Yogi Ramrajya
Author:
Chetna NegiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
रामराज्य की परिकल्पना एक आदर्श व्यवस्था का प्रतीक है। रामराज्य ऐसे क्षेत्र की संपूर्ण परिभाषा है, जहाँ हर क्रियाकलाप एक-दूसरे के सामंजस्य से पूरा होता है। रामराज्य की संकल्पना जनहित और सर्वसमावेशी व्यवस्था पर आधारित है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार सँभालने के बाद पाँच वर्ष की अवधि में महंत योगी आदित्यनाथ ने सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किए और एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप दिया। उनके शासन के पाँच वर्षों में उत्तर प्रदेश ने अपने सांस्कृतिक वैभव के विराट् स्वरूप के दर्शन कराए और आधुनिक राज्य की पहचान को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाया। विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की आम जनमानस तक सहज सुलभता और विकास के नए कीर्तिमान उस रामराज्य की अवधारणा को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें जनकल्याण ही सर्वोपरि है।
पाँच वर्ष के दौरान सत्ता की दृढ़ता, दूरदर्शिता, सजग प्रबंधन, संवेदनशीलता से परिस्थितियाँ ऐसे परिवर्तित हुईं कि उत्तर प्रदेश उद्योगपतियों, पूँजी निवेशकों, कॉरपोरेट सेक्टर का सर्वप्रिय राज्य बन गया है।
ISBN: 9789355210036
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों? आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है। एक तरफ पाकिस्तान के दो टुकड़े करके इंदिरा गांधी ने भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया, तो दूसरी तरफ गांधारी की तरह बेटे को अंधा प्रेम कर ‘संजय की मम्मी, बड़ी निकम्मी’ जैसा नारा भी झेला। एक तरफ सिक्किम विलय में अहम भूमिका निभाई तो दूसरी तरफ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का दाग उनकी मौत भी नहीं मिटा पाई। एक तरफ परमाणु परीक्षण कर भारत की ताकत और हिम्मत को पर लगा दिए तो दूसरी तरफ पहली ऐसी प्रधानमंत्री बनीं, जिनको हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री पद से ही हटने का आदेश जारी कर दिया। यह पुस्तक किसी भी जागरूक पाठक, शोधार्थी, पत्रकार, नेता, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए काफी तथ्यात्मक हो सकती है। कुछ मुद्दे जो इस पुस्तक में लिखे गए हैं, वे और ज्यादा जगह माँगते थे, लेकिन ज्यादा विषयों को लेने की रणनीति के चलते उन्हें सीमित जगह ही दी गई। शोधार्थी इसको आधार बनाकर और गहन अध्ययन कर सकते हैं।
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Bhartiya Samantwad
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भारतीय इतिहास में सामन्ती ढाँचे के स्वरूप को लेकर इतिहासकारों के बीच आज भी मतभेद बरक़रार हैं, अब भी पत्र-पत्रिकाओं में इस विषय पर बहस चलती रहती है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. रामशरण शर्मा ने पहली बार भारतीय सामन्तवाद के सम्पूर्ण पक्षों को लेकर उन पर सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया था। तब से लेकर आज तक न केवल इस पुस्तक के अंग्रेज़ी में एक से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, बल्कि भारतीय सामन्तवाद के सर्वांगीण अध्ययन के लिए दूसरी कोई पुस्तक आज तक सामने नहीं आई है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. शर्मा ने भारतीय सामन्तवाद के जन्म से लेकर उसके प्रौढ़ होने तक प्रायः नौ सौ वर्षों के इतिहास का विवेचन किया है, जिसके दायरे में उन्होंने अनेक समस्याएँ उठाई हैं और कालान्तर से उनके विशद विवेचन का मार्ग प्रशस्त किया है। क्षेत्र की दृष्टि से उनका यह अध्ययन मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित है और इसमें उन्होंने सामन्तवाद के राजनीतिक तथा आर्थिक पहलुओं पर ही विशेष रूप से विचार किया है। सामन्तवादी व्यवस्था में किसानों और किराए के मज़दूरों की दुर्दशा का सविस्तार विवेचन करते हुए प्रो. शर्मा ने दिखाया है कि कैसे श्रीमन्त वर्ग अपने उच्चतर अधिकारों के द्वारा उपज का सारा अतिरिक्त हिस्सा हड़प लेता था और किसानों के पास उतना ही छोड़ता था जितना खा-पीकर वे उस वर्ग के लाभ के लिए आगे भी मेहनत-मशक़्क़त करते रह सकें।
भारतीय इतिहास, भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक न सिर्फ़ उपयोगी है बल्कि अपरिहार्य भी है। इसमें प्रस्तुत की गई मूल स्थापनाएँ आज भी अकाट्य हैं।
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