SWACHCHHA BHARAT : SASHAKTA BHARAT
Author:
Mahesh SharmaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Unavailable
"स्वच्छता जीवन में उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी जीवित रहने के लिए भोजन; लेकिन हम स्वच्छता के प्रति कितने गंभीर हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। इसका एक कारण स?त कानून का अभाव भी है। गांधीजी ने स्वच्छता के प्रति हमारे देशवासियों की उदासीनता को आरंभ में ही भाँप लिया था और यही कारण था कि वे अपने हर विचार में लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित करते रहते थे। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि ‘‘स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।’’
गांधीजी का कहना था कि जब तक हम बाहरी स्वच्छता नहीं अपनाते, भीतरी स्वच्छता की कल्पना तक नहीं की जा सकती। और बाहरी स्वच्छता आचरण में आते ही भीतरी स्वच्छता स्वतः आ जाती है।
वर्तमान परिवेश में इन दोनों प्रकार की स्वच्छता की बड़ी आवश्यकता है और गांधी एक बार फिर मार्गदर्शक के रूप में हमारे सामने हैं। जरूरत है तो बस सच्चे मन से उनके विचारों के अनुसरण की।
सुधी पाठक ही नहीं, आबालवृद्ध— सभी स्वच्छता अभियान में संवेदनापूर्वक अपना आत्मीय सहयोग दें और इसे अपनी आदत के रूप में आत्मसात् करके भारत को साफ-स्वच्छ तथा गांधीजी के स्व?न को साकार करें।"
ISBN: 9789351865186
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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डॉ. सीताराम झा ‘श्याम’ विरचित ‘समय से आगे’ शीर्षक उपन्यास जितना ही रोचक है, उतना ही प्रेरक और प्रभावक भी। इसमें विशाल एवं विस्तृत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक-सांस्कृतिक पट-भूमि पर समग्र मानव जीवन का अभूतपूर्व चित्रण किया गया है। वस्तुतः, जीवन के सभी पक्ष अपनी परिपूर्णता में व्यंजित हैं। मानव प्रेम एवं प्रकृति-प्रेम में समवाय सम्बन्ध दिखाते हुए प्रेम को नया विस्तार प्रदान किया गया है, जो जीवन में आशा का संचार करता है, विकास की नई दिशाओं की तलाश के लिए नई दृष्टि प्रदान करता है—शोषण, उत्पीड़न, प्रपीड़न से मुक्त होने तथा समस्त प्राणियों को निर्भर रहने का अमर सन्देश देता है।
इस उपन्यास के कुछ पात्र—विभाकर, रंचना, नन्दिता, निदेश, चलित्तर, सुराजीदास, अनुपम आदि ऐसे हैं, जो धैर्य, साहस, आत्मबल, उत्साह, दूरदृष्टि, कर्मठता, दक्षता, ईमानदारी आदि मानवीय गुणों का उत्कृष्ट परिचय देकर जीवन को सफल-सार्थक बनाते हैं। इसके विपरीत, वल्लरी, सौदामिनी, पुरन्दर जैसे पात्र वर्तमान जीवन के संघर्षपूर्ण दौर में आगे बढ़ने के लिए छटपटाते तो हैं ज़रूर, पर उन्हें न तो आधार भूमि की परख है और न ही मंज़िल का पता। इसी से आगे बढ़ने की अमर्यादित इच्छा उनके वर्तमान को तो विनष्ट कर ही देती है, गौरवपूर्ण अतीत से भी प्रेरणा लेने के योग्य नहीं रहने देती। ऐसी स्थिति में प्रोज्ज्वल भविष्य के दर्शन का सुयोग कैसे मिल सकता है? उपन्यास का पहला ही वाक्य अद्भुत प्रकाश फैला देता है अतीत से भविष्य तक ‘व्यक्ति बहुत कुछ बन जाने की भाग-दौड़ में मनुष्य बनना ही भूल जाता है।’
डॉ. श्याम के इस उपन्यास में मानवीय संवेदना की अप्रतिम अभिव्यंजना है—निश्चल संवेदना की वह मार्मिक व्यंजना, जो मनुष्यता की अनिवार्य शर्त है, जिसके बिना जीवन नीरस और निरर्थक बन जाता है। सम्पूर्ण उपन्यास पढ़ जाने पर किसी को भी यह कहने में संकोच का अनुभव नहीं होगा कि ‘समय से आगे’ उपन्यास लेखन के क्षेत्र में नया प्रतिमान है।
Chaar Kanya
- Author Name:
Taslima Nasrin
- Book Type:

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Description:
‘चार कन्या’ में यमुना, शीला, झूमुर और हीरा की कथा है। यमुना एक मामूली लड़की है, उसके भीतर बूँद–बूँद कर जन्म लेती है—अपने अधिकारबोध के प्रति तीव्र जागरूकता। ऐसी सुलझी हुई जागरूक लड़कियों को काफ़ी कुछ भुगतना पड़ता है। समाज के उलटे–सीधे नियम उन्हें बहुत सताते हैं, यमुना को भी ख़ूब सताया। शीला ठगी जाती है अपने प्रेमी द्वारा। ऐसी सैकड़ों शीलाएँ राह में चल–फिर रही हैं पर सभी तो अपनी ज़ुबान पर वे बातें नहीं ला सकतीं, क्योंकि इससे ठगनेवालों पर प्रहार के बजाय शीलाओं पर ही उलटी मार
पड़ती है—समाज उन्हीं पर पत्थर फेंकता है, उनके ही मुँह पर थूकता है।
‘लज्जा’ जैसी चर्चित कृति की लेखिका तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास स्त्री–विमर्श की कई खिड़कियाँ खोलता है, जिससे आती बयार से पाठक अछूता नहीं रह सकता।
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