Neelkanthi Prarthanayen
Author:
Raghuveer SharmaPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Description Awaited
ISBN: shivna20277
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 11-18
Country of Origin: India
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रने एमिल शार्, जिन्हें अल्बैर् कामू अपने समय का महानतम कवि मानते थे, का जन्म दक्षिणी फ्रांस के प्रोवॉन्स प्रदेश के एक नामी और ख़ूबसूरत क़स्बे, ईल-सुर-सोर्ग में, 7 जून, 1907 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय पेरिस और प्रोवान्स में बिताया।
शार् ने अपने बिम्ब और प्रतिमाएँ दक्षिण फ्रांस में बीते अपने बचपन से और वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों से ली हैं। वो कोई देहाती कवि नहीं थे, लेकिन देहात के दृश्यों का प्रभाव उनकी कविताओं में भरपूर मिलता है। प्रकृति के प्रति शार् की आस्था उतनी ही दृढ़ थी जितनी अपनी कविताओं के शिल्प के प्रति। उन्होंने सोर्ग नदी के प्रदूषण, वान्तू—जिस पर प्रैटार्क ने 1336 में विजय प्राप्त की थी—और मौं मिराइल पहाड़ों की चोटियों पर न्यूक्लियर रिएक्टरों के लगाने पर शहरी आपत्ति जताई थी।
शार् की सृजनात्मक दृष्टि पर, उनके कविता लिखने के उद्देश्य और शिल्प पर जिन लोगों का प्रभाव रहा, उनमें ग्रीक दार्शनिक हेरा क्लाइटस, फ़्रैंच कलाकार जॉर्ज दि लातूर और कवि आर्थर रैम्बो को प्रमुख माना जाता है। रैम्बो का साया उनके बिम्बों पर स्पष्ट दिखता है, ख़ास तौर से उनकी सूक्ष्म, घनीभूत गद्य कविताओं में। शार् पर एक और प्रभाव रहा अति यथार्थवाद का।
शार् एक ही विधा में लिखना पसन्द नहीं करते। उन्होंने मुख्य रूप से तीन विधाओं (forms) में कविताएँ लिखी हैं : मुक्त छन्द, गद्य कविता, और सूक्ति। वो अपनी पद्य कविताओं (Verse Poems) और गद्य कविताओं में उन्हीं विषयों को परिवर्द्धित करते हैं जिन्हें उन्होंने अपनी सूक्तियों में उठाया।
अपनी आख़िरी किताब के प्रकाशन तक शार् इस धारणा के समर्थक रहे कि कला, साहित्य और संगीत पारस्परिक रूप से प्रतिरोध की आवश्यक अभिव्यक्ति में जुड़े हुए हैं।
Sampoorn Kavitayein : Om Prakash Valmiki
- Author Name:
Omprakash Valmiki
- Book Type:

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ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताएँ एक ओर दलित समाज के वेदना, अपमान और यातना से भरे जीवन-अनुभवों का मार्मिक दस्तावेज हैं तो दूसरी तरफ वर्ण और जाति के नाम पर थोपी गई अपात्रता और वंचन के विरुद्ध प्रतिवाद का तप्त स्वर। ये कविताएँ आक्रोशभरा आह्वान हैं कि भारतीय समाज में हजारों सालों से जारी वर्चस्ववादी-ब्राह्मणवादी व्यवस्था को तत्काल खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि यह व्यवस्था बराबरी पर आधारित मानवीय समाज के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है। वास्तव में ये कविताएँ बाबा साहब आम्बेडकर के उस विचार का सृजनात्मक प्रसार हैं, जिसमें उन्होंने कहा था—“हमारे जीवन-मूल्य और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने के लिए दलित साहित्यकारों को जागरूक और प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में साहित्यकारों का मैं आह्वान करता हूँ कि वे विभिन्न साहित्यिक विधाओं के द्वारा उदात्त जीवन-मूल्यों और सांस्कृतिक मूल्यों को रेखांकित करें। अपने लक्ष्य को मर्यादा में मत बाँधो, उसे और अधिक विशाल बनने दो। वाणी का विस्तार करो। अपनी लेखनी को केवल अपने प्रश्नों तक सीमित मत रखो। उसे तेजस्वी बनाओ जिससे गाँव में फैला अन्धकार दूर हो सके। यह मत भूलो कि इस भारत देश में उपेक्षित दलितों का बहुत बड़ा विश्व है। अपनी रचनाओं द्वारा उनकी वेदना को समझकर उनके जीवन को उज्ज्वल बनाने की कोशिश करो। यही मानवता की सचाई है।”
कहना न होगा कि अपने एक-एक शब्द से, उत्पीड़ित मनुष्यता की तरफदारी करती, वाल्मीकि की कविताएँ उनकी रचनात्मकता की उपलब्धि तो हैं ही, हिन्दी कविता की भी उपलब्धि हैं।
Nakshtraheen Samay Mein
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

- Description: अशोक वाजपेयी का यह पन्द्रहवाँ कविता-संग्रह उनके पहले कविता-संग्रह के प्रकाशन के 50वें वर्ष में प्रकाशित हो रहा है। अपनी कविता के मूल स्वर और सरोकार पर अड़े रहे इस कवि ने हर बार अपनी कविता के संसार में कुछ ऐसा शामिल किया, खोजा है जो पहले नहीं था। इस बार समकालीन राजनीति में जो उथल-पुथल हुई है, उसके प्रतिरोध के रूप में उनकी कविता खड़ी हुई है। टेढ़ेपन पर अटल भरोसा रखनेवाले कवि ने इसमें कुछ सपाटबयानी भी की है। इस सबके बावजूद होने का अवसाद, गहरा आत्मालोचन और अदम्य जिजीविषा सब कुछ यहाँ एक साथ है। सयानापन और ज़िम्मेदारी, शब्द और शिल्प से कुछ खिलवाड़ तथा रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का सहज अध्यात्म फिर चरितार्थ है।
Bina Munder Ki Chaat
- Author Name:
Prem Ranjan Animesh
- Book Type:

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Description:
प्रेम रंजन अनिमेष भारतीय लोक की जड़ों में जीवित जिजीविषा के गायक हैं। उनकी कविताएँ हमारे आसपास फैली उन चीज़ों तक पहुँचती हैं जिन्हें हमने अब लगभग देखना बन्द कर दिया है लेकिन इसके बावजूद वे दुनिया को चलाए रखने में अपनी भूमिका निभा रही हैं। ये कविताएँ न किसी बड़े परिवर्तन का आह्वान करती हैं और न ऊँची हाँक लगाकर हमें कुछ ऐसा करने को कहती हैं जो हमें हमारे अतीत से काटकर किसी नए अनोखे संसार में स्थापित कर दे। भले ही वह कितना भी सुन्दर, कितना भी अद्भुत, कितना भी पूरा क्यों न हो। ये कविताएँ हमें अपने इसी अधूरे संसार में रच-बसकर जीने के सूत्र थमाती हैं। इसके दुखों की सुन्दरता, इसके अभावों का मोहक आकर्षण, इसकी विसंगतियों के भीतर छिपी आन्तरिक लय, और हर हाल में मौजूद उम्मीद, वे चीज़ें हैं जिन पर, लगता है कवि को आज के दावों-वादों की बड़बोली दुनिया में सबसे ज़्यादा यक़ीन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यही यक़ीन इस देश का सबसे बड़ा सम्बल आज भी है जब हर तरफ़ क़िस्म-क़िस्म के उद्धारकर्ता अपने-अपने ढंग से अपना-अपना उद्धार कर रहे हैं। ‘किसी बच्चे के कुछ सवाल लिए चला आया हूँ/एक सहपाठी के इम्तिहान कैसे गए जानना चाहता हूँ.../’ (पहली गली); ‘भरी हुई गाड़ी में/कैसे कहाँ रखूँ/टपटप चूता अपना छाता/जो बचाकर यहाँ तक लाया?’ (मनुष्यता); ‘इस विकसित तंत्र में/है नहीं ऐसा जरिया/जो पहुँचा पाए/रास्ते में पड़े एक पाँव के जूते को/उसके संगी तक...मैं ईश्वर को देखना चाहता हूँ इस नन्ही दुनिया में/अपने बड़े पाँव में एक नन्हा जूता पहने/दूसरे की तलाश में...’ (एक पाँव का जूता)।
धीमी आँच पर सिंकती-सेंकती ऐसी अनेक कविता-पंक्तियाँ, अनेक कविताएँ हैं जिन्हें आप उपलब्धियों की तरह हमेशा साथ रखना चाहेंगे। लोकभाव को बहुत गहरे में जीने और पुनर्रचित करनेवाले प्रेम रंजन अनिमेष इस संग्रह में पुन: साबित करते हैं कि लोक-बिम्ब काव्य-प्रविधि मात्र नहीं हैं, वे वैकल्पिक जीवन-दृष्टि के संवाहक हैं।
Parimal
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

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Description:
महाकवि ‘निराला’ की युगान्तरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है—‘परिमल’।
इसी में है ‘तुम और मैं’, ‘तरंगों के प्रति’, ‘ध्वनि’, ‘विधवा’, ‘भिक्षुक’, ‘संध्या-सुन्दरी’, ‘जूही की कली’, ‘बादल-राग’, ‘जागो फिर एक बार’—जैसी श्रेष्ठ कविताएँ, जो समय के वृक्ष पर अपनी अमिट लकीर खींच चुकी हैं।
‘परिमल’ में छाया-युग और प्रगति-युग अपनी सीमाएँ भूलकर मानो परस्पर एकाकार हो गए हैं। इसमें दो-दो काव्य-युगों की गंगा-जमुनी छटा है, दो-दो भावधाराओं का सहजमुक्त विलास है।
Bichhdal Kono Pireet Jakan
- Author Name:
Vidyanand Jha
- Book Type:

- Description: Collection of Maithili Poems. मनुष्य केँ आ जीवनक आन सब रूप केँ जे गछाडऩे अछि आपदा ओ विपदा सभ तकर संताप समाएल अछि एहि संग्रहक अनेक कविता मे। निरंतर आभासी होइत जाइत एहि समय मे यथार्थक ठोस ऐन्द्रिक बोध खिया रहल अछि आ ताहि सँ जीवन मे कएक तरहक मारूक कमी ओ दिक्कत सभ आबि रहल अछि। जीवन ओ जगतक ठोस विवरण सभ सँ भरल-पुरल एहि संग्रहक कविता सभ थोड़बहुत काट करैत अछि एहि बातक। आ संगहि जगजियार होइत जाइत अछि एहि सँ जीवनक त्रासद विसंगति ओ विडम्बना सभ; शोषण ओ अन्यायक मर्मांतक रूप सभ; आ इतिहासक दारूण संत्रास सभ। जे किछु शुभ ओ सुंदर बचल अछि जीवनक व्यापक ओ गझिन तानीभरनी मे ताहि मे सँ किछु अनूप जोगाओल गेल अछि एहि संग्रह मे। आ बीच-बीच मे छिटकैत चलैत अछि अस्तित्वक स्वरूपक अबंचक कि रोमांचित कर’वला सूक्ष्म बात सभ सेहो। प्रकृति ओ मनुष्य, अपन संगिनी ओ रूपसी मिथिला, तथा भाषा ओ कलाक विभिन्न रूप सँ जे 'पिरीत’ छनि कवि केँ ताहि सँ डगडग करैत कविता सभ ही केँ जुड़ा दैत अछि, जीवन मे आस्था केँ टेक दैत अछि आ संघर्षक लेल संबल सेहो। दनुफक फूल जकाँ सादा, साफ, हल्लुकओ खलसैत भाषा ओ शिल्प मे रचल गेल एहि संग्रहक कविता सभ सहजहि जीवनक पिरितिया बना दैत अछि। गहन शुभाशंसाक संग हम हलसि क’ एकर स्वागत करैत छी। उत्सवक घड़ी थिक ई मैथिली कविताक लेल। —हरेकृष्ण झा
Beech Ka Rasta Nahin Hota
- Author Name:
Pash
- Book Type:

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पाश की कविता हमारी क्रान्तिकारी काव्य-परम्परा की अत्यन्त प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति है। मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित व्यवस्था के नाश और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के लिए जारी जनसंघर्षों में इसकी पक्षधरता बेहद स्पष्ट है। साथ ही यह न तो एकायामी है और न एकपक्षीय, बल्कि इसकी चिन्ताओं में वह सब भी शामिल है, जिसे इधर प्रगतिशील काव्य-मूल्यों के लिए प्रायः विजातीय माना जाता रहा है।
अपनी कविता के माध्यम से पाश हमारे समाज के जिस वस्तुगत यथार्थ को उद्घाटित और विश्लेषित करना चाहते हैं, उसके लिए वे अपनी भाषा, मुहावरे और बिम्बों-प्रतीकों का चुनाव ठेठ ग्रामीण जीवन से करते हैं। घर-आँगन, खेत-खलिहान, स्कूल-कॉलेज, कोर्ट-कचहरी, पुलिस-फौज और वे तमाम लोग जो इन सबमें अपनी-अपनी तरह एक बेहतर मानवीय समाज की आकांक्षा रखते हैं, बार-बार इन कविताओं में आते हैं। लोक-जीवन में ऊर्जा ग्रहण करते हुए भी ये कविताएँ प्रतिगामी आस्थाओं और विश्वासों को लक्षित करना नहीं भूलतीं और उनके पुनर्संस्कार की प्रेरणा देती हैं। ये हमें हर उस मोड़ पर सचेत करती हैं, जहाँ प्रतिगामिता के ख़तरे मौजूद हैं; फिर ये ख़तरे चाहे मौजूदा राजनीति की पतनशीलता से पैदा हुए हों या धार्मिक संकीर्णताओं से; और ऐसा करते हुए ये कविताएँ प्रत्येक उस व्यक्ति से संवाद बनाए रखती हैं जो कल कहीं भी जनता के पक्ष में खड़ा होगा। इसलिए आकस्मिक नहीं कि काव्यवस्तु के सन्दर्भ में पाश नाज़िम हिकमत और पाब्लो नेरुदा जैसे क्रान्तिकारी कवियों को ‘हमारे अपने कैम्प के आदमी’ कहकर याद करते हैं और सम्बोधन-शैली के लिए महाकवि कालिदास को।
संक्षेप में, हिन्दी और पंजाबी साहित्य से गहरे तक जुड़े डॉ. चमनलाल द्वारा चयनित, सम्पादित और अनूदित पाश की ये कविताएँ मनुष्य की अपराजेय संघर्ष-चेतना का गौरव-गान हैं और हमारे समय की अमानवीय जीवन-स्थितियों के विरुद्ध एक क्रान्तिकारी हस्तक्षेप।
Urdu Ke Mashoor Khaake
- Author Name:
Rahul Jha
- Book Type:

- Description: उर्दू अदब में मशहूर और अहम हस्तियों के ख़ाके लिखने की रवायत बहुत पुरानी है। मुसन्निफ़ों ने वक़्त-वक़्त पर अपने बुज़ुर्ग अदीबों या ऐसे दोस्तों-आश्नाओं के ख़ाके लिखे हैं जिन्होंने उनके ज़ेहन-ओ-दिल को मुतअस्सिर किया है। इन ख़ाकों में अलफ़ाज़ के ज़रिए उन हस्तियों की ऐसी तस्वीर बनाई जाती है कि जिस्मानी बनावट के साथ-साथ उनकी शख़्सियत की ख़ुसूसियात भी आँखों के सामने उभर आती है। ये ख़ुश-बयान ख़ाके उन हस्तियों की सलाहियत के साथ-साथ उनकी नफ़्सियात का भी पता देते हैं। इस किताब में सआदत हसन मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी, इस्मत चुग़ताई, रशीद अहमद सिद्दीक़ी, मौलवी अब्दुल हक़, असलम फ़र्रुख़ी, अशरफ़ सबूही और क़ुदरतुल्लाह शहाब जैसे नुमाइन्दा मुसन्निफों के लिखे हुए कुल नौ हस्तियों के ख़ाके शामिल हैं जिनमें मीर तक़ी मीर, मीराजी, ख़्वाजा अहमद अब्बास और अज़ीम बेग चुग़ताई अहम हैं।
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