बड़ी संख्या में भारतीय गरीबी में क्यों फँसे हैं? लेखक को उपर्युक्त सब प्रश्नों के उत्तर अपनी तलाश के दौरान मिल गए। मोदी के प्रयास न केवल हमें भविष्य के प्रति आश्वस्त करते हैं, बल्कि यह भी विश्वास दिलाते हैं कि भारत विश्व के देशों के बीच पूर्ण विकसित राष्ट्र बन सकता है। प्रतिबद्ध नेतृत्व यदि निश्चित भविष्यगामी सोच के साथ योजनाएँ और परियोजनाएँ बनाएगा, तो इन प्रश्नों का समाधान मिलेगा, उनका निदान होगा। ‘मोदी का विकासनामा’ पुस्तक न तो नरेंद्र मोदी की जीवनी है, न कोई चुनाव घोषणा-पत्र और न ही प्रायोजित लेखन। आँकड़ों की बाजीगरी से ऊपर उठकर ठोस और यथार्थ पर आधारित नरेंद्र मोदी के विकासक्रम की प्रेरक कहानी।
Purabiyon Ka Lokvritt Via Des-Pardes
- Author Name:
Zilani Bano
- Book Type:

- Description: एक गतिशील सांस्कृतिक संरचना है। वस्तुत: यह उस सामूहिक विवेकशील जीवन-पद्धति का नाम है जो सहज, सरल और भौतिकवादी होने के साथ-साथ अपनी जीवन्त परम्पराओं को अपने दैनिक जीवन के संघर्ष से जोड़ती चलती है। यह लोकमानस को आन्दोलित करने का सामर्थ्य रखती है। एक समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में उसे समझने की चेष्टाएँ अक्सर उसकी अन्दरूनी गतिशीलता और परिवर्तनशीलता की अनदेखी करती चलती हैं। इसके चलते यह मान लिया जाता है कि लोकसंस्कृति प्राक्-आधुनिक समाज की संस्कृति है और इस समाज के विघटन के साथ लोक को भी अन्तत: विघटित होना ही है। समाजविज्ञानों के पास एक ऐसे लोक की कल्पना ही नहीं है जो आधुनिकता के थपेड़े खाकर भी जीवित रह सके। सच्चाई यह है कि वास्तविकता के धरातल पर लोक न सिर्फ़ विद्यमान है बल्कि अपार जिजीविषा के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव के साथ क़दम मिलाते हुए वह निरन्तर अपने को बदलने का प्रयत्न भी कर रहा है। लोक का सामना कामनाओं की बेरोक-टोक स्वतंत्रता पर आधारित जिस भोगमूलक संस्कृति से हो रहा है, उसके पीछे साम्राज्यवाद की अनियंत्रित ताक़त भी है। यह किसी भी समाज की बुनियादी मानवीय आकांक्षाओं को नकारकर अपने निजी हितों के अनुकूल, उसकी प्राथमिकताओं को मोड़ने में समर्थ है। इस पुस्तक में पूरबिया संस्कृति के अनुभवाश्रित विश्लेषण, उसकी जिजीविषा और कामकाज के सिलसिले में स्थानान्तरण के परिप्रेक्ष्य में उसके सामने मौजूद चुनौतियों का अध्ययन किया गया ह
Kargil
- Author Name:
Rachna Bisht Rawat
- Book Type:

- Description: कारगिल युद्ध की बीसवीं वर्षगाँठ पर इसके वीर सैनिकों की कहानियों के जरिए बेहद ठंडे युद्धक्षेत्र का दोबारा अनुभव कीजिए। असहाय पैराट्रूपर के एक समूह ने अपनी ही पोजीशन पर बोफोर्स गनों से फायर करने को क्यों कहा? पालमपुर का एक वृद्ध व्यक्ति अपने शहीद फौजी बेटे को न्याय दिलाने के लिए आखिर क्यों लड़ रहा है? एक शहीद जवान का पिता हर साल एक कश्मीरी युवती के घर क्यों जाता है? ‘कारगिल’ पर लिखी यह पुस्तक आपको ऐसे दुर्गम पर्वत शिखरों पर ले जाती है, जहाँ भारतीय सेना ने कुछ रक्तरंजित लड़ाइयाँ लड़ीं। इस युद्ध को लड़नेवाले जवानों और शहीदों के परिवारवालों से साक्षात्कार के बाद रचना बिष्ट रावत ने अदम्य मानवीय साहस दिखानेवाली ये कहानियाँ लिखी हैं, जिनका सरोकार केवल वर्दीधारियों से नहीं, बल्कि उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करनेवाले लोगों से भी है। अप्रतिम साहस की कहानियाँ सुनाती यह पुस्तक हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले 527 युवा बहादुरों के अलावा उन शूरवीरों को भी एक श्रद्धांजलि है, जो इस आहुति को देने के लिए तैयार बैठे थे।
Maun Muskaan Ki Maar
- Author Name:
Ashutosh Rana
- Book Type:

- Description: "मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प्रेरणा) की समाप्ति ही प्लतालना (प्रतारणा) है।’’ मैं आश्चर्यचकित था, लामचंद पुनः ‘र’ को ‘ल’ बोलने लगे थे। इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर मैं दंग रह गया। वे अब बूढ़े भी दिखने लगे थे। बोले, ‘‘इनसान की इच्छा पूलती (पूर्ति) होना ही स्वल्ग (स्वर्ग) है, औल उसकी इच्छा का पूला (पूरा) न होना नलक (नरक)। स्वल्ग-नल्क मलने (मरने) के बाद नहीं, जीते जी ही मिलता है।’’ मैंने पूछा, ‘‘फिर देशभक्ति क्या है?’’ अरे भैया! जरा सोशल मीडिया पर आएँ, लाइक-डिस्लाइक (like-dislike) ठोकें, समर्थन, विरोध करें, थोड़ा गालीगुप्तार करें, आंदोलन का हिस्सा बनें, अपने राष्ट्रप्रेम का सबूत दें। तब देशभक्त कहलाएँगे। बदलाव कोई ठेले पर बिकनेवाली मूँगफली नहीं है कि अठन्नी दी और उठा लिया; बदलाव के लिए ऐसी-तैसी करनी पड़ती है और करवानी पड़ती है। वरना कोई मतलब नहीं है आपके इस स्मार्ट फोन का। और भाईसाहब, हम आपको बाहर निकलकर मोरचा निकालने के लिए नहीं कह रहे हैं; वहाँ खतरा है, आप पिट भी सकते हैं। यह काम आप घर बैठे ही कर सकते हैं, अभी हम लोगों ने इतनी बड़ी रैली निकाली कि तंत्र की नींव हिल गई, लाखों-लाख लोग थे, हाईकमान को बयान देना पड़ा। मैंने कहा कि यह सब कहाँ हुआ, बोले कि सोशल मीडिया पर इतनी बड़ी ‘थू-थू रैली’ थी कि उनको बदलना पड़ा। प्रसिद्ध सिनेमा अभिनेता आशुतोष राणा के प्रथम व्यंग्य-संग्रह ‘मौन मुस्कान की मार’ के अंश। "
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