Khud Se Jirah
Author:
Vinod DavidPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Book
ISBN: 9789387310513
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Jyamiti
- Author Name:
Shanti Nair
- Book Type:

- Description: भारतीय स्त्री-कविता को बहुत दिनों से तलाश थी एक ऐसे स्त्री-स्वर की जिसके लेखन में निराला की नायिका पूरे ठस्से के साथ हँसती दिखाई दे, सबको दाँव देती हुई-सी हँसी। शान्ति नायर के कविता-संग्रह ‘ज्यामिति’ की कविताओं में सबको दाँव देती उसी हँसी का ताना-बाना मुझे विस्मय-विमुग्ध कर गया। उनमें बृहत्तर जगत के सरोकार अधिक मुखर और स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, पर कविता की व्यंजना शक्ति की तिलांजलि दिये बग़ैर। संग्रह की ‘मैच द फ़ॉलोइंग’, ‘संजीवनी’, ‘दूध फटना’, ‘अनुष्ठान’ जैसी कविताओं में हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन की समस्त विडम्बनाएँ जिस सजग बाँकपन के साथ व्यक्त हैं, वह किसी को भी एक झटके में उठाकर बैठा सकती हैं। ‘ट्रैफ़िक जाम’ कविता भास्वर प्रमाण है इस बात का कि पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय स्त्रियों पर अब कोई यह अभियोग लगा नहीं सकता कि दमित वर्गों-वर्णों की स्त्रियों का दुख उनके निजी दुखों में शामिल नहीं। चौके-चूल्हे, पास-पड़ोस, हाट-बाज़ार, दैनन्दिन जीवन के अन्य जीवंत प्रसंगों से धारोष्ण बिम्ब उठाकर जैसे भक्त-कवयित्रियाँ ध्वनि और रस-बोध से उच्छल कविताएँ सहज ही रच देती थीं, शान्ति नायर भी घरेलू बिम्बों को अद्भुत दार्शनिक उठान दे लेती हैं—‘अनिद्रा’ कविता में उदासीनता में ख़मीर का उठकर रात की सीमा के पार फूल जाना एक ऐसा बिम्ब है जो स्त्री ही साध सकती है। इसी तरह ‘पुट्टू’ कविता में तैयार पुट्टू को साँचे के बाहर कर देने की ख़ातिर जो धक्का दिया जाता है, उसका मर्म स्त्री, एक समधीत स्त्री ही समझ सकती है जो घर के काम ही नहीं करती, सब कामों से समय चुराकर पढ़ती भी है, जिसमें यह समझने की भी विलक्षण प्रज्ञा है कि जीवन की असल चुनौती है ज्ञान का संज्ञान में बदलना। दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना—कैसे—यह आपको शान्ति नायर की कविताएँ बख़ूबी समझा देती हैं। स्त्री की पसलियों का ‘लाड़ला दर्द’, ‘कर्तव्य के बिछावन’ पर यहाँ कुनमुनाकर सोता है पर नींद में मुस्कुराता हुआ।
Raho Tum Nakshatra Ki Tarah
- Author Name:
Monalisa Zena
- Book Type:

-
Description:
‘भारतीय भाषाओं की विचार-सम्पदा, सृजन-सम्पदा, कला-चिन्तन आदि हिन्दी में लगातार प्रस्तुत करना रज़ा पुस्तक माला का एक ज़रूरी हिस्सा है। सौभाग्य से हिन्दी में दूसरी भाषाओं के प्रति खुलेपन और ग्रहणशीलता की लम्बी परम्परा रही है। हमारा प्रयत्न अपने समय और परिसर में इस परम्परा को सजीव-सशक्त बनाने का है। मोनालिसा ज़ेना ओड़िया की समकालीन कवयित्री हैं : उनकी कविता की सहज ऐन्द्रियता और निर्भीकता, प्रेम का उनका निस्संकोच अन्वेषण, परम्परा से उलझने का उनका जीवट आदि ऐसे गुण हैं जो उनकी कविता को, कई अर्थों में, विशिष्ट बनाते हैं। उनका हिन्दी अनुवाद में यह संग्रह हम सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।”
—अशोक वाजपेयी
Sampoorna Kavitayein : Kumar Vikal
- Author Name:
Kumar Vikal
- Book Type:

-
Description:
कुमार विकल राजनीतिक कवि हैं। उनकी कविता पढ़ते हुए पाठकों को स्वाधीनता के बाद की भारतीय राजनीति की कुछ अत्यन्त भयावह वास्तविकताओं और त्रासद स्थितियों की संवेदनशील पहचान मिलती है। उनकी कविताओं में आपातकाल के गहरे आतंक के दिल दहलाने वाले चित्र हैं, नक्सलबाड़ी आन्दोलन के ख़ूँख़्वार दमन की विभीषिका की अभिव्यक्ति है और पंजाब में आतंक के राज से उपजी दहशत की ख़बरें हैं। लेकिन वे राजनीतिक घटनाओं के ब्यौरों पर नहीं, उनके सामाजिक अभिप्राय, जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और मनुष्य के लिए उनके अर्थ के बारे में लिखते हैं।
इन कविताओं से गुज़रते हुए यह भी मालूम होता है कि कुमार विकल को हर तरह के छद्म और पाखंड से चिढ़ है; वह चाहे समाज में हो, साहित्य में हो या रचना की भाषा में। इस छद्म को उघाड़ने की वे बार-बार कोशिश करते हैं। उन्हें कविता की ताक़त पर बहुत भरोसा रहा इसलिए उन्होंने नए अनुभवों, नए अर्थों और नए भाषिक रचाव के लिए संघर्ष करनेवाली कविताएँ लिखीं, लेकिन वे अपने समय और समाज में कविता की सीमाएँ भी जानते थे, इसलिए ‘अपनी कविता से बाहर’ ‘कविता से कोई बड़ा हथियार’ गढ़ने की बात भी करते हैं।
कुमार विकल की कविता एक बेचैन मन की कविता है। यह बेचैनी जितनी राजनीतिक है उतनी ही नैतिक भी है। वे एक ओर भारत में फैलते वनतंत्र में साधारण आदमी को लगातार असुरक्षित देखकर बेचैन होते हैं तो दूसरी ओर सुरक्षा की चाहत के शिकार मनुष्य की मरती हुई मनुष्यता भी उन्हें व्याकुल करती है!
उनकी सम्पूर्ण कविताओं की यह प्रस्तुति निश्चय ही कविता-प्रेमी पाठकों के लिए एक उत्तेजक अनुभव सिद्ध होगी।
Pani Ka Patthar
- Author Name:
Mangalesh Dabral
- Book Type:

-
Description:
पहाड़, पत्थर और पानी की स्मृतियों को टटोलतीं और शहरी जीवन के मैदानी बीहड़ में मनुष्यता के चिन्हों को अंकित करतीं मंगलेश डबराल की ये कविताएँ उनके कवि-मन की श्रमशील रचनात्मकता की साक्षी हैं।
यह संग्रह उनके जाने के बाद संकलित किया गया है। जो कविताएँ इसमें शामिल हैं उनमें कई कविताएँ ऐसी हैं जिन पर वे अभी काम कर रहे थे, और कुछ शायद ऐसी जो पहली कौंध में अभी उतारना शुरू ही हुई थीं, जिन्हें वे अभी और विस्तार देते, लेकिन अपने मौजूदा स्वरूप में भी उन्हें सम्पूर्ण कहा जा सकता है।
भाषा के संयमित व्यवहार और विचार के पक्ष में अपनी जिस दृढ़ता के लिए उनकी कविताओं को जाना जाता है, उनका निर्वाह करते हुए ये कविताएँ उनकी राजनीतिक-सामाजिक पक्षधरता को भी रेखांकित करती हैं।
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यहाँ संग्रहित कविताओं-कवितांशों में मंगलेश जी की अपनी पहचान रहीं तमाम विशेषताओं के चिह्न मौजूद हैं, साथ ही ये संग्रह उनकी रचना-प्रक्रिया का भी कुछ पता हमें देता हैं। उनके होने न होने के अन्तराल में उनकी अनुपस्थिति को झुठलाती और उनके अवदान का साक्ष्य देती इन कविताओं की गूँज देर तक बनी रहती है।
Life Trials
- Author Name:
Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
- Book Type:

- Description: Shri Ramesh Pokhriyal "Nishank", like all romantic poets, is generally a poet who is strong-willed and intelligent and possesses an unusually subtle mind. While going through his poetry and nature poetry, we see nature sympathetically with unusual unreputable emotional responses. Moreover, it stands in sharp contrast to rationalistic moods. Nishank is fond of personifying nature and is desirous of associating with the beauteous forms of the world that coexist with the laws and order of the universe. When Nishank fuses scientific and religious notions, he proposes a metaphysical idea adapted to the cosmos' natural design. Hence, through this choicest collection of his poems, Nishank agrees with the universal phenomenon that nature provides an influence which spontaneously refines and purifies the soul of the human generation. A "must-read" collection of representative poems of Shri Nishank.
Bhasmankur
- Author Name:
Nagarjun
- Rating:
- Book Type:

- Description: भगवान शिव के क्रोध का लक्ष्य होकर काम भस्म हो जाता है। सम्पूर्ण देव-जगत और ब्रह्मा ने उसे भेजा था ताकि वह तपस्या-रत शिव को पार्वती के सौंदर्य की ओर प्रवृत्त कर सके और दोनों के मिलन से उत्पन्न संतान देवगण का नेतृत्व कर उपद्रवी तारकासुर को समाप्त कर सके। वसंत काम के साथ इसी कार्य की सिद्धि के लिए कैलास गया था।यह एक लम्बी कथा है जिसका केवल एक अंश— कैलास पर वसंत के अकस्मात आविर्भाव से लेकर काम के भस्म होने और तद्नंतर रति के विलाप की प्रतिक्रिया में मनुष्य मात्र को आश्वस्त करने वाली आकाशवाणी तक—यही ‘भस्मांकुर’ की विषयवस्तु है। इतनी-सी कथा को इस काव्य के केंद्र में रखकर नागार्जुन ने अपनी लोकदृष्टि,गहन सामाजिक सम्पृक्ति और उदात्त आशाबोध के साथ बड़े और व्यापक अर्थों में पाठक तक पहुँचाया है। काम के पुनरुद्भव,उसके भस्म से अंकुरित होने को उन्होंने मानव-जीवन के सातत्य से जोड़ा है। यह काम ही है जो सृष्टि का,जिजीविषा का और कामना का मूल है। बरवै छंद में एक हजार पंक्तियों में अनुस्यूत यह रचना नागार्जुन की उत्कृष्ट कृतियों में गिनी जाती है।
Assi Ghat Ka Bansuri Wala
- Author Name:
Tajendra Singh Luthra
- Book Type:

-
Description:
चाहता हूँ/अकेला हो जाऊँ/कोई
आसपास न रहे/ज्यादा देर तक/
आए और चला जाए/अपने आप।
तजेन्दर सिंह लूथरा की कविताओं में ‘अनायासता’ का यह स्वर कई स्तरों पर दिखाई पड़ता है। वे सायास कवि नहीं होना चाहते; न आई हुई कविता को अतिरिक्त प्रयास से गढ़ने-बनाने की कोशिश करते हैं; सामने से गुजरते हुए जीवन व संसार की जिस-जिस छवि को पकड़ते हैं, उसे हूबहू उसी रूप में पाठक के सामने रखने की उनकी इच्छा ही उनकी काव्य-कला है। इसके चलते कई बार अनुभूतियों के जो बिम्ब कुछ अनगढ़ रूप में दिखाई पड़ते हैं, वे दरअसल एक भीतरी तराश का ऊपरी आवरण हैं, जो पाठक को धीरे-धीरे अपने भीतर उतरने के लिए आमंत्रित करते हैं।
घर से लेकर महानगर तक के विस्तार में विचरण करती उनकी काव्य-संवेदना जीवन की हर उस विकलता का नोटिस लेती है, जिसका प्रभाव मनुष्य की नियति पर पड़ता है या पड़ सकता है। संग्रह में शामिल कविता ‘मुझे जीने दो’ की यह पंक्ति ‘मैं इतना सार्वजनिक हो गया/कि मुझे मेरे सिवा सब पहचानने लगे थे।’ सार्वजनिक स्पेस की आक्रामकता के बीच मौजूद व्यक्ति की पीड़ा का अचूक रेखांकन है।
यह कवि का पहला कविता-संग्रह है, लेकिन कविता-प्रेमियों के लिए उनका कवि-व्यक्तित्व और उनकी कविताएँ अपरिचित नहीं हैं। इस संग्रह में शामिल ‘अस्सी घाट का बाँसुरी वाला’, ‘जैसे माँ ठगी गई थी’ और ‘एक साधारण शवयात्रा’ जैसी कविताओं ने बराबर सुधी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है; और अपनी नवीन दृष्टि और पर्यवेक्षण के चलते उनकी याददाश्त में स्थायी जगह बनाई है।
उम्मीद है, कविता का यह नया रंग पाठकों को ताजगी प्रदान करेगा।
Neerja
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: महादेवी वर्मा की हिन्दी काव्य-यात्रा में परिपक्वता की दृष्टि से 'नीरजा' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व भाषा में एक समर्थ कवि बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार, “ ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया, मुझमें और मैंने मानो दिशा भी पा ली है।”
Agnigarbh : Hindi Ki Vigyan Katha-Kavitayen
- Author Name:
Hemant Dwivedi
- Book Type:

- Description: विज्ञान कथा-कविता का सरल मतलब है विज्ञान+कथा+कविता। क्लासिक परिभाषा के अनुसार कविता के दो तत्त्व हैं—विज्ञान और कथा, यानी नैरेशन, जो भविष्योन्मुखी है। अन्य विद्वानों का मत है कि वैज्ञानिक थीम्स को काल्पनिक प्रसंगों में प्रयुक्त करनेवाली कविता विज्ञान कथा-कविता है। मुख्यधारा की कविता व्यक्तिगत जीवन एवं अनुभव पर ज़्यादा आधारित है, जबकि विज्ञान कथा-कविता अनुभव के बजाय कविता से अधिक नाता रखती है। परन्तु अब यह विवाद नहीं रहा। इसमें फन्तासी, हॉरर, स्पेकुलेटिव, बर्हिवेशी कथाएँ आदि से सम्बन्धित सभी वर्ण्य विषय शामिल हैं। ‘अग्निगर्भ’ में मानवीय संवेदना की यथार्थ, विज्ञान और कल्पना से जो भिडंत हुई है, वह इसे उत्कृष्ट कविता-पुस्तक बनाती है। ‘अग्निगर्भ’ के पहले खंड की कविता ‘चश्मदीद’ तथा दूसरे खंड की लम्बी कविताएँ ‘प्रेत-भूमि’, ‘पूर्णिमा की रात’, ‘एक और संजय’ तथा ‘उड़नतश्तरी’ विशेष रूप से उल्लिखित हैं। कुल मिलकर यह हेमंत द्विवेदी का अद्भुत, अकल्पनीय और आश्चर्यजनक रचना-संसार है।
Tap Ke Taye Huye Din
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

-
Description:
त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील हिन्दी कविता के दूसरे दौर के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवियों में से हैं। इस कविता के पहले दौर के कवियों—मसलन पंत, निराला, नरेन्द्र, सुमन आदि ने छायावादी कविता के अन्तर्विरोधों को परिणति तक पहुँचाकर उसे यथार्थवादी भूमि पर उतार दिया था। प्रगतिशील कविता के दूसरे दौर के कवि मसलन—केदार, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन और मुक्तिबोध ने हिन्दी कविता को यथार्थ की भूमि पर निरन्तर विकसित किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि यही यथार्थवादी कविता छायावादोत्तर हिन्दी कविता में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धारा है। इस धारा में त्रिलोचन का योगदान अपरिमित और ऐतिहासिक है।
त्रिलोचन जीवन-संघर्ष और जीवन-सौन्दर्य के अप्रतिम कवि हैं। उनकी कविता में चित्रित संघर्ष और सौन्दर्य केवल उनका नहीं, बल्कि उस हिन्दीभाषी जाति का संघर्ष और सौन्दर्य है, जिसे देखने और पहचानने की क्षमता हिन्दी कविता के आधुनिकतावादी माहौल में लगातार खोती गई है। त्रिलोचन ने न केवल उसे देखा और पहचाना, बल्कि उससे वैसा आन्तरिक लगाव स्थापित किया, जैसा कविता में तुलसीदास और निराला तथा गद्य में प्रेमचन्द जैसे कथाकारों में ही देखने को मिलता है। प्रगतिशील कवि त्रिलोचन ने प्रचलित अर्थ में राजनीतिक कविताएँ बहुत कम लिखी हैं पर राजनीति की मूल्यपरक गहरी चेतना निस्सन्देह उनकी कविता को सदा अनुप्राणित करती रही। उनकी कविता इस बात का प्रमाण है कि प्रगतिशील कविता कोई संकीर्ण और एकपक्षीय कविता नहीं, बल्कि ऐसी कविता है जिसमें जीवन की तरह ही व्यापकता और विविधता है, प्रकृति की तरह ही रंग-बिरंगापन है।
त्रिलोचन ने ग़ज़ल, रुबाई, सॉनेट जैसे हिन्दीतर कविता के क्लासिकीय काव्य-रूपों में भी कविता रची है और हिन्दी के नए-पुराने काव्य-रूपों तथा छन्दों में भी। उनकी विशेषता यह है कि वे काव्य-रूप की स्थिरता और सार-तत्त्व की गतिशीलता के द्वन्द्व से कविता में एक ऐसे वेग और शक्ति की सृष्टि करते हैं जिनकी मिसाल हिन्दी कविता में केवल ‘निराला’ में सुलभ है। क्लासिकीय अनुशासन और आधुनिक स्वच्छन्दता त्रिलोचन की अपनी पहचान है। तुलसीदास ने संस्कृत शब्दों के योग से अवधी भाषा को उन्नत किया था, त्रिलोचन ने अवधी भाषा के योग से खड़ी बोली को रस से भर दिया है। उनकी हीरे की तरह कठोर और दीप्तिपूर्ण काव्य-भाषा अवधी की देशी खांड-जैसी मिठास से युक्त है। ताज्जुब की बात नहीं कि प्रगतिशील हिन्दी कवियों की नवीनतम पीढ़ी त्रिलोचन जैसे कवियों के दाय को समझने और आत्मसात् करने की दिशा में ललक और लगन के साथ बढ़ रही है।
—नन्दकिशोर नवल
Gitanjali
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

- Description: गीतांजलि’ महान् रचनाकार नोबल पुरस्कार विजेता कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर का प्रसिद्ध महाकाव्य है। एक शताब्दी पूर्व जब इसकी रचना हुई, तब भी यह एक महाकाव्य था और एक शताब्दी के बाद भी यह महाकाव्य है तथा आनेवाली शताब्दियों में भी यह एक महाकाव्य ही रहेगा। इस महाकाव्य की उपयुक्तता तब तक रहेगी जब तक मानव सभ्यता जीवित है। उन्नीसवीं सदी में विश्व साहित्य के क्षेत्र में भारतीयों की पहचान इस महाकाव्य के माध्यम से हुई। यह महाकाव्य हर भारतीय की अनुभूतियों से अंतरंग रूप से जुड़ा है। यह अपने आप में एक अनूठा महाकाव्य है, जो साधारण व्यक्ति से लेकर प्रकांड विद्वान् के लिए समान रूप से प्रेरणादायी है। इस काव्य की रचना न किसी विशेष समाज, प्रांत या देश विशेष के लिए है। यह महाकाव्य मानव संस्कृति एवं सभ्यता के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। किसी महाकाव्य का अनुवाद दूसरी भाषा में करना तथा उसी भाषा में उसका शाब्दिक अर्थ मात्र करना काफी नहीं होता। अनुवाद से पूर्व यह आवश्यक है कि उस महाकाव्य में अंतर्निहित भावों को समझकर सम्यक् रूप में उसका मंथन किया जाए। गीतांजलि, जिसका अनुवाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं एवं सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है, ऐसे महाकाव्य का फिर से अनुवाद करने का साहस जुटाना अपने आप में अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है।
Phir Meri Yaad
- Author Name:
Kumar Vishwas
- Rating:
- Book Type:

- Description: ‘कोई दीवाना कहता है’ काव्य-संग्रह के प्रकाशन के 12 वर्षों बाद प्रकाशित हो रहा ‘फिर मेरी याद’ कुमार विश्वास का तीसरा काव्य-संग्रह है। इस संग्रह में गीत, कविता, मुक्तक, क़ता, आज़ाद अशआर— सबकी बहार है। “कुमार विश्वास के गीत ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ के सांस्कृतिक दर्शन की काव्यगत अनिवार्यता का प्रतिपादन करते हैं। कुमार के गीतों में भावनाओं का जैसा सहज, कुंठाहीन प्रवाह है, कल्पनाओं का जैसा अभीष्ट वैचारिक विस्तार है तथा इस सामंजस्य के सृजन हेतु जैसा अद्भुत शिल्प व शब्दकोष है, वह उनके कवि के भविष्य के विषय में एक सुखद आश्वस्ति प्रदान करता है।” —डॉ. धर्मवीर भारती “डॉ. कुमार विश्वास उम्र के लिहाज़ से नए लेकिन काव्य-दृष्टि से ख़ूबसूरत कवि हैं। उनके होने से मंच की रौनक बढ़ जाती है। वह सुन्दर आवाज़, निराले अन्दाज़ और ऊँची परवाज़ के गीतकार, ग़ज़लकार और मंच पर क़हक़हे उगाते शब्दकार हैं। कविता के साथ उनके कविता सुनाने का ढंग भी श्रोताओं को नई दुनिया में ले जाता है। गोपालदास नीरज के बाद अगर कोई कवि, मंच की कसौटी पर खरा लगता है, तो वो नाम कुमार विश्वास के अलावा कोई दूसरा नहीं हो सकता है.” —निदा फ़ाज़ली “डॉ. कुमार विश्वास हमारे समय के ऐसे सामर्थ्यवान गीतकार हैं, जिन्हें भविष्य बड़े गर्व और गौरव से गुनगुनाएगा।” —गोपालदास ‘नीरज’
Aghoshit Ulgulan
- Author Name:
Anuj Lugun
- Book Type:

-
Description:
सभ्यता के तथाकथित केन्द्रों से अपसरित आक्रामक विकास के विरुद्ध संघर्षरत नागरिकता के आत्मनिर्भर हाशियों के पक्ष में हिन्दी कविता को एक निर्णायक भंगिमा देने में अनुज लुगुन की कविता की अहम भूमिका रही है। आदिवासियत को जीवन-पद्धति के साथ-साथ एक वैचारिक अवधारणा के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए उन्होंने प्रतिरोध की काव्य-चेतना को एक सशक्त मोर्चा देने का प्रयास निरंतर अपनी कविता में किया है। वे उस जीवन के बीचोबीच रहते आए हैं जो मुख्यधारा से दूर अपनी प्राकृतिक जिजीविषा और सम्पूर्णता के साथ पेड़ों, पहाड़ों, नदियों और पशु-पक्षियों से अपने आदिम रिश्ते निभाते हुए अपने अस्तित्व में सार्थक है और जिसे चाहें तो मुख्यधारा के विकल्प के रूप में भी देखा जा सकता है। लेकिन होता इसके विपरीत है। मुख्यधारा उस बहुरंगी जीवन को अपने जैसा कर लेना चाहती है, सो भी बिना उनकी मर्जी के। आदिवासियत का केन्द्रीय सरोकार इसी अनचाहे आप्लावन से बचे रहना है। यही उसका संघर्ष है और अनुज की कविताएँ लगातार इस संघर्ष के साथ चलती हैं।
अघोषित उलगुलान में इस सफर की हर छवि अपने मूल मानवीय तर्क के साथ उपस्थित है। ये कविताएं आदिवासी जीवन के खूबसूरत बिम्ब हम तक पहुँचाती हैं तो आक्रान्ताओं के विरुद्ध तनी मुट्ठियों को भी स्वर देती हैं। देशों, भाषाओं और संस्कृतियों के पार जाते हुए वे हर उस असहाय के साथ खड़ी होती हैं जो परभक्षी सभ्यता के निशाने पर है, जिसे सत्ता और शक्ति की विभिन्न संरचनाओं ने गैरजरूरी के खाते में डाल दिया है।
नींद के बारे में सबसे मीठे गीत गाने वाले तोतों और सहजीवी भाव से अपनी दैनंदिन मुश्किलों को आसान करते ग्रामीण जनों से लेकर क्यूबा और फिलिस्तीन तक फैले यातना और प्रतिरोध के चित्रों को वे सहज ही हमारे स्थानीय बोध का हिस्सा बना देते हैं—“टूटे पुल के उस पार/फेंकता हूँ एक डोरी/आदमीयत की टोली में/आदमीयत के लिए संघर्ष कर रहे टोलों की ओर से”—आह्वान है पृथ्वी के किसी भी कोने में संघर्षरत आदमीयत को एक साथ होकर लड़ने का जिसे अनुज की कविता अनुभूति की प्रामाणिक छवियों के साथ हम तक पहुँचाती है।
Nihshabd Noopur : Rumi Ki 100 Gazalein
- Author Name:
Rumi
- Book Type:

- Description: रूमी ईरान के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ग़ज़लें ऊर्जस्वी काव्य के दुर्लभ उदाहरणों में से हैं। रूमी की ग़ज़लें सामान्य कविताओं की तुलना में अलग हैं। इनकी प्रत्येक ग़ज़ल का हर शे’र आत्म-अनुभूति की परिपूर्णता से उच्छलित है। इनकी कविता केवल काव्यात्मक चमत्कारों को प्रदर्शित कर पाठकों को लुब्ध करने में पर्यवसित नहीं होती, बल्कि दिल से निकलकर मस्तिष्क और हृदय को भिगोती हुई आत्मा तक का स्पर्श कर लेती है। प्रस्तुत पुस्तक उनकी चुनिन्दा 100 ग़ज़लों का अनुवाद है। इस पुस्तक के माध्यम से रूमी पहली बार सीधे फ़ारसी से हिन्दी में अनूदित हुए हैं। इसमें सबसे पहले फ़ारसी ग़ज़लों का देवनागरी में लिप्यन्तरण प्रस्तुत किया गया है, फिर साथ में ही उनका हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अन्त में मूल ग़ज़लें फ़ारसी लिपि में भी रखी गई हैं। पुस्तक के अन्त में दिए गए अनेक परिशिष्टों के माध्यम से फ़ारसी काव्य-भाषा को समझने के महत्त्वपूर्ण उपकरण जुटाए गए हैं। ग़ज़लों में प्रयुक्त सभी छन्दों को ईरानी तथा भारतीय काव्यशास्त्रीय रीति से समझाया गया है। क्लासिकल फ़ारसी कविता के सम्यक् परिचय के लिए आवश्यक संक्षिप्त फ़ारसी व्याकरण जोड़ा गया है। अन्त में प्रत्येक शब्द का अर्थ भी दिया गया है। इस प्रकार मूल से जुड़े रसपूर्ण अनुवाद की प्रस्तुति के साथ ही यह पुस्तक रूमी-रीडर के तौर पर भी उपयोग में आने योग्य है।
Bure Samay Mein Nind
- Author Name:
Ramagya Shashidhar
- Book Type:

- Description: Poems
Nivedita
- Author Name:
Sheodam Singh Bhadoriya ‘Shiv’
- Book Type:

- Description: ‘निवेदिता’ डॉ. शिवदान सिंह भदौरिया ‘शिव’ का वाग्देवी को निवेदित कविता-संग्रह है। डॉ. शिव की कविताओं का विचारजगत व्यापक है, उसमें अगर एक तरफ़ देश और दुनिया की विविध समकालीन समस्याएँ हैं तो दूसरी तरफ़ मानव जीवन के विविध पहलुओं को छूनेवाले सार्वकालिक प्रश्न भी हैं। कविताओं के इस छोटे से संग्रह में अपने दिक्काल के बाहर और भीतर, पास और दूर को, उसके जीवनस्रोतों को एक साथ देखने और परखने की सफल कोशिश हुई है। अभी-अभी जन्मे विचार चूजों से लेकर झकझोरकर अशान्त कर देनेवाले साम्प्रदायिक धर्मोन्माद के सुनामी और उसके महाविनाश तक, काव्य दर्पण सम्मुख अपना कलेजा खोलकर उसे हू-ब-हू देखने से लेकर तर्क की कुल्हाड़ी से वाक्यों की डालियाँ गिराकर, फिर विवेक-रन्दा चलाकर गोल शहतीरों से महल बनाने तक, अनगिनत राहगीरों के पैरों की मार खानेवाले धूलकण से लेकर अपने तन की मिट्टी में न जाने कितने कुदालों की मार सह लहलहाती फ़सलें उगानेवाली औरत तक इन कविताओं का प्रसार है। कवि के वैज्ञानिक दृष्टिकोण, अन्तःकरण तक झाँककर देखने की प्रवृत्ति और प्रश्नात्मक स्वभाव के चलते कविताओं में न केवल मौलिकता है, बल्कि उन्हें सर्वथा नवीन व्यक्तित्व मिला है। माँ कहकर रो पड़ती नवजात रचना, आकाश में बिखरे तारों के अन्दर से विद्युत चुम्बकीय तरंग बन बाहर निकलने की इच्छुक किरणें, अर्थ की खोज में घर की पौड़ी लाँघकर अनन्त की ओर निकलते शब्द, डायरेक्ट साहब मि. सूरज के आने का वक़्त होते ही महुए-सी झरकर बिछ गई रिसेप्शनिस्ट सुबह, जोंक की तरह चिपटती दवा की सिरिंज, हिन्दी कविता को नयापन देते कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। ‘निवेदिता’ की कविताएँ कथ्य की तरह शिल्पगत विविधता के लिए भी उल्लेखनीय हैं। कविताएँ न केवल अपने आकार-प्रकार और प्रयोगशील शैली से बल्कि क्रियात्मक, चित्रात्मक और जीवन्त भाषा से भी हिन्दी कविता को धनी बनाती हैं।
Peepal Ke Ped Par Baithe Hue Giddh
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: रमेशराज की मुक्तछंद कविताएँ
Faiz
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: “फ़ैज़ की शाइरी ऐसे ज़िन्दा इशारों का पर्याय है जो दर्द की चीख़ और कराह को कसकर अन्दर ही अन्दर दबाये और छुपाये हुए हैं, मगर जो दरअस्ल दबाये दबते हैं न छुपाये छुपते। फ़ैज़ की शाइरी एक ऐसा संगीत है जो मालूम तो होता है रोमानी, मगर असलन् इजतिहारी है–अपने रोमानी तेवर में भी ख़ालिसन् इन्क़िलाबी। यानी संघर्षों में उसका जन्म हुआ है। ‘फ़ैज़’ के कलाम में वह नर्मी और मिठास है जो मन को मोह लेती है। जिस गहरी समझ, भावनागत निश्छलता और कलात्मकता से प्रेमानुभूतियों को उन्होंने सामाजिक समस्याओं के साथ मिलाकर पेश किया है, वह अपने-आपमें अभूतपूर्व है। उनकी नज़्में उर्दू की बेहतरीन नज़्में हैं और नज़्म की सारी विशेषताएँ और भी निखर-सँवरकर उनकी ग़ज़लों में ढल गई हैं। ‘फ़ैज़’ मानवीय मूल्यों की गरिमा के महान नायक हैं। उनकी शाइरी में मानवीय सम्बन्धों की प्रेममय सहजता उजागर हुई है, जिसका लक्ष्य हर तरह के ज़ोर-ज़ुल्म और शोषण-व्यवस्था का उन्मूलन है। उनके दावों और अमल में, कथनी और करनी में कहीं टकराव नहीं, उनके व्यक्तित्व की यह विशिष्टता उनके काव्य की भी शक्ति और विशिष्टता है। भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ विश्व-भर में उनकी असाधारण लोकप्रियता इसका एक ज्वलन्त प्रमाण है।
Bas Chaand Royega
- Author Name:
Madan Kashyap
- Book Type:

-
Description:
मदन कश्यप की कविता इस लोक को सम्बोधित कविता है। वह इसी छोटे लेकिन मनुष्य के लिए फिर भी बहुत बड़े लोक को जीना चाहती है। यह देह जो नश्वर है, उसके लिए बहुत कुछ है क्योंकि इसी देह के झरोखे पर बैठकर आँखें उस दुनिया को देखती हैं जिसे अन्तत: हमें जीना है।
यह कविता कहती है कि ईश्वर हो, लेकिन वह उतना काम्य नहीं है जितना मनुष्यों में मनुष्यता। मनुष्यता की क़ीमत पर वह ईश्वर नहीं चाहिए जिसे वे लोग मनमाने ढंग से इस्तेमाल कर सकें, जो ख़ुद ईश्वर होना चाहते हैं। यह कविता नहीं चाहती कि दुनिया में इतना ज़्यादा ईश्वर हो जाए कि ‘जय श्रीराम’ कहकर किसी मनुष्य को मार देना धार्मिक लगने लगे। ये कविताएँ विजय के ऊपर शान्ति को तरजीह देती हैं और वीरता के ऊपर जीवन के सातत्य को। इस तरह ये कविताएँ विकास और विध्वंस के दुश्चक्र में फँसे जीवन को एक रास्ता दिखाती हैं। यह मदन कश्यप का नया संग्रह है। अपनी कविताओं में उन्होंने लोक को, लोक की भाषा को, जीवन में प्रकृति की अनवरत उपस्थिति को और संसार में एक साधारण मनुष्य की महिमा को अत्यन्त ग्राह्य शब्द-चित्रों में साकार किया है। ‘बस चाँद रोएगा’ संग्रह में उनकी इधर की कविताएँ संकलित हैं, इनमें देश का वर्तमान, वर्तमान को अपने स्वार्थों के अनुसार गढ़ती-बदलती राजनीति और कोरोना जैसी महामारी और युद्धों से पैदा हुई विडम्बनाओं के चिह्न भी मौजूद हैं; और इस माहौल में अपनी निजी पीड़ाओं और मानवीय सरोकारों के साथ जीता व्यक्ति भी, और वह उम्मीद, वह प्रेम, वह स्पर्श भी जो विनाश की तमाम कोशिशों के बावजूद बचे रहते हैं।
Jatayu, Rugova Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Sitanshu Yashashchandra
- Book Type:

-
Description:
भारतीय कविता के शीर्षस्थ प्रतिनिधि सितांशु यशश्चन्द्र की मूल गुजराती कविताओं को हिन्दी अनुवाद में पढ़ते हुए लगता है कि हमारी कविता वास्तव में विश्व कविता को एक नया आयाम एवं स्वर दे रही है जो अतिआधुनिक भाव-संवेदन का संवहन करती हुई भी ठेठ भारतीय मिथकों और पौराणिक भूमि में मूलबद्ध है। सितांशु यशश्चन्द्र आज के मनुष्य और जीवन का संधान करते हुए सुदूर अतीत में जाते हैं और उन सर्वनिष्ठ तत्त्वों का उत्खनन करते हैं जो जटायु से लेकर इब्राहीम रुगोवा तक व्याप्त है। और ये तत्त्व हैं जिजीविषा, जीने की लालसा और संघर्ष का अपार ताब और सतत प्रतिरोध जिसके दो उज्ज्वल प्रतिनिधि हैं पौराणिक जटायु और समकालीन रुगोवा और इनके मध्य अनेकानेक स्त्री-पुरुष, नदी-पहाड़ और समस्त ब्रह्मांड—‘मगरमच्छों को मरने न देना नदी/तुम्हारे जल को जीवित रखने का अब कोई और उपाय बचा नहीं है’ तथा 'पूस की रात को बिना चुनौती दिये यूँ जीतने नहीं देना है'।
यह एक भयानक लोक है जहाँ ‘नदी के पास पानी भी नहीं जिसे कहा जा सके सचमुच पानी’ और जहाँ बड़वानल के उजियारे में दिखता है पानी, जहाँ ‘हवा को जलाने वाली बिजली गिरती है’। सितांशु जी ने हमारे समय की त्रासदी और विद्रूप को अत्यन्त तीव्र एवं अप्रत्याशित बिम्बों में पुंजीभूत किया है—‘वहाँ उस तरफ पानी में से उठाई गई बगुले की चोंच में/तड़पती मछलियाँ/कुछ ही पलों में बगुलों के पंखों की सफेदी में बदल जाएँगी’। स्थिति की भयावहता का हिला देने वाला बिम्ब है—‘हरे पेड़ को देखकर लगता है/कि यह सूख गया होता तो कुछ ईंधन मिलता/ऐसा समय है यह’। और इस समय की शिनाख्त के लिए कवि पास की मलिन बस्ती से लेकर चे गेवारा, हो ची मिन्ह और यूसुफ मेहरअली तक जाता है। वह एक ऐसा कवि है जो ‘बिना ढक्कन की कलम’ लिए पूरी पृथ्वी पर चलता जा रहा है ताकि तत्काल हर हरकत, हर जुंबिश को दर्ज किया जा सके। यहाँ पूर्वज भी हैं, परदादा, परदादी, पत्नी, बेटा, बेटी विपाशा, गाय, जीव-जन्तु और ‘सारा का सारा ब्रह्मांड एकदम सटा हुआ सा’—‘तारा-पगडंडियाँ’ और ‘ऐसी रोशनी जो अँधेरे की चमड़ी छीलकर रख देती है’। सितांशु यशश्चन्द्र ब्रह्मांड-बोध के कवि हैं जिसकी चरम अभिव्यक्ति ‘महाभोज’, ‘तारे’ और ‘लगभग सटकर’ सरीखी कविताओं में होती है जब लगता है कि ‘इस स्वर लीला में धीरे-धीरे मैं अपनी मानव भाषा भूलता जा रहा हूँ’। इस खगोलीय प्रसार के बावजूद, स्मृति के अर्णव-प्रसार के बावजूद यहाँ हर वस्तु की निजता और विलक्षणता स्थापित और समादृत है जिसका एक उदाहरण ‘हर चीज दो, दो’ है। यह बेहद नाजुक और मसृण संवेदों की कविता है। सितांशु जी सूक्ष्म और विराट दोनों को एक साथ देख सकते हैं यहाँ छोटा से छोटा कम्पन भी समस्त ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति है और हर घटना का प्रभाव-प्रसार आकाश-गंगा तक।
यह न तो निचाट वक्तव्यों की कविता है न अवरयथार्थवादी मुद्राओं की। भारतीय काव्य की परम्परा में यह उपमाओं, रूपकों और बिम्बों के माध्यम से हर आम और खास को सम्बोधित है। क्योंकि गांधी जी का आग्रह था कि खेतों में काम करने वाले, कुएँ से पानी खींचने वाले कोशिया मजदूर भी समझ सकें ऐसी कविता लिखनी चाहिए; यह कवि के सौन्दर्यशास्त्र का एक मूल संकल्प है। इसीलिए यह गहरे राजनैतिक आशयों की भी कविता है। पूरे संग्रह में अनवरत बेचैनी और छटपटाहट है और स्वाधीनता के लिए संघर्ष। ये कविताएँ अनुभवों को केवल प्रकाशित ही नहीं करतीं, बल्कि विश्लेषित करते हुए एक तार्किक उपसंहार तक ले जाने का उद्यम करती हैं। सम्भवत: यही कारण है कि इस कविता की गति सर्पिल और कई बार तो वलयाकार है, भावों-विचारों का ऐसा गुम्फन जो पाठक को भी अपने भँवर में खींच लेता है—
मेरी कविता जैसी दूसरी कोई जगह
मेरे पास कहीं बची नहीं रह गई
जहाँ मतभेद या मनमेल को लेकर
खुलकर बात हो सके
सितांशु यशश्चन्द्र की कविता ऐसी ही सार्वजनिक जगह है—उदार, प्रशस्त और निर्बन्ध। और साथ ही नितान्त निजी और एकान्त। शायद इसीलिए ‘मुझे इसके घर में घर जैसा लगता है’।
—अरुण कमल
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...