Purv Madhyakaleen Bharat
Author:
Prashant GauravPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 600
₹
750
Available
पूर्वमध्यकाल का इतिहास सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का सर्वाधिक विवादास्पद, रुचिपूर्ण और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण चरण है। अध्ययन की सुविधा के लिए 600 ई. और 1200 ई. के बीच के काल को परिपक्व पूर्वमध्यकाल कहते हैं। गहराई से देखने पर पता चलता है कि पूर्वमध्यकाल की प्रमुख विशेषताओं का जन्म गुप्तकाल में ही हो चुका था। इस काल को सामन्तवाद, नगरों का पतन और उत्थान, नवीन सामाजिक-व्यवस्था का काल, क्षेत्रीय भाषा और क्षेत्रीय धर्म का काल अथवा मन्दिरों का युग के नाम से भी जाना जा सकता है।</p>
<p>दक्षिण भारत में विशाल मन्दिरों का निर्माण इस काल में हुआ। देवदासियों की नवीन परम्परा विकसित हुई। भारतीय दर्शन में नवीन तत्त्व देखे जाने लगे। भक्ति, तंत्र-मंत्र (और जादू-टोना का महत्त्व बढ़ा। शंकराचार्य के दर्शन को नवीन शैली में लोकप्रियता प्राप्त हुई। क्षेत्रीय शासकों, क्षेत्रीय धर्म एवं क्षेत्रीय भाषा की संख्या बढ़ी। प्रशासनिक एवं धार्मिक केन्द्रों की संख्या बढ़ी और व्यापारिक नगरों की संख्या नगण्य रही। जातियों एवं उपजातियों की संख्या सौ से अधिक हो गई। छोटे-बड़े और काले-गोरे देवी-देवता पाए जाने लगे। जनसमुदाय की आर्थिक दशा संकटपूर्ण रही। क्षत्रिय के बदले राजपूत पाए जाने लगे। राजाओं के बीच हमेशा युद्ध का माहौल बना रहता था। इनकी आपसी अनेकता से विदेशी शक्तियों ने लाभ उठाया। सबसे पहले अरबों के आक्रमण हुए और उसके बाद गोरी और गज़नी के आक्रमणों ने भारत में मुस्लिम शासन की नींव डाल दी।</p>
<p>इन सभी तथ्यों पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। गुप्तकाल के पतन के बाद से लेकर गोरी-गज़नी के आक्रमण और उनके प्रभाव तक की इसमें विवेचना की गई है।</p>
<p>केन्द्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं, प्रान्तीय प्रतियोगी परीक्षाओं और दिल्ली तथा पटना विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक को तैयार किया गया है। विश्वास है, छात्रों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
ISBN: 9788126717446
Pages: 432
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: रचनाकार के लेखन का आरंभ बहुधा किशोरावस्था में होता है... बाल्यकाल में तो ईश्वरीय वरदान पाए कवि ही लिखते हैं। प्रायः कवि की आरंभिक रचनाओं में किशोर-स्वप्न, कल्पनाएँ, नव पल्लवित कल्पित प्रेम-प्रणय, प्रतिक्षित नवांतुक प्रणय के प्रति उल्लास, उत्कंठा की प्रधानता रहती है। समय कविता को सँवारने में लगा रहता है। कवि की आयु के साथ-साथ कविता की आयु भी बढ़ती है। उसके कोष में जीवन के कठोर धरातल के अनुभव बढ़ जाते हैं, दार्शनिक स्तर पर भी वैचारिक परिपक्वता बढ़ती है। कवि प्रौढ़ होता है तो रचनाएँ भी प्रौढ़ आकार लेने लगती हैं। अब कविता की परिधि परिवार से बाहर निकलकर समाज-राष्ट्र, प्रकृति या समय-काल की ओर अग्रसर होती है। इसके पश्चात् आरंभ होती है कवि की अंतर्मुुखी यात्रा। अब कविता संसार से परे नियंता की खोज में उतर आती है। यह संग्रह प्रख्यात लेखिका रेणु राजवंशीजी के विगत पचास वर्षों में लिखी कविताओं का पठनीय संकलन है। इस दीर्घ काव्य-यात्रा से उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना की झलक मिलती है, उनके राष्ट्रीय और मानवीय सरोकारों की बानगी मिलती है।
The Gandhian Statesman of Bihar Nitish Kumar
- Author Name:
Ashok Choudhary +1
- Book Type:

- Description: "In the eyes of those who had lost all hopes in Bihar, Nitish Kumar has acquired the status of a miracle man. After all, how did he work for the revival of the state? Nitish Kumar is not a professional manager, he is a politician. When he took over as the Chief Minister of Bihar in November 2005, he frequently reminded the officials that the performance of the government was at stake in his ministry and not in the bureaucracy. If the government succeeds, then all the credit will be given his ministry. If it fails, his ministry will have to own the responsibility. Bureaucrats would not lose their jobs, but he (the Chief Minister) will have to go. Inspite of all this, Nitish Kumar earned a permanent place in the hearts of the people by working towards solving the issues related to the basic needs of the people and he emerged as the pioneer of social revolution. This process of improvement continues unabated. A readable and collectable saga that introduces you to the untold, inspiring, interesting, and adventurous campaigns of the social revolution of Nitish Kumar."
Jab Neel Ka Daag Mita : Champaran-1917
- Author Name:
Pushyamitra
- Book Type:

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Description:
सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।
गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।
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