Romeo Juliet Aur Andhera(LOK)
Author:
Kunal SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
भाषा, जाति, धर्म, नस्ल और क्षेत्र को दरकिनार करके किया गया प्रेम एक ताजी, भव्य, सम्मोहक और रोशन दुनिया की कोंपल अपने भीतर रखता है, पर जब हम भीतर और बाहर रोशनी से भर रहे होते हैं तो ठीक हमारे पीछे अँधेरा अपने ज़ंग लगे नाख़ूनों में धार दे रहा होता है। रोशनी और अँधेरे के बीच का यह आदिम खेल सभ्यता के कथित विकास के साथ और भी बर्बर होता गया है। ‘रोमियो जूलियट और अँधेरा’ पढ़ते हुए हम जानते हैं कि हमारे कोमलतम और सपनीले दिनों में बर्बरता सबसे अधिक हमारी ताक में रहती है। यहाँ दो युवा दिलों की मुहब्बत पर तमाम हत्यारी साज़िशों की भुतहा छायाएँ गिर रही हैं। यहाँ भाषा, नस्ल और स्थानीय बनाम बाहरी के द्वन्द्व हैं जिनकी शतरंजी बिसात पर राजनीतिक गोटियाँ सेंकी जा रही हैं, जिनकी गिरफ़्त में आने के बाद पीड़ित लोग अपने ही जैसे दूसरे पीड़ितों के प्रति ज़हर से भर रहे हैं। यहीं, इसी जगह से उपन्यास में अँधेरा प्रवेश करता है। असम की राजनीति में जो ताक़तें और तत्व आज निर्णायक होकर राज कर रहे हैं, उन सबकी गहरी पदचापें इस उपन्यास में सुनी और देखी जा सकती हैं। और यह सब यहाँ एक ऐसी सम्पन्न भाषा में दर्ज हो रहा है जो स्वाद, रंग, गन्ध, ध्वनियाँ, मौसम, रोशनी और अँधेरा सब कुछ को साकार कर देती है। जिसमें आप किसी कली का चटकना या फूल का मुरझाना सुन और देख सकते हैं। जिसमें असम की धरती का ताप दर्ज हुआ है। पढ़ते हुए एक भीषण आह के साथ हम जानते हैं कि हर भाषा के अपने दुख, मातम और अँधेरे हुआ करते हैं।
ISBN: 9789349180697
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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"रजा पुस्तक माला की यह कोशिश है कि हिन्दीतर भारतीय भाषाओँ के लेखक क्या लिख-सोच रहे हैं, उसका महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक हिस्सा हिन्दी में प्रकाशित किया जाए। इसी प्रयत्न के अन्तर्गत मराठी लेखक-नाटककार के आलोचनात्मक लेखन के एक संचयन का हिन्दी-मराठी विद्वान निशिकान्त ठकार द्वारा किया गया अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। हमें उम्मीद है कि ऐसी सामग्री से हिन्दी के विचार और आलोचनात्मक चिन्तन का परिसर विस्तृत और समृद्ध होगा।"
–अशोक वाजपेयी
Bharat Kokila Sarojini Naidu
- Author Name:
Disha Gulati
- Book Type:

- Description: "सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक प्रसिद्ध विद्वान् तथा माँ कवयित्री थीं और बँगला में लिखती थीं। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उन्होंने 12 वर्ष की छोटी उम्र में 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और 13 वर्ष की उम्र में ‘लेडी ऑफ द लेक’ कविता रची। सन् 1895 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे इंग्लैंड चली गईं। सन् 1898 में सरोजिनी नायडू डॉ. गोविंदराजुलु नायडू की जीवन-संगिनी बनीं। सन् 1914 में इंग्लैंड में वे पहली बार गांधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गईं। स्वाधीनता आंदोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण सन् 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षा बनीं और 1932 में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेंट की प्रिय मित्र और गांधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। 2 मार्च, 1949 को उनका देहांत हुआ। ‘स्वर कोकिला’ के नाम से विख्यात महान् नेत्री सरोजिनी नायडू की प्रेरणाप्रद जीवन-गाथा।
Kuchh Din Aur
- Author Name:
Manzoor Ehtesham
- Book Type:

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Description:
‘कुछ दिन और’ निराशा के नहीं, आशा के भँवर में डूबते चले जाने की कहानी हैं—एक अन्धी आशा, जिसके पास न कोई तर्क है, न कोई तंत्र; बस, वह है अपने-आप में स्वायत्त।
कहानी का नायक अपनी निष्क्रियता में जड़ हुआ, उसी की उँगली थामे चलता रहता है। धीरे-धीरे ज़िन्दगी के ऊपर से उसकी पकड़ छीजती चली जाती है। और, इस पूरी प्रक्रिया को झेलती है उसकी पत्नी—कभी अपने मन पर और कभी अपने शरीर पर। वह एक स्थगित जीवन जीनेवाले व्यक्ति की पत्नी है। इस तथ्य को धीरे-धीरे एक ठोस आकार देती हुई वह एक दिन पाती है कि इस लगातार विलम्बित आशा से कहीं ज़्यादा श्रेयस्कर एक ठोस निराशा है जहाँ से कम-से-कम कोई नई शुरुआत तो की जा सकती है। और, वह यही निर्णय करती है।
‘कुछ दिन और’ अत्यन्त सामान्य परिवेश में तलाश की गई एक विशिष्ट कहानी है, जिसे पढ़कर हम एकबारगी चौंक उठते हैं और देखते हैं कि हमारे आसपास बसे इन इतने शान्त और सामान्य घरों में भी तो कोई कहानी नहीं पल रही।
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