Tum Hi Main Hoon
Author:
Aditya ShrivastavaPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
Book
ISBN: 9789387310742
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Siyaram Mishra
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- Description: बेर भीलनी के' काव्य की रचना खण्डशः हुई है। राम-कथा में भीलनी का प्रसंग युग सापेक्ष तथा मनोनुकूल प्रतीत होता है। भगवान् राम ने दरिद्रनारायण भक्त को गले से लगाया, अपने कर-कमलों से उसके आँसू पोंछे तथा द्रवीभूत हुए इसका सम्पूर्ण जीवन्त निदर्शन भीलनी प्रसंग में प्राप्त हो जाता है। शूद्रा भीलनी के प्रति राम की करुणा,धर्म का अस्पष्ट रूप तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने की ललक, तथा लोकेषणा इन सब तत्त्वों ने मिलकर 'बेर भीलनी के' खण्ड काव्य के सृजन को बल प्रदान किया है। प्रत्येक रचना का अपना एक प्रयोजन हुआ करता है। रचना के पीछे भी निश्चित ही प्रयोजन-दृष्टि रहती है। इसमें निम्नवर्ग की एक साधारण स्त्री के आत्मिक एवं आध्यात्मिक संघर्ष की ऐसी कथा है, जो रामायण के शीर्षस्थ पात्रों, चरित्रों में भी अपनी पहचान बनाये रखती है। रामायण में प्रयुक्त अन्य साधारण पात्र, अपनी प्रयुक्ति के बाद रचना के गतिशील फलक में विलीन हो जाते हैं परन्तु शबरी जिस क्षण वाल्मीकि के द्वारा राम-गाथा में प्रयुक्त होती है उस समय तक वह अत्यन्त उच्च भाव-भूमि प्राप्त किये हुए होती है। रचनात्मक प्रयुक्ति के क्षण में शबरी के लिए राम स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। साधना की यह परावस्था ही शबरी को सारे रामायणकालीन पात्रों में विशिष्ट बनाती है। कवि की मानवीय दृष्टि ने ही शबरी के साधारणत्व को असाधारणत्व प्रदान किया। जिस युग की यह कथा है उस समय सामाजिक स्तर पर भले ही वर्ण-व्यवस्था का विधान रहा हो पर व्यक्ति, कर्म के द्वारा वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा कर सकता था। 'बेर भीलनी के' की कथा में भी यही वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा है। यह ठीक है कि इसके लिए व्यक्ति को संघर्ष करना ही होता था। जिस समाज में हम रह रहे हैं उसमें वर्ग-व्यवस्था प्रधान है। वर्ग-मुक्त होने की हमारी सबसे प्रमुख समस्या है। सामाजिक वर्ग-व्यवस्था और वैयक्तिक कर्म विधान में एकता की चेष्टा सदा से कवि, विचारक, दार्शनिक और सधारक होते आये हैं। आज की वर्ग-व्यवस्था वाली सामाजिकता का श्रम-विधान के द्वारा सुलझाने की चेष्टा निरन्तर की जा रही है। हमारा समाज श्रम और कर्म दोनों ही क्षेत्रों में वैसे ही भटक गया है जैसे कि तपते मरुस्थल में कोई साथी खो जाता है। 'इस छोटे से खण्डकाव्य में मैं अपनी बात को केवल संकेत में ही कह सका हूँ क्योकि मुख्य रूप से इसे किसी इतर प्रयोजन के लिए ही मुझसे लिखवाया गया, छन्दोबद्ध भी लिखा तथा रचना की संरचना में वैचारिकता भी कम ही आने दी। फिर भी अपने मूल प्रयोजन में यह रचना भी मेरे कवि का उतना ही प्रतिनिधित्व करती है जितनी की अन्य काव्य-कृतियाँ।
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