Bhartiya Rajniti Par Ek Drishti
Author:
Kishan PatnayakPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
इस पुस्तक में आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति के परिदृश्य का उसके समस्त आयामों में गम्भीर विश्लेषण मिलता है। सम्यक् विश्लेषण के साथ-साथ लेखक ने आधुनिक राजनीति की सभी अवधारणाओं, मूल्यों, मान्यताओं, विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका आदि संस्थाओं, विविध प्रक्रियाओं-घटनाओं, नेताओं आदि पर अपना मत रखा है। आधुनिक राजनीति के बीजपदों—संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, समाजवाद, गांधीवाद, साम्यवाद, राष्ट्र, राज्य, राष्ट्र-राज्य, राष्ट्रीय सम्प्रभुता, राष्ट्रीय अस्मिता, क्षेत्रीय अस्मिता, अन्तरराष्ट्रीयता, अर्थनीति, विदेशनीति, कूटनीति, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, तानाशाही, फासीवाद, साम्प्रदायिकता, जगतीकरण आदि का अर्थभेदन समता के विचार की ज़मीन पर खड़े होकर किया है। भारतीय के अलावा दुनिया की राजनीति पर भी पैनी और गहरी निगाह डाली है। भारत और दुनिया के प्राचीन राजनैतिक अनुभव और ज्ञान का हवाला भी कई जगह आया है।</p>
<p>किशन पटनायक इस दौर के ज़्यादातर बुद्धिजीवियों की तरह महज विश्लेषण के लिए विश्लेषण नहीं करते। वे देश के अकेले ऐसे चिन्तक हैं जिन्होंने उदारीकरण-ग्लोबीकरण के हमले की आहट सबसे पहले सुनी। भारत के राजनेताओं और बुद्धिजीवियों को चेतावनी देने के साथ उन्होंने देशव्यापी जनान्दोलनों की एकजुटता और राजनीतिकरण का निरन्तर प्रयास किया। इसी क्रम में उन्होंने भारत सहित दुनिया में तेज़ी से फैलते पूँजीवादी साम्राज्यवाद के मुक़ाबले एक वैकल्पिक विचारधारा (समाजवादी) गढ़ने का भी निरन्तर प्रयास किया। उनके बाक़ी लेखन के समान इस पुस्तक में भी वैकल्पिक विचारधारा के सूत्र और कार्यप्रणाली दर्ज हुए हैं।</p>
<p>पिछले पाँच वर्षों से चर्चा में चली आ रही ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ के बाद किशन पटनायक की यह दूसरी पुस्तक है। यूँ तो जीवन के सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के लिए यह पुस्तक पठनीय है, लेकिन परिवर्तनकारी सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह एक अपरिहार्य पुस्तक है। इसके साथ एक छोटी पुस्तक ‘किसान आन्दोलन : दशा और दिशा’ भी प्रकाशित हुई है।
ISBN: 9788126719372
Pages: 275
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: A Corner of a Foreign Field seamlessly interweaves biography with history, the lives of famous or forgotten cricketers with wider processes of social change. C. K. Nayudu and Sachin Tendulkar naturally figure in this book but so, too, in unexpected ways, do B. R. Ambedkar, Mahatma Gandhi and M. A. Jinnah. The Indian careers of those great British cricketers, Lord Harris and D. R. Jardine, provide a window into the operations of Empire. The remarkable life of India’s first great slow bowler, Palwankar Baloo, provides an arresting new perspective on the struggle against caste discrimination. Later chapters explore the competition between Hindu and Muslim cricketers in colonial India and the destructive passions now provoked when India plays Pakistan. For this new edition, Ramachandra Guha has added a fresh introduction as well as a long new chapter, bringing the story up to date to cover, among other things, the advent of the Indian Premier League and the Indian team’s victory in the World Cup of 2011, these linked to social and economic transformations in contemporary India. A pioneering work, essential for anyone interested in either of those vast themes, cricket and India, a Corner of a Foreign Field is also a beautifully written meditation on the ramifications of sport in society at large.
Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas
- Author Name:
Sunil Kumar Singh
- Book Type:

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Description:
यह पुस्तक नवीनतम स्रोत सामग्री को सन्दर्भित करते हुए लिखी गई है। लेखक ने बड़ी कुशलता के साथ सन्दर्भ ग्रन्थों को समन्वयित किया है कि विशेषज्ञों के अलावा साधारण पाठकों को भी आख्यान बोधगम्य हो सके।
इस पुस्तक में मुगलों की नई काराधान व्यवस्था के आने से कृषि के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली संकटपूर्ण परिस्थितियों को उजागर किया है। लेखक का मानना है कि इस संकट के बावजूद ग्रामीण घरों में सूत कातने और कपड़ा बुनने की परम्पराएँ कायम रहीं। किन्तु मुग़ल नीतियों का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि कृषि और शिल्प दो अलग-अलग व्यवसायों के रूप में नज़र आने लगे। अध्याय के अन्त में लेखक ने परम्परागत शिल्पों को स्वतन्त्र व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत कर लम्बे अरसे से चली आ रही भ्रान्तियों को दूर किया है। शिल्प उत्पादन के सम्बन्ध में विस्तृत वृत्तान्त मिलता है।
दक्षिण भारत के राजस्व इतिहास को समाहित कर इस पुस्तक को पूर्णतः समावेशी बना दिया गया है। पाँचवें अध्याय में मध्यकालीन कराधान की व्यवस्था, शहरी उत्पादन, सिक्कों के प्रकार और प्रसार का उल्लेख है। मध्यकालीन भारत में नाप-तौल की प्रणालियों, मजदूरी और उत्पादकों पर विदेशी पूँजी के बढ़ते दबाव से सम्बन्धित है। लेखक ने तालिकाओं और आँकड़ों की सहायता से व्यापार और व्यवसायों के समक्ष बढ़ती चुनौतियों को स्पष्ट किया है।
विश्वास है कि सुधी पाठकों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे पाठकों को यह रचना समान रूप से पसन्द आएगी।
ललित जोशी
प्रोफेसर, इतिहास विभाग
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Gonda
- Author Name:
Nisha Gahlot
- Book Type:

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Description:
भारत की स्वतंत्रता के लिए जनपद गोण्डा के रियासतदारों ने जिस वीरता और समर्पण के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया वह जितना श्लाघनीय है, उतना ही प्रणम्य भी। राष्ट्रीय आंदोलन के हर चरण में इस क्षेत्र की सक्रियता अबाधित रही है। इनमें भी गोंडा नरेश देवी बख्श सिंह की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में जिले का वह इतिहास समेटा गया है जिसके केंद्र में देश का स्वतंत्रता संघर्ष है।
ज्ञात हो कि जिला गोंडा की स्वातंत्र्य-चेतना का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। यही नहीं संस्कृति के संदर्भ में भी इसका स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशीय चक्रवर्ती राजाओं की छत्रच्छाया में यह पावन भूमि आश्रम-संस्कृति का केंद्र बनी और कितनी ही घटनाओं की साक्षी भी। राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, दशरथ द्वारा मात-पितृभक्त श्रवण कुमार का वध, च्यवन, पाराशर, शौनक और जमदग्नि ऋषि की आश्रम-स्थली से लेकर यह भूमि बुद्ध के संचरण और विश्राम तथा अमर रचनाकार तुलसी के जन्म की साक्षी भी रही।
यह पुस्तक जिला गोंडा की इसी ऐतिहासिकता को समर्पित है।
Rebels Against the Raj
- Author Name:
Ramchandra Guha +1
- Book Type:

- Description: भारतीय स्वातंत्र्यासाठी झालेला संघर्ष आणि लढा यांचा असाधारण इतिहास म्हणजे ‘रिबेल्स अगेन्स्ट द राज' हे पुस्तक होय. जो देश स्वत:चा नाही, त्याच्यासाठी लढणाऱ्या सात वीरांची ही बव्हंशी अपरिचित अशी कहाणी आहे. भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्याला हातभार लावण्यासाठी एकोणिसाव्या शतकाच्या अखेरीपासून हे विदेशी वीर देशात दाखल होऊ लागले होते. या सातांपैकी चार ब्रिटिश होते, दोन अमेरिकी होते, तर एक आयरिश होती. त्यांत चार पुरुष आणि तीन स्त्रिया होत्या. कारावास भोगण्याआधी वा हद्दपार केले जाण्याआधी त्यांनी अनेक क्षेत्रांत पायाभूत कार्य केले होते. त्यांत पत्रकारिता, सामाजिक सुधारणा, शिक्षण, सेंद्रीय शेती आणि पर्यावरण यांचा अंतर्भाव होता. हे पुस्तक त्यांच्या कहाण्या सांगते. प्रत्येक बंडखोर आदर्शवाद आणि सच्च्या समर्पणवृत्तीने भारावलेला होता. प्रत्येक या ना त्या प्रकारे गांधींशी जोडला गेलेला होता. त्यांतील काही अनुयायी म्हणून तर काही त्यांच्या दृष्टिकोनाचे संतप्त विरोधक म्हणून. संघर्षाची परिणती तुरुंगवासात होऊ शकते, आणि त्यांचे उर्वरित आयुष्य भारतातच जाऊ शकते वा येथेच त्यांचा मृत्यूही होऊ शकतो, याची खूणगाठही प्रत्येकाने मनाशी बांधलेली होती. आपापल्या कार्यक्षेत्रात प्रत्येकाने आपला अमीट ठसा उमटवला होता आणि त्यांनी उभ्या केलेल्या संस्था तसेच त्यांनी घडविलेल्या पिढ्या व व्यक्ती यांच्या रूपाने त्यांचा वारसा आजही जिवंत आहे. आपसात गुंतलेल्या त्यांच्या जीवन प्रवासाच्या या गोष्टी, जगातील सर्वोत्तम इतिहासकारांमध्ये गणल्या जाणाऱ्या लेखकाने लक्षवेधकपणे मांडल्या आहेत. अर्थात या केवळ गोष्टी नाहीत, तर भारत आणि पाश्चात्त्य जग यांचे संबंध, ब्रिटिश वसाहतवादी सत्तेपलीकडील आपली ओळख तसेच नागरी स्वातंत्र्ये यांचा शोध घेणारे राष्ट्र म्हणून भारताची धडपड, यांविषयीची सखोल अंतर्दृष्टी देणाऱ्या अनोख्या कहाण्या आहेत. Rebels Against The Raj | Ramachandra Guha Translated By : Satish Kamat रिबेल्स अगेन्स्ट द राज | रामचंद्र गुहा अनुवाद : सतीश कामत
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