Boond Bhar Ujala

Boond Bhar Ujala

Language:

Hindi

Pages:

130

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

260 mins

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Book Description

आवश्यक विद्रोह तथा ज़रूरी प्रतिरोध के गीत- पंकज सुबीर बरसों पहले, जब शायद बचपन बीता भी नहीं था, तब धर्मयुग में शंभुनाथ सिंह जी का एक गीत पढ़ा था- 'समय की शिला पर मधुर चित्र कितने, किसी ने बनाए किसी ने मिटाए', और शायद इसी गीत ने मेरे अंदर लेखन के संस्कार बीज दिए थे। कितने बरस बीते लेकिन यह गीत आज भी याद है। गीत एक ऐसी विधा है जो हमेशा आकर्षित करती रही है। वह गीत ही है जो याद में बना रहता है। वह गीत ही है जो हर अवसर पर हमारे अधरों पर आ जाता है। गीत को हमेशा गेयता से जोड़ कर चलने की भूल की जाती है लेकिन, गीत गेयता से नहीं एक अंतर्लय से जुड़ा होता है। गीत में शब्दों का विन्यास इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारे अंदर के तारों में कंपन उत्पन्न कर दे, और उस कंपन से पैदा लहरियों पर अपने आप को हमारे अंदर इस प्रकार गुंजित करे कि हम उसको हमेशा याद रखें। नहीं तो क्या कारण है कि जीवन में हर कहीं गीत ही बिखरा हुआ है। विशेषकर भारतीय परंपरा में हर अवसर के लिए कोई न कोई गीत है। जीवन से लेकर मृत्यु तक गीत हमारे साथ बना रहता है। हमारे जीवन में जब तक गीतों का एक विशिष्ट स्थान हुआ करता था, तब तक हमारे जीवन में रस था, जीने का आनंद था। चौपालों पर डफ लेकर गीत गा रहे हमारे पूर्वज कभी किसी मनोवैज्ञानिक रोग का शिकार नहीं हुए, क्योंकि उन्होंने अपने वैद्य को तलाश लिया था। इससे पहले कि हमारे अंदर का स्पंदन मद्धम होने लगे, मन क्लांत होने लगे, उसे गीतों से स्पंदित कर दो। फिर उसके बाद सब कुछ गीतों को ही करना है। फिर यह हुआ कि गीतों की दुनिया सिमटने लगी, या यूँ कहें कि हमारी दुनिया का विस्तार कहीं और हो गया तथा गीत हमारी दुनिया से बाहर होते चले गए। जिसका परिणाम हम आज देख ही रहे हैं।

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