Dhukani Evam Anya Kahaniyan
Author:
Neeraj NeerPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
"नीरज नीर ने कुछ ही समयावधि में एक संभावनाशील कथाकार के रूप में अपनी पुख्ता पहचान बना ली है। उनका यह पहला कथा-संग्रह इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि उनके पास कहने को भी बहुत कुछ है और कहने की भंगिमा भी। दरअसल लेखक की परख इस बात से भी होती है कि वह किन चीजों को कहाँ से देख रहा है। इस मामले में नीरज नीर की पोजिशनिंग बिल्कुल स्पष्ट है। तकरीबन सभी पात्र निम्नवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय हैं, जिनके हर्ष-विषाद, संबंधों के घात-प्रतिघात, सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने से उनके संघर्ष की कल्पना होती है, जैसे हर चरित्र असीम दुःख के पहाड़ को पूरी ताकत के साथ ठेलने की कोशिश कर रहा है और इस कोशिश में लहूलुहान हो रहा है। इन कहानियों में कथ्य की वैविध्यता अपने ऐश्वर्य के साथ मौजूद है। नीरज नीर की कहानियों की डिटेलिंग कभी-कभी चमत्कृत कर देती है कि लेखक अपने पात्रों के जीवन तल में कितने गहरे उतरा है और पाठक को भी हाथ पकड़कर उन गहराइयों में ले जाने को बाध्य भी करता है। नीरज नीर न तो जटिल शिल्प के आग्रही हैं और न ही अलंकृत भाषा की चकाचौंध के। बिल्कुल उनकी कहानियों के चरित्रों की तरह सादगी ही शिल्प है और जीवन की तरह प्रवाहमयी भाषा-निर्द्वंद्व, झलमल, यथानाम नीर की तरह बहती हुई।
—पंकज मित्र
सुप्रसिद्ध कथाकार
"
ISBN: 9789390366248
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: Where a story stops, another one begins. The thing with them is, they never walk alone. They always walk with a group of friends. Each reaches its climax. Then with a final gasp of mortality and despair, fade away. No, they never die; they multiply. To the extent that the original gets lost and new ones are born. Over and over again. Yes, they get lost. No, they never die. They live on, permanently etched in the book of time. And from there, we borrow them and bring them alive. Again. And again. Here are twenty-six of them, some standing alone and some chatting with their long-lost friends. When they depart, they leave a lingering fragrance of nostalgia and curiosity. What happened then? Twenty-six alphabets, twenty-six names, and twenty-six short stories. Each explores one unique emotion, taking you into the dark recess of the mind. Some are frothy, and most of them opaque. Most are standing alone, and some are facing a mirror, where the same story comes alive in two different ways through two other protagonists. Meet diverse characters - from the single-minded prostitute to the man on the railway's station br>Bereft of any memory; a woman desperate for a biological child to a dead man's trial. Meet a jealous lover with a twisted brain and a gay man's memory of a one-night encounter. Meet twenty-six such characters arrested and sentenced for life inside the pages of a book—each one leaving an indelible mark on your soul.
Will You Marry Me ?
- Author Name:
Parulraj Jain
- Book Type:

- Description: Will you marry me? What is the most frightening eight letters word? If the question were asked to girls, nine out of ten would have said ‘cockroach’. Wait!!! But that’s not an eight letters word. Okay, what is the most frightening word in English? Well, it is probably cockroaches for girls, but for boys, it is marriage. Marriage, is it as scary as it sounds? India, The most versatile and weird (in many ways) country in the world, has many forms of marriage. We have our ways of doing everything. We have many ways of doing the same thing across the country, and marriage is no exception. Marriage is a serious thing here, and it is more challenging to come out of this sacred bond than to enter into one. This is why everyone is so sceptical and afraid of this institution. The world is moving ahead, but we are relatively still or slow-paced. We don’t know if it’s good or bad not to let ourselves evolve with time and move on, but retro is a new cool, right? Read this hilarious romantic tale of how Modi's parents tricked him -their son- into embarking upon one of the oldest adventures called marriage with a stranger, nupur, for the rest of his life.
Nirvasan
- Author Name:
Akhilesh
- Book Type:

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Description:
अखिलेश का उपन्यास ‘निर्वासन’ पारम्परिक ढंग का उपन्यास नहीं है। यह आधुनिकतावादी या जादुई यथार्थवादी भी नहीं। यथार्थवाद, आधुनिकतावाद और जादुई यथार्थवाद की ख़ूबियाँ सँजोए असल में यह भारतीय ढंग का उपन्यास है। यहाँ अमूर्त नहीं, बहुत ही वास्तविक, कारुणिक और दुखदायी निर्वासन है। सूत्र रूप में कहें तो यह उपन्यास औपनिवेशिक आधुनिकता/ मानसिकता के कारण पैदा होनेवाले निर्वासन की महागाथा है जो पूँजीवादी संस्कृति की नाभि में पलते असन्तोष और मोहभंग को उद्घाटित करने के कारण राजनीतिक-वैचारिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो गया है। जॉर्ज लूकाच ने चेतना के दो रूपों का ज़िक्र किया है : वास्तविक चेतना तथा संभाव्य चेतना। लूकाच के मुताबिक़ संभाव्य चेतना को छूनेवाला उपन्यास वास्तविक चेतना के इर्द-गिर्द मँडरानेवाले उपन्यास से श्रेष्ठ है। कहने की ज़रूरत नहीं, ‘निर्वासन’ इस संभाव्य चेतना को स्पर्श कर रहा उपन्यास है जिसकी अभी सिर्फ़ कुछ आहटें आसपास सुनाई पड़ रही हैं।
आधुनिकता के सांस्कृतिक मूल्यों में अन्तर्निहित विडम्बनाओं का उद्घाटन करनेवाला अपने तरह का हिन्दी में लिखा गया यह पहला उपन्यास है। ‘निर्वासन’ सफलता और उपलब्धियों के प्रचलित मानकों को ही नहीं समस्याग्रस्त बनाता अपितु जीव-जगत के बारे में प्राय: सर्वमान्य सिद्ध सत्यों को भी प्रश्नांकित करता है। दूसरे धरातल पर यह उपन्यास अतीत की सुगम-सरल, भावुकतापूर्ण वापसी का प्रत्याख्यान है। वस्तुत: ‘निर्वासन’ के पूरे रचाव में ही जातिप्रथा, पितृसत्ता जैसे कई सामन्ती तत्त्वों की आलोचना विन्यस्त है। इस प्रकार ‘निर्वासन’ आधुनिकता के साथ भारतीयता की पुनरुत्थानवादी अवधारणा को भी निरस्त करता है।
लम्बे अर्से बाद ‘निर्वासन’ के रूप में ऐसा उपन्यास सामने है जिसमें समाज वैज्ञानिक सच की उपेक्षा नहीं है किन्तु उसे अन्तिम सच भी नहीं माना गया है। साहित्य की शक्ति और सौन्दर्य का बोध करानेवाले इस उपन्यास में अनेक इस तरह की चीज़ें हैं जो वैचारिक अनुशासनों में नहीं दिखेंगी। इसीलिए इसमें समाज वैज्ञानिकों के लिए ऐसा बहुत-कुछ है जो उनके उपलब्ध सच को पुनर्परिभाषित करने की सामर्थ्य रखता है।
कहना अनुचित न होगा कि उपन्यास की दुनिया में ‘निर्वासन’ एक नया और अनूठा प्रस्थान है।
—राजकुमार
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