Bhasha Ki Sanjeevani
Author:
Krishna KumarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
कृष्ण कुमार अपने पाठकों को पहचानते हैं और उनसे आत्मीयता बढ़ाने के अन्दाज़ में लिखते हैं। पहली बार उनका गद्य पढ़ रहे नए पाठक इस आत्मीयता का स्पर्श पाकर चकित होते हैं। निबन्ध की विधा कृष्ण कुमार को विशेष प्रिय रही है यद्यपि वे कहानी और संस्मरण भी चाव से लिखते रहे हैं।
‘भाषा की संजीवनी’ की शुरुआत थोड़ा-बहुत भी बता पाने के संघर्ष और सुकून से होती है और अन्त भाषा के जीवनदायी चरित्र के अभिन्दन से। इन दो विचार-ध्रुवों के बीच इस संग्रह में अठ्ठारह निबन्ध, समीक्षा-लेख और संस्मरण शामिल हैं।
विषयों की विविधता के बीच पाठकों को कृष्ण कुमार के स्थायी सरोकार मिलेंगे—प्रकृति, स्त्री, सरकार और पढ़ाई। इन सभी के भीतर और इर्द-गिर्द मची भगदड़ और हिंसा पर टिप्पणी भी मिलेगी।
इस निबन्ध विविधा से गुज़रते हुए पाठक याद करेंगे कि कृष्ण कुमार के लिए अगर कोई चीज़ नागवार है तो वह ‘विचार का डर’ है जो उनके एक प्रसिद्ध संग्रह का शीर्षक भी है।
ISBN: 9789360862480
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Nasera Sharma
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- Description: बकौल नासिरा शर्मा ‘बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के बाद एक नया हिन्दुस्तान उभरा है, जिसको अभी ठीक से समझा जाना बाक़ी है। पहले भारत ज़मीन के स्तर पर दो फाँक हुआ था, अब विचार और संवेदना के स्तर पर सियासत ने उसे चार फाँक कर दिया है।’ नासिरा शर्मा न सिर्फ़ भारत बल्कि ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और यूरोप की भी सामाजिक-सांस्कृतिक पेचीदगियों की जानकार हैं, और मनुष्यता की स्वाभाविक सकारात्मकता विशेषत: स्त्री सरोकार के प्रति अपनी पक्षधरता के लिए जानी जाती हैं। ‘अपने ख़्वाब की ताबीर चाहती हूँ’ उनके साक्षात्कारों का संकलन है। समकालीन पुरुष पत्रकारों-लेखकों-चिन्तकों, जिनमें देश से बाहर के भी कुछ नाम शामिल हैं, द्वारा लिए गए इन साक्षात्कारों को वे ‘आदम के सवाल हव्वा से’ कहती हैं। इन साक्षात्कारों में हम उनके लेखन से परिचित होते हैं, उनकी स्त्री से भी, और सबसे ज़्यादा उस सजग-चिन्तनशील व्यक्ति से जिसने भौगोलिक और राजनीतिक अर्थों में एक विराट और वैविध्यपूर्ण अनुभव को बहुत नज़दीक से देखा-जिया है। इसीलिए वे जिस विषय पर बात करती हैं, उसमें गहरा आत्मविश्वास और प्रामाणिकता स्पष्ट दिखाई देते हैं। मुस्लिम कठमुल्लावाद और हिन्दू कट्टरता से बराबर लोहा लेती आ रहीं नासिरा जी ने इन वार्ताओं में अनेक ऐसे सवाल उठाए हैं, और अनेक ऐसे सवालों के जवाब भी दिए हैं जिनका गहरा ताल्लुक़ हमारे आज के सामाजिक और राजनीतिक माहौल से भी है। मसलन हिन्दू-मुसलमान के बीच बढ़ाए जा रहे विद्वेष पर वे कहती हैं कि ‘इन सारे जालों को साफ़ करने का काम उतने प्रभावी ढंग से हमारी क़लम नहीं कर पाई जितना राजनेता समाज को काटने और दिलों को बाँटने में कामयाब हुए हैं।’ इस पुस्तक में कुछ सवालों के जवाब में उन्होंने ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक-सामाजिक घटनाक्रम पर विस्तार से चर्चा की है, और अन्य सामयिक मुद्दों पर भी जिनमें हिन्दी कहानी, साहित्य, दुनियाभर की स्त्री का लेखन और जीवन, बँटवारा, दंगे, भारत में मुस्लिम जीवन आदि शामिल हैं। आज जब हम कई निर्णायक मोर्चों पर किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े हैं, एक बड़ी क़लम के ये विचार नि:सन्देह हमें कुछ रौशनी देंगे।
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