Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Ravindra Nath Tagore
Author:
Rabindranath ThakurPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। </p>
<p>आधुनिक भारतीय मनीषा जिन व्यक्तित्त्वों में सर्वाधिक प्रखर रूप में प्रकट हुई उनमें रवीन्द्रनाथ ठाकुर अग्रणी हैं। साहित्य, संगीत, कला, शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनका अप्रतिम योगदान है। परम्परा से लगातार बहस और संवाद करते हुए वे ऐसे चिन्तक के रूप में सामने आते हैं जिनका लक्ष्य सम्पूर्ण मानवता है। वे पश्चिम और पूरब के बीच एक मनोहारी पुल की तरह रहे। गांधी समेत अपने समय की सभी बड़ी राजनैतिक और सांस्कृतिक हस्तियों से उनका सघन संवाद रहा। हमें उम्मीद है कि राष्ट्रवाद के आलोचक और सम्पूर्ण मानवता के उल्लास और विकास के हामी टैगोर के कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब सभी पाठकों के लिए एक सुन्दर, समृद्ध और न भूलनेवाला अनुभव साबित होगी।
ISBN: 9789392186745
Pages: 240
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘कामायनी : एक पुनर्विचार’, समकालीन साहित्य के मूल्यांकन के सन्दर्भ में, नए मूल्यों का ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। उसके द्वारा मुक्तिबोध ने पुरानी लीक से एकदम हटकर प्रसाद जी की ‘कामायनी’ को एक विराट फ़ैंटेसी के रूप में व्याख्यायित किया है, और वह भी इस वैज्ञानिकता के साथ कि उस प्रसिद्ध महाकाव्य के इर्द-गिर्द पूर्ववर्ती सौन्दर्यवादी-रसवादी आलोचकों द्वारा बड़े यत्न से कड़ी की गई लम्बी और ऊँची प्राचीर अचानक भरभराकर ढह जाती है।
मुक्तिबोध द्वारा प्रस्तुत यह पुनर्मूल्यांकन बिलकुल नए सिरे से ‘कामायनी’ की अन्तरंग छानबीन का एक सहसा चौंका देनेवाला परिणाम है। इसमें मनु, श्रद्धा और इडा जैसे पौराणिक पात्र अपनी परम्परागत ऐतिहासिक सत्ता खोकर विशुद्ध मानव-चरित्र के रूप में उभरते हैं और मुक्तिबोध उन्हें इसी रूप में आँकते और वास्तविकता को पकड़ने का प्रयास करते हैं। उन्होंने वस्तु-सत्य की परख के लिए अपनी समाजशास्त्रीय ‘आँख’ का उपयोग किया है और ऐसा करते हुए वह ‘कामायनी’ के मिथकीय सन्दर्भ को समकालीन प्रासंगिकता से जोड़ देने का अपना ऐतिहासिक दायित्व निभा पाने में समर्थ हुए हैं।
‘कामायनी : एक पुनर्विचार’ व्यावहारिक समीक्षा के क्ष्रेत्र में एक सर्वथा नवीन विवेचन-विश्लेषण-पद्धति का प्रतिमान है। यह न केवल ‘कामायनी’ के प्रति सही समझ बढ़ाने की दिशा में नई दृष्टि और नवीन वैचारिकता जगाता है, बल्कि इसे आधार-ग्रन्थ मानकर मुक्तिबोध की कविता को और उनकी रचना-प्रक्रिया को भी अच्छे ढंग से समझा जा सकता है।
Aadybimb Aur Godan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
- Book Type:

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Description:
'आद्यबिम्ब और गोदान’ पुस्तक हिन्दी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान करती है। कविता की आद्य बिम्बात्मक आलोचना से सम्बन्धित कई पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी में हो चुका है, किन्तु कथा साहित्य के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है।
'आद्यबिम्ब’ शीर्षक पहले निबन्ध में आद्यबिम्ब की स्वरूप-विवृत्ति के लिये हिन्दी में पहली बार युग के ऊर्जीय दूष्टिकोण का सारभूत आख्यान तथा यौगपत्य-सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय है। 'आद्यबिम्ब और उपन्यास’ शीर्षक द्वितीय निबन्ध उपन्यासालोचन के क्षेत्र में आद्यबिम्ब की धारणा के संप्रयोग से सम्बन्धित है। इसमें लेखक ने अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की स्थापना की है जिनसे हिन्दी आलोचना के नए विकास की संभावनाएँ बलवती होती हैं। 'आद्यबिम्ब और गोदान' शीर्षक तीसरे निबन्ध में ‘गोदान' का आद्यबिम्बात्मक अध्ययन है। लेखक ने मुख्यत कथानक, उद्देश्य एवं भाषा के बिम्बत्व का गभीर विवेचन किया है।
'गोदान' की संरचनात्मक गहनताओं का यह अध्ययन उसके लगभग सभी विवादास्पद पहलुओं पर नई रोशनी डालता है। निस्सन्देह, यह पुस्तक हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में मील का पत्थर है।
Hindi Sahitya Ka Uttarvarti Kaal
- Author Name:
Satyadev Mishra
- Book Type:

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Description:
इस कृति में आधुनिक हिन्दी साहित्य की अन्यान्य विधाओं (कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना, पत्रकारिता, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, डायरी आदि) के उद्विकास का संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक लेखा-जोखा है। हिन्दी गद्य-पद्य की इन आधुनिक विधाओं के उत्स और विकास में पौर्वात्य के साथ पाश्चात्य साहित्य-समीक्षा का अनुप्रभाव भी यथास्थान रेखांकित किया गया है।
पुस्तक पाठक में सहज भाव-बोध अंकुरित करती है क्योंकि विषयाभिव्यक्ति प्रांजल है। इसलिए यह कृति हिन्दी के विश्वविद्यालयी स्तर के पाठकों के लिए नितान्त उपादेय एवं मूल्यवान है।
इस कृति में सूचनाएँ, प्रस्तुतियाँ और स्थापनाएँ प्रामाणिक हैं और यह हिन्दी के सुविख्यात साहित्येतिहास-लेखकों, साहित्यकारों और समीक्षकों की मान्यताओं पर आधारित तथा अनुभावित है।
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