Sarabjit Singh ki Ajeeb Dastan
Author:
Awaish SheikhPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Available
सरबजीत के मामले में अभियोजन पक्ष के सबूत बहुत ही कमज़ोर हैं। उसका नाम एफ़आईआर में भी दर्ज नहीं था।</p>
<p>—न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू<strong>; </strong>पूर्व अध्यक्ष<strong>, </strong>प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया<strong>, </strong>भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और फ्री सरबजीत कमेटी के अध्यक्ष</p>
<p><strong> </strong></p>
<p>सीमा के दोनों ओर इस तरह के कई मामले हैं। इन मामलों का पुनर्निरीक्षण होना चाहिए और अविलम्ब कैदियों की अदला-बदली होनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान<strong>, </strong>दोनों को ही इस तरह के कैदियों की पहचान करके उन्हें जेनेवा कन्वेंशन के प्रावधानों के आधार पर छोड़ना चाहिए।</p>
<p>—कमल एम. मोरारका<strong>; </strong>पूर्व केन्द्रीय मंत्री<strong>, </strong>समाजसेवी एवं फ्री सरबजीत कमेटी के सदस्य</p>
<p><strong> </strong></p>
<p>दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे के नागरिकों के साथ बन्धकों जैसा व्यवहार करती हैं<strong>, </strong>यद्यपि लोग अच्छे पड़ोसियों की तरह रहने की कामना करते हैं। लोगों को सरकारों पर दबाव बनाने के लिए आगे आना चाहिए<strong>, </strong>ताकि भारत और पाकिस्तान में कोई दूसरा सरबजीत न हो।</p>
<p>संतोष भारतीय<strong>; </strong>प्रधान सम्पादक<strong>, </strong>‘चौथी दुनिया’<strong>, </strong>साप्ताहिक अख़बार</p>
<p><strong> </strong></p>
<p>सरबजीत के केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई। यह विडम्बना है। अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों की विचित्रता और दोषपूर्ण न्याय-प्रणाली का आपसी मेल इस व्यक्ति के दुर्भाग्य का कारण बना।</p>
<p>—ज़ुबैदा मुस्तफ़ा<strong>; </strong>पॉपुलेशन इंस्टीट्यूट<strong>, </strong>वाशिंगटन<strong>, </strong>अमेरिका द्वारा दिए जानेवाले <strong>‘</strong>ग्लोबल मीडिया अवार्ड फ़ॉर एक्सीलेंस<strong>’</strong> 1986 व 2004 की विजेता
ISBN: 9788126723980
Pages: 148
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Vinayak Damodar Savarkar
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- Description: वीर सावरकर रचित ‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् १९०९ में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से १९४७ में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी। पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् १८५७ का यथार्थ क्या है?क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था?योजना का स्वरूप क्या था?क्या सन् १८५७ एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?भारत की भावी पीढि़यों के लिए १८५७ का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
Bharat Ke Pradhanmantri : Desh, Dasha, Disha
- Author Name:
Rasheed Kidwai
- Book Type:

- Description: तकनीक और संचार के अभूतपूर्व विस्तार तथा राजनीति में लोगों की बेहिसाब दिलचस्पी के मेल से हैरतअंगेज़ नतीजे सामने आए हैं। इसका एक चिन्ताजनक पहलू हैइतिहास के निर्माताओं समाज के नेतृत्वकर्ताओं और उनके कार्यों के बारे में सचाई से परे मनगढ़ंत बातों का बड़े पैमाने पर प्रसार। यह स्थिति आम जनता को भ्रमित करती है। उन्हें अपने देश और समाज की वास्तविकता से दूर करती है सही और तथ्यसंगत राय बनाने में अक्षम बनाती है। ऐसे में भारत के सभी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व कार्यों नीतियों और उनके प्रभावों पर केन्द्रित इस किताब का महत्त्व असंदिग्ध है। आज़ादी के 75वें साल में प्रकाशित यह पुस्तक पहले प्रधानमंत्री से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक हमारे शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं के विचारों और कार्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन करती है तथा एक लोकतंत्र के रूप में भारत की प्रगति और उसके रास्ते में खड़े अवरोधों के बारे में सोचने का सूत्र देती है। व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के दौर में यह किताब तथ्यपरक ढंग से बतलाती है कि जब कभी देश के विकास की ज़रूरतों पर शीर्षस्थ नेतृत्व की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा हावी हुई भारतीय लोकतंत्र प्रभावित हुआ। एक अनुभवी पत्रकार की क़लम से देश के सभी प्रधानमंत्रियों का निष्पक्ष आकलन पेश करती यह कृति भारतीय लोकतंत्र में दिलचस्पी रखनेवाले प्रत्येक नागरिक के लिए एक ज़रूरी दस्तावेज़ साबित होगी।
Shri Guruji : Prerak Vichar
- Author Name:
Sandeep Dev
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- Description: विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया। इस दौरान देश-विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत व पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन का भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी साक्षी बने और उस इतिहास-निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया। श्रीगुरुजी सही मायने में न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथि थे, बल्कि बँटवारे के समय वे पाकिस्तानी हिस्से के उस हिंदू समाज के उद्घाटक की भूमिका में भी थे, जिसे बँटवारे से उपजे सांप्रदायिक उन्माद से जूझने के लिए तत्कालीन सरकार ने बेबस छोड़ दिया था। यह पुस्तक श्रीगुरुजी के त्यागपूर्ण प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ ही उनके ओजस्वी विचारों का नवनीत भी है।
Shakespeare Ki Lokpriya Kahaniyan
- Author Name:
William Shakespeare
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- Description: "विलियम शेक्सपियर—शेक्सपियर सदी के महान् नाटककार विलियम शेक्सपीयर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 को इंग्लैंड में हुआ। कुछ लोग मानते हैं किसान का बेटा किसान होता है, डॉक्टर का डॉक्टर और सैनिक का सैनिक आदि-आदि। लेकिन शेक्सपीयर के खानदान का लेखन से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था। उनके पिता पेशे से किसान थे, लेकिन शेक्सपीयर को खेती-किसानी नहीं भाई; बल्कि बचपन में उन्होंने एक नाटक देखा और शायद तभी फैसला कर लिया कि वह भी नाटककार बनेंगे। उनका सपना वर्ष 1592 में साकार हुआ, जब वह लंदन में थिएटर से जुड़े और जल्दी ही एक सफल अभिनेता व कलाकार के रूप में लोकप्रिय हो गए। उन्होंने दुखांत, सुखांत, मजाकिया—हर तरह के नाटक किए। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘द कॉमेडी ऑफ एरर’,‘ रोमियो एंड जूलियट’, ‘द मर्चेंट ऑफ वेनिस’, ‘एज यू लाइक इट’, ‘हैमलेट’, ‘जूलियस सीजर’ इत्यादि शामिल हैं। आज लगभग 400 साल बाद भी उनके नाटकों के प्रति लोगों का जुनून बरकरार है। प्रस्तुत जीवनी उन्हीं महान् नाटककार के जीवन की घटनाओं से हमें परिचित कराती है। "
Pracheen Itihas Mein Vigyan
- Author Name:
Om Prakash Prasad
- Book Type:

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Description:
हमारे यहाँ विज्ञान की जो तरक़्क़ी बहुत ज़्यादा नहीं हो सकी, उसका प्रमुख कारण जातिभेद रहा। मेहनत-मशक्कत यानी शूद्र शिल्पकारों के योगदान को सुविधाभोगियों और धामक ग्रन्थों ने छोटा काम समझ लिया; वेदान्त ने संसार को मिथ्या माया बताया, ऐसे में पृथ्वी को जानने-समझने का उत्साह कहाँ से आएगा। ध्यान से बड़ा है विज्ञान; जानने को ही विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दृष्टि, एक विचार होता है।
यूँ तो भारत में वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से पाए जाते हैं किन्तु उनका नाम-पता हमें ज्ञात नहीं है। विश्व-प्रसिद्ध सिन्धु-सभ्यता का निर्माण ऐसे ही अनजान वैज्ञानिकों ने किया था। भूख, रोग, सर्दी एवं गर्मी से हमारी सुरक्षा भी वैज्ञानिकों ने की। पशुपालन और खेती से नया युग आया। इससे आदिम समाज का ख़ात्मा और श्रेणी अर्थात् वर्गीय समाज का आरम्भ हुआ। व्यापार की तरक़्क़ी, रोज़मर्रा के कामों में रुपए-पैसे का चलन और शहरों का जन्म—इन ऐतिहासिक घटनाओं ने शिल्पकार-शूद्र-कृषक वर्ग के पैरों में पड़ी ज़ंजीरों को खोलने का उपाय किया। परम्परावादी बन्धन अपने आप ढीले हो गए। माना जाने लगा कि आज़ाद लोग अच्छी और सख़्त मेहनत करते हैं।
पुरानी सभ्यताओं की टूटी-फूटी निशानियाँ धरती की छाती पर आज भी शेष हैं। यह स्पष्ट करने के लिए कि विज्ञान ही इतिहास का वास्तविक निर्माता होता है, इस पुस्तक में कुछ नवीन शीर्षक वाले लेखों को रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं—प्राचीन विज्ञान एवं वैज्ञानिक, महाभारत, रामायण, शूद्र, मन्दिर, सिक्के, कला में विज्ञान, दक्षिण भारतीय अभिलेख, ज्योतिष विद्या : मिथक या यथार्थ, शिल्पकार आदि।
अभी तक इतिहास की मुख्यधारा से जनसाधारण को अलग ही रखा गया है। उदाहरण के लिए किसान-मज़दूर, इमारत बनाने वाले, बढ़ई, मछुआरा, हज्जाम, दाई, चरवाहा, कल-कारख़ानों में काम करने वाले और शहरों की स़फाई करने वाले आदि। इस पुस्तक में इन सबके योगदान की यथासम्भव चर्चा की गई है ताकि उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और तकनीकी ज्ञान को समझा जा सके।
Dattopant Thengadi
- Author Name:
Anirban Ganguly +1
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- Description: The dimension of Dattopant Thengadi, founder of the largest trade union movement in India, that has been brought out in this volume is his role as an activist parliamentarian through his debates in the Rajya Sabha for two terms from 1964 to 1976. What stands out from the extracts of his speeches in Parliament are his meticulous presentation of facts, highly referenced propositions and dignified response to counter viewpoints. His intense intellectualism and his diverse fields of knowledge are manifest in the range of subjects Thengadi handled, each an area of specialisation for an expert. This volume is a lesson for young and elder parliamentarians of today on how to be an efficient, a competent and an elegant parliamentarian. To those interested in post-independence India’s political evolution, this volume provides a window through Thengadi’s political activism in his two terms in Parliament which spanned some of the most momentous developments in India’s political history after independence.
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