1000 Swadhinta Sangram Prashnottari
Author:
Sachin SinghalPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Unavailable
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौर में लिखे गए साहित्य को पढ़कर ज्ञात होता है कि आजादी के दीवानों तथा राष्ट्राभिमानियों ने ब्रिटिश सरकार के कितने क्रूरतम अत्याचार सहे। कितने ही राष्ट्र-प्रेमियों ने अपना जीवन राष्ट्रहितार्थ बलिदान कर दिया।
आज की नई पीढ़ी को स्वाधीनता संग्राम और उन बलिदानियों के विषय में से परिचित कराना आवश्यक है। आज की भागमभागवाली जीवन-चर्या में व्यक्ति के पास समय का अभाव है, दूसरे आज हम प्रतियोगिता के युग में रह रहे हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर यह पुस्तक वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के रूप में अत्यंत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई है। इस कृति को पढ़कर भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रति अंतर्दृष्टि का विकास होता है।
प्रस्तुत पुस्तक में ब्ल्यू वाटर पॉलिसी, 1857 के स्वातंत्र्य समर, क्रांतिकारियों, देशभक्तों कांग्रेस का गठन विभिन्न ऐक्ट, कमीशन आदेश, उस काल के समाचार पत्र-पत्रिका-पुस्तकों आदि से संबंधित एक हजार प्रश्न संकलित हैं। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करनेवाली; विद्यार्थियों, अध्यापकों, शोधार्थियों एवं सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए समान रूप से पठनीय एवं प्रेरणादायी पुस्तक।
ISBN: 9788177213003
Pages: 156
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस पुस्तक में नन्दकिशोर आचार्य गाँधी विषयक उन धारणाओं का उन्मूलन करते हैं जो गाँधी-विरोधियों के लिए लगभग फ़ैशन हो चली है। वे आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि कबीर को उनकी आध्यात्मिकता के बावजूद क्रान्तिकारी या विद्रोही मानने वाले विद्वान कबीर के समकक्ष, बल्कि अधिक व्यापक गाँधी की आध्यात्मिकता के चरित्र को क्यों नहीं समझ पाते?
इसी तरह मार्क्स समेत अनेक विचारकों द्वारा हिंसा को स्वीकार्य मान लिए जाने के बावजूद, गाँधी द्वारा अहिंसा को एक अस्त्र के ही रूप में प्रस्तुत करना, उसे साधना खुद में एक क्रांतिकारी घटना थी जिसने मनुष्य के निज विवेक को समूह के अचिंतित आवेगों-उद्वेगों से ऊपर और अपेक्षाकृत ज़्यादा शक्तिशाली बताया, जो मानव के रचनात्मक पक्ष की उत्तरजीविता की ज्यादा भरोसेमंद गारंटी देता है।
साध्य के मुक़ाबले साधन की पवित्रता पर ज़ोर देना, निर्बलतम के कल्याण को सभ्यता की कसौटी मानना और किसी भी विचार की पहली प्रयोग स्थली अपने ही जीवन और देह को बनाना—इन सबको भले ही आज वाचल और अर्थ-क्षरित जुमलेबाजियों ने घिस-घिसकर बेअसर कर दिया हो, लेकिन अपने मस्तिष्क की सफाई करके देखें तो ये सचमुच ही बड़े और क्रान्तिधर्मी विचार हैं जो हमारी जीवन तथा विश्वदृष्टि को आमूल बदल सकते हैं। गाँधी को एक नए सिरे से जानने के लिए इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें।
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