Clymet Change
Author:
Sharad SinghPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
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ISBN: 9789390593071
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सामान्यत: ‘रीतियुग के कवि’ से तात्पर्य रीतिमुक्त एवं रीतिभुक्त कवियों से है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से उन्हें ही आलोच्यकाल का प्रतिनिधि कवि माना गया है।
कवि भावलोक का प्राणी होता है। युग–जीवन उसके सृजन में प्रतिबिम्बित अवश्य होता है, किन्तु उसके चित्र को सम्यक् एवं पूर्णरूप से देखने के लिए काव्येतर स्रोतों से विवेच्य काल की सामाजिक परिस्थितियों का ज्ञान अपेक्षित है। इस दृष्टिकोण से पहले अध्याय में काव्येतर स्रोतों से तत्कालीन समाज की प्रतिमा निर्मित करने का प्रयास किया गया है। दूसरे अध्याय से काव्य–स्रोतों के आधार पर तत्कालीन समाज का अध्ययन आरम्भ होता है जिसमें समाज की सामान्य रचना को लिया गया है। इसमें समाज के भौतिक एवं धार्मिक विभाग, हिन्दुओं की वर्णाश्रम व्यवस्थाएँ और पारिवारिक रचना अन्तर्भुक्त हैं। तीसरे अध्याय में तत्कालीन समाज के राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन को देखने का प्रयत्न किया गया है। चौथे अध्याय में रहन–सहन के अन्तर्गत मानव जीवन की मूल आवश्यकताएँ, असन–वसन–आवास, और मनुष्य के सहज सौन्दर्यबोध से परिचालित शृंगार–प्रसाधन और अलंकरण के उपविभाग हैं। पाँचवें अध्याय में लोकजीवन के उल्लास एवं आह्लाद को वाणी देनेवाले संस्कार–पर्वादि का विवेचन किया गया है। छठे अध्याय में रीतिकालीन काव्य में चित्रित समाज के नारी–सम्बन्धी दृष्टिकोण की विवेचना की गई है। सातवें अध्याय में आलोच्यकाल के उन विश्वासों एवं प्रत्ययों का अध्ययन किया गया है जो हिन्दू जाति को एक अलग व्यक्तित्व और विवेच्य युग को अलग सत्ता प्रदान करते हैं। इसे जीवन–दृष्टि के नाम से अभिहित किया गया है, जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित युग की विभिन्न प्रवृत्तियों, धर्म एवं धर्माभास, विश्वासों एवं अज्ञात आधारवाले विश्वासों, कर्मफलवाद, भाग्यवाद व पुनर्जन्म एवं सांस्कृतिक समन्वय आदि हैं।
सात अध्यायों में विभाजित शशिप्रभा प्रसाद की महत्त्वपूर्ण आलोच्य कृति है ‘रीतिकालीन भारतीय समाज’। अध्येताओं, शोध–छात्रों एवं पुस्तकालयों के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक।
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