Naya Sahitya, Nai Sambhavanayein
Author:
Radhavallabh TripathiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
‘अज्ञेय अपनी विलक्षण मेधा के साथ पारम्परिक प्रज्ञा से संवाद और विसंवाद दोनों का सिलसिला रचते हैं। इसके द्वारा पुरानी अवधारणाएँ पुनरीक्षित और पुनःपरिभाषित भी हो जाती हैं।’ और, ‘शमशेर अमूर्त उपमा के जितने प्रकार अपनी कविता में रचते हैं, उतने अन्यत्र कम मिलते हैं। वे अमूर्त से मूर्त को उपमित करते हैं, मूर्त से अमूर्त को उपमित करते हैं, तो अमूर्त से अमूर्त को भी उपमित करते हैं।’
हिन्दी के दो विशिष्ट कवियों के विषय में ये टिप्पणियाँ हैं वरिष्ठ साहित्य-चिन्तक एवं संस्कृति-चेता राधावल्लभ त्रिपाठी की, जो ‘नया साहित्य, नई सम्भावनाएँ’ पुस्तक में संकलित आलेखों का हिस्सा हैं।
इनके अलावा इस पुस्तक में धर्मवीर भारती, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, हरिशंकर परसाई, नामवर सिंह, अष्टभुजा शुक्ल, अनामिका और गगन गिल की पुस्तकों और उनके रचनात्मक आयामों पर विवेचनात्मक आलेख भी शामिल हैं। कुछ वे निबन्ध भी इस पुस्तक में संकलित हैं जिनमें वे विमर्श के ऐसे सैद्धान्तिक आधारों की तलाश करते हैं जो समकालीन रचनात्मकता के अनुशीलन के लिए आलोचना की भूमि बन सकें।
राधावल्लभ त्रिपाठी हिन्दी के वर्तमान परिदृश्य में उपस्थित ऐसे कुछ आलोचक-चिन्तकों में से एक हैं जिनकी विवेचना हमें सोचने और बरतने के लिए एक समृद्ध भाषा देती है और भारतीय चिन्तन के लम्बे इतिहास में गढ़े गए सैद्धान्तिक उपकरणों से परिचित कराती है।
उनके इधर के चिन्तन से उपजे इन निबन्धों से साहित्य के अध्येता और सर्जक, दोनों ही निस्सन्देह लाभान्वित होंगे।
ISBN: 9789348157416
Pages: 240
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुनिकता से भी अनाक्रान्त रहकर एक प्रश्नवाचक दूरी रखती है। साहित्य और कलाओं के स्वरूप पर ऐसा मौलिक चिन्तन, कुछ कृतियों की सूक्ष्म समीक्षा, हिन्दी में बहुत कम देखने को मिलता है। हिन्दी में पहले ऐसे लोग थे, जैसे कि वासुदेवशरण अग्रवाल, मोतीचन्द्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि, जो ऐसी समावेशी और आधुनिकता के लिए भेदक दृष्टि रखते थे। मुकुन्द लाठ उस परम्परा में ही दशकों से सक्रिय रहे हैं और उनकी यह संचयिता हम बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं कि अपने समय, समाज, साहित्य और कलाओं को समझने की यह दृष्टि हिन्दी के विचार-जगत में हस्तक्षेप की तरह पहचानी-गुनी जाएगी। यह निश्चय ही हिन्दी की विचार-सम्पदा का अपेक्षाकृत अब तक का जाना विस्तार है।
—अशोक वाजपेयी
DHARMADVANDVA
- Author Name:
Shabnam Gupta
- Book Type:

- Description: धर्मद्वद्वं एक रोचक काल्पनिक कथानक है। जिस समय में भारतवर्ष पांडवों और कौरवों के दो पालों में बँटता दिख रहा था, उस समय में एक ऐसा आचार्य था जो किसी राजवंश के नहीं, देश के सर्वोपरि होने की बात करता था। जब धर्म अपने नियत खूटे में बँधा हुआ था, तब वो उसकी सीमा रेखा के आगे जाकर, एक नई परिभाषा लिखता था जहाँ धर्म और विवेक का संगम होता है । जिस परिवेश में स्त्री को वस्तु की तरह पाँच भाइयों में बाँट दिया गया था, उसी परिवेश में वह स्त्री शिक्षा और सशक्तिकरण का पाठ पढ़ाता था। जब समाज, वर्ण और वर्ग में बँटा हुआ था, तब वो जन्म नहीं, कर्म से मनुष्य की पहचान बनाने में क्रियार्थ था। ये उस काल्पनिक आचार्य की कहानी है, जिसका नाम वासू था। भारतीय पौराणिक आख्यान पर केंद्रित मर्मस्पर्शी तथा पठनीय कृति, जो आपको जीवन के आदर्श और मानवमूल्यों से परिचय कराएगी
Afganistan - Samrajyanchi Dafanbhumi
- Author Name:
Sachin Diwan
- Book Type:

- Description: व्यक्ती किंवा राष्ट्राच्या जीवनप्रवासात जशी उमेद देणारी आदर्श उदाहरणे आवश्यक असतात, तसेच काय करू नये हे सांगणारे, धोक्याची सूचना देणारे दाखलेही गरजेचे असतात. दुर्दैवाने आज अफगाणिस्तान हा देश धोक्याची सूचना देणाऱ्या दाखल्याच्या रूपात जगासमोर उभा आहे. भौगोलिक साधनसंपत्ती, पूर्वापार जागतिक व्यापारी मार्गांवर असलेले मोक्याचे स्थान, स्वाभिमानी आणि लढाऊ लोक अशा अनेक जमेच्या बाजू असूनही अफगाणिस्तान आज ओळखला जातो तो एक ‘फेल्ड स्टेट' म्हणून. पराकोटीचा आणि विधीनिषेधशून्य धर्माभिमान, त्याला मिळालेली हिंसेची जोड, आधुनिक जगाकडे फिरवलेली पाठ आणि परकीय शक्तींचा हस्तक्षेप यातून हा प्राचीन देश आणि समाज देशोधडीला लागला आहे. ही आपल्यासह अन्य देशांसाठीही धोक्याची घंटा ठरू शकते. त्यासाठीच अफगाणिस्तानची वाटचाल समजून घेणे निकडीचे ठरते.हा प्रवास संघर्षमय असला तरी रंजक आणि उद्बोधक आहे. साम्राज्यवादाच्या सुरुवातीच्या काळात महाशक्तींमध्ये खेळल्या गेलेल्या ‘द ग्रेट गेम'पासून अगदी आतापर्यंतच्या भू-राजकीय संघर्षाची किनार त्याला आहे. जग जिंकायला निघालेल्या अलेक्झांडरपासून सातासमुद्रांवर हुकूमत गाजवणाऱ्या ब्रिटनपर्यंत आणि सोविएत युनियनपासून अमेरिकेपर्यंत सर्व महासत्तांनी आजवर या भूमीत मारच खाल्ला आहे. त्यासाठीच अफगाणिस्तान ‘साम्राज्यांची दफनभूमी' म्हणून ओळखले जाते. अनेक रोमहर्षक प्रसंग आणि पात्रांनी ही कहाणी सजली आहे. त्यात भारताचेही हितसंबंध गुंतले असल्याने या कहाणीला वेगळे महत्त्व लाभले आहे. कवी इक्बाल यांनी शतकभरापूर्वी अफगाणिस्तानचे वर्णन ‘आशिया खंडाचे हृदय' असे केले होते. तेथे शांतता असेल तर आशियात शांतता असेल, तेथे संघर्ष असेल तर संपूर्ण आशियात संघर्ष असेल, असे इक्बाल यांनी म्हटले होते. आजही ते वर्णन अफगाणिस्तानला लागू पडते. त्या भळभळत्या हृदयाची स्पंदने टिपण्याचा प्रयत्न म्हणजे हा ग्रंथ होय! Afganistan : Samrajyanchi Dafanbhumi |Sachin Diwan अफगाणिस्तान : ‘साम्राज्यांची दफनभूमी'! | सचिन दिवाण
BABULAL MARMU ADIVASI
- Author Name:
Dr. R. K. Nirad
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक संताली के प्रख्यात लेखक, कवि, समालोचक और भाषाविद् बाबूलाल मुर्मू “आदिवासी ' के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता से प्रस्तुत करती है । 15 अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक में उनके साहित्यिक जीवन, गद्य-पद्य साहित्य के विविध आयामों, उनके साहित्य को विशेषता, उन्हें मिले सम्मान एवं पुरस्कार तथा उनको प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों की गहन जानकारी समायोजित है। बाबूलाल मुर्मू "आदिवासी ' का संताली भाषा-साहित्य को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने संताली लोकगीतों का संग्रह, संताल में साहित्य सृजन तथा भाषा एवं संस्कृति आदि विषयों पर भरपूर लेखन किया। वे संताली पत्रिका 'होड़ सोम्बाद' के संपादक रहे। 1966 से 2004 तक उनकी 23 पुस्तकें प्रकाशित हुई, जबकि 13 पुस्तकें अप्रकाशित हैं। विश्वभारती, शांति निकेतन सहित झारखंड और पश्चिम बंगाल के कई विश्वविद्यालयों के स्नातक एवं स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ सम्मिलित हैं, किंतु उनके जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर समग्रता से जानकारी देनेवाली पुस्तक का अभाव था। डॉ. आर. के. नीरद की यह पुस्तक इस अभाव को दूर करती है। बाबूलाल मुर्मू ' आदिवासी ' पर अब तक जिलने कार्य हुए हैं, उन सभी को इस पुस्तक में समायोजित करने का प्रयत्न किया गया है। यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्व है कि इसमें संताली संस्कृति, कला, मिथकों और परंपराओं का दिद्वत्तापूर्ण विश्लेषण- विवेचन किया गया है।
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