Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Siddharthnagar
Author:
Dr. Arun Kumar TripathiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
यह पुस्तक आजादी के आंदोलन में सिद्धार्थनगर जनपद के योगदान को रेखांकित करती है। विद्वान लेखक ने सम्यक् अध्ययन एवं शोध के उपरांत इस पुस्तक को लेखनीबद्ध किया है। मुगल आक्रांताओं से लोहा लेने के लिए सतासी राज्य के इतिहास से लेकर 1857 में हुई देशव्यापी ब्रिटिश विरोधी क्रांति तक इस जनपद के जन-गण ने अपनी भूमि और अपने देश के लिए जान हथेली पर रखकर संघर्ष किया।</p>
<p>19वीं सदी के आंदोलनों में यहाँ के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। चौरी-चौरा जनक्रांति के पश्चात् इस जनपद के लोगों के आंदोलित होने पर तत्कालीन अधिकारियों ने शोहरतगढ़ के कांग्रेस कार्यालय को जला दिया था।</p>
<p>पं. परमेश्वर दत्त को कोड़ों से पीटा गया। शहीद बुधई की जान भी ऐसे ही अत्याचार के कारण गई। शहीद हबीबुल्लाह ने जेल में अनशन करके अपने प्राण त्याग दिए। ऐसी तमाम घटनाएँ इस जनपद के इतिहास में आज अपनी अलग ही चेतना से जगमगा रही हैं जिन्हें इस पुस्तक के माध्यम से देशभक्त जन के सामने लाया जा रहा है।
ISBN: 9789394902701
Pages: 164
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत की आज़ादी के साथ जुड़ी देश-विभाजन की कथा बड़ी व्यथा-भरी है। आज़ादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने देश-विभाजन का ज़हरीला घूँट दवा की तरह पी लिया, लेकिन यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित ही बना हुआ है कि क्या भारत- विभाजन आवश्यक था ही? इस सम्बन्ध में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अवश्य लिखा है और उन्होंने विभाजन की ज़िम्मेदारी तत्कालीन अन्य नेताओं पर लादी है। डॉ. राममनोहर लोहिया ने विभाजन के निर्णय के समय होनेवाली सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था और इस पुस्तक में उन्होंने देश-विभाजन के कारणों और उस समय के नेताओं के आचरण पर बड़ी निर्भीकता से विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
लोहिया जी इस देश-विभाजन को नक़ली मानते थे और उनका विश्वास था कि एक दिन फिर देश के बँटे हुए टुकड़े एक होकर पूरा भारत एक बनाएँगे। लोहिया का यह सपना सच हो, यही कामना हम भी करते हैं।
—ओंकार शरद
Bharat Ka Nav-Nirman
- Author Name:
Suresh Rungta
- Book Type:

- Description: छह विभिन्न शीर्षकों में विभक्त प्रस्तुत पुस्तक ‘भारत का नव निर्माण’ सुरेश रूँगटा द्वारा समयसमय पर विभिन्न पत्रों में लिखे गए सारगर्भित लेखों का संकलन है। इन आलेखों में पिछले तीनचार वर्षों के दौरान राज्य के अलावा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए बुनियादी एवं सुधारवादी परिवर्तनों का विस्तार से विवरण है। ज्वलंत विषयों तथा घटनाओं, खासकर आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं पर आधिकारिक ढंग से गहन एवं निष्पक्ष चिंतन और विवेचन के साथ उसके उचित समाधान के तर्कसम्मत सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं। मूल रूप से पुस्तक का आलोच्य विषय है—भारत का पुनरुत्थान—भौतिक एवं बौद्धिक स्तरों पर। भारत एवं हिंदुत्व के विरुद्ध फैलाई जा रही भ्रांति एवं अनर्गल प्रवादों का परदाफाश करके रूँगटाजी ने लोकोपयोगी काम किया है। कृषिसमस्या, भूमिअधिग्रहण, पर्यावरण की रक्षा, खाद्यसुरक्षा, गरीबों की बैंक तक पहुँच एवं कालेधन और भ्रष्टाचार की विदाई के अलावा विकास के पैमाने की विकृति और नैतिकता से बढ़ती हुई दूरी आदि से संबंधित लेख भी पुस्तक में संकलित हैं। निस्संशय सामयिक विषयों पर तटस्थ भाव से विवेचन पुस्तक की सार्थकता है। भारत के नवनिर्माण तथा स्वर्णिमउज्ज्वल भविष्य के लिए जिस मनःस्थिति और कार्यकलापों की आज आवश्यकता है, उनपर केंद्रित हैं इस पुस्तक के पठनीय लेख।
Bharatiya Janata Party Ki Gauravgatha
- Author Name:
Shantanu Gupta
- Book Type:

- Description: 29 मार्च, 2015 को, 11 अशोक रोड स्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पुराने कार्यालय में एक डिजिटल काउंटर आगे बढ़ता जा रहा था। पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी, यहाँ तक कि स्टाफ की नजरें भी डिजिटल स्क्रीन पर जमी थीं। स्क्रीन पर पार्टी की सदस्यता लेनेवालों की कुल संख्या दिख रही थी, जिन्हें पार्टी के नए ‘सदस्यता अभियान’ से जोड़ा जा रहा था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अमित शाह उस दिन कार्यालय में ही थे। बालसुलभ उत्सुकता के साथ उनकी भी नजरें डिजिटल काउंटर पर ही गड़ी थीं। काउंटर जैसे ही अपने लक्ष्य पर पहुँचा, पूरा कार्यालय खुशी से झूम उठा। 8.8 करोड़ सदस्यों तक पहुँचते ही इसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़ दिया था। इस महत्त्वाकांक्षी सदस्यता अभियान के पीछे अमित शाह की ही सोच थी। यह कैसे संभव हुआ? क्या यह महज आँकड़े जुटाने का अभियान था, जिसने भाजपा के भाग्य को और बलवान बनाया, या इसके पीछे ऐसी सोच थी, जिसका समय आ चुका था? 1984 में लोकसभा में महज दो सीटों वाली पार्टी का विपक्ष को इस प्रकार बुरी तरह परास्त करना और इतना भीमकाय रूप लेना क्या मात्र मोदी-शाह की जोड़ी का कमाल है या इसके कारण हिंदुत्व आंदोलन की उस जटिलता की गहराई में छिपे हैं, जिसे लेकर काफी गलतफहमी है? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए शांतनु गुप्ता भारत के दक्षिणपंथी आंदोलनों के इतिहास, उनकी वैचारिक उत्पत्ति से राष्ट्रवादी विचारों के विकास तक जाते हैं, और भाजपा पर एक समग्र अध्ययन को लेकर आते हैं, जो मात्र एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक वैचारिक संगठन है, जो इस देश के राष्ट्रवादी आंदोलन को इस प्रकार परिभाषित करता है, जैसा पहले कभी नहीं किया गया था।
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