Yahan Hathi Rahte The
Author:
Geetanjali ShreePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से बदलते हमारे इस वक़्त को बारीकी से देखती प्रख्यात कथाकार गीतांजलि श्री की ग्यारह कहानियाँ हैं यहाँ। नई उम्मीदें जगाता और नए रास्ते खोलता वक़्त। हमारे अन्दर घुन की तरह घुस गया वक़्त भी। सदा सुख-दु:ख, आनन्द-अवसाद, आशा-हताशा के बीच भटकते मानव को थोड़ा ज़्यादा दयनीय, थोड़ा ज़्यादा हास्यास्पद बनाता <br />वक़्त।</p>
<p>विरोधी मनोभावों और विचारों को परत-दर-परत उघाड़ती हैं ये कहानियाँ। इनकी विशेषता—कलात्मक उपलब्धि है—भाषा और शिल्प का विषयवस्तु के मुताबिक़ ढलते जाना। माध्यम, रूप और कथावस्तु एकरस-एकरूप हैं यहाँ। मसलन, ‘इति’ में मौत के वक़्त की बदहवासी, ‘थकान’ में प्रेम के अवसान का अवसाद, ‘चकरघिन्नी’ में उन्माद की मनःस्थिति, या ‘मार्च माँ और साकुरा’ में निश्छल आनन्द के उत्सव के लिए इस्तेमाल की गई भाषा ही क्रमशः बदहवासी, अवसाद, उन्माद और उत्सव की भाषा हो जाती है।</p>
<p>पर अन्ततः ये दु:ख की कहानियाँ हैं। दु:ख बहुत, बार-बार और अनेक रूपों में आता है इनमें। ‘यहाँ हाथी रहते थे’ और ‘आजकल’ में साम्प्रदायिक हिंसा का दु:ख, ‘इतना आसमान’ में प्रकृति की तबाही और उससे बिछोह का दु:ख, ‘बुलडोज़र’ और ‘तितलियाँ’ में आसन्न असमय मौत का दु:ख, ‘थकान’ और ‘लौटती आहट’ में प्रेम के रिस जाने का दु:ख। एक और दु:ख, बड़ी शिद्दत से, आता है ‘चकरघिन्नी’ में। नारी स्वातंत्र्य और नारी सशक्तीकरण के हमारे जैसे वक़्त में भी आधुनिक नारी की निस्सहायता का दु:ख।</p>
<p>हमारी ज़िन्दगी की बदलती बहुरूपी असलियत तक बड़े आड़े-तिरछे रास्तों से पहुँचती हैं ये कहानियाँ। एक बिलकुल ही अलग, विशिष्ट और नवाचारी कथा-लेखन से रू-ब-रू कराते हुए हमें।</p>
<p>
ISBN: 9789393768971
Pages: 183
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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लेकिन ख़ुद की निर्मम आलोचना कथाकार को फिर भी एक ऐसा काम लगती है जिसे किया ही जाना चाहिए। ‘जब कहानी मिलती है’, ‘लाश’ और ‘चीख’, ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें तमाम सुख-सुविधाओं, साधनों और सामर्थ्यों से लैस एक आधुनिक व्यक्ति अपना विवेचन करता है, सामाजिक-मानवीय कर्तव्यों से विमुख होने पर ख़ुद को लज्जित महसूस करता है, और इस तरह बताता है कि एक निर्णायक बदलाव जहाँ स्थगित पड़ा है, वह हमारा स्वयं का अन्तस है।
भाषा के अपव्यय से बचते हुए तथ्य और कथ्य से सम्पन्न गद्य प्रियदर्शन को हमेशा पठनीय बनाता है। सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियों में भी, ये तो फिर कहानियाँ हैं; पढ़ना शुरू करेंगे तो पूरा करके ही उठेंगे। बेशक कुछ ज़्यादा मनुष्य होकर।
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