Itihas Smriti Akanksha
Author:
Nirmal VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
क्या मनुष्य इतिहास के बाहर किसी और समय में रह सकता है? क्या हम वही हैं जो हम दिखाई देते हैं या बीते हुए समय की प्रकृति, लाखों जीव-जन्तुओं और ख़ुद मनुष्य की सैकड़ों सृष्टियाँ हमारी चेतना में कहीं मौजूद हैं? क्या आज का मनुष्य अतीत की अनेकानेक विस्मृत सृष्टियों का स्मारक है? आधुनिक मनुष्य जिसका अस्तित्व इतिहास और स्मृति के दो छोरों पर अटका हुआ है, और जिसकी आत्मखंडित चेतना अवधारणा तथा वास्तविकता के बीच झूलती रहती है, अपने सत्य तक कैसे पहुँचता है? कलाकृति का सत्य क्या है? धार्मिक और सेक्युलर के विभाजन ने हमारे सांसारिक अनुभवों को कैसे प्रभावित किया?
ये और ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिन पर निर्मल वर्मा इस पुस्तक में शामिल व्याख्यानों में अपनी विशिष्ट चिन्तन-शैली में विचार करते हैं। स्मृति, इतिहास, विचारधारा, कला-अनुभव और साहित्य के अनेक आधारभूत प्रश्नों पर उन्होंने निबन्धों में भी बार-बार विचार किया है, इन व्याख्यानों में वह प्रक्रिया और घनीभूत दिखाई देती है।
‘वत्सल निधि’ द्वारा आयोजित डॉ. हीरानन्द शास्त्री स्मारक व्याख्यान माला की दसवीं कड़ी (1990) के रूप में दिए गए ये व्याख्यान निर्मल वर्मा के चिन्तक पक्ष को गहराई से रेखांकित करते हैं और हमें पुन: उन प्रश्नों पर लौटने को आमंत्रित करते हैं जिन्हें हमने बीते दो-तीन दशकों में साहित्य-चिन्तन की परिधि से जैसे बाहर ही कर दिया है।
ISBN: 9789360866112
Pages: 82
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
मैथिलीशरण गुप्त खड़ीबोली के पहले महान कवि हैं। टी.एस. इलियट के अनुसार महान कवि कविता में नई रुचि का निर्माण करता है, उसके अनुरूप काव्य-सृजन करता है और उसमें श्रेष्ठता का प्रतिमान स्थापित करता है। गुप्त जी इन तीनों ही कसौटियों पर खरे उतरनेवाले कवि हैं। खड़ीबोली की कविता में उनके महत्त्व को ऐतिहासिक समझा जाता है, लेकिन साहित्य में ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व दो नहीं होते। वे ऐसे कवि हैं, जिन्होंने हिन्दी कविता में सभी आधुनिक मूल्यों की प्रस्तावना की है और अपने कंठ से सम्पूर्ण युग को वाणी दी है। ‘जयद्रथ-वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ और ‘भारत-भारती’ उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ हैं।
त्रिलोचन ने लिखा है कि गुप्त जी के रचनात्मक प्रयोगों का पूरी तरह आकलन करके काम होना बाक़ी है। हिन्दी के सुपरिचित आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल ने इस चुनौती को स्वीकार कर प्रस्तुत पुस्तक में उनके युग सहित उनका सामान्य परिचय देते हुए उनकी सबसे सुन्दर ग्यारह कृतियों के रचनात्मक प्रयोगों का पूर्णता से आकलन किया है और इस क्रम में उन्होंने न केवल उनके सौन्दर्य को उन्मीलित किया है, बल्कि कवि के शब्द-संसार को विस्तार भी दिया है।
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