Kumhlaai Kaliyan
Author:
Dr. Seema SharmaPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Book
ISBN: 9788194888710
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Akshat
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:

-
Description:
style="line-height: 10px;">तुम
मेरी एकमात्र पुस्तक हो
मेरे मन का धर्मग्रन्थ तुम
मेरी एकमात्र कविता हो
मेरे सृजन के सच्चे दस्तावेज़
तुम मेरा एकमात्र विश्वास हो
मेरी आत्मा के वास्तविक सहचर
प्रेम का यही अकुंठ भाव इन कविताओं का मूल स्वर है। यह प्रेम-कविताओं का संग्रह है जिनकी कमी इधर आकर बहुत खलने लगी है। कविता के केन्द्र से प्रेम का हटना बेशक जीवन का अनुगमन ही है, क्योंकि जीवन का केन्द्र भी आज प्रेम नहीं है, लेकिन इसीलिए प्रेम अपनी तमाम पारदर्शिताओं, स्वच्छताओं और उदात्तताओं के साथ और भी ज़रूरी हो जाता है। वह एक अमूर्त भाव है लेकिन दुनिया में उसका अभाव हमें किसी चीज़ की तरह कचोटता है, जिसे इतनी तमाम चीज़ों की उपस्थिति भी पूर नहीं पाती।
ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताक़त की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है, हमें ज़्यादा सहनशील, सहिष्णु और संसार को ज़्यादा रहने लायक़ बनाता है।
तुम
मेरे पास
सुख की तरह हो
जैसे जड़ों के पास ज़मीन
तुम्हारा स्पर्श मुझे छूता है
जैसे सूरज छूता है पृथ्वी।
Rabiya Ka Khat
- Author Name:
Medha
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Tum Tab Aana
- Author Name:
Rakesh Kabeer
- Book Type:

-
Description:
राकेश कबीर की इन कविताओं से गुज़रते हुए जीवन के विभिन्न पहलुओं की विसंगतियों पर सबसे पहले ध्यान जाता है। राकेश की कविताओं में उनका पूरा समय मुकम्मल ढंग से व्यक्त होता दिखता है। राकेश एक ऐसे कवि हैं जो बिम्बों की आयातित शब्दावली से नहीं बल्कि प्रकृति और जीवन के अपने आत्मीय सम्बन्धों के बीच से कविता की नई ध्वनि तलाश करते हैं।
प्रकृति राकेश की कविताओं में विभिन्न प्रतीकों के रूप में आती है। उनकी कविताओं में आए बिम्बों की नवीनता इस बात में है कि ये प्रकृति के भीतर से ही उपजे हैं और अत्याचार से लड़ रहे हैं। इन्हें ऐसे व्यक्तियों के प्रतीक के तौर पर देखा जा सकता है जो व्यवस्था के अन्दर रहकर उसके अन्याय और अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं। एक आम नागरिक के जीवन में जो व्यवस्थागत विडम्बनाएँ हैं, राकेश का कवि वहीं से अपनी कविता की ज़मीन तलाशता है। ‘स्पर्श’ कविता में एक नौकरीपेशा पिता द्वारा अपनी नन्ही बेटी से बोला गया झूठ, कविता को प्राण देता है। कवि परिवार के इस लगाव और जुड़ाव के बीच कभी भी न तो अपने समाज को भूलता है और न समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को।
कुल मिलाकर कवि राकेश कबीर की कविताओं की ये चौथी किताब संवेदना और शिल्प के स्तर पर आगे बढ़ी हुई दिखती है क्योंकि इसमें जीवन के विविध पक्षों को समेटने का बेहतर प्रयास हुआ है। प्रकृति और प्राणी-जगत के बिम्बों का नवीन अर्थों में प्रयोग और झील की तरह ठहरी हुई व्यवस्था पर व्यंग्य करती कविताएँ इस संग्रह का हासिल हैं।
—नीलाम्बुज सरोज
Hum Jo Nadiyon Ka Sangam Hein
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

-
Description:
यह संग्रह अपनी कविताओं के तीव्र आवेग, भाव–विविधता एवं वस्तु–बहुलता के कारण महत्त्वपूर्ण माना जाएगा। बोधिसत्व की कविताएँ मानो अनेक नदियों का संगम हैं। लोकगीतों की ऊष्मा तथा रागात्मकता, वर्तमान जीवन के ‘दुख–तंत्र’ की कठोर प्रतीति और वैचारिक दृढ़ता एवं प्रतिरोध—इन सबके संयोग से ये कविताएँ हमारे लिए एक वैकल्पिक पाठ की सृष्टि करती हैं। ‘हाहाकार के बीच से गुज़रती’ इन कविताओं में दर्ज हैं ‘बेनूर आँखों के ख़्वाब’, ‘सिले होंठों की मुस्कुराहट’ और ‘बँधे हाथों की छटपटाहट’। लोकगीत और बोलियों की शक्ति का उपयोग, जिसके लिए बोधिसत्व की आरम्भिक कविताएँ चिह्नित की गई थीं, उनका अद्यतन रूप यहाँ मिलता है, कुछ ज्वाया और सख़्त।
इनमें बेचैन कर देनेवाली ऐन्द्रिकता है—‘ताज़े आटे की गर्मी थी उसकी ख़ुशी/वसन्त उसके लिए अब उखड़े नाखून की तरह है’। एक विरल करुणा और क्रोध। इनमें जीवन के प्रति समर्थन और लालसा है जैसे कि ‘ऐसा ही होता है’ कविता में, जो साधारण मनुष्य के दैनंदिन प्रेम को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है। ‘गंध’ शीर्षक कविता स्वयं बोधिसत्व की कविताओं में अलग से उल्लेखनीय है। यह एक बड़ी कविता है, हमारे जीवन की दारुण विपत्ति, विडम्बना एवं निजी और सामाजिक के सीमा–प्रदेश पर निरन्तर विद्यमान द्वन्द्व की कविता।
एक बात और—ये कविताएँ गहरे राजनैतिक आशय एवं नैतिक संकल्प की कविताएँ हैं। बोधिसत्व का ही शब्द लेकर कहें तो यह वह कविता है ‘जो समाज के हारे–गाढ़े काम दे’।
—अरुण कमल
Desh
- Author Name:
Harprasad Das
- Book Type:

-
Description:
‘देश’ को उत्तर–आधुनिक महाकाव्य माना गया है। बल्कि इसे सिर्फ़ एक संरचना ही कहा जाए तो कवि को कोई आपत्ति नहीं होगी, यदि इसकी वास्तुकला में पाठक मेद, खनिज और काष्ठ के प्रयोग को पहचान ले। इस विलक्षण संरचना में बहुमुखी कल्पना का प्रयोग है, यथार्थ की एक मुख्य धारा इसमें कल्पना का स्रोत बनकर प्रवाहित होती है। किसी स्थिर बिन्दु से देश को देखने का तरीक़ा इसमें अद्भुत रूप से बदलता है। इस बदलाव में एक तीव्र और जादुई शक्ति है जो कविताओं को एकात्मकता प्रदान करती है, हालाँकि यह संरचना किसी पूर्व–निर्धारित काव्यवस्तु को प्रतिष्ठित नहीं करना चाहती।
देश की कविताओं में अनेक आरम्भ हैं और अनेक अन्त, परन्तु यह सब किसी एक निर्दिष्ट समाप्ति की ओर अग्रसर नहीं होता, बल्कि एक व्यापक असमाप्ति का निर्माण करता है। इसका उत्तर–आधुनिक रूप इसी असमाप्त निर्मिति से बनता है। ‘देश’ भूखंड है, भाग्य है, निवास है, निर्वासन है, यहाँ तक कि ‘देश’ देशान्तर है और देशोत्तर भी। विविधता के बीच अस्तित्व की यह खोज वस्तुपरकता के परे शुद्ध कविता के अन्त:करण को प्रस्तुत करती है। समकालीन भारतीय साहित्य में इस कृति को अपनी कलात्मकता की लय, लोक–चेतना की मिथकीय पुन:प्रतिष्ठा और मार्मिक अस्तित्वबोध के लिए पहचाना जाएगा।
Aalap Mein Girah
- Author Name:
Geet Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
अपनी प्रतिबद्ध विवेकशील विश्वचेतना में रघुवीर सहाय के बाद की समर्थ हिन्दी कविता समसामयिक, प्रतिभावान युवा कवियों द्वारा इस कदर समृद्ध और अग्रेषित की जा रही है कि अपने पाठक, आस्वादक, समीक्षक और विश्लेषक के सामने अपूर्व, कभी-कभी तरद्दुद और सांसत में डाल देनेवाली, किन्तु शायद हमेशा रोमांचक चुनौतियाँ खड़ी करती जाती है।
गीत चतुर्वेदी की ये कविताएँ राष्ट्र ओर व्यक्ति-दशा ('स्टेट ऑफ़ द नेशन एंड द इंडीविजुअल') की कविताएँ हैं।
उनकी काव्य-निर्मित और शिल्प की एक सिफ़त यह भी है कि वे 'यथार्थ' और 'कल्पित', ठोस और अमूर्त, संगत से विसंगत, रोज़मर्रा से उदात की बहुआयामी यात्रा एक ही कविता में उपलब्ध कर लेते हैं।
इतिहास से गुज़रने का उनका तरीक़ा कुछ-कुछ चार्ली चैप्लिन-सा है और कुछ काल-यात्री (टाइम ट्रैवलर) सरीखा है...
भारतीय समाज के लुच्चाकरण और अमानवीयता पर जो बहुत कम हिन्दी कवि नज़र रखे हुए हैं, गीत चतुर्वेदी उनमें भी एक निर्भीक यथार्थवादी हैं।
—विष्णु खरे
Peepal Ke Ped Par Baithe Hue Giddh
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: रमेशराज की मुक्तछंद कविताएँ
Deshnama Gaonnama
- Author Name:
Devisharan
- Book Type:

- Description: देवीशरण ठेठ आदमी हैं। वे अपने उपनाम ‘ग्रामीण’ को सार्थक करते हैं। गाँव का आदमी रूप, रंग और शृंगार की परवाह किये बिना अपनी मूल वस्तु के भरोसे जीवन जीता है। उसमें कुंठायें नहीं होतीं। आइने के सामने होकर वह फूलता नहीं। वह आदमी अपनी रचना के लिये जो भी चुनता है, वह उपयोग की प्रेरणा से बनती है। देवीशरण ‘ग्रामीण’ इसी प्रकृति की छाया में कविता, कहानी या गाँवनामा लिखते हैं। धूल, लाटा, चना, मजदूर, नदी-नाले, घर-छप्पर उनकी कविताओं के शीर्षक हैं। इन वस्तुओं के विश्लेषण के बजाय ‘ग्रामीण’ जी अपनी रचनाओं के द्वारा उनकी वस्तुओं से अपने अभिप्राय व्यक्त करते हैं। उनसे अपने मन की बात कहलवाते हैं। मानवीकरण करते हैं। इन वस्तुओं के प्रति अपना राग व्यक्त करते हैं। वे वस्तुओं को बुद्धि के आकाश में नहीं उड़ाते। वे आम आदमी को सम्बोधित करते रहते हैं। वे सिखाने-समझाने की प्रतिज्ञा से आगे बढ़ते हैं। देवीशरण जी की अपनी आस्था है। आस्था ऐसी जो मनुष्य की समानता के लिये प्रतिबद्ध है। और आगे कहें तो यह कि वे मार्क्सवाद पर भरोसा करते हैं। मार्क्सवाद की बुनियादी निष्पत्तियाँ उनके भावबोध का अंग बन गई हैं। वे स्वाभाविक सी हो गई हैं, उनके लिये। अतः रचनाओं का स्फुरण इसी आस्थाजन्य स्वाभाविक प्रक्रिया से होता है। ग्रामीण जी मानते हैं कि श्रमिकों की संगठित शक्ति अपराजेय होती है। वे अपनी अनेक कविताओं में इसे व्यक्त करते हैं। उनका कविता संसार जीवन का वास्तविक क्षेत्र है। वह ज्यादातर अभिधा में हैं। उसमें गहरा आशावाद है। इस तरह की निरलंकृत कविता जनता की प्राथमिक दीक्षा के काम आती है। जनता के भावों का सीधा-साझापन इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इन कविताओं की प्रासंगिकता लम्बे समय तक रहेगी। — कमला प्रसाद
Zindagi Ek Kan Hai
- Author Name:
Rakesh Mishra
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Log Bhool Gaye Hain
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

-
Description:
रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।
आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।
Chandrikotsav
- Author Name:
Manoj Singh
- Book Type:

- Description: शाम ढल चुकी है, रात को चाँद की प्रतीक्षा है। विरह की अग्नि हर प्रेमी को अपने आगोश में ले रही है। प्रतीक्षा सदैव कष्ट दायी होती है। आँखें थक रही हैं मन आतुर है। आँसू हैं कि अनायास बहने लगे। मन की अग्नि ज्वाला बनकर आँसुओं को उष्णता प्रदान कर रही है, जिसने मन के साथ-साथ तन को भी जलाना प्रारंभ कर दिया है। उनका प्रभाव और प्रवाह बढ़ता जा रहा है। विरह की तीव्रता का प्रेम की गहराई से सीधा संबंध है। इस अवस्था में अप्रिय विचारों का आना कदाचित् उनका स्वभाव है, मगर विश्वास की अग्नि परीक्षा यहीं से शुरू होती है। बेचैनी में भी धैर्य नहीं खोना है, कदाचित् यही विरह की प्रीत है
SATYAKATHA-ASATYAKATHA
- Author Name:
Kamleshwar Sahu
- Book Type:

- Description: Collection of poem
Sabad
- Author Name:
Manglesh Dabral
- Book Type:

- Description: An anthology of poems in Hindi translation read by Indian and Foreign poets at the World Poetry Festival:Sabad,organised by sahitya Akademi and Ministry of culture,Government of india on 21-24 March 2014 at New Delhi.
Udaan
- Author Name:
Pukhraj Maroo
- Book Type:

-
Description:
ग़ज़ल हिन्दुस्तानी रिवायत की हसीन-तरीन विरासत है, इसको ज़बानों के संकीर्ण दायरों में क़ैद नहीं किया जा सकता। यह न उर्दू है, न हिन्दी—बस, ग़ज़ल तो ग़ज़ल होती है और उसको ग़ज़ल ही होना चाहिए, वरना सारी मेहनत और कोशिश व्यर्थ हो जाएगी। पुखराज मारू की ग़ज़लों का दीवान देखते हुए मेरे इस ख़याल को मज़ीद तक़वियत मिली। उसकी ग़ज़लें सर-सब्ज़ फलदार दरख़्तों की तरह हैं जिनमें ख़ुशज़ायका मुनफ़रिद और ख़ूबसूरत महकदार फल हैं। बाज पककर रस-भरे बन गए हैं, कुछ अधकच्चे हैं और कुछ इब्तिहाई मराहिल में। लेकिन किसी मज़मूए में बड़ी तादाद में अच्छे शे’र और ख़ूबसूरत मिसरे हों तो दाद तो देनी ही पड़ेगी।
पुखराज मारू ग़ज़ल की क्लासिकी रिवायत के रम्ज शनास हैं। उसकी बारीकियों से परिचित और शब्द पर भी उनकी पकड़ है। ख़याल भी नाज़ुक, ख़ूबसूरत और दिलनवाज़ हैं। नई-नई ज़मीनें भी तराशी हैं और ग़ज़ल के गुल-बूटे खिलाए हैं। वह इक्कीसवीं शताब्दी के बर्क़ रफ़्तार अहद में और बाज़ारवाद के युग में रहते हैं। किन्तु उनकी ग़ज़लों की दुनिया क़दीम है, इसमें शिद्दत नहीं है। समकालीन परिस्थितियों की झलक है भी तो बहुत कम-कम। यह शायर दुनिया का और मानवता का भला प्रेम के ढाई अक्षर में ही तलाश करना चाहता है। यद्यपि इश्क़ से बढ़कर और क्या है जो सारी कायनात में छाया हुआ है।
—बशीर बद्र
Aadhunik Awadhi Kavita : Pratinidhi Chayan : 1850 Se Ab Tak
- Author Name:
Amrendra Nath Tripathi
- Book Type:

- Description: अवधी भाषा की कविता-यात्रा हज़ार वर्षों से कहीं अधिक लम्बी रही है जिसे अब तक गतिमान भाषा की महायात्रा के रूप में देखा जाना चाहिए। सभी आधुनिक आर्यभाषाओं की तरह अवधी की शुरुआत भी दसवीं शताब्दी से मानी जाती है। भाषा के लिखित रूप के साक्ष्य पर। लेकिन इस भाषा का उद्भव दसवीं सदी के कितने सैकड़े पहले हुआ, ठीक-ठीक कह पाना कठिन है। अवधी में लोकसाहित्य कब से लिखा जा रहा है, यह भी कोई नहीं बता सकता। परन्तु यह अनुमान हवाई नहीं है कि जो भाषा दसवीं-ग्यारहवीं सदी के आसपास अपने लिखित रूप में मौजूद दिखती है, उसका मौखिक रूप भी कहीं और पहले से आकार लेता हुआ, विस्तृत, ऊर्जावान और आकर्षक रहा होगा। भाषा से 'बोली' के दर्जे में पहुँचा दिए जाने के बावजूद आधुनिक काल में अवधी रचनात्मकता रुकी नहीं। कवियों ने अपने घर, गाँव और अवध की भाषा में लिखा और असरदार लिखा। कोई उन्हें देख रहा है कि नहीं, रचना कहीं से छपेगी कि नहीं, कोई कभी मूल्यांकन करेगा कि नहीं; इन सबसे बेख़बर होकर अवधी साहित्यकारों ने सिर्फ़ लिखा। इसका सुपरिणाम यह हुआ कि अवधी के आधुनिक काम में रचनाकारों और रचनाओं की कमी नहीं है। पूरे अवध में, और अवध से बाहर भी, अवधी रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा। वह कितना मूल्यवान है, यह अलग मसला है, लेकिन नाना नकारात्मकताओं के मध्य अवधी की रचनात्मक चेष्टा की सराहना की जानी चाहिए। यह किताब उसी दिशा में एक प्रयास है।
Man Kastoori Re
- Author Name:
Anju Sharma
- Book Type:

- Description: Book
Andhere Se Bahar Nikalate Huye
- Author Name:
Amar Kushwaha
- Book Type:

- Description: ‘अँधेरे से बाहर निकलते हुए’ अमर कुशवाहा की बहुत सहज और सीधी लेकिन अर्थवान कविताओं का पहला संग्रह है। अपनी जमीन, अपनी जिन्दगी, अपने संघर्षों की कथा कहती ये कविताएँ मानवीय संवेदनाओं को एक नई दृष्टि देती हैं, साथ ही कविता के माध्यम से समाज को एक नए रूप में संस्कारित करने का प्रयास भी करती हैं। समाज की यांत्रिकता, बाजारूपन एवं व्यक्ति के संवेदनहीन होते जाने की समस्या को उकेरती ये कविताएँ विकासशील भारत के एकपक्षीय विकास को रेखांकित करते हुए जीवन से साहित्य एवं संस्कृति के लुप्त हो जाने पर चिन्ता भी प्रकट करती हैं। समकालीन जीवन को अपनी कविता का विषय बनाता कवि इन कविताओं में समय के दर्द को भी चित्रित करता है और आधुनिक जीवन की आकुलताओं-व्याकुलताओं को एक नया स्वर देता है। ये स्वर यथार्थ की तह तक जाने के स्वर हैं, जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद के स्वर हैं, दैनिक जीवन के गणित के स्वर हैं, व्यवस्था के स्वर हैं और समाज के मार्मिक प्रसंगों के स्वर हैं। इन कविताओं का खासतौर पर देखने लायक पक्ष ये है कि आधुनिक जीवन-शैली के अनुसार कवि की कविताओं के छंद भी आधुनिक हैं। छंदों में उतार है, चढ़ाव है, लहर है, प्रवाह है, किन्तु इस सबके बावजूद कविताएँ बारम्बार गाँव के सुख-दुःख की ओर लौट आती हैं। गाँव के नदी-नालों, खेत-खलिहानों की ओर लौट आती हैं। समाज और राजनीति में व्याप्त झूठ-फरेब, लूट-खसोट, अत्याचार-अनाचार से क्षुब्ध कवि अपनी स्पष्ट एवं बेबाक पंक्तियों से राजनेताओं को आगाह करते हुए किसी भी समाज की मुक्तिकामी चेतना को ऊर्जस्वित करने का प्रयास भी करता है.
Mohabbat Karke Dekho Na
- Author Name:
Farhat Ehsas
- Book Type:

-
Description:
फ़रहत एहसास अपने समकालीनों में एक मुमताज़ शाइर हैं। इससे पहले फ़रहत एहसास के एक-दो छोटे-छोटे संग्रह उर्दू लिपि में प्रकाशित हुए हैं जो किसी भी तरह उनकी कुल रचनात्मकता की नुमाइंदगी नहीं करते। मेरी दिली ख़्वाहिश थी कि ‘रेख़्ता’ उनकी शाइरी के तमाम रंगों पर आधारित एक संचयन प्रकाशित करे। आज से तीन बरस पहले देखे गए इस ख़्वाब की ताबीर की शक्ल में ये किताब आपके हाथों में है। मैं इसे अपनी ख़ुशनसीबी समझता हूँ कि उनकी शाइरी को उसके हज़ारों पाठकों तक पहुँचाने का श्रेय मेरे हिस्से में आया। इस सफ़र में सबसे मुश्किल मर्हला फ़रहत एहसास को राजी करना था। उनकी तख़लीक़ी बेनियाज़ी उन्हें अपनी शाइरी बाज़ार तक लाने से रोकती रही है। उन्हीं का शे’र है—
एक के बाद एक मज्मूआ मिरा आता रहा
और मैं शाइर बिचारा ग़ैर-मत्बूआ रहा।
ऐसे महत्त्वपूर्ण शाइर के कलाम का इन्तिख़ाब करके हम ख़ुशी और फ़ख़्र महसूस करते हैं। फ़रहत एहसास की शाइरी की तरह उनकी ज़िन्दगी भी मेरे लिए उतनी ही पुरकशिश है। उनसे तआरुफ़ का अर्सा अगरचे अभी मुख़्तसर है लेकिन सोचने पर ऐसा लगता है कि हम बरसों के शनासा हैं। ऐसे हम-रंग और हम-मिज़ाज से मिलना मेरे लिए एक ख़ुशगवार अनुभव रहा।
फ़रहत एहसास के मिज़ाज की क़लन्दरी बेबाक़ी और बज़्लासन्जी, उन्हें हरदिल अज़ीज़ बनाती है। फ़रहत एहसास की दिलचस्पियाँ सिर्फ़ शाइरी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, धर्मशास्त्र, अध्यात्म, मौसीक़ी और फ़लसफ़े पर उनसे बातचीत एक रौशनी अता करती है। इसके अलावा उनका खुला-डला तर्ज़, व्यापकता और इनसान-दोस्ती का रवैया मेरे लिए ज़ाती तौर पर बहुत मुतास्सिर करनेवाला रहा।
ये मेरी ख़ुशबख़्ती है कि मुझे एक ऐसे शाइर और एक ऐसे इनसान से मिलने, उसके साथ वक़्त गुज़ारने और उनकी शाइरी और शख्स़ियत को इतने क़रीब से जानने का मौक़ा मिला। उम्मीद है कि उर्दू शाइरी के बाज़ौक़ पाठकों में हमारी ये पेशकश भी मक़बूल होगी।
Apurna Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
K. Satchidanandan
- Book Type:

- Description: अपूर्ण और अन्य कविताएँ के. सच्चिदानन्दन की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का एक महत्त्वपूर्ण संकलन है। इसके पहले उनकी कविताओं के दो हिन्दी संकलन ‘के. सच्चिदानन्दन की कविताएँ’ और ‘वह जिसे सब याद था’ प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत संकलन में मुख्यत: वे कविताएँ संगृहीत हैं जो यात्रानुभवों और प्रेम से सम्बद्ध हैं। एक लम्बी कविता ‘अपूर्ण’ इन दो विषयों को अनुस्यूत करती हैं : यह कविता स्टॉकहोम, दिल्ली और पेरिस में लिखी गई थी। 'उत्तरकांड' चीन पर लिखी कविताओं की शृंखला है—और यह ध्यान पर एकाग्र है। अध्यात्म, प्रेम, प्रकृति, राजनीति और कविताएँ सभी कविता के पाठ में शामिल हैं। ‘उत्कल’ और ‘हम्पी में शामें’—केवल स्थान विशेष का विवरण मात्र नहीं, बल्कि स्मृति और कल्पना से संघनित हैं। कवि की प्रेम कविताओं में जहाँ असाधारण तीव्रता है वहाँ समय की निरन्तर उपस्थिति को लक्ष्य किया जा सकता है। —संग्रह की अधिकांश कविताएँ हमारे समय के आक्रोश, बिखराव और विद्रोह को व्यक्त करती हैं। ये कविताएँ अपनी कल्पना-शक्ति, प्रखर अनुभूति, ध्यानपरकता और व्यंग्य-भाव के लिए जानी जाएँगी।
Upshirshak
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
कुमार अम्बुज की ये कविताएँ अभूतपूर्व गहराई के साथ इस महाद्वीप के संकटग्रस्त, दुरभिसन्धि-युक्त जीवन और इसमें जी रहे मनुष्य की मुकम्मल अभिव्यक्तियाँ हैं। जो चीज़ें ओट और अँधेरे में रखी जा रही हैं, उन्हें प्रकाशित करते हुए ये उनकी अचूक पहचान करती हैं। उन सत्ता-शक्ति संरचनाओं और प्रविधियों को भी स्पष्टता से उजागर करती हैं जो नागरिकों को नयी दासता, असहिष्णुता और अमानुषिकता में धकेलने की कोशिश कर रही हैं।
इनमें दैनिक जीवन से उपजा, समकालीन यथार्थ में दूर तक पैठनेवाला एक नया, बहुआयामी शब्द-संसार दिखाई देगा। यहाँ सामाजिक-राजनीतिक चेतना और ऐतिहासिक समझ के साथ एक भविष्य-दृष्टि लगातार सक्रिय है। ये अपनी प्रखर काव्यात्मकता क़ायम रखते हुए, दख़ल और प्रतिरोध की जुझारू ज़मीन तैयार करने का साहस दिखाती हैं। प्राकृतिक और राजनीतिक आपदाओं का फ़र्क़ रेखांकित करती हैं। इनमें लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के पक्ष में एक अथक, असमाप्त जिरह है।
इनमें वंचितजन की हताशा, जिजीविषा और उनके कारणों की अनवरत पड़ताल है। यहाँ रागात्मक, पारिवारिक सम्बन्धों, प्रेम, विस्थापन, अकेलेपन और अस्मिता की मार्मिक कविताओं में भी सभ्यता की अन्वेषी समीक्षा निहित है। अपने दृष्टिसम्पन्न शिल्प से ये, कविता की लिजलिजी, रूमानी और रूढ़ पदावलियों की परिधि तोड़ देती हैं। स्मृति, मृत्यु, संत्रास, न्याय, आशा और अस्तित्व के प्रश्नों को ये किसी विस्मयकारी अलौकिकता से नहीं बल्कि अविस्मरणीय लौकिक ढंग से सम्बोधित करती हैं।
व्यापक आशयों की इन रचनाओं से गुज़रते हुए समाज एवं मनुष्यता के प्रति असीम चिन्ता और लगाव का आवेग महसूस किया जा सकता है और यही इन कविताओं का आख्यान और इनका वास्तविक उपशीर्षक भी है। अर्थगर्भी भाषा का यह आत्मानुशासन बहुआयामी नैतिकता, बौद्धिकता और प्रतिबद्धता से उपजता है।
सहधर्मी कलाओं से संवादरत और विषय-वैविध्य से भरी ये कविताएँ हमारे समय में ‘विडम्बना के नए वृत्तांत’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का भी उदाहरण हैं। ये कविता की नई ताक़त, अनन्यता और प्रौढ़ता का सबूत हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...