Cheen Mein Darshanshastra
Author:
G. RamkrishnaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ ग्रन्थमाला की यह दूसरी पुस्तक है जिसमें विश्व की एक प्राचीनतम दार्शनिक धारा का परिचय प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>चीन में दर्शन की परम्परा यों तो बहुत पुरानी है, लेकिन ईसा-पूर्व की पाँचवीं से तीसरी शताब्दी का काल दार्शनिक चिन्तन की दृष्टि से समृद्धि का काल माना जाता है। कन्फ्यूशियस का चिन्तन इसी काल की देन है। तब से लेकर कुछ शताब्दी पहले तक इस देश में अनेक दार्शनिक मतवाद अस्तित्व में आए। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी मतवादों की पृष्ठभूमि स्पष्ट करने के लिए अनेक सदियों के कालक्रम में चीन के राजवंशों की एक संक्षिप्त रूपरेखा दी गई है। उसके बाद विभिन्न सम्प्रदायों के सिद्धान्तों और उनके सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थों का विवेचन किया गया है। चीन में बौद्ध मत का आगमन एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसके फलस्वरूप चिन्तन के क्षेत्र में कई धाराओं-उपधाराओं का जन्म हुआ। चीनी दर्शन में चूँकि इन धाराओं-उपधाराओं का विशेष महत्त्व है, इसलिए लेखक ने ख़ास तौर पर इनका विश्लेषण और इनके दार्शनिक लक्ष्यों का मूल्यांकन किया है। इसी प्रकार, इन्होंने एक ओर महिमामंडित कन्फ्यूशियस को एक सटीक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया है तो दूसरी ओर लांछित ताओवाद की एक सुबोध व्याख्या भी दी है।</p>
<p>चीनी दर्शन के अनेक सम्प्रदायों का मत रहा है कि दर्शनशास्त्री होने के लिए हर समय तत्त्वमीमांसा के गूढ़ रहस्यों में उलझे रहना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार हमारा भी विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक को पढ़ने और समझने के लिए दर्शन का पंडित होना आवश्यक नहीं है। थोड़े-से पृष्ठों में चीनी दर्शन का एक व्यापक, फिर भी सुबोध, परिचय इस पुस्तक की विशेषता है, और आशा की जा सकती है कि इससे विशेषतः भारतीय और चीनी दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की प्रेरणा प्राप्त होगी।
ISBN: 9789394902930
Pages: 108
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यह पुस्तक लगभग ढाई हज़ार साल में फैले पाश्चात्य दर्शन के इतिहास को समेटती है। किन्तु उक्त ऐतिहासिक विकासक्रम का सिलसिलेवार अध्ययन करना इसका उद्देश्य नहीं है। इस लिहाज़ से देखें तो यह ध्यान में रखना होगा कि रामविलास जी उन इतिहासकारों में से नहीं थे, जो आँकड़ों को अतिरिक्त महत्त्व देते हैं। दर्शन के इतिहास से सम्बन्धित अनिर्णीत विवादों की विवेचना के लक्ष्य के मद्देनज़र रामविलास जी अपनी मान्यता प्रस्तुत करने में किसी दुविधा या हिचक का अनुभव नहीं करते। भाषाविज्ञान, पुरातत्त्व, इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य के अद्यतन ज्ञान से लैस होने तथा चिन्तन की द्वन्द्वात्मक पद्धति के सटीक विनियोग के परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष वैचारिक उत्तेजना तो पैदा करते ही हैं, रोचक और ज्ञानवर्द्धक भी होते हैं।
मानव-सभ्यता के विकास के क्रम में दर्शन का उद्भव और विकास कैसे हुआ? क्या यूनानी दर्शन के उद्भव के मूल में मिस्र, बेबिलोन, भारत, चीन आदि का भी योगदान था? समाज की ठोस अवस्थाओं के सापेक्ष सन्दर्भ के बिना क्या किसी दार्शनिक चिन्तन, किसी दार्शनिक धारा अथवा अवधारणाओं का अभिप्राय समुचित ढंग से समझा जा सकता है? इन प्रश्नों के अतिरिक्त, दर्शन को ज्ञान की अन्य शाखाओं और अनुशासनों के साथ किस प्रकार समझा जा सकता है, इस दृष्टि से भी पाश्चात्य दर्शन पर रामविलास जी का लेखन सार्थक और मूल्यवान है।
यूनानी दर्शन, रिनासां काल के चिन्तन, दार्शनिक प्रतिपत्तियों पर सामाजिक अन्तर्विरोध के प्रभाव, अधिरचना और बुनियाद के जटिल अन्तर्सम्बन्ध, एशिया-अफ़्रीका की सभ्यता के प्रति पश्चिमी दृष्टि के पूर्वग्रह आदि पर रामविलास जी दो टूक ढंग से अपनी बात कहते हैं।
हिन्दीभाषी लोगों के लिए यह पुस्तक दर्शन-सम्बन्धी ज़रूरी ज्ञान का एक सुग्राह्य संचयन है।
Asarkari Prashasan : Nayi Soch, Nayi Drishti
- Author Name:
Bharat Lal Meena
- Book Type:

- Description: स्वतंत्रता के बाद से ही सरकारें शासन में जन-सहभागिता पर जोर देती रही हैं। परंतु परिणाम आशाजनक नहीं रहे हैं। इस संबंध में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री भरतलाल मीणा द्वारा किए गए प्रयोग एक मिसाल हैं। उन्होंने कर्नाटक में सहायक आयुक्त के रूप में अपनी पहली नियुक्ति के दौरान रायचूर जिले में स्थित लिंगसुगुर तहसील में कष्टसाध्य पेयजल की समस्या का समाधान जनता के साथ मिलकर किया। उन्होंने विभिन्न सरकारी विभागों में सूचना तकनीक का बेहतर उपयोग किया। श्री भरतलाल मीणा की जिजीविषा ही रही कि आज राज्य में जन-सहभागिता ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है। उनके द्वारा विभिन्न विभागों में क्रांतिकारी पहल की गई, जिनका इस पुस्तक में समावेश किया गया है। लगभग तीन दशक पूर्व श्री मीणा द्वारा प्रशासन में जिन नए प्रयोगों की शुरुआत की गई थी, आज केंद्र और राज्य की सरकारें उन्हीं प्रयोगों को लागू कर रही हैं, जैसे स्मार्ट सिटी, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, सॉयल हेल्थ कार्ड, सोशल ऑडिट, बायोमेट्रिक अटेंडेंस, आदि। सरकारी सेवा में लगे अधिकारियों को इस पुस्तक से अनेक प्रशासनिक समस्याओं के समाधान का मार्ग मिल सकता है। पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि श्री मीणा ने प्रशासनिक अधिकारियों को ‘मैं’ की भावना से ऊपर उठकर ‘हम’ की भावना से काम करने की बात कही है। यह प्रशासनिक अधिकारी की सफलता का एक सशक्त और समझदारी का मार्ग है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए भी उपयोगी है, जो प्रबंधन में कुछ कर दिखाना चाहते हैं।
Prakashwata
- Author Name:
Dattaprasad Dabholkar
- Book Type:

- Description: नानाजी देशमुख यांचा गोंडा प्रकल्प आणि शंभर ग्रामदानी खेड्यांचा कारभार पाहणारा गोविंदपूर आश्रम यांची शोधयात्रा म्हणजे प्रकाशवाटा- हे पुस्तक होय. या पुस्तकाची समीक्षा करणारी अनेक पाने दुर्गा भागवतांनी आपल्या रोजनिशीत लिहिली होती. त्यानंतर आपले जीवन आणि जीवनविषयक तत्त्वज्ञान आडपडदा न ठेवता सांगणारी एक दीर्घ मुलाखत नानाजी देशमुख यांनी दिली होती. त्याचा समावेश असलेलं हे पुस्तक पस्तीस वर्षांपूर्वी प्रकाशित झालं होतं. नानाजी देशमुखांचे हे दोन्ही प्रकल्प जे प्रश्न सोडवण्यासाठी कार्यरत होते, तेच प्रश्न आज अधिक गंभीर स्वरुपात आपल्यासमोर उभे आहेत. ते सोडवण्यासाठी जे आज अंधारात चाचपडत आहेत, नवे मार्ग शोधत आहेत, त्यांना हे दोन्ही प्रकल्प आणि नानाजी देशमुख व दुर्गा भागवत यांचे विचार यांचा अभ्यास करावा लागेल. म्हणूनच पस्तीस वर्षानंतर पुन्हा एकदा हे पुस्तक वाचकांच्या हाती देत आहोत. कारण ‘यशाहूनही प्रयत्न सुंदर' असे सांगत दीपस्तंभाप्रमाणे हे दोन प्रकल्प आणि या दोघांचे विचार उभे आहेत. Prakashwata | Dattaprasad Dabholkar प्रकाशवाटा | दत्तप्रसाद दाभोळकर
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