
Upanyason Ke Rachna Prasang
Author:
Kushum VashneyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Unavailable
ी भी कृति की रचना-प्रक्रिया को जानना बेहद दिलचस्प और रोमांचक होता है। मानस की कितनी ही गूढ़ और अनजानी परतों से होकर कोई रचना जन्म लेती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने विभिन्न महत्त्वपूर्ण उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया की परख-पड़ताल की है। पुस्तक के पहले दो अध्याय— ‘अंकुरण : अनुभूति से अभिव्यक्ति बिन्दु तक की प्रक्रियाएँ’ और ‘अवतरण : अभिव्यक्ति की प्रक्रियाएँ’ में रचना-प्रक्रिया को समझने और विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। इसमें देश-विदेश के बहुत से उपन्यासकारों के वक्तव्यों और विचारों को इसीलिए संकलित किया गया है ताकि भिन्न-भिन्न परिवेश और देश, विभिन्न संस्कृति और सभ्यता, विभिन्न भाषायी उपन्यासकारों के वक्तव्यों को आमने-सामने रखकर रचना-प्रक्रिया का सार्थक विश्लेषण किया जा सके।
पुस्तक में संकलित ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ के अवतरण की कहानी विशेष उपलब्धि है जिसमें अमृतलाल नागर के इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास के रचना-प्रसंग की कथा बयान की गई है। पाठकों के लिए हमेशा ही काम आनेवाली एक महत्त्वपूर्ण कृति।
ISBN: 9788183611053
Pages: 283
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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महाकवि कालिदास कृत ‘मेघदूत’ के अनुवादों और टीकाओं की हिन्दी में कमी नहीं, पर यह पुस्तक न तो उसका अनुवाद मात्र है और न महज़ टीका। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे वाङ्मय–पुरुष हैं जिन्होंने न केवल समूचे मध्यकालीन साहित्येतिहास को अपनी शोधालोचना का विषय बनाया बल्कि संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य की कुछ कालजयी कृतियों का पुन:सृजन भी किया।
‘मेघदूत : एक पुरानी कहानी’ महाकवि कालिदास की अमर काव्य–कृति का ऐसा ही पुन:सृजन है। द्विवेदी जी ने इसमें ‘मेघदूत’ के कथा–प्रसंगों की व्याख्या के बहाने उन अछूते सन्दर्भों का भी उद्घाटन किया है जो इसकी रचना–प्रक्रिया के दौरान कालिदास के मन में रहे होंगे। तत्कालीन राजनीतिक–सामाजिक वातावरण, जनसमाज की आर्थिक स्थिति, विद्वज्जनों के वैचारिक अन्तर्विरोध और मन–प्राण को आह्लादित कर देनेवाली वे रससिक्त उद्भावनाएँ जो रसज्ञ पाठक को कल्पनातीत स्पर्शानुभूति तक ले जा सकें—सभी कुछ इसमें छविमान है। लगता है, वह सब अनकहा जिसे कालिदास कहना चाहते थे, यहाँ स्पष्टत: कह दिया गया है।
आचार्य द्विवेदी की प्रकाण्ड मेधा, विनोदवृत्ति और विलक्षण सृजनात्मक क्षमता से स्पृश्य ‘मेघदूत’ की यह कहानी निस्सन्देह एक अविस्मरणीय कृति है।
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