Chanakya Ke Jasoos
Author:
Trilok Nath PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
‘चाणक्य के जासूस’ अनेक अर्थों में एक महत्त्वपूर्ण कृति है। यह न केवल इतिहास को एक नई दृष्टि से देखती है बल्कि जासूसी की तमाम पुरातन-ऐतिहासिक तकनीकों का विशद विवेचन भी करती है। चाणक्य के बारे में प्रचलित अनगिनत मिथकों से इतर इसमें हमें उनका वह रूप दिखलाई पड़ता है, जो जासूसी का शास्त्र विकसित करता है और उसे राजनीतिशास्त्र का अपरिहार्य अंग बनाकर मगध साम्राज्य के शक्तिशाली किंतु अहंकारी शासक धननन्द का अन्त सम्भव करता है। बेशक धननन्द का महामात्य कात्यायन जो इतिहास में राक्षस के रूप में प्रसिद्ध है, भी जासूसी में कम प्रवीण न था, लेकिन उसके पास केवल सत्ता-बल था। उसकी जासूसी विद्या नैतिकता की बजाय निजी स्वार्थपरता से संचालित थी। लेकिन चाणक्य ने अपनी जासूसी में व्यावहारिकता और नैतिकता का सामंजस्य हमेशा बनाए रखा और मगध साम्राज्य की जनता के कल्याण के उद्देश्य को कभी नहीं भूला।
यह उपन्यास दिखलाता है कि चाणक्य ने सम्राट धननन्द को खून की एक भी बूँद बहाए बिना अपने बुद्धिबल से मगध साम्राज्य के सिंहासन से अपदस्थ किया और चंद्रगुप्त को उस पर बिठाकर राष्ट्र के सुदृढ़ भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया। इसमें इतिहास का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला वह जासूसी तंत्र अपने पूरे विस्तार में दिखलाई पड़ता है, जो हमेशा से नेपथ्य में रहकर ही अपना काम करता है। इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड इस उपन्यास का आधार है। लेकिन यह एक साहित्यिक कृति है। इसलिए इतिहास को दुहराने की बजाय इसमें उस कालखंड के ऐतिहासिक मर्म को तथ्यसंगत ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसकी प्रासंगिकता आज भी क़ायम है। उपन्यास में लेखक ने जासूसी की आधुनिक विधियों का भी पर्याप्त उल्लेख किया है और तमाम ऐतिहासिक और आधुनिक सन्दर्भों से उसे विश्सनीय बनाया है। इस लिहाज से यह खासा शोधपूर्ण उपन्यास है, ख़ासकर इसलिए भी कि ख़ुद लेखक भी लम्बे समय तक जासूसी सेवा में रहा है। बेहद पठनीय और रोमांचक कृति!
—शशिभूषण द्विवेदी
ISBN: 9789389598421
Pages: 343
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: हिंदू रूढीप्रिय का आहेत?ते मूर्तीपूजा का करतात?ते नेहमीच जातीयतावादी होते काय?ते शाकाहारी असणं अपेक्षित आहे काय?हिंदू प्रार्थना ही मुस्लिम वा ख्रिश्चन प्रार्थनेहून निराळी का आहे?मुस्लिम आक्रमकांच्या आगमनामुळे हिंदू संस्कृती नष्ट झाली आहे काय?हिंदू तत्त्वज्ञान आणि त्यासंबंधाने उपस्थित केल्या जाणाऱ्या अशा कळीच्या प्रश्नांची साध्या-सोप्या, स्पष्ट नि अखेरपर्यंत उत्कंठा कायम ठेवणाऱ्या पद्धतीनं दिलेली उत्तरं म्हणजे हे पुस्तक होय. देवदत्त पट्टनायक यांचं हे नवं पुस्तक हिंदूधर्मातील गुंतागुंतीच्या सिद्धांतांवरील माहितीचा खजिना आहे.‘श्रद्धा: हिंदूधर्मातील चाळीस समजुती' हे पुस्तक जगातील सर्वदूर पसरलेल्या विशाल धर्मातील पद्धती नि गुंतागुंत यांची उकल करून वाचकांच्या पुढ्यात ठेवते आणि एकूणच हिंदू धर्माकडे बघण्याचा नवा दृष्टिकोन बहाल करते. श्रद्धा देवदत्त पट्टनायक अनुवाद : डॉ. विजया देशपांडे Shradha | Devdutt Pattanaik Translated By : Dr. Vijaya Deshpande
Vivad, Virodh Aur Vikas Ki Narmada
- Author Name:
Adil Khan
- Book Type:

- Description: देश की पाँचवीं सबसे बड़ी नदी नर्मदा, अपने अंचल में बसी आबादी के लिए साक्षात् जीवनदायिनी है। इसके विशाल कछार क्षेत्र में फैले वन, वनों में विचरते वन्य प्राणियों और पक्षियों के विविध रूप नर्मदा घाटी को प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य प्रदान करते हैं। नर्मदा के जल को विकास के लिए दोहन करने के विचार को पंडित जवाहरलाल नेहरू के उस विकास मॉडल ने आधार प्रदान किया। जिसमें नदियों पर बड़े बाँधों का निर्माण करना प्राथमिकता में सम्मिलित था। लेकिन नर्मदा जल के दोहन के विचार के साथ ही नर्मदा जल बँटवारे का विचार प्रारम्भ हुआ जो कालान्तर में नर्मदा जल विवाद बन गया। विवादों के निराकरण के प्रयासों में जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन हुआ और लम्बे समय तक केन्द्र और सम्बन्धित राज्यों के बीच नर्मदा जल विवाद निराकरण की गतिविधियाँ चलती रहीं। न्यायाधिकरण ने चार राज्यों में जल का बँटवारा, नर्मदा पर परियोजनाओं का निर्माण, जल का उपयोग, जल विद्युत् उत्पादन और अन्य सम्बन्धित विषयों के साथ ही अनेक अन्तरराज्यीय दायित्वों का भी निर्धारण किया। इस सबके बावजूद राज्यों के बीच छोटे-मोटे विवाद और समस्याएँ उठती रहीं, सुलझती रहीं। नर्मदा जल विवाद और परियोजनाओं के विरोध का लम्बा इतिहास है। नर्मदा विवाद, विरोध और विकास के विविध आयामों को प्रस्तुत करने का अब तक कोई समग्र प्रयास नहीं हुआ है। इसको देखते हुए यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि नर्मदा और उससे सम्बन्धित विवाद, विरोध और विकास के इतिहास और वर्तमान की सम्पूर्ण जानकारी सरल और समग्र रूप में एक जगह संकलित की जाएँ।
Ardhanareeshwar
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक के निबन्ध अपने समय के दस्तावेज हैं जिनको पढ़ते दिनकर के वैचारिक-स्रोतों और सन्दर्भों से हम अवगत हो सकते हैं; और जान सकते हैं कि एक युगद्रष्टा साहित्यकार अपने जीवन में अपनी कलम के साथ किस द्वन्द्व-अन्तर्द्वन्द्व के साथ जीता रहा। ‘अर्धनारीश्वर’ दिनकर का वह निबन्ध-संग्रह हैं जिसमें समाज, साहित्य, राजनीति, स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता, अन्तरराष्ट्रीयता, धर्म, विज्ञान के साथ-साथ लेखकों, चिन्तकों, मनीषियों, राजनेताओं के कृतित्व और व्यक्तित्व से जुड़े अनेक पहलुओं का व्यापक परिप्रेक्ष्य में गम्भीरता से आकलन किया गया है और तर्क-सम्मत निष्कर्ष निकाले गए हैं। इस संग्रह का नाम ‘अर्धनारीश्वर’ क्यों रखा गया, इसके बारे में स्वयं लेखक का कहना है कि, '“इसमें ऐसे भी निबन्ध हैं जो मन-बहलाव में लिखे जाने के कारण कविता की चौहद्दी के पास पड़ते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिनमें बौद्धिक चिन्तन या विश्लेषण प्रधान है। इसीलिए मैंने इस संग्रह का नाम ‘अर्धनारीश्वर’ रखा है, यद्यपि इसमें अनुपातत: नरत्व अधिक और नारीत्व कम है।” अतएव स्पष्ट है कि राष्ट्रकवि दिनकर की कविताएँ जिन्हें पसन्द हैं, उन्हें ये निबन्ध भी उनकी सोच-संवेदना के बेहद करीब लगेंगे।
Ab Ve Vhan Nahin Rehte
- Author Name:
Rajendra Yadav
- Book Type:

- Description: मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव की त्रयी को ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रवर्त्तक और उन्नायक के रूप में जाना जाता है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह को नई कहानी की प्रवृत्तियों को सूत्रबद्ध करने का श्रेय है। यह बात ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद के ये चार शिखर रचनाकार आपस में गहरे मित्र थे, 1950 तथा ’60 के दशक में इन लोगों के बीच ज़बरदस्त अन्तर्संवाद भी था। आलोचना-प्रत्यालोचना और आत्मालोचना से भरे इस अन्तर्संवाद ने उस आन्दोलन को बल दिया, इन रचनाकारों को भी इससे ऊर्जा मिली यह वह समय था जब भारत का नया समाज बन रहा था और साहित्य का भी स्वरूप बदल रहा था। ऐसे में कुछ भी नया करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी था और उसका सबसे सुगम मार्ग था पत्र। मित्रों की स्वस्थ आलोचना उस समय का युगधर्म था। जाहिर है, रचनाशीलता के विकास में भी उसकी गहरी भूमिका थी। राजेन्द्र यादव के नाम मोहन राकेश, कमलेश्वर और डॉ. नामवर सिंह तथा राजेन्द्र यादव के नामवर सिंह के लिए पत्रों का यह संग्रह अपने समय के लेखकीय अन्तर्संवादों का जीवन्त दस्तावेज़ है। इनके माध्यम से इन लेखकों के रचनात्मक संघर्ष को भी समझा जा सकता है और साहित्य की उन अन्तर्ध्वनियों को भी, जिन्हें साहित्य के किसी इतिहास के माध्यम से सुन-समझ पाना सम्भव नहीं है।
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