Nai Konplen
Author:
Motilal AlamchandraPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
Book
ISBN: 9789387310728
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: बेर भीलनी के' काव्य की रचना खण्डशः हुई है। राम-कथा में भीलनी का प्रसंग युग सापेक्ष तथा मनोनुकूल प्रतीत होता है। भगवान् राम ने दरिद्रनारायण भक्त को गले से लगाया, अपने कर-कमलों से उसके आँसू पोंछे तथा द्रवीभूत हुए इसका सम्पूर्ण जीवन्त निदर्शन भीलनी प्रसंग में प्राप्त हो जाता है। शूद्रा भीलनी के प्रति राम की करुणा,धर्म का अस्पष्ट रूप तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने की ललक, तथा लोकेषणा इन सब तत्त्वों ने मिलकर 'बेर भीलनी के' खण्ड काव्य के सृजन को बल प्रदान किया है। प्रत्येक रचना का अपना एक प्रयोजन हुआ करता है। रचना के पीछे भी निश्चित ही प्रयोजन-दृष्टि रहती है। इसमें निम्नवर्ग की एक साधारण स्त्री के आत्मिक एवं आध्यात्मिक संघर्ष की ऐसी कथा है, जो रामायण के शीर्षस्थ पात्रों, चरित्रों में भी अपनी पहचान बनाये रखती है। रामायण में प्रयुक्त अन्य साधारण पात्र, अपनी प्रयुक्ति के बाद रचना के गतिशील फलक में विलीन हो जाते हैं परन्तु शबरी जिस क्षण वाल्मीकि के द्वारा राम-गाथा में प्रयुक्त होती है उस समय तक वह अत्यन्त उच्च भाव-भूमि प्राप्त किये हुए होती है। रचनात्मक प्रयुक्ति के क्षण में शबरी के लिए राम स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। साधना की यह परावस्था ही शबरी को सारे रामायणकालीन पात्रों में विशिष्ट बनाती है। कवि की मानवीय दृष्टि ने ही शबरी के साधारणत्व को असाधारणत्व प्रदान किया। जिस युग की यह कथा है उस समय सामाजिक स्तर पर भले ही वर्ण-व्यवस्था का विधान रहा हो पर व्यक्ति, कर्म के द्वारा वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा कर सकता था। 'बेर भीलनी के' की कथा में भी यही वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा है। यह ठीक है कि इसके लिए व्यक्ति को संघर्ष करना ही होता था। जिस समाज में हम रह रहे हैं उसमें वर्ग-व्यवस्था प्रधान है। वर्ग-मुक्त होने की हमारी सबसे प्रमुख समस्या है। सामाजिक वर्ग-व्यवस्था और वैयक्तिक कर्म विधान में एकता की चेष्टा सदा से कवि, विचारक, दार्शनिक और सधारक होते आये हैं। आज की वर्ग-व्यवस्था वाली सामाजिकता का श्रम-विधान के द्वारा सुलझाने की चेष्टा निरन्तर की जा रही है। हमारा समाज श्रम और कर्म दोनों ही क्षेत्रों में वैसे ही भटक गया है जैसे कि तपते मरुस्थल में कोई साथी खो जाता है। 'इस छोटे से खण्डकाव्य में मैं अपनी बात को केवल संकेत में ही कह सका हूँ क्योकि मुख्य रूप से इसे किसी इतर प्रयोजन के लिए ही मुझसे लिखवाया गया, छन्दोबद्ध भी लिखा तथा रचना की संरचना में वैचारिकता भी कम ही आने दी। फिर भी अपने मूल प्रयोजन में यह रचना भी मेरे कवि का उतना ही प्रतिनिधित्व करती है जितनी की अन्य काव्य-कृतियाँ।
Nind Thi Aur Raat Thi
- Author Name:
Savita Singh
- Book Type:

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Description:
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में एक स्तर पर जहाँ सविता सिंह के उन सरोकारों और विश्व-दृष्टि की निरन्तरता है जिनके कारण पिछले संग्रह ‘अपने जैसा जीवन’ को विपुल सराहना मिली, तो अन्य स्तरों पर उस अनूठे और स्वाभाविक विकास की अद्भुत छवियाँ भी हैं जिसकी जड़ें हमारे संश्लिष्ट यथार्थ में बसती हैं। पिछली सदी के नवें दशक में काव्य-सक्रियता की शुरुआत करनेवाली सविता सिंह की रचनाओं ने स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से संयुक्त सांस्कृतिक बोध के लिए हमारी भाषा में नई जगह बनाई है और हिन्दी कविता के समकालीन सौन्दर्यशास्त्र को सम्भावना के नए इलाक़े में पहुँचाया है, यह कहना अतिकथन नहीं लगता क्योंकि न्याय, शक्ति और क्षमता के लिए संघर्ष करनेवाली नई स्त्री के अनुभवों, स्वप्नों और सामर्थ्य से पूर्ण होती ये कविताएँ न सिर्फ़ नई उम्मीदों की तरफ़ जाती हैं, बल्कि एक प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक क्षतिपूर्ति का भरोसा भी दिलाती हैं।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में आकुल यथार्थ और स्वप्नमयता का द्वन्द्व है जिसकी गतिमानता हमारे समय के मानवीय मूल्यों वाले यथार्थ को विकृत करनेवाली या कि उसके रूपों को धुँधला करनेवाली ताक़तों के ख़िलाफ़ बड़ी सावधानी से अपना काम करती है। ये कविताएँ काफ़ी कुछ तोड़ती हैं, लेकिन तोड़ने के पश्चात् या कई बार ज़रूरत होने पर उसके साथ-साथ ही, रचती भी चलती हैं। इस दुहरी ज़िम्मेदारी वाली सक्रियता के ज़रिए सविता सिंह की कविताएँ हिन्दी जाति के सामूहिक मन का, उस मन के मर्म का, पुनर्संस्कार करती हैं—आत्मविश्वास से दीप्त विनम्रता के साथ, जिसमें दृष्टि की सफ़ाई और उद्देश्य की दृढ़ता प्रभुतावादी सत्ताओं के वर्चस्व को ही नहीं, कई बार उनके छल-भरे उदार-भाव को भी नेस्तनाबूद करने पर आमादा दीखती हैं।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में पीड़ा और अवसाद का भाव भी दम तोड़ता आख़िरी अहसास नहीं है, बल्कि अपने आवेग-संवेग से हमें आत्मा के उस सूने में ले जाता है जहाँ शायद हम कभी गए न थे और सच के वे बिम्ब पाए न थे जो अचानक ख़ुद को वहाँ प्रकट करने लगते हैं। इन कविताओं में प्रकृति, समय के स्त्रीकरण और ऐसी ही अन्य प्रविधियों के माध्यम से अपने ‘आत्मचेतस आत्मन्’ के आविष्कार की कोशिश है।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में स्त्री-विमर्श की तर्कशीलता का काव्यात्मक आभ्यन्तर, स्त्री-अस्मिता की पीड़ा, उदग्र ऐन्द्रीयता, सान्द्रता और संघर्ष सहजता की जिस ज़मीन पर उजागर हुए हैं, वह सचमुच नई खोज और आश्वस्ति की ज़मीन है।
Hashiye Ka Haq
- Author Name:
Nilima Sharma +3
- Book Type:

- Description: Book
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