Hindi Prayog
Author:
Ramchandra VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
किसी भाषा के मानक रूप के निर्धारण में अनेक शताब्दियों का योगदान रहता है। इसलिए उस भाषा के हर शुभचिन्तक को मनमाने प्रयोग करने से बचाना चाहिए। मनमाने प्रयोगों से भाषा का स्वरूप बिगड़ता है और उच्छृंखल प्रयोगों से तो उसकी उपयोगिता तथा विश्वसनीयता भी घटती है। नदी की भाँति भाषा का प्रवाह भी कुछ सीमाओं के भीतर ही भला लगता है।</p>
<p>गत साठ से ज़्यादा वर्षों से वर्मा जी की यह अनोखी कृति ‘हिन्दी प्रयोग’ विद्यार्थियों को अपनी भाषा का स्वरूप परम निर्मल और उज्ज्वल बनाने के लिए प्रेरित करती रही है। असंख्य विद्यार्थियों ने इस पुस्तक से लाभ उठाया है और अपनी भाषा को अशुद्धियों और त्रुटियों से बचाया है। जो लोग अच्छी हिन्दी सीखना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक बड़े काम की चीज़ है। जाने-अनजाने होनेवाली सैकड़ों प्रकार की भूलों से पीछा छुड़ाने में तथा भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करने में वर्मा जी की ‘हिन्दी प्रयोग’ आज भी निश्चित रूप से समर्थ है।
ISBN: 9788180311291
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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छात्रों, मनीषियों, चिन्तकों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी यह पुस्तक आधुनिक काव्य पर विशिष्ट अध्ययन होने के साथ-साथ नवीन समीक्षात्मक प्रतिमानों के सन्धान द्वारा उसका पुनर्पाठ तैयार करने का एक गम्भीर और साहसिक प्रयास है।
Safdar : Vyaktitva aur krititva- Hard Cover
- Author Name:
Safdar Hashmi
- Book Type:

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‘जन नाट्य मंच’ के संस्थापक सदस्य और सुविख्यात युवा रंगकर्मी सफ़दर हाशमी की स्मृति से जुड़ी यह पुस्तक साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक अलग तरह का महत्त्व रखती है। एक ओर जहाँ इसमें सफ़दर के कुछ नुक्कड़ नाटक, नुक्कड़ नाटक सम्बन्धी कुछ आलेख, गीत, कविताएँ तथा उनसे किया गया एक साक्षात्कार शामिल हैं, वहीं दूसरी ओर साहित्य और रंगमंच से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की क़लम से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को विश्लेषित करनेवाले निबन्ध भी हैं।
सफ़दर एक जुझारू संस्कृतिकर्मी थे और इसके लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटक को न सिर्फ़ एक विधा के तौर पर अपनाया, बल्कि जनवादी आन्दोलनों के पक्ष में एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया; उस पर सोचा, उसे रचा और फिर लाखों लोगों तक उसे ले गए। इसके माध्यम से उन्होंने वर्तमान दौर के अनेक ज्वलन्त सवालों और समस्याओं से सीधे-सीधे टकराते हुए उनके प्रति लाखों लोगों में एक नई वैचारिक जागरूकता और एक नया नज़रिया पैदा किया।
वे एक ऐसे बुद्धिजीवी थे, जो हर पल कर्म में घटित होते हैं और अपनी गतिशीलता से हर उस ठहराव को तोड़ते हैं जिसके कारण जीवन में कहीं भी सड़ाँध पैदा होती है। वस्तुतः सफ़दर का सम्पूर्ण जीवन, कर्म और कृतित्व वर्तमान जनवादी संघर्षों के सन्दर्भ में अपूर्व प्रेरणाओं से भरा हुआ रहा और यह कृति उनके प्रखर ऊर्जावान व्यक्तित्व तथा असमय समाप्त कर दी गई उनकी अकूत रचनात्मक क्षमता का संक्षिप्त, किन्तु दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करती है।
Aalochana Ke Naye Pariprekshya
- Author Name:
Manoj Pandey
- Book Type:

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Ramkatha : Utpatti Aur Vikas
- Author Name:
Father Kamil Bulke
- Book Type:

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सुयोग्य लेखक ने इस ग्रन्थ की तैयारी में कितना परिश्रम किया है, यह पुस्तक के अध्ययन से ही समझ में आ सकता है। रामकथा से सम्बन्ध रखनेवाली किसी भी सामग्री को आपने छोड़ा नहीं है। ग्रन्थ चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा सम्बन्धी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का सम्बन्ध ‘रामकथा की उत्पत्ति’ से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ-जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारम्भिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रन्थ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले, दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जानेवाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाए जानेवाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अन्तिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक्-पृथक् विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ काण्ड-क्रम से ली गई हैं अत: यह भाग सात काण्डों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता, प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है।
—धीरेन्द्र वर्मा
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