Namvar Sanchayita
Author:
Namvar SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
यह है हिन्दी के ख्यातिप्राप्त आलोचक डॉ. नामवर सिंह के आलोचनात्मक लेखन का उत्तमांश।
नामवर जी हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचक के रूप में स्वीकृत हैं, लेकिन मूलत: वे एक लोकवादी आलोचक हैं। जिस ‘लोक’ को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य के प्रतिमान के रूप में व्यवहृत किया था और जिसे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने क्रान्तिकारी अर्थ प्रदान किया, उसे वे मार्क्सवाद की सहायता से ‘वर्ग’ तक ले गए हैं। लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता है कि उन्होंने मार्क्सवाद को विदेशी, संकीर्ण और रूढ़िबद्ध विचार प्रणाली के रूप में ग्रहण नहीं किया है। सच्चाई तो यह है कि साहित्य के नए मूल्य के लिए उन्होंने प्रत्येक मोड़ पर लोक की तरफ़ देखा है। अकारण नहीं कि हिन्दी में वे साहित्य की दूसरी परम्परा के अन्वेषक हैं, जो उस लोक की परम्परा है, जो असंगतियों और अन्तर्विरोधों का पुंज होते हुए भी विद्रोह की भावना से युक्त होता है।
नामवर जी की आलोचना हिन्दी में ग़ैर-अकादमिक आलोचना का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ‘कहानी : नई कहानी’ में उन्होंने व्यक्तिगत निबन्ध की शैली में आलोचना लिखी, जिसमें बात से बात निकलती चलती है और अत्यन्त सार्थक। ‘कविता के नए प्रतिमान’ उनके विलक्षण परम्परा–बोध, गहन विश्लेषण और पारदर्शी अभिव्यक्ति का स्मारक है। इसी तरह ‘दूसरी परम्परा की खोज’ में उन्होंने ऐसी आलोचना प्रस्तुत की है, जो एक तरफ़ अतिशय ज्ञानात्मक है और दूसरी तरफ़ अतिशय संवेदनात्मक। यह सर्जनात्मकता आचार्य द्विवेदी के साहित्य से उनके निजी लगाव के कारण सम्भव हुआ है।
नामवर जी की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर प्रकाशित यह संचयिता महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की ओर से हिन्दी जगत् को दिया गया एक उपहार है, जो उसे पिछली शती के उत्तरार्ध के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी आलोचक के अवदान से परिचित कराएगा।
ISBN: 9788126716449
Pages: 427
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: सतराव्या शतकातील धर्मश्रद्ध वातावरणात छत्रपती शिवाजी महाराजांनी दख्खनमध्ये स्वबळावर हिंदवी स्वराज्य स्थापन केले. अर्थात शिवरायांचा सर्वधर्मसमभावाचा विचार त्यांच्या या हिंदवी स्वराज्याचा मूलाधार होता. खरं तर छत्रपती शिवाजी महाराजांची हिंदू धर्मावर निष्ठा होती. ते धर्माभिमानीही होते, तरीही ते धार्मिक स्वातंत्र्याचे पुरस्कर्ते होते. त्यांनी नेहमीच सहिष्णुतेचे धोरण अवलंबले आणि आपल्या राज्यात सर्व जातिधर्मांच्या लोकांना आश्रय दिला. इतकंच नाही, तर कोणत्याही स्वरूपात धर्मभेद, जातीभेद न करता महाराजांनी शूर, पराक्रमी आणि एकनिष्ठ लोक आपल्याभोवती गोळा केले. त्यांनी कायमच हिंदू आणि मुस्लीम धर्माबद्दल उदार आणि पुरोगामी दृष्टिकोन बाळगला. स्वराज्यातील सर्व धर्मांच्या बांधवांना सन्मान देत सामाजिक सलोखा निर्माण करत सर्वार्थाने हिंदवी स्वराज्य बळकट केले. जगभरात सर्वांनीच गौरविलेल्या शिवरायांच्या या सहिष्णू धार्मिक धोरणाची प्राचार्य डॉ. इस्माईल पठाण यांनी आपल्या या ग्रंथात साधार, तपशीलवार चर्चा केली असून समाजस्वास्थ्याच्या दृष्टिकोनातून ती मार्गदर्शक ठरणारी अशी आहे. वाचक त्याचं दमदार स्वागत करतील अशी आशा. Shivrayanchi Dharmniti | Dr. Ismail Pathan शिवरायांची धर्मनीती | डॉ. इस्माईल पठाण
Sangh Samjun Ghetana
- Author Name:
Dattaprasad Dabholkar
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- Description: भर वर्षांच्या अथक, एकाकी, समर्पित, कष्टप्रद, काही काळ यातनामय वाटचालीनंतर संघ आज निर्विवादपणे सत्तेत केंद्रस्थानी उभा आहे. संघाने स्पष्टपणे सांगितलंय आमचा फक्त एककलमी कार्यक्रम आहे, ‘हिंदूंचाच हिंदूस्थान' म्हणजे हे हिंदूराष्ट्र आहे. भारत हे संघराज्य नाही ते एक राष्ट्र आहे आणि हा देश एकाधिकारशाही मानतो. भारतरत्न बाबासाहेब आंबेडकर राज्यघटना बनवत असताना ऑरगनायर्झरने त्याला कडवा विरोध केलाय. या देशाची घटना मनुस्मृतीवर आधारित हवी म्हणून सांगितले. राजकारण करताना ‘वारांगनेव नृपनिती अनेकरूपा' हा मंत्र बरोबर ठेवा आणि मुखवटे घालून राजकारणात वाटचाल करा. हा आदेश संघाने राजकारणात पाठवलेल्या स्वयंसेवकांना दिलाय. पुरोगामी परिवर्तनवादी चळवळ ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने' म्हणून त्याकडे उपेक्षेने खरंतर उपहासाने पाहत उभी होती. आज ही चळवळ भांबावलेल्या खरंतर भेदरलेल्या अवस्थेत आहे. त्यामुळे खरी गरज आहे, यातून बाहेर येवून संघाची शक्तिस्थाने आणि मर्मस्थाने जाणून घेण्याची व पुरोगामी परिवर्तनवादी चळवळीने केलेले ‘हिमालयीन ब्लंडर' समजावून घेत रणनीती ठरविण्याची.या व अशा प्रश्नांचा मागोवा घेत अस्वस्थ मनस्थितीत गेल्या दहा वर्षात दत्तप्रसाद दाभोळकर यांनी लिहिलेल्या काही प्रमुख लेखांचे हे संकलन. आज आपणासमोर असलेल्या धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक राजकारणाचा चक्रव्यूह समजावून घेण्यासाठी हे पुस्तक वाचले आणि संग्रहीपण ठेवले पाहिजे. Sangh Samjun Ghetana | Dattaprasad Dabholkar संघ समजून घेताना | दत्तप्रसाद दाभोळकर
Hum Bheed Hain
- Author Name:
Raghuvansh
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Description:
रघुवंश ने 'आधुनिकता’ को केवल 'व्यक्ति’ की विशिष्टता के रूप में नहीं, बल्कि अपने समाज के गतिशील होने की सांस्कृतिक आकांक्षा के वैशिष्ट्य के रूप में समझने की चेष्टा की। दरअसल वे सांस्कृतिक चिन्तक थे। संस्कृति को परम्परा की रूढ़ियों से मुक्त करके उन्होंने अपने समय के समाज को विभिन्न समस्याओं से सन्दर्भित किया। राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक दृष्टि से भारतीय समाज के लिए क्या ग्राह्य है और किस रूप में ग्राह्य है, इसके विश्लेषण में पूर्वग्रह-रहित होकर रघुवंश जी ने समय-समय पर जो लेख-निबन्ध इत्यादि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखे, उनका संकलन उनकी इस पुस्तक में किया गया है। राजनीति, धर्म, शिक्षा और विकास के नए मॉडलों पर रघुवंश जी के क्या विचार थे, उनको जानने में इस पुस्तक की उपयोगिता असन्दिग्ध है।
रघुवंश ‘मनुष्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों’ की कसौटी पर अपने समय और समाज की स्थितियों को परखने के हिमायती थे। इस पुस्तक में संकलित लेखों से यह भी पता चलता है कि उन्होंने अपने चिन्तन का फलक कितना व्यापक रखा। इसीलिए वे शिक्षा, राजनीतिक व्यवस्थाओं और साम्प्रदायिक संकटों को समझने और समझाने में निरन्तर संलग्न रहे।
यह पुस्तक 'हम भीड़ हैं’ हमें बताती है कि उनमें आधुनिकता और विकास का एक ऐसा स्वरूप पहचानने की व्याकुलता थी, जो काल की दृष्टि से 'नया’ हो और देश की दृष्टि से 'भारतीय’ हो। यही आकांक्षा रघुवंश जी को आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ. लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे चिन्तकों की ओर आकृष्ट करती रही।
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