Pinokiyo
Author:
Carlo CollodiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
पिनोकियो के कारनामेद एडवेंचर्स ऑफ पिनोकियो (इतालवी : ले एडवेंचर डि पिनोकियो; जिसे अक्सर अंग्रेजी में पिनोकियो के रूप में संदर्भित किया जाता है) इतालवी लेखक कार्लो कोलोडी द्वारा छत्तीस अध्यायों का एक बच्चों का कॉमेडी फंतासी उपन्यास है। पहले पंद्रह अध्याय मूल रूप से बच्चों की साप्ताहिक पत्रिका जिओर्नेल प्रति बम्बिनी में 7 जुलाई, 1881 और 18 फरवरी, 1882 के बीच स्टोरिया डि उन बुराटिनो (‘एक कठपुतली की कहानी’) शीर्षक के तहत क्रमबद्ध किए गए थे। उन अध्यायों को 1883 में, इक्कीस अतिरिक्त अध्यायों के साथ, पुस्तक के रूप में फिर से प्रकाशित किया गया। उपन्यास का शीर्षक चरित्र और नायक एक जीवित लकड़ी की कठपुतली है, जिसे गेपेटो नामक एक खिलौना निर्माता ने बनाया है जो उसे अपने दत्तक पुत्र के रूप में लेता है। पिनोकियो प्रारंभ में अवज्ञाकारी और शरारती है। वह अपने पिता को त्याग देता है और रोमांच की तलाश में निकल जाता है। पिनोकियो को उसके कई दुष्कर्मों के लिए फाँसी दिए जाने के साथ ही मूल समाचार पत्र क्रमांकन समाप्त हो गया। विस्तारित उपन्यास संस्करण में, पिनोकियो को सोलहवें अध्याय में एक परी द्वारा बचाया जाता है। परी पिनोकियो को शिक्षित करती है और उसे अपने तरीके बदलने के लिए प्रेरित करती है। अपने अच्छे व्यवहार के पुरस्कार के रूप में, पिनोकियो अंततः एक वास्तविक लड़के में बदल जाता है। उपन्यास का लगभग दो सौ पचास विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है। द एडवेंचर्स ऑफ पिनोकियो के विभिन्न संगीत, मंच, टेलीविजन और फिल्म रूपांतरण हुए हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध वॉल्ट डिज़्नी की 1940 की एनिमेटेड फिल्म पिनोकियो है। झूठ बोलने पर किसी की नाक बढ़ने का विचार, जिसे द एडवेंचर्स ऑफ पिनोकियो में पेश किया गया था, लोकप्रिय पौराणिक कथाओं में शामिल हो गया है।
ISBN: 9788126723430
Pages: 180
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अपनी रचनात्मक ज़मीन और लेखकीय दायित्व की तलाश करते हुए एक ईमानदार लेखक प्रायः स्वयं को भी रचने की कोशिश करता है। अनुपस्थित रहकर भी वह उसमें उपस्थित रहता है; और सहज ही उस देश-काल को लाँघ जाता है जो उसे आकार देता रहा है। समकालीन कथाकारों में संजीव की मौजूदगी को कुछ इसी तरह देखा जाता है। आकस्मिक नहीं कि हिन्दी की यथार्थवादी कथा-परम्परा को उन्होंने लगातार आगे बढ़ाया है।
‘सूत्रधार’ संजीव का नया उपन्यास है, और उनकी शोधपरक कथा-यात्रा में नितान्त चुनौतीपूर्ण भी। केन्द्र में हैं भोजपुरी गीत-संगीत और लोकनाट्य के अनूठे सूत्रधार भिखारी ठाकुर। वही भिखारी ठाकुर, जिन्हें महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ कहा था और उनके अभिनन्दनकर्ताओं ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र। लेकिन भिखारी ठाकुर क्या सिर्फ़ यही थे? निश्चय ही नहीं, क्योंकि कोई भी एक बड़ा किसी दूसरे बड़े के समकक्ष नहीं हो सकता। और यों भी भिखारी का बड़प्पन उनके सहज सामान्य होने में निहित था, जिसे इस उपन्यास में संजीव ने उन्हीं के आत्मद्वन्द्व से गुज़रते हुए चित्रित किया है। दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसी धूपछाँही कथा-यात्रा है, जिसे हम भिखारी जैसे लीजेंडरी लोक कलाकार और उनके संगी-साथियों के अन्तर्बाह्य संघर्ष को महसूस करते हुए करते हैं। काल्पनिक अतिरेक की यहाँ कोई गुंजाइश नहीं। न कोई ज़रूरत। ज़रूरत है तो तथ्यों के बावजूद रचनात्मकता को लगातार साधे रखने की, और संजीव को इसमें महारत हासिल है। यही कारण है कि ‘सूत्रधार’ की शक्ल में उतरे भिखारी ठाकुर भोजपुरी समाज में रचे-बसे लोकराग और लोकचेतना को व्यक्त ही नहीं करते, उद्दीप्त भी करते हैं। उनकी लोकरंजकता भी गहरे मूल्यबोध से सम्बलित है; और उसमें न सिर्फ़ उनकी, बल्कि हमारे समाज और इतिहास की बहुविध विडम्बनाएँ भी समाई हुई हैं। अपने तमाम तरह के शिखरारोहण के बावजूद भिखारी अगर अन्त तक भिखारी ही बने रहते हैं तो यह यथार्थ आज भी हमारे सामने एक बड़े सवाल की तरह मौजूद है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि देश, काल, पात्र की जीवित-जाग्रत् पृष्ठभूमि पर रचा गया यह जीवनीपरक उपन्यास आज के दलित-विमर्श को भी एक नई ज़मीन देता है। तथ्यों से बँधे रहकर भी संजीव ने एक बड़े कलाकार से उसी के अनुरूप रससिक्त और आत्मीय संवाद किया है।
—रामकुमार कृषक
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- Author Name:
Jayant Vishnu Narlikar
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Description:
विज्ञान-गल्प सम्भवतः हिन्दी गद्य का सबसे उपेक्षित कोना है। न सिर्फ़ यह कि इसमें मौलिक रचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि अन्यान्य भाषाओं से विज्ञान-कथाओं के अनुवाद भी अकसर नहीं किए जाते। ‘वाइरस’ इस कमी को पूरा करने की दिशा में एक प्रयास है। यह उपन्यास कम्प्यूटरीकृत विश्व के सम्मुख एक भयावह परिकल्पना रखता है, जो ज़रूरी नहीं कि सच हो ही; लेकिन हो भी सकती है। श्रेष्ठ विज्ञान-गल्प का प्रस्थान-बिन्दु यह ‘हो सकने’ की सम्भावना ही होती है जो इतिहास में अनेक बार सच भी साबित हो चुकी है।
‘वाइरस’ की परिकल्पना का आधार कम्प्यूटर-प्रणाली की आम बीमारी वाइरस है लेकिन यह वाइरस आम नहीं है, वह एक साथ पूरे विश्व के कम्प्यूटरों को अपनी गिरफ़्त में लेता है और सभ्यता को पुनः उस युग में लौटने की आशंका खड़ी कर देता है, जब कम्प्यूटर नहीं थे, और तमाम काम मानव-श्रम की धीमी गति से होते थे। इस संकट को सामने देख पूरा विश्व अपने राजनैतिक मतभेद भुलाकर एकजुट होता है, और दुनिया के सात श्रेष्ठ वैज्ञानिक इसके कारणों की तलाश में जुट जाते हैं। और, जो कारण सामने आता है, वह इस उपन्यास की आधारभूत परिकल्पना का सर्वाधिक उत्तेजक और हमारी कल्पना के लिए स्तब्धकारी अंश है।
मराठी विज्ञान-ग़ल्प के प्रतिष्ठित लेखक की इस रचना में वे सभी गुण—यथा, तथ्यात्मकता, तर्कसंगति, कल्पना और मानव-कल्याण—हैं जो एक श्रेष्ठ विज्ञान-कथा में होने चाहिए।
Lekin Darwaza
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Pankaj Bisht
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Description:
‘‘...महानगरीय कथा-कृतियों में प्रायः समकालीनता को ही उजागर किया जाता है; किन्तु ‘लेकिन दरवाज़ा’ में समकालीनता को चालू भाषा-शैली में चित्रित किया गया है। याद नहीं पड़ता कि हिन्दी की किसी कथा-कृति में इस तरह की चालू भाषा-शैली में महानगरीय समकालीनता को इतने ताज़ेपन के साथ पहले प्रस्तुत किया गया हो...’’
—‘आलोचना’
‘‘...रचनाधर्मिता के नाम पर जोड़-तोड़ के दमघोंटू व कल्टीवेटेड माहौल पर आधारित बिष्ट का यह उपन्यास एक तरफ़ साहित्यिक जीवन की परतों को उधेड़ता है तो दूसरी ओर आभिजात्य वर्ग की पतनशील रूमानी मानसिकता को दर्शाता है।...’’
—‘अमर उजाला’
‘‘ ‘लेकिन दरवाज़ा’ को ‘कुरु-कुरु स्वाहा’ से भी ज़्यादा सफलता मिली। इसका एक मुख्य कारण यह हो सकता है कि मनोहर श्याम जोशी ने जहाँ विलक्षणता, मामूली-मामूली बातों को ग़ैरमामूली ढंग से पेश करने में दिखाई, वहाँ ‘लेकिन दरवाज़ा’ में लेखक ने ग़ैरमामूली ढंग से कहा।’’
—‘नवभारत टाइम्स’
‘‘दरअसल समकालीन साहित्यिक दुनिया के वास्तविक सन्दर्भों को विषय के रूप में उठाना एक जोखिम-भरा काम है। लेकिन पंकज बिष्ट की यह ख़ूबी रही है कि वे इन सन्दर्भों का ब्योरा मात्र पेश करने के बजाय उन्हें सामाजिक परिप्रेक्ष्य की सापेक्षता में उभारते हैं।...’’
—साक्षात्कार
‘‘लेखक दूसरे-दूसरे वर्गों के बारे में तो ख़ूब लिखते हैं, मगर उनके ख़ुद के बारे में कम लिखा जाता है।...यह उत्सुकता का विषय है कि सबके बारे में लिखनेवाले लेखक का अपना सांसारिक परिवेश कैसा होता है या उसकी जीवनगत परिस्थितियाँ, उसके आदर्श, उसका परिवार, उसकी रुचियाँ, उसके संघर्ष किस क़िस्म के होते हैं? पंकज बिष्ट ने इसी कथा-भूमि को उठाया है—महानगर दिल्ली के लेखकों के जीवन को।’’
—‘नई दुनिया’
Ateet Ke Chalchitra
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Mahadevi Verma
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- Description: ‘अतीत के चलचित्र’ हिन्दी गद्य की एक अप्रतिम रचना है। इतने दिनों बाद आज भी संवेदना के वे धरातल अछूते और अपूर्व हैं जिनकी सृष्टि इन रेखाचित्रों द्वारा हुई थी। मानवीय सहानुभूति और संवेगों की गहनता के लिए इन्हें चिरकाल तक हिन्दी साहित्य का शीर्षस्थ पद प्राप्त रहेगा।
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