Sayani Deewani
Author:
Noor ZaheerPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 128
₹
160
Available
इस्मत चुग़ताई, रशीद जहाँ, क़ुर्रतुल-ऐन-हैदर, जीलानी बानो की रिवायतों को आगे बढ़ानेवाली नूर ज़हीर हमारे समय के उन विशिष्ट कथाकारों में से हैं जिन्होंने मज़हबी कठमुल्लेपन और पुरुषवादी मानसिकता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलन्द की। उनके उपन्यास 'माइ गॉड इज़ ए वुमन' (जो हिन्दी में 'अपना ख़ुदा एक औरत' नाम से प्रकाशित हुआ है) में मज़हबी संकीर्णता के ख़िलाफ़ स्त्री-मुक्ति की कई छवियाँ देखी जा सकती हैं। उनकी कहानियों के स्त्री-पात्र मज़हबी संकीर्णताओं के शिकंजों से बाहर निकलकर अपनी मुक्ति के रास्ते तलाश करते हुए दिखाई देते हैं।</p>
<p>नूर ज़हीर की कहानियों की एक ख़ूबी यह है कि वे पुरुषप्रधान समाज में स्त्री की स्थितियों को मानवीय करुणा के साथ व्यक्त करती हैं। वे ऐसे स्त्री-पात्रों की रचना करती हैं जो पुरुषप्रधान समाज द्वारा निर्धारित रूढ़ियों और रिवायतों के ख़िलाफ़ उठकर अपनी अस्मिता की तलाश करती हैं। नूर ज़हीर की कहानियाँ पुरुष मानसिकता के सख़्त शिकंजे के ही नहीं, सख़्त मज़हबी शिकंजों के ख़िलाफ़ भी अपनी आवाज़ बुलन्द करती नज़र आती हैं।</p>
<p>नूर ज़हीर अपनी कहानियों में स्थितियों, पात्रों की मनोदशाओं और कहानी के ब्योरों का बेहद मार्मिक वर्णन करती हैं। वे बहुत छोटे-छोटे दृश्यों और संवादों के ज़रिए कहानी का ताना-बाना इस तरह बुनती हैं कि पाठक उनसे सहज ही जुड़ाव महसूस करता है। </p>
<p> </p>
<p>—हरियश राय
ISBN: 9788183619523
Pages: 159
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
नई कहानी के पारम्परिक ढाँचे को लगभग तोड़कर उदय प्रकाश, संजीव और शिवमूर्ति जैसे कथाकारों ने जो नई ज़मीन बनाई, उसे नब्बे के दशक में जिन कथाकारों ने विस्तार और गहराई देने का काम किया, उनमें संजय सहाय भी एक रहे। 1994 में ‘हंस’ में प्रकाशित अपनी कहानी ‘शेषान्त’ के साथ उन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य में जैसे एक नई लकीर खींच दी थी। बेशक, उन्होंने कहानियाँ कम लिखीं। लेकिन जब भी लिखीं, पाठकों को एक नया आस्वाद, एक नया अनुभव दिया। अब लगभग दो दशक बाद उनका यह नया कहानी-संग्रह ‘मुलाक़ात’ नए सिरे से याद दिलाता है कि ज़िन्दगी की तरह कहानी में भी कितनी परतें हो सकती हैं। यह दरअसल शिल्प का कमाल नहीं, संवेदना की पकड़ है जो कथाकार को यह देखने की क्षमता देती है कि एक मुठभेड़ के भीतर कितनी मुठभेड़ें चलती रहती हैं, कि जब हम दूसरे को मारने निकलते हैं तो पहले कितना ख़ुद को मारते हैं, कि जीवन कितना निरीह और फिर भी कितना मूल्यवान हो सकता है, कि एक पछतावा उम्र-भर किसी का इस तरह पीछा कर सकता है कि वह अपनी देह के खोल से निकलकर उस शख़्स को खोजना चाहे जिसके साथ बचपन में कभी उसने अन्याय किया था, कि उसे एहसास हो कि यह अन्याय व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक था और इस वजह से कहीं ज़्यादा मार्मिक और मारक हो गया था।
ये कहानियाँ आपको तनाव से भर सकती हैं, आपको स्तब्ध कर सकती हैं और आपको इस तनाव से मुक्ति भी दिला सकती हैं, इस स्तब्धता से उबार भी सकती हैं। क़िस्सागोई की तरलता और जीवन के स्पन्दन से भरी इन कहानियों को पढ़ना एक विलक्षण अनुभव है जो आपको कुछ और बना देता है।
—प्रियदर्शन
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