Rashtra, Dharma Aur Sanskriti
Author:
Hanuman Prasad ShuklaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Unavailable
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम 'राष्ट्र, धर्म और संस्कृति' रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र - सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
ISBN: 9789395386326
Pages: 320
Avg Reading Time: 11 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘शालभञ्जिका’ शब्द प्राचीन भारतीय कला की एक विशेष लोकप्रिय ललित मुद्रा का वाचक था। इसके ज्वलन्त उदाहरण भारत के विविध ऐतिहासिक केन्द्रों से प्राप्य हैं, जिसमें उच्चित्रित सुन्दरी अपने एक हाथ से वृक्ष-शाखा को नमित एवं दूसरा कटि-प्रदेश पर अलम्बित करती त्रिभङ्ग मुद्रा में विलसित है। कला के अतिरिक्त संस्कृत, पालि एवं प्राकृत साहित्य में भी इस ललित कला-मुद्रा का प्रचुर निरूपण प्राप्य है। इससे विशेष रूप से प्रभावित होनेवाले कवियों, लेखकों एवं समीक्षकों में अश्वघोष, कालिदास, श्रीहर्ष, बाणभट्ट, राजशेखर एवं गोवर्द्धनाचार्य उल्लेखनीय हैं। इनके ग्रन्थों में प्राप्य तत्सम्बन्धी विवरण कला, इतिहास एवं दर्शन की दृष्टि से रोचक, सारगर्भित एवं ज्ञानवर्द्धक हैं।
भारतीय कला के मर्मज्ञ डॉ. उदय नारायण राय ने प्राचीन ग्रन्थों का मन्थन कर साहित्यिक एवं पुरातत्त्वीय साक्ष्यों में सुन्दर सामंजस्य स्थापित करते हुए प्रस्तुत ग्रन्थ में इस ललित कला-मुद्रा का विस्तृत ऐतिहासिक परिचय एकत्र उपलब्ध कराने का अभिमत प्रयास किया है।
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