Daleeya Ghere Ke Bahar : Young Indian ke sampadkiya
Author:
ChandrashekharPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 956
₹
1195
Available
भारत में ऐसे राजनेता बहुत कम रहे हैं जिन्होंने अपने विचारों को लिखित रूप में लगातार अपने समकालीनों और पाठकों तक पहुँचाया और इस प्रकार न सिर्फ़ अपना पक्ष स्पष्ट किया बल्कि लोगों को शिक्षित भी किया। चन्द्रशेखर उनमें अग्रणी हैं। वे लम्बे समय तक ‘यंग इंडियन’ का सम्पादन-प्रकाशन करते रहे, और देश, राजनीति और समाज को प्रभावित करनेवाली हर घटना पर बिना किसी पूर्वग्रह और स्वार्थ के लिखते रहे। यह साप्ताहिक ‘यंग इंडियन’ में उनके लिखे सम्पादकीय का संग्रह है। इस खंड में 1971 से 2001 तक की तीन दशकों की अवधि में लिखी सम्पादकीय टिप्पणियों को शामिल किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह पूरा दौर भारतीय राजनीति में बड़ी घटनाओं और फेर-बदल का समय रहा है। इसी दौर में भारत-पाक युद्ध और तदुपरान्त बांग्लादेश का अभ्युदय हमने देखा, इंदिरा गांधी का ‘ग़रीबी हटाओ’ आन्दोलन इसी दौर में चला; 1971 के लोकसभा चुनावों में उनकी जीत, उसके बाद जनता पार्टी सरकार, उसका भंग होना और पुन: इंदिरा गांधी की वापसी इसी कालखंड में हुई।</p>
<p>जिन मुद्दों और घटनाओं पर राजनेता और विचारक चन्द्रशेखर के विचार आप यहाँ पढ़ेंगे, उनमें उपरोक्त के अलावा आपातकाल, इंदिरा गांधी की हत्या, उसके बाद राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना, बोफोर्स मामले के बाद उनका सत्ता से हटना और वी.पी. सिंह का प्रधानमंत्री बनना, स्वयं चन्द्रशेखर का अल्पकालिक प्रधानमंत्रित्व, राजीव हत्याकांड और नरसिम्हा राव शासन का आरम्भिक दौर आदि शामिल हैं। बतौर नेता और राजनीतिक चिन्तक चन्द्रशेखर को स्वतंत्र विचार के लिए जाना जाता है। इस पूरे दौर को उन्होंने निष्पक्ष भाव से देखते हुए, क्या सोचा और देशहित में क्या चाहा, उस सबका निरूपण वे लगातार अपने सम्पादकीय में करते रहे। इन सम्पादकीय लेखों से गुज़रना सिर्फ़ चन्द्रशेखर के विचारों से ही नहीं, उस दौर के इतिहास से भी गुज़रना है।
ISBN: 9789389577426
Pages: 440
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे। वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया । चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है। इसीलिए इस संचयन का नाम 'राष्ट्र, धर्म और संस्कृति' रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र - सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
Agni Ki Udaan
- Author Name:
Dr. A.P.J. Abdul Kalam +1
- Book Type:

- Description: " त्रिशूल ' के लिए मैं ऐसे व्यक्ति की सुलाश में था जिसे न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मिसाइल युद्ध की ठोस जानकारी हो बल्कि जो टीम के सदस्यों में आपसी समझ बढ़ाने के लिए पेचीदगियों को भी समझा सके और टीम का समर्थन प्राप्त कर सके । इसके लिए मुझे कमांडर एस.आर. मोहन उपयुक्त लगे, जिनमें काम को लगन के साथ करने की जादुई शक्ति थी । कमांडर मोहन नौसेना से रक्षा शोध एवं विकास में आए थे । ' अग्नि ', जो मेरा सपना थी, के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो इस परियोजना में कभी-कभी मेरे दखल को बरदाश्त कर सके । यह बात मुझे आर.एन. अग्रवाल में नजर आई । वह मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेकोलॉजी के विलक्षण छात्रों में से थे । वह डी.आर.डी.एल. में वैमानिकी परीक्षण सुविधाओं का प्रबंधन सँभाल रहे थे । तकनीकी जटिलताओं के कारण ' आकाश ' एवं ' नाग ' को तब भविष्य की मिसाइलों के रूप में तैयार करने पर विचार किया गया । इनकी गतिविधियाँ करीब आधे दशक बाद तेजी पर होने की उम्मीद थी । इसलिए मैंने ' आकाश ' के लिए प्रह्लाद और ' नाग ' के लिए एन. आर. अय्यर को चुना । दो और नौजवानो-वी.के. सारस्वत एवं ए.के. कपूर को क्रमश: सुंदरम तथा मोहन का सहायक नियुक्त किया गया । -इसी पुस्तक से प्रस्तुत पुस्तक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन की ही कहानी नहीं है बल्कि यह डॉ. कलाम के स्वयं की ऊपर उठने और उनके व्यक्तिगत एवं पेशेवर संघर्षों की कहानी के साथ ' अग्नि ', ' पृथ्वी ', ' आकाश ', ' त्रिशूल ' और ' नाग ' मिसाइलों के विकास की भी कहानी है; जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मिसाइल-संपन्न देश के रूप में जगह दिलाई । यह टेकोलॉजी एवं रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की आजाद भारत की भी कहानी है । "
Lahooluhan Afganistan
- Author Name:
Shridhar Rao +1
- Book Type:

- Description: अफ़ग़ानिस्तान की भौगोलिक संरचना उसकी स्थिति को अनूठा बनाती है। सभ्यता की शुरुआत से ही ये विभिन्न क़ाफ़िलों के आने-जाने का मार्ग रहा है। जो भी सुदूर पूर्व या भारत के जंगलों तथा नदियों की तरफ़ जाना चाहता, उसे अफ़ग़ानिस्तान की घाटियों तथा पहाड़ियों को ज़रूर पार करना पड़ता। एशिया और यूरोप, अरब दुनिया और दक्षिण एशिया और मध्य एशिया एवं पश्चिम एशिया के बीच स्थित होने की वजह से ये हर किसी को लुभाता है। क्या तालिबान के हटने तथा नई सत्ता के आने से ये लोभ-लालच ख़त्म होगा? पाँच साल के तालिबान शासन ने अफ़ग़ानिस्तान को सदियों पीछे ढकेल दिया है। शासकों ने बामियान की बौद्ध मूर्तियों के रूप में अपनी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर खो दी। ये एक तरह से द्वेष में आकर अपनी ही नाक काट लेने जैसा था, क्योंकि दुनिया ने तालिबान के तौर-तरीक़ों तथा विश्व आतंकवाद के निर्माता के रूप में उसे नामंज़ूर कर दिया था। काबुल के संग्रहालय को प्रसिद्ध गांधार चित्रों तथा प्रतिमाओं से वंचित कर दिया गया। कम्युनिस्ट शासन के दौरान महिलाओं को काम करने की पूरी आज़ादी थी, मगर अफ़ग़ानिस्तान इस स्थिति से उस स्थिति में ले जाया गया जहाँ तालिबान का राज था और जिसमें महिलाएँ दरवाज़ों के पीछे क़ैद कर दी गईं। स्कूल-कॉलेज तथा कामकाज की जगहों से हटाकर उन्हें बलात्कार के लिए छोड़ दिया गया। अपने समूचे ख़ूनी इतिहास में सम्भवतः एक बरबाद समाज ने सबसे ज़्यादा विधवाएँ और अनाथ देखे। इससे भी बुरा ये हुआ कि जो भी पढ़ा-लिखा था और मुल्क से जा सकता था, वो अपनी ज़िन्दगी की हिफ़ाज़त के लिए चला गया। क्या उनमें से कुछ लोग वापस लौटेंगे? उम्मीद करनी चाहिए कि लौटेंगे, मगर कुछ समय के बाद ही क्योंकि आज की हालत डरावनी है। अब इतिहास ने अफ़ग़ानिस्तान को एक और मौक़ा प्रदान किया है। विश्व बिरादरी के लिए भी ये एक अवसर है जब वो अफ़ग़ानिस्तान में एक सामूहिक भूमिका अदा कर सकती है। अफ़ग़ानिस्तान के अतीत और वर्तमान पर एक अनिवार्यतः पठनीय पुस्तक।
Dorahe Par Vam
- Author Name:
Praful Bidwai
- Book Type:

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Description:
एक बड़ा प्रासंगिक सवाल उठता है कि भारत में राजनीतिक दलों के लिए वैधता के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में वामपंथी राजनीति उस सीमा तक क्यों नहीं विकसित हो पाई जैसा कि बेहिसाब अन्याय और बढ़ती जाती असमानता वाले समाज में अपेक्षित था।
दलीय वाम अब प्राथमिक रूप से दो धाराओं में सीमित रह गया है : मुख्यधारा वाले संसदीय साम्यवादी दल और उनके सहयोगी तथा ग़ैर-संसदीय माओवादी अथवा मार्क्सवादी-लेनिनवादी समूह।
इस पुस्तक के सरोकार का विषय सीमित है : यह प्राथमिक रूप से संसदीय साम्यवादी दलों पर केन्द्रित है। इस सीमा के पीछे तीन कारक हैं। पहला, मुख्यधारा वाले गुट को भारत की बुर्जुआ उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था–अपनी सीमाओं के बावजूद जिसे जनता से पर्याप्त वैधता प्राप्त है–से जुड़ने का प्रयास करने का सबसे लम्बा और सबसे समृद्ध अनुभव है और यह प्रगतिशील परिवर्तन और रूपान्तरण की संभावनाओं वाली राजनीति के अवसर प्रदान करता है।
दूसरे, वामपंथ की सभी धाराओं में मुख्यधारा वाला खेमा सबसे बड़ा है और विविध विभाजनों, असहमतियों और पारस्परिक प्रतिद्वान्दिताओं के बावजूद इसका लगातार सबसे लम्बा संगठित अस्तित्व रहा है।
तीसरे, और यह बात बहुत चकरानेवाली लग सकती है कि मुख्यधारा के वाम पर राज्य केन्द्रित अध्ययनों, लेखों से अलग राष्ट्रीय स्तर पर ताज़ा विश्लेषणात्मक साहित्य बहुत कम है। आशा है कि यह पुस्तक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी दलों के कामकाज के विश्लेषण को उनके विचारधारात्मक आग्रहों, रणनीतिक परिप्रेक्ष्यों, राजनीतिक गोलबंदियों के दृष्टिकोणों और संगठनात्मक प्रणालियों तथा व्यवहारों के साथ जोड़कर इस शून्य को भरने में मदद करेगी।
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