Pashchatya Darshan Aur Samajik Antarvirodh
Author:
Ramvilas SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
यह पुस्तक लगभग ढाई हज़ार साल में फैले पाश्चात्य दर्शन के इतिहास को समेटती है। किन्तु उक्त ऐतिहासिक विकासक्रम का सिलसिलेवार अध्ययन करना इसका उद्देश्य नहीं है। इस लिहाज़ से देखें तो यह ध्यान में रखना होगा कि रामविलास जी उन इतिहासकारों में से नहीं थे, जो आँकड़ों को अतिरिक्त महत्त्व देते हैं। दर्शन के इतिहास से सम्बन्धित अनिर्णीत विवादों की विवेचना के लक्ष्य के मद्देनज़र रामविलास जी अपनी मान्यता प्रस्तुत करने में किसी दुविधा या हिचक का अनुभव नहीं करते। भाषाविज्ञान, पुरातत्त्व, इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य के अद्यतन ज्ञान से लैस होने तथा चिन्तन की द्वन्द्वात्मक पद्धति के सटीक विनियोग के परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष वैचारिक उत्तेजना तो पैदा करते ही हैं, रोचक और ज्ञानवर्द्धक भी होते हैं।</p>
<p>मानव-सभ्यता के विकास के क्रम में दर्शन का उद्भव और विकास कैसे हुआ? क्या यूनानी दर्शन के उद्भव के मूल में मिस्र, बेबिलोन, भारत, चीन आदि का भी योगदान था? समाज की ठोस अवस्थाओं के सापेक्ष सन्दर्भ के बिना क्या किसी दार्शनिक चिन्तन, किसी दार्शनिक धारा अथवा अवधारणाओं का अभिप्राय समुचित ढंग से समझा जा सकता है? इन प्रश्नों के अतिरिक्त, दर्शन को ज्ञान की अन्य शाखाओं और अनुशासनों के साथ किस प्रकार समझा जा सकता है, इस दृष्टि से भी पाश्चात्य दर्शन पर रामविलास जी का लेखन सार्थक और मूल्यवान है।</p>
<p>यूनानी दर्शन, रिनासां काल के चिन्तन, दार्शनिक प्रतिपत्तियों पर सामाजिक अन्तर्विरोध के प्रभाव, अधिरचना और बुनियाद के जटिल अन्तर्सम्बन्ध, एशिया-अफ़्रीका की सभ्यता के प्रति पश्चिमी दृष्टि के पूर्वग्रह आदि पर रामविलास जी दो टूक ढंग से अपनी बात कहते हैं।</p>
<p>हिन्दीभाषी लोगों के लिए यह पुस्तक दर्शन-सम्बन्धी ज़रूरी ज्ञान का एक सुग्राह्य संचयन है।
ISBN: 9788126703074
Pages: 360
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: लाखो/करोडो प्रेक्षकांच्या मनाला दशकानुदशकं भुरळ पाडणारं माध्यम म्हणजे चित्रपट. मनोरंजनातून लोकांना सजग आणि जागरूक करणारं सशक्त माध्यम म्हणजेही चित्रपटच. अगदी सर्वसामान्यांपासून ते दिग्गज बुद्धिवंतांपर्यंत आपली स्वप्नं रंगवण्याची, घटकाभर वास्तवाचा विसर पाडण्याची ताकद या माध्यमात आहे. चित्रपट बघताना कधी आपण आपलंच प्रतिबिंब बघतो आहोत असं वाटतं. चित्रपटातल्या पात्रांच्या सुखदु:खांशी, वेदनांशी, परिस्थितीशी आपण एकरूप होतो. कधी आपण भारावून जातो, तर कधी अंतर्मुख होऊन विचार करू लागतो. चित्रपट निर्मिती ही एक सांघिक कृती आहे, तिच्यामागे अनेकांचे परिश्रम असतात असं आपण म्हणत असलो, तरी ‘कॅप्टन ऑफ द शीप' हा त्या चित्रपटाचा दिग्दर्शक असतो हेच खरं. हा दिग्दर्शक किती तरल आहे, किती सर्जनशील आहे यावर त्या चित्रपटाची परिणामकारकता अवलंबून असते. दीपा देशमुख लिखित आणि मनोविकास प्रकाशन प्रकाशित ‘डायरेक्टर्स' या पुस्तकामध्ये सत्यजीत रे, व्ही. शांताराम, राज कपूर, बिमल रॉय, गुरू दत्त, हृषिकेश मुखर्जी आणि श्याम बेनेगल अशा काही निवडक दिग्दर्शक मंडळींचा अंतर्भाव केला आहे. ‘डायरेक्टर्स' हे पुस्तक चित्रपटांबद्दल बोलतं, तेव्हा वाचकाला त्यात रमवून टाकतं. दिग्दर्शकांबद्दल बोलतं, तेव्हा प्रतिकूल परिस्थितीशी कसा सामना करावा ते सांगतं. यातल्या कलंदरांबद्दल बोलतं, तेव्हा आपलं जगणं अधिक समृद्ध आणि अर्थपूर्ण कसं करायचं हे सांगतं. ज्याप्रमाणे दृश्यानुभवातून प्रेक्षकांना खिळवून ठेवण्याची ताकद चित्रपटांमध्ये असते, त्याचप्रमाणे अक्षरानुभवातून ते कथानक, ते प्रसंग, तो काळ आणि त्या व्यक्तींना जिवंत करण्याची लेेखिकेची ताकद या पुस्तकामधून प्रकर्षाने जाणवते. त्यामुळे काळाच्या पुढे बघायला लावणारे, मानवता हाच खरा धर्म असं सांगणारे, सत्य, अहिंसा आणि प्रेम यांचा विचार रुजवणारे चित्रपट आणि त्यांचे दिग्दर्शक यांची ओळख रसाळ, ओघवत्या आणि सोप्या भाषेत एक रसिक आणि आस्वादक म्हणून लेखिकेने करून दिली आहे. डायरेक्टर्स । दीपा देशमुख Directors । Deepa Deshmukh
Prakritik Apdayen Aur Bachav
- Author Name:
Harinarayan Srivastava +1
- Book Type:

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Description:
भूकम्प, चक्रवात, बाढ़ और सूखा जैसी विनाशकारी आपदाओं से मनुष्य-समाज आदिकाल से आक्रान्त रहा है। संसार के विभिन्न भागों में समय-समय पर इन आपदाओं के चलते जान-माल की अपूरणीय क्षति होती रही है। इसलिए सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं, विश्व-भर के लिए आज ये गम्भीर चुनौती बनी हुई हैं। पूरी दुनिया में इन आपदाओं के संकट से मनुष्य को मुक्त करने हेतु इनके नियंत्रण, रोकथाम और प्रबन्धन आदि पर व्यापक कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं।
लेकिन इन आपदाओं से बचाव के लिए जनसाधारण को इनके विषय में आधारभूत जानकारियाँ देना भी उतना ही ज़रूरी है। इसीलिए प्रस्तुत पुस्तक में भूकम्प, ज्वालामुखी, चक्रवात, बाढ़, सूखा, टारनेडो और तड़ित झंझा आदि आपदाओं की भौगोलिक स्थिति, कारणों, प्रभावों, चेतावनियों-सावधानियों तथा नियंत्रण व रोकथाम आदि के तरीक़ों पर प्रकाश डाला गया है। प्राकृतिक आपदाएँ हमारी आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था को तो नष्ट करती ही हैं, साथ ही इनसे प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों का मनोबल भी भंग होता है, जिसका राष्ट्रों की विकास-प्रक्रिया पर दूरगामी असर पड़ता है। इस परिप्रेक्ष्य में इस पुस्तक का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी और प्रकृति के सम्मुख विवश हमारे मन को धैर्य बँधानेवाला होगा, ऐसी हमें उम्मीद है।
Bharata: The Natyasastra
- Author Name:
Kapilav Vatsyayan
- Rating:
- Book Type:

- Description: The theory of rasa enunciated by Bharata has stimulated both creativity and critical discourse in the Indian arts for nearly two thousands years. The text of the Natyasastra is as relevant to literature, poetry and drama as ut is to architecture, sculpture, painting, music and dance. Its comprehensive treatmentof artistic experience, expression and communication, content and form emerges from an integral vision which flowers as many branched tree of all the Indian arts. The analogy of the perennial flow of the river with its multiple streams, without loss of continuity and identity but potential for change and renewal makes this work as fresh as unconventional in its appraoch. It makes compelling reading for the specialist and the layer reader.
Jambudweepe Bharatkhande
- Author Name:
Dr. Mayank Murari
- Book Type:

- Description: भारतीय चिंतन में कल्प की अवधारणा का समय के साथ-साथ व्योम, यानी देश के हिसाब से भी विचार किया गया है। पृथ्वी के द्वारा सूर्य का परिभ्रमण करने से संवत्सर काल बनता है। इसी प्रकार जब सूर्य अपनी आकाशगंगा का चक्कर लगाता है तो उसका एक चक्र पूरा होने के समयखंड को मन्वंतर कहा जाता है। इस प्रकार आकाशगंगा भी इस ब्रह्मांड में किसी ध्रुवतारे या सप्तर्षि या अन्य तारे का चक्कर लगाती है, उसके एक चक्कर की गणना को ही कल्प कहा गया। हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं। —इसी पुस्तक से भारतीय जीवन में देश और काल है। काल के साथ गति है और गति के संग जीवनदर्शन जुड़ा है। यह बात ही भारत को विशिष्ट बनाती है। कालचक्र, युगचक्र, ऋतुचक्र, धर्मचक्र, भाग्यचक्र और कर्मचक्र के विधान भारतीय सांस्कृतिक चेतना में समाए हुए हैं। सनातन के माहात्म्य, भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और भारतीय जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना करती विचारोत्तेजक पठनीय कृति।
Bhentvarta Aur Press Conference
- Author Name:
Nand Kishore Tirkha
- Book Type:

- Description: घटना से अधिक व्यक्ति की महत्ता एक सच्चाई है। बयान की मौलिकता और गुणवत्ता से अधिक महत्ता बयान देनेवाले की होती है। किसी विषय पर साधारण व्यक्ति द्वारा किया गया महत्त्वपूर्ण बयान समाचार नहीं बन सकता, परन्तु उसी विषय पर दिया गया किसी विशिष्ट व्यक्ति का बहुत ही मामूली-सा बयान समाचार हो जाता है। इन सच्चाइयों के चलते समाचार क्ष्रेत्र में काम करनेवाले सभी लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट व्यक्तियों से भेंटवार्ता और उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंसों में शामिल होना उनके कर्तव्य का भी अनिवार्य हिस्सा है। भेंटवार्ता लेना और प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर सही सवाल करना ऐसी कलाएँ हैं जो समाचार क्षेत्र के व्यक्ति की एक अलग पहचान बनाती हैं। इन कठिन कलाओं में महारत हासिल करने के लिए डॉ. नन्दकिशोर त्रिखा की यह पुस्तक नए पत्रकारों को भेंटवार्ता में प्रवीणता प्राप्त करने तथा पुराने पत्रकारों के लिए अपनी कला माँजने में उपयोगी साबित हो चुकी है एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
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