Andhe Mod Se Aage
Author:
Rajee SethPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Unavailable
मानवीय सम्बन्धों के द्वन्द्व और अन्तर्द्वन्द्व की आन्तरिक विकलता, मंथर प्रवाह और गहराई; कथ्य-चयन में संकेन्द्रण, शिल्प रचने में धीरज, कृति की सधी हुई काठी—बेहद कमसिन, लचीली मगर भीतर से मज़बूत इरादे की तरह राजी की विशेषताएँ हैं। ऐसे रचना-गुण कुछ अलग संयोजनों में अन्य लेखकों में भी कमोबेश मिल जाएँगे परन्तु इन्हें एक अलग स्पर्श और लावण्य देती है राजी की ‘स्त्री’ जो वहाँ सिर्फ़ संवेदन में ही नहीं, जैविक पदार्थता में भी है। पुरुष-स्पर्द्धी आधुनिक स्त्री की तरह राजी अपने लेखन में न तो स्त्री होने से इनकार करती हैं और न उसे नष्ट करती हैं, बल्कि अपने नैसर्गिक रूप में उसकी शक्ति और सम्भावना, उसके सत्य और अनुभव, उसकी नियति और उत्कटता का वह सृजनात्मक उपयोग करती हैं। स्त्री होने को स्वीकारते हुए, राजी के लेखक ने इस स्वीकार के भीतर जितने इनकार रचे हैं, यथास्थिति में जितने हस्तक्षेप किए हैं, उसे उनकी आधुनिक पहचान के लिए देखना ज़रूरी है। राजी ने स्त्री के भीतर पराजित पुरुष को; बल्कि व्यवस्था को, जितनी भंगिमाओं में उकेरा है और अपनी विंध्यात्मक दृष्टि से जो मूल्यवत्ता अर्जित की है, उससे नए-नए सृष्ट्यर्थ प्रकट हुए हैं। वे ऐसी महिलावादी नहीं हैं जिन्हें पुरुष नकारात्मक उपस्थिति लगता है, वे स्त्री की खोट भी पहचानने की कोशिश करती हैं और भरसक निरपेक्ष बनी रहकर अधिक विश्वसनीय होती हैं। वे बार-बार इस प्रश्न से जूझती हैं कि क्या समाज आधुनिकता के नाम पर जारी विघटनों और विद्रूपों के सहारे ज़िन्दा रह सकेगा। अपने को देखता हुआ लेखक इसका साभिप्राय और सचेष्ट उपयोग कर सके तो वह व्यक्तित्व को विशिष्टता देता है और रचना को विरलता। राजी इसी वास्ते धारा में भी अलग हैं। अपनी पहचान आप। राजी की कहानियाँ हिन्दी जगत में एक अलग जगह की अधिकारी हैं और अलग ढंग से बात करने की ज़रूरत महसूस कराती हैं।</p>
<p>—प्रभाकर क्षोत्रिय
ISBN: 9788126706037
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कुँवर नारायण उन अत्यल्प साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों में हैं जिन्होंने अपने लेखन में भारतीय और वैश्विक विचार, चिन्तन, संवेदना और सरोकारों से गहन संवाद किया है। यह संवाद किसी एक साहित्यिक विधा तक सीमित नहीं रहा। उनकी काव्येतर कृतियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं। कुँवर नारायण ने जैसे विश्वस्तरीय कविताएँ लिखी हैं वैसे ही कहानियाँ भी। 'बेचैन पत्तों का कोरस' कुँवर नारायण का दूसरा कहानी-संग्रह है। पहला कहानी-संग्रह, 'आकारों के आसपास', सत्तर के दशक में आया था। अपनी असाधारण मौलिकता के चलते यह संग्रह ख़ासा ध्यानाकर्षक रहा। उस वक़्त रघुवीर सहाय, श्रीकान्त वर्मा, श्रीलाल शुक्ल, नेमिचन्द्र जैन जैसे साहित्यकारों ने इन कहानियों को सुखद आश्चर्य के साथ सराहा।
वर्तमान समय के कथाकारों और समीक्षकों तक के लिए ये कहानियाँ निरन्तर आकर्षण और प्रेरणा का विषय बनी हुई हैं। इसी उपलब्धि का विस्तार हम इस दूसरे संकलन में पाते हैं, जो कि एक लम्बे अन्तराल के बाद आ रहा है।
वर्तमान कथा-परिदृश्य को यह संकलन कई मानों में समृद्ध करेगा। इन कहानियों में अन्तर्वस्तु की विविधता ही नहीं, भाषा, संरचना और रूप का वैविध्य भी उत्कृष्टता का प्रमाण है। हर कहानी स्वयं में नई है और दूसरी से पृथक् भी। ये कहानियाँ औपचारिक और परम्परागत तरीक़े से अलग, कहानी विधा में प्रयोग और नवाचार हैं। बहुविधात्मक प्रभाव का सुन्दर समन्वय इन कहानियों को बहुस्तरीय बनाता है, और निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, चारित्रिकी, कविता आदि विधाओं की सम्मिलित शक्ति इन कहानियों के क्षितिज को विस्तृत करती है।
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